मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात #1 – निर्मिती प्रक्रिया ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

 

(प्रत्येक कवि की कविता के सृजन के पीछे कोई न कोई तथ्य होता है, जो कवि को तब तक विचलित करता है, जब तक वह उस कविता की रचना न कर ले। और शायद यही उस कविता की सृजन प्रक्रिया है।  किन्तु, इसके पीछे एक संवेदनशील हृदय भी कार्य करता है। ऐसी ही संवेदनशील कवियित्रि सुश्री प्रभा सोनवणे जी  ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर “कवितेच्या प्रदेशात” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने हेतु अपनी सहमति दी है।  इसके लिए हम आपके आभारी हैं।  अब आप प्रत्येक बुधवार को उनकी रचनाओं को पढ़ सकेंगे।

यह सच  है कि- कवि को काव्य सृजन की प्रतिभा ईश्वर की देन है। उनके ही शब्दों में  “काव्य प्रतिभा ही आपल्याला मिळालेली ईश्वरी देणगी आहे हे नक्की!”  आज प्रस्तुत है  काव्य सृजन पर उनका आलेख “निर्मिती प्रक्रिया”)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात ☆

 ☆ निर्मितीप्रक्रिया ☆

 

मला आठवतंय मी पहिल्यांदा कविता लिहिली ती इयत्ता आठवीत असताना हस्तलिखितासाठी, *माँ पाठशाला*  या शीर्षकाची ती हिंदी कविता होती, आठवी ते अकरावी या काळात मी तुरळक हिंदी कविता लिहिल्या, त्या रेडिओ श्रीलंका- रेडिओ लिसनर्स क्लब च्या रेडिओ पत्रिकांमध्ये प्रकाशित ही झाल्या!

१९७० सालापासून कविता सतत माझ्या बरोबर आहे, आयुष्याचा एक अविभाज्य घटक  बनली आहे!

चित्र काव्य, विषयावर आधारित काव्य रचताना, कुठली तरी घटना, स्थळ आपल्या मनात येतं आणि आपण कविता रचत जातो,

आपल्याला आवडलेलं, खुपलेलं, खदखदणारं कवितेत उतरत असतं, मी सकाळ नाट्यवाचन स्पर्धेसाठी ग्रामीण भागात परीक्षक म्हणून जात असताना, नुकतीच घडलेली जवळच्या नात्यातल्या तरूण मुलीच्या  आत्महत्येची घटना मनाला क्लेश देत होती, भोर च्या शाळेत नाट्यवाचनाचे परिक्षण करत असताना अचानक रडू कोसळले आणि तिथेच पहिला शेर लिहिला—

 

*तारूण्यातच कसे स्वतःला संपवले पोरी*

*आयुष्याला असे अचानक थांबवले पोरी*

 

काफिये रदीफ़ काहीच मनात योजले नव्हते, मी एकीकडे नाट्यवाचन ऐकत होते, विद्यार्थ्यांना, नाटकाला गुण देत होते आणि त्याचवेळी मला शेर सुचत होते….

 

बाईपण हे नसेच सोपे वाटा काटेरी

रक्ताने तन मृदूमुलायम रंगवले पोरी

 

आले होते मनात तुझिया स्वप्नांचे पक्षी

गोफण फिरवत कठोरतेने पांगवले पोरी

 

तळहातावर ठळक प्रितीची रेषा असताना

निष्प्रेमाचे दिवस कसे तू घालवले पोरी

 

सौंदर्याला दिलीस शिक्षा क्लेश जिवालाही

परक्यापरि तू स्वतःस येथे वागवले पोरी

 

संपवता तू तुझी कहाणी दोष दिला दैवा

अंगण आता पुन्हा नव्याने सारवले पोरी

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुश्री सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – #1 ?नीम की छांव ? ☆ – सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी  की लघुकथाओं का अपना संसार है। सुश्री सिद्धेश्वरी जी ने इस साप्ताहिक स्तम्भ के लिए मेरे आग्रह को स्वीकारा इसके लिए उनका आभार।  अब आप प्रत्येक मंगलवार उनकी एक लघुकथा पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा “नीम की छांव”।)

 

☆ सुश्री सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं ☆

?नीम की छांव ?

 

एक गांव में नीम की छांव पर उसने अपना घर बनाया। दिमाग से थोड़ा विक्षिप्त घर से निकाल दी गई थी। सही गलत का फैसला कर नहीं पाती थी। एक तो गरीबी और उपर से बेटी की लाचारी पर तरस तो सभी खाते पर कोई सहारा देना नहीं चाहते थे।  बूढ़े मां बाप के खतम होने के साथ उसका रूप भी नीम की छांव के नीचे सब को दिखने लगा था।

एक बडे़ घर से कार आकर रोज ही रूकने लगी, कभी खाने का सामान तो कभी कपड़े। वो नासमझ समझ न सकी कि उस पर इतनी मेहरबानी क्यों हो रही है। उसे उसका साथ अच्छा लगने लगा। अब तो कार वाला छुपके से दरवाजा खोल कार में बिठा उसे ले जाने लगा। समय पंख लगा कर उड़ चला।उसे देखने से समझ में आने लगा कि वो किसी झांसे का शिकार हो चुकी है। अब कार आना बंद हो चुका था। मातृत्व की झलक उस बेचारी पर दिखने लगी। समय आने पर उसने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया और फिर उसे अपने तरीके से पालने लगी। कहते हैं उसके दुखों का अंत नहीं हुआ। असमय अनेक प्रकार की बीमारी से उसका अंत हो गया और छोड़ गयी एक नन्ही सी जान। सभी उस पर दया की भावना रखने लगे। उसी नीम की छांव पर खेलती और वहीँ सो जाया करती।

एक बढे भव्य भवन में पूजन का कार्यक्रम चल रहा था। कन्या भोज के समय उसे भी बुला लिया गया। पूछने पर पता चला कि नीम की छांव ही उसका घर है। पिताजी को देखीं नहीं और माँ को किसी ने जला दिया। इतना ही कह सकी। उस भवन की जैसे नीव ही हिल चुकी थी । जिस प्रकार से बेटी ने अपना परिचय दिया। सारी कहानी सुनते ही आँखों से आँसू गिरने लगे। सभी परेशान थे कि मामला क्या है। अचानक ही उसने सबसे कहा कि बरसों से मैं शीतला देवी की पूजा करता था। आज शीतला कन्या के रूप में स्वयं मेरे यहां आई है। और अब से यही घर ही इसका मंदिर है। समाज ने कोई आपत्ति नहीं उठाई। गर्व से उसने अपनी बेटी को सत्कार पूर्वक अपना लिया और किसी को पता भी नहीं लगने दिया। बिटिया भी इस चीज को समझ न सकी पर भक्त रूपी पिता को पा कर बहुत ही खुश हो गयी। बस उसकी एक इच्छा थी कि घर के सामने उसे अपनी माँ ” नीम की छांव ” चाहिए।

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© सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #1 -शब्द माझे ☆  – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है ।  इस साप्ताहिक स्तम्भ में अपनी काव्याभिव्यक्ति के लिए उन्होने मेरे आग्रह को स्वीकारा। इसके लिए श्री अशोक जी का आभार।  अब आप प्रत्येक मंगलवार उनकी कविता पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “शब्द माझे” )

☆ अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती ☆

☆ शब्द माझे ☆ 

 

शब्द माझे एवढे शालीन होते

सभ्यतेची आब ते राखून होते

 

वाह वा ऐकू न आली जाहलेली

आपल्या गाण्यात ते तल्लीन होते

 

देवळाच्या आत अन् बाहेर भिक्षुक

आत गुर्मी पायरीवर दीन होते

 

बोलतो भिंतीसवे कळते तिलाही

घर घराला एवढे लागून होते

 

बुरुज आता ढासळाया लागले का ?

प्रेम माझे हे कुठे प्राचीन होते

 

सांगतो ठोकून छाती या इथे मी

प्रेम का तू ठेवले झाकून होते ?

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #1 – आत्मकथ्य – युवा सरोकार के लघु आलेख ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।  आज प्रस्तुत है सुश्री अनुभा जी का आत्मकथ्य।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

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☆ सकारात्मक सपने  ☆

☆ आत्मकथ्य  – युवा सरोकार के लघु आलेख☆

जीवन में विचारो का सर्वाधिक महत्व है. विचार ही हमारे जीवन को दिशा देते हैं, विचारो के आधार पर ही हम निर्णय लेते हैं . विचार व्यक्तिगत अनुभव , पठन पाठन और परिवेश के आधार पर बनते हैं . इस दृष्टि से सुविचारो का महत्व निर्विवाद है . अक्षर अपनी इकाई में अभिव्यक्ति का वह सामर्थ्य नही रखते , जो सार्थकता वे  शब्द बनकर और फिर वाक्य के रूप में अभिव्यक्त कर पाते हैं . विषय की संप्रेषणीयता  लेख बनकर व्यापक हो पाती है.   इसी क्रम में स्फुट आलेख उतने दीर्घजीवी नही होते जितने वे पुस्तक के रूप में  प्रभावी और उपयोगी बन जाते हैं . समय समय पर मैने विभिन्न समसामयिक, युवा मन को प्रभावित करते विभिन्न विषयो पर अपने विचारो को आलेखो के रूप में अभिव्यक्त किया है जिन्हें ब्लाग के रूप में या पत्र पत्रिकाओ में  स्थान मिला है. लेखन के रूप में वैचारिक अभिव्यक्ति का यह क्रम  और कुछ नही तो कम से कम डायरी के स्वरूप में निरंतर जारी है.

अपने इन्ही आलेखो में से चुनिंदा जिन रचनाओ का शाश्वत मूल्य है तथा  कुछ वे रचनाये जो भले ही आज ज्वलंत  न हो किन्तु उनका महत्व तत्कालीन परिदृश्य में युवा सोच  को समझने की दृष्टि से प्रासंगिक है व जो विचारो को सकारात्मक दिशा देते हैं ऐसे आलेखों को प्रस्तुत कृति में संग्रहित करने का प्रयास किया  है . संग्रह में सम्मिलित प्रायः सभी आलेख स्वतंत्र विषयो पर लिखे गये हैं ,इस तरह पुस्तक में विषय विविधता है. कृति में कुछ लघु लेख हैं, तो कुछ लम्बे, बिना किसी नाप तौल के विषय की प्रस्तुति पर ध्यान देते हुये लेखन किया गया है.

आशा है कि पुस्तकाकार ये आलेख साहित्य की दृष्टि से  संदर्भ, व वैचारिक चिंतन मनन हेतु किंचित उपयोगी होंगे.

© अनुभा श्रीवास्तव

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ? रंजना जी यांचे साहित्य #-1  उन्हाळ्याची सुट्टी ? – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना इस एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।   सुश्री रंजना  जी की कविताएं  जमीन से जुड़ी  हैं एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देती हैं।  उनके द्वारा रचित बाल साहित्य की विशेषता यह है कि वह बच्चों के साथ ही बड़ों को भी संदेश देती है।  निश्चित ही उनके साहित्य  कीअपनी ही एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है  बाल गीत – उन्हाळ्याची सुट्टी )

? रंजना जी यांचे साहित्य #-1 ? 

 

☆ उन्हाळ्याची सुट्टी ☆

 

झाली सुट्टी उन्हाळीssss

हो झाली सुट्टी उन्हाळी , झटपट तिकीट कटवा।

मला करमेना इथे बाबा बिगीनं अजोळी  पाठवा।धृ।।।

 

या शाळेच्या नादात साल पुरा लोटला।

अभ्यास करून करून कंटाळा आई ग आला।

बसलो तयार होऊन….

बसलो तयार होऊन  , छंद वर्गाचा पत्ता कटवा ।।१।।

 

आली पाडाने बहरून मामाची आंबेराई ।

संत्री मोसंबी द्राक्षाची गणती कशाला बाई।

दोस्त कंपनी सारी…

दोस्त कंपनी सारी, झटपट सार्‍यांना भेटवा।।२।।

 

घुंगराच्या गाडीने डुलत डौलात जाईन।

डोंगर दरी खोऱ्यांची  घमाल रोजच पाहीन।

पोहू माशा परि…

पोहू माशा परि  आम्हा पहाटे बिगीन उठवा।।३।।

 

आजी आजोबाची हो, लाडाची चिमणी पोरं।

आणला मामा मामीनी झोक्याला घोटीव दोर।

उंच आभाळी झोका..

उंच आभाळी झोका अशी धमाल मनात साठवा।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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