मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #1 -शब्द माझे ☆  – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है ।  इस साप्ताहिक स्तम्भ में अपनी काव्याभिव्यक्ति के लिए उन्होने मेरे आग्रह को स्वीकारा। इसके लिए श्री अशोक जी का आभार।  अब आप प्रत्येक मंगलवार उनकी कविता पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “शब्द माझे” )

☆ अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती ☆

☆ शब्द माझे ☆ 

 

शब्द माझे एवढे शालीन होते

सभ्यतेची आब ते राखून होते

 

वाह वा ऐकू न आली जाहलेली

आपल्या गाण्यात ते तल्लीन होते

 

देवळाच्या आत अन् बाहेर भिक्षुक

आत गुर्मी पायरीवर दीन होते

 

बोलतो भिंतीसवे कळते तिलाही

घर घराला एवढे लागून होते

 

बुरुज आता ढासळाया लागले का ?

प्रेम माझे हे कुठे प्राचीन होते

 

सांगतो ठोकून छाती या इथे मी

प्रेम का तू ठेवले झाकून होते ?

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #1 – आत्मकथ्य – युवा सरोकार के लघु आलेख ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।  आज प्रस्तुत है सुश्री अनुभा जी का आत्मकथ्य।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

Amazon Link for eBook सकारात्मक सपने

 

Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

☆ सकारात्मक सपने  ☆

☆ आत्मकथ्य  – युवा सरोकार के लघु आलेख☆

जीवन में विचारो का सर्वाधिक महत्व है. विचार ही हमारे जीवन को दिशा देते हैं, विचारो के आधार पर ही हम निर्णय लेते हैं . विचार व्यक्तिगत अनुभव , पठन पाठन और परिवेश के आधार पर बनते हैं . इस दृष्टि से सुविचारो का महत्व निर्विवाद है . अक्षर अपनी इकाई में अभिव्यक्ति का वह सामर्थ्य नही रखते , जो सार्थकता वे  शब्द बनकर और फिर वाक्य के रूप में अभिव्यक्त कर पाते हैं . विषय की संप्रेषणीयता  लेख बनकर व्यापक हो पाती है.   इसी क्रम में स्फुट आलेख उतने दीर्घजीवी नही होते जितने वे पुस्तक के रूप में  प्रभावी और उपयोगी बन जाते हैं . समय समय पर मैने विभिन्न समसामयिक, युवा मन को प्रभावित करते विभिन्न विषयो पर अपने विचारो को आलेखो के रूप में अभिव्यक्त किया है जिन्हें ब्लाग के रूप में या पत्र पत्रिकाओ में  स्थान मिला है. लेखन के रूप में वैचारिक अभिव्यक्ति का यह क्रम  और कुछ नही तो कम से कम डायरी के स्वरूप में निरंतर जारी है.

अपने इन्ही आलेखो में से चुनिंदा जिन रचनाओ का शाश्वत मूल्य है तथा  कुछ वे रचनाये जो भले ही आज ज्वलंत  न हो किन्तु उनका महत्व तत्कालीन परिदृश्य में युवा सोच  को समझने की दृष्टि से प्रासंगिक है व जो विचारो को सकारात्मक दिशा देते हैं ऐसे आलेखों को प्रस्तुत कृति में संग्रहित करने का प्रयास किया  है . संग्रह में सम्मिलित प्रायः सभी आलेख स्वतंत्र विषयो पर लिखे गये हैं ,इस तरह पुस्तक में विषय विविधता है. कृति में कुछ लघु लेख हैं, तो कुछ लम्बे, बिना किसी नाप तौल के विषय की प्रस्तुति पर ध्यान देते हुये लेखन किया गया है.

आशा है कि पुस्तकाकार ये आलेख साहित्य की दृष्टि से  संदर्भ, व वैचारिक चिंतन मनन हेतु किंचित उपयोगी होंगे.

© अनुभा श्रीवास्तव

 

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ? रंजना जी यांचे साहित्य #-1  उन्हाळ्याची सुट्टी ? – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना इस एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।   सुश्री रंजना  जी की कविताएं  जमीन से जुड़ी  हैं एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देती हैं।  उनके द्वारा रचित बाल साहित्य की विशेषता यह है कि वह बच्चों के साथ ही बड़ों को भी संदेश देती है।  निश्चित ही उनके साहित्य  कीअपनी ही एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है  बाल गीत – उन्हाळ्याची सुट्टी )

? रंजना जी यांचे साहित्य #-1 ? 

 

☆ उन्हाळ्याची सुट्टी ☆

 

झाली सुट्टी उन्हाळीssss

हो झाली सुट्टी उन्हाळी , झटपट तिकीट कटवा।

मला करमेना इथे बाबा बिगीनं अजोळी  पाठवा।धृ।।।

 

या शाळेच्या नादात साल पुरा लोटला।

अभ्यास करून करून कंटाळा आई ग आला।

बसलो तयार होऊन….

बसलो तयार होऊन  , छंद वर्गाचा पत्ता कटवा ।।१।।

 

आली पाडाने बहरून मामाची आंबेराई ।

संत्री मोसंबी द्राक्षाची गणती कशाला बाई।

दोस्त कंपनी सारी…

दोस्त कंपनी सारी, झटपट सार्‍यांना भेटवा।।२।।

 

घुंगराच्या गाडीने डुलत डौलात जाईन।

डोंगर दरी खोऱ्यांची  घमाल रोजच पाहीन।

पोहू माशा परि…

पोहू माशा परि  आम्हा पहाटे बिगीन उठवा।।३।।

 

आजी आजोबाची हो, लाडाची चिमणी पोरं।

आणला मामा मामीनी झोक्याला घोटीव दोर।

उंच आभाळी झोका..

उंच आभाळी झोका अशी धमाल मनात साठवा।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

Please share your Post !

Shares
image_print