तितीक्षा इंटरनॅशनल पुणे आयोजित दशदिवशीय नवरात्र काव्य लेखन स्पर्धेत आपल्या समूहातील ज्येष्ठ लेखिका व कवयित्री सुश्री उज्ज्वला सहस्रबुद्धे यांना प्रथम क्रमांक प्राप्त झाला आहे. विशेष म्हणजे नवरात्रातील प्रत्येक दिवसासाठी एक आणि दसऱ्यासाठी एक अशा एकूण दहा काव्यरचना स्पर्धेसाठी मागवलेल्या होत्या, आणि सगळ्या रचना विचारात घेऊन क्रमांक ठरवण्यात आले. उज्ज्वलाताईंचे आपल्या सर्वांतर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील अशाच यशस्वी साहित्यिक वाटचालीसाठी असंख्य हार्दिक शुभेच्छा.
– आजच्या अंकात वाचूया त्यातील त्यांची एक पुरस्कारप्राप्त कविता – “सीमोल्लंघन करू…”
मराठी साहित्य मंडळ आयोजित आठवे साहित्य संमेलन कोरेगाव (सातारा) येथे रविवार दिनांक. २४\११\२०२४ रोजी संपन्न झाले. यात प्रतिष्ठेचा राज्य स्तरीय सावित्रीबाई फुले साहित्य भूषण पुरस्कार सातारा येथील सौ.सुरेखा सुरेश कुलकर्णी यांच्या ‘गुंफण शब्दांची नात्याची’ या पहिल्या काव्य संग्रहाला देण्यात आला.
💐 सौ. सुरेखा कुलकर्णी यांचे ई अभिव्यक्ती परिवारातर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील लेखनासाठी हार्दिक शुभेच्छा. 💐
– संपादक मंडळ
ई – अभिव्यक्ती, मराठी विभाग
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
☆ श्री विजय कुमार ‘श्री रोहित सरदाना स्मृति कृति पुरस्कार‘ से सम्मानित – अभिनंदन ☆
साहित्य सभा, कैथल द्वारा आरकेएसडी कॉलेज, कैथल में सम्मान समारोह पुस्तक/पत्रिका लोकार्पण कार्यक्रम एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।
भव्य समारोह में अंबाला छावनी ‘कहानी लेखन महाविद्यालय’ के प्रबंधक एवं मासिक पत्रिका ‘शुभ तारिका’ के सह-संपादक श्री विजय कुमार को ‘श्री रोहित सरदाना स्मृति कृति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी उर्दू प्रकोष्ठ के निदेशक डॉक्टर चंद्र त्रिखा (अध्यक्ष) और हरियाणा संस्कृत साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर चितरंजन दयाल कौशल (विशिष्ट अतिथि), साहित्य सभा, कैथल के संरक्षक डॉ. संजय गोयल, प्रधान अमृतलाल मदान एवं महासचिव डॉ. प्रद्युम्न भल्ला द्वारा शॉल, स्मृति चिह्न एवं नकद राशि देकर श्री विजय कुमार को सम्मानित किया गया।
इससे पूर्व भी श्री विजय कुमार को हिमालय और हिंदुस्तान फाउंडेशन, ऋषिकेश (उत्तराखंड), पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग (मेघालय) भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ उत्तर प्रदेश (सहारनपुर), सखी साहित्य परिवार, गुवाहाटी (असम) भारतीय लघुकथा विकास मंच, पानीपत, हिंदी साहित्य प्रेरक संस्था, जींद (हरियाणा), हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच, सिरसा, ‘नारी अस्मिता’, वडोदरा (गुजरात) द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
श्री विजय कुमार की रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी से भी हो चुका है। इनकी रचनाएं पश्चिम बंगाल राज्य सरकार द्वारा तीसरी कक्षा के पाठ्यक्रम में ली गई हैं। इनकी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी, मराठी, बांग्ला एवं असमिया भाषाओं में भी हो चुका है। इनके द्वारा वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियन ‘द ग्रेट खली’ (दिलीप सिंह राणा) पर लिखा गया ‘महाबली खली ने मचाई खलबली’ लेख इंटरनेट ‘विकिपीडिया’ पर देखा जा सकता है।
कार्यक्रम में लगभग 20 पुस्तकों का विमोचन एवं पिछले 52 वर्षों से नियमित प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका ‘शुभ तारिका’ के ‘हरियाणा विशेषांक’ का विमोचन भी किया गया।
दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ सहित प्रदेश के 22 साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में बहुभाषाई काव्य गोष्ठी का आयोजन भी किया गया, जिसमें आमंत्रित अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया।
ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री विजय कुमार जी को इस विशिष्ट उप्लब्धि के लिए हार्दिक बधाई
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
📖 दि. २८/११/२४ ते रविवार दि. १/१२/२४ अंक बंद – सूचना 📖
काही अपरिहार्य कारणामुळे गुरुवार दि. २८/११/२४ ते रविवार दि. १/१२/२४ असे चार दिवस आपला दैनिक अंक प्रकाशित केला जाणार नाही. सोमवार दि. २/१२/२४ पासून अंक पुन्हा नियमित प्रकाशित केला जाईल.
— कृपया सर्वांनी नोंद घ्यावी ही विनंती.
– संपादक मंडळ
ई – अभिव्यक्ती, मराठी विभाग
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
☆ साहित्य को समर्पित पत्रिका “व्यंग्य लोक” का लोकार्पण ☆
13 नवम्बर 2024, नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब के कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित एक भव्य समारोह में साहित्य को समर्पित एक नई पत्रिका “व्यंग्य लोक” का लोकार्पण हुआ।
वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय की अध्यक्षता और मुख्य अतिथि डॉ लक्ष्मी शंकर बाजपेयी तथा डॉ बजरंग बिहारी तिवारी एवं डॉ रमेश तिवारी के विशिष्ट आतिथ्य में इस पत्रिका का लोकार्पण हुआ। पत्रिका के संपादक श्री राम स्वरूप दीक्षित ने पत्रिका के प्रकाशन की पृष्ठभूमि बताई और साहित्य को समृद्ध करने की आवश्यकता पर बल दिया।
मंचस्थ अतिथियों के अतिरिक्त श्री राजेंद्र सहगल, श्री वेदप्रकाश भारद्वाज तथा श्री रामकिशोर उपाध्याय ने भी अपनी बात रखी।
प्रायः सभी वक्ताओं ने “व्यंग्य लोक’ के प्रकाशन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए साहित्य के विकास में पत्रिकाओं की सार्थक भूमिका पर अपने-अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए। साथ ही व्यंग्य लोक के उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम के अध्यक्ष और व्यंग्य यात्रा के संपादक डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा कि पत्रिका का नियमित प्रकाशन एक चुनौती है और धन की कमी आड़े आती है पर यदि आप अपने काम में ईमानदारी से लगे हैं तो तन, मन और धन से साथ देने वालों की कमी नहीं है। लोग आपको रचनात्मक सहयोग तो करते ही हैं, धन से भी सहयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि व्यंग्य लोक से यही अपेक्षा रहेगी कि यह पत्रिका व्यंग्य को और अधिक धार देने का काम करेगी। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य के विकास में पत्रिकाओं की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता। व्यंग्य लोक की सार्थकता इसी बात में होगी कि वह अपने पाठकों के अंदर विरोध का भाव भरे ताकि विसंगत समय में व्यक्ति नपुंसक होने से बचे। डॉ जनमेजय ने इस पत्रिका के प्रकाशन के लिए शुभकामनाएं दी और साथ ही सहयोग के रूप में अंशदान का लिफाफा भी भेंट किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद वरिष्ठ साहित्यकार और कवि डॉक्टर लक्ष्मी शंकर बाजपेई ने कहा कि आज का समय विसंगतियों से भरा है। भारत के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा कि अपराधी का धर्म देखकर अपराधी के पक्ष में लोग खड़े हो जाएं। यह बहुत बड़ी विसंगति है। और ऐसे समय में ही व्यंग्यकार को, साहित्यकार को आगे आकर विसंगतियों को उजागर करने की जरूरत है। लोग बलात्कारियों के समर्थन में आगे आ रहे हैं, यह बहुत बड़ी चिंता की बात है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि व्यंग्य लोक भी इस कार्य में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेगा और अपनी रचनाओं से, अपनी रचनाओं की धार से लोगों को यथास्थितिवादी होने से बचाएगा।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद वरिष्ठ साहित्यकार और जाने माने दलित चिंतक डॉ बजरंग बिहारी तिवारी ने एक कविता की पंक्तियां उद्धृत करते हुए अपने वक्तव्य की शुरुआत की और कहा कि न्यायालय में अभियोग चल रहा है और मुख्य समस्या न्याय की है। बिना नीति से जुड़े न्याय का क्या मतलब ? यह पत्रिका लगातार निकले, सभी चुनौतियों के बावजूद निकले यही उन्होंने अपेक्षा व्यक्त की। उन्होंने पत्रिकाओं की भूमिका को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह व्यंग्य लोक पत्रिका एक दृष्टि के साथ निकल रही है, इसलिए इसकी उपयोगिता और सार्थकता स्वाभाविक है।
विशिष्ट अतिथि डॉ रमेश तिवारी ने कहा की जितनी भी महत्वपूर्ण रचनाएं हैं, शत-प्रतिशत न सही, परंतु 70-80 प्रतिशत महत्वपूर्ण रचनाएं पत्रिकाओं के माध्यम से ही वजूद में आती हैं और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचती हैं। उन्होंने कहा कि लघु पत्रिकाएं उन पगडंडियों की तरह हैं जो हमें हमारे देहरी तक ले जाती हैं। राजमार्गों के दौर में भी आपको घर तक जाने के लिए, अपनी संवेदनाओं को बचाए रखने के लिए यदि पगडंडी पर उतरना पड़े तो समझिए की साहित्यिक यात्रा में जो काम पगडंडियां करती हैं, वही काम लघु पत्रिकाएं करती रही हैं। उन्होंने कई पत्रिकाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि जो भी लिखा-पढ़ा जा रहा है या जो भी लिखने-पढ़ने वाला समाज है, उनके लिए पत्रिकाएं संवाद का एक सार्थक मंच तैयार करती हैं, समाज में मानवीय मूल्यों को बचाए रखती हैं। उन्होंने आशा जताई की निस्संदेह व्यंग्य लोक भी मानवीय मूल्यों को बचाए रखने का काम करेगा।
वरिष्ठ साहित्यकार रामकिशोर उपाध्याय ने कहा कि दुनिया में जितनी भी बड़ी-बड़ी क्रांतियां हुई हैं, उनमें अखबारों-पत्रिकाओं का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने कहा की पत्रिकाएं व्यक्ति को, लेखक को अपना सम्मानजनक स्थान दिलाती हैं। निरंतर प्रकाशन एवं गुणवत्ता को बनाए रखते हुए यह पत्रिका लंबे समय तक चले, यही उन्होंने कामना व्यक्त की।
वरिष्ठ व्यंग्यकार वेद प्रकाश भारद्वाज ने कहा कि पत्रिकाएं निकालना मतलब अपना घर फूंकना है और रामस्वरूप जी ने यह चुनौती ली है तो उनकी जितनी प्रशंशा की जाय कम है। उन्होंने कहा कि पहले निकलने वाली लघु पत्रिकाओं ने साहित्य को जिंदा रखा और साहित्य के विकास में ऐसी पत्रिकाओं का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने उम्मीद जताई कि व्यंग्य लोक पत्रिका भी इस परंपरा को बनाए रखेगी और कंटेंट अच्छा हो एवं गुणवत्ता के साथ समझौता न हो तो पत्रिका का भविष्य उज्जवल है।
इस मौके पर वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेंद्र सहगल ने कहा कि इसके पूर्व भी व्यंग्य लोक के दो अंक सॉफ्ट कॉपी में हमारे सामने आए हैं और अब यह तीसरा अंक मुद्रित रूप में हमारे सामने आया है। उन्होंने आशा जताई कि व्यंग्य को और आगे बढ़ाने, उसे समृद्ध करने के लिए व्यंग्य लोक बेहतर काम करेगी ऐसी अपेक्षा है। उन्होंने भूत एवं वर्तमान में प्रकाशित हो रही कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का उल्लेख किया और आशा व्यक्त की कि अपनी उत्कृष्ट सामग्री से व्यंग्य लोक भी अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाएगी।
इससे पूर्व व्यंग्य लोक पत्रिका के संपादक रामस्वरूप दीक्षित ने कहा कि समकालीन व्यंग्य समूह में कई बड़े साहित्यकार सदस्य हैं और सभी सदस्यों के सहयोग एवं मार्गदर्शन से यह समूह चल रहा है, व्यंग्य लोक का यह तीसरा मुद्रित अंक भी इसी सहयोग का परिणाम है। उन्होंने कहा कि हमने इस तरह से काम करना शुरू किया है जैसे हर अंक अंतिम अंक हो। उन्होंने सभा में उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों तथा श्रोताओं, साहित्य प्रेमियों के प्रति भी अपना आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि कोशिश यही रहेगी कि व्यंग्य लोक व्यंग्य के साथ-साथ साहित्य की अन्य विधाओं को स्थान दे और पाठकों के समक्ष उत्कृष्ट सामग्री पहुंचे। इसी अपेक्षा के साथ यह पत्रिका शुरू की गई है और आशा है आप सभी का सहयोग इसी तरह मिलता रहेगा।
वरिष्ठ कवयित्री एवं पूर्व आईएएस अधिकारी डॉ धीरा खंडेलवाल ने अपने सारगर्भित उद्बोधन से विशिष्ट अतिथियों एवं सभागार में उपस्थित सभी प्रबुद्ध श्रोताओं का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि व्यंग्य की मारक क्षमता बहुत ही व्यापक है और व्यंग्य की धार कुंद न हो यही कोशिश की जानी चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन युवा साहित्यकार रणविजय राव ने किया। उन्होंने कहा कि पत्रिकाओं की भीड़ में व्यंग्य लोक अपनी अलग पहचान और स्थान बनाएगी।
कार्यक्रम का आरंभ वरिष्ठ कवयित्री स्नेहा साक्षी द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य को बचाए रखना ही व्यंग्य लोक का उद्देश्य है।
पत्रिका की सहायक संपादक आरती शर्मा ने सभी विशिष्ट अतिथियों को मंच पर आमंत्रित किया और अंगवस्त्र एवं पुष्प गुच्छ से अतिथियों और कवियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस व्यंग्य लोक पत्रिका के माध्यम से समकालीन व्यंग्य समूह ने एक कदम बढ़ाया है।
विशिष्ट वक्ताओं के उद्बोधन के उपरांत सभागार में उपस्थित कुछ वरिष्ठ कवियों-कवयित्रियों ने अपनी-अपनी प्रतिनिधि कविताओं का पाठ भी किया। वरिष्ठ कवि श्री नरेश शांडिल्य, सुशांत सुप्रिय, उपासना दीक्षित, प्रेमलता मुरार, मनमोहन सिंह तन्हा और सुधीर अनुपम ने अपनी कविताओं-गज़लों से सभा में उपस्थित श्रोताओं को भावविभोर किया।
इस मौके पर भोपाल, इलाहाबाद, मेरठ के अतिरिक्त दिल्ली और एनसीआर से आए कई साहित्यकार, पत्रकार, साहित्य प्रेमी कार्यक्रम के अंत तक मौजूद रहे। इनमें निर्मल गुप्त, राकेश मिश्र, उपेन्द्रनाथ, प्रभात कुमार, कुमार सुबोध, आशीष मिश्र, अमित कुमार, मनीष सिन्हा, प्रदीप कुमार, रेखा सिंह, सर्वेश कुमारी उल्लेखनीय हैं।
कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा।
रपट : सुश्री आरती शर्मा
साभार -श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव द्वारा प्रो हेमंत सामंत के मूल लेखों से अनुवादित दो हिंदी पुस्तकें ज्येष्ठ स्वतंत्रता सेनानी डॉ. जी. जी. परिख के हाथों लोकार्पित ☆
१७ नवंबर २०२४ को महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के स्मृति दिवस के दिन प्रो. हेमंत सामंत द्वारा अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों और उनके कार्यक्षेत्र से संबंधित मराठी लेखों पर आधारित डॉ मीना श्रीवास्तव द्वारा अनूदित “भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनदेखे समरांगण” और “भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अनकही कहानियां” इन दो हिंदी अनुवादित पुस्तकों का विमोचन हुआ। प्रत्येक पुस्तकों में ३८ अध्याय हैं, जो न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी क्रांतिकारियों द्वारा किये हुए स्वतंत्रता संघर्ष को दर्शाते हैं।
लेखक और अनुवादक के लिए यह बड़े ही गर्व की बात थी कि उम्र का शतक पार कर चुके बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी डॉ. जी. पारिख ने मुंबई के ग्रांट रोड स्थित अपने आवास पर इन दोनों पुस्तकों का विमोचन किया। उनके प्राकृतिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए, केवल कुछ व्यक्ति ही इस कार्यक्रम में शामिल हो पाए। हिंदी में अनुवादित पुस्तकों की लेखिका डॉ. मीना श्रीवास्तव, मूल लेखक प्रो. हेमंत सामंत एवं लुपिन कंपनी के मॅन्युफॅक्चरिंग ऑपरेशन्स के अध्यक्ष श्री राजेंद्र चुनोडकर विमोचन के कार्यक्रम में उपस्थित थे। साथ ही लेखक द्वय के परिवारजन भी इस अवसर पर उपस्थित थे| उल्लेखनीय बात यह है कि इन दोनों पुस्तकों की प्रस्तावना ई-अभिव्यक्ति – www.e-abhivyakti.com के संपादक श्री हेमन्त बावनकर ने लिखी है|
इस अवसर पर संक्षिप्त मार्गदर्शन व्यक्त करते हुए श्री पारिख ने बिगड़ते पर्यावरण और जल के अपव्यय पर खेद व्यक्त किया। उन्होंने अहम संदेश देते हुए कहा कि “समाज की सेवा के लिए सत्ता की जरूरत नहीं है, बल्कि देशभक्ति की भावना को प्रदीप्त करने की जरूरत है।” कुल मिलाकर, पुस्तक विमोचन का यह कार्यक्रम अनूठा रहा।
ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से डॉ. मीना श्रीवास्तव जी को इस विशिष्ट उप्लब्धि के लिए हार्दिक बधाई
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
कळवण्यास अत्यंत दु:ख होत आहे की आपल्या ई-अभिव्यक्तीच्या अगदी सुरुवातीपासूनच्या सदस्य असलेल्या ज्येष्ठ साहित्यिका श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई यांचे काल दु:खद निधन झाले. त्यांच्या पवित्र आत्म्यास चिरशांती लाभो ही आपणा सर्वांतर्फे ईश्वरचरणी मनःपूर्वक प्रार्थना.
त्यांना भावपूर्ण श्रद्धांजली म्हणून आज पुनःप्रकाशित करत आहोत…… ई-अभिव्यक्तीसाठी पाठवलेल्या त्यांच्या पहिल्या साहित्यकृतीची लिंक.
☆ ‘कौमी एकता साहित्य सम्मान’ से साहित्यकार श्री अरुण दुबे जी सम्मानित– अभिनंदन ☆
सागर। प्रति वर्षानुसार शहर की ईद दीपावली मिलन समारोह समिति के तत्वाधान में आयोजित एक भव्य समारोह में शहर के नामी शाइर श्री अरुण कुमार दुबे जी एवं कवि श्री कैलाश तिवारी ‘विकल’ जी को उनके द्वारा प्रदत्त साहित्यिक सेवाओं के लिए श्री शैलेश केसरवानी जी, राम सरोज ग्रुप एवं आयोजन समिति के श्री सुनील पटेल जी, राधे श्याम भवन, शाइर श्री अशोक मज़ाज़ जी द्वारा स्मृति चिन्ह, शाल, श्रीफल एवं नगद राशि भेंट कर ‘कौमी एकता साहित्य सम्मान’ से सम्मानित किया गया। सम्मान पत्र का वचन श्री आशीष ज्योतिषी जी ने किया।
इस अवसर पर श्री शैलेश केसरवानी जी ने कहा कि- “श्री अरुण दुबे जी (पूर्व डी. एस. पी) लम्बी पुलिस सेवा कर अब साहित्य सेवा में लगे हैं। यह सुखद आश्चर्य की बात है कि उनकी ग़ज़ल में समाज की समस्याएं, आम आदमी की पीड़ा एवं सर्वहारा वर्ग की पीड़ा का अनोखा संगम दिखता है।”
श्री अरुण दुबे जी ने अपनी यह उपलब्धि अपने उस्ताद जनाब मायूस सागरी जी, जनाब सिराज सागरी जी एवं श्री गजाधर सागर जी को समर्पित किया है। समारोह में शहर के साहित्यकार बन्धुओं, समाज सेवियों एवं जन प्रतिनिधियों ने शामिल होकर गरिमा प्रदान की एवं दोनों सम्मानित साहित्यकारों को बधाई दी।
ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री अरुण दुबे जी को इस विशिष्ट उप्लब्धि के लिए हार्दिक बधाई
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
☆ व्यंग्यम के आयोजन में हुआ व्यंग्य विधा पर विचार-विमर्श ☆
जबलपुर। व्यंग्यम् परिवार, माध्यम साहित्यिक संस्था, और गुंजन कला सदन द्वारा आयोजित श्रीजानकी रमण महाविद्यालय, जबलपुर में व्यंग्य पर केंद्रित एक विशिष्ट कार्यक्रम संपन्न हुआ। जिसमें प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट राजेश दुबे की हरिशंकर परसाई जी पर केंद्रित रचनाओं की कार्टून प्रदर्शनी का उदघाटन अतिथियों के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री जानकीरमण के प्राचार्य डॉ अभिजात त्रिपाठी एवं मुख्य अतिथि की आसंदी पर आचार्य भगवत दुबे जी विराजमान। आमंत्रित अतिथियों में माध्यम साहित्यिक संस्था के राष्ट्रीय महासचिव, अट्टहास पत्रिका लखनऊ के प्रधान संपादक अनूप श्रीवास्तव हास्य और व्यंग्य’पर बातचीत की। नई दिल्ली से पधारे व्यंग्यकार रामकिशोर उपाध्याय जी आज व्यंग्यकार के सामने चुनौतियां’ विषय पर अपनी राय रखी, वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ कुंदन सिंह परिहार ने समकालीन व्यंग्य पर विचार-विमर्श किया। व्यंग्यम परिवार के बारह व्यंग्यकारों को राष्ट्रीय स्तर का व्यंग्य गौरव अलंकार प्रख्यात अट्टहास पत्रिका लखनऊ और माध्यम राष्ट्रीय मंच द्वारा दिया गया। प्रतुल श्रीवास्तव एवं यशोवर्धन पाठक ने व्यंग्य और गुंजन का परिचय दिया, तदोपरांत कवि गंगाचरण मिश्र ने परसाई जी से संबंधित संस्मरण को प्रस्तुत किया तथा नाट्य निर्देशक श्री दविन्दर ग्रोवर परसाई जी की रचना टार्च बेचने वाला का पाठ किया। कार्यक्रम में लखनऊ से पधारे व्यंग्यकार अलंकार रस्तोगी ने व्यंग्य पाठ किया।
कार्यक्रम में उपस्थित देश के सुप्रसिद्धि रचनाकार श्री अनूप श्रीवास्तव, रामकिशोर उपाध्याय, अलंकार रस्तोगी, श्रीमती सीमा मिश्रा, श्री हरि नारायण शुक्ल, डॉ रश्मि बाजपेई आदि ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्री जानकीरमण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अभिजित कृष्ण त्रिपाठी जी ने जबलपुर में चली आ रही व्यंग परंपरा का स्मरण करते हुए व्यंगम् संस्था के द्वारा किए जा रहे प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि व्यंगम् का यह प्रयास अनुकरणीय बताया। आयोजन का संयोजन, समन्वय और रूप रेखा में प्रतुल श्रीवास्तव, जय प्रकाश पाण्डेय, रमाकांत ताम्रकार, विजय तिवारी किसलय आदि का योगदान रहा। कार्यक्रम का संचालन अभिमन्यु जैन द्वारा और आभार सुरेश मिश्र विचित्र द्वारा किया गया। नगर के पत्रकार, व्यंग्यकार, वर्तिका के संयोजक विजय नेमा, मंनथनश्री के संतोष नेमा, जागरण के जैन साहब,
राज सागरी, आचार्य निरंजन द्विवेदी अजय मिश्रा मनोज चौरसिया, संजय पांडे, सुनील तोमर, विजय आनंद माहिर, , के पी पांडे, यशोवर्धन पाठक, मनोज शुक्ल मनोज, यू एस दुबे आदि उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संपूर्ण संचालन श्री अभिमन्यु जैन था आभार सुरेश मिश्र विचित्र ने ज्ञापित किया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रतुल श्रीवास्तव, विजय जैसवाल, श्री राज सागरी, आचार्य निरंजन द्विवेदी अजय मिश्रा मनोज चौरसिया, संजय पांडे, सुनील तोमर, विजय आनंद माहिर, संतोष नेमा, के पी पांडे, यशोवर्धन पाठक, मनोज शुक्ल मनोज, यू एस दुबे, गोपाल रैकवार, चंदन सेन उपस्थित रहे।
साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
जबलपुर। व्यंग्य के उन्नयन के लिए समर्पित व्यंग्यम् द्वारा रविवार 10 नवंबर को अपराह्न 3 बजे से श्रीजानकी रमण महाविद्यालय, जबलपुर में व्यंग्य पर केंद्रित एक विशिष्ट कार्यक्रम में प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट राजेश दुबे जी की हरिशंकर परसाई की रचनाओं पर केंद्रित कार्टून प्रदर्शनी का उदघाटन होगा। माध्यम साहित्यिक संस्था के राष्ट्रीय महासचिव, अट्टहास पत्रिका लखनऊ के प्रधान संपादक अनूप श्रीवास्तव जी, ‘हास्य और व्यंग्य’ पर बातचीत करेंगे।
नई दिल्ली से पधारे व्यंग्यकार रामकिशोर उपाध्याय जी,‘आज व्यंग्यकार के सामने चुनौतियां’ विषय पर अपनी राय रखेंगे, वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ कुंदन सिंह परिहार जी,‘समकालीन व्यंग्य’ पर विचार-विमर्श करेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ अभिजात त्रिपाठी जी एवं मुख्य अतिथि आचार्य भगवत दुबे जी रहेंगे। लखनऊ के व्यंग्यकार श्री अलंकार रस्तोगी जी व्यंग्य पाठ करेंगे। अट्टहास पत्रिका एवं माध्यम साहित्यिक संस्था लखनऊ द्वारा व्यंग्यकारों को व्यंग्य गौरव अलंकरण से अलंकृत किया जाएगा। पत्रकार, कवि गंगाचरण मिश्र जी, परसाई जी से संबंधित संस्मरण सुनाएंगे, और नाट्य निर्देशकश्री दविन्दर ग्रोवर जी परसाई जी की रचना का पाठ करेंगे। सुल्तानपुर के साहित्यकार श्री हरिनाथ शुक्ल जी एवं फतेहपुर की साहित्यकार सीमा मिश्रा जी की उल्लेखनीय उपस्थिति रहेगी।
व्यंग्यम परिवार, माध्यम साहित्यिक संस्था, गुंजन कला सदन, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय परिवार ने सभी आदरणीयों से उपस्थिति हेतु आग्रह किया है।
साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈