☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव, कृति ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अनकही कहानियां’ के लिए सम्मानित – अभिनंदन ☆
भोपाल (मप्र)। हिन्दी लेखिका संघ का प्रतिष्ठित ३०वां वार्षिक सम्मान समारोह एवं कृति पुरस्कार समारोह गत रविवार २ मार्च २०२५ को हिंदी भवन में संपन्न हुआ। इसमें ठाणे, महाराष्ट्र की निवासी डॉ. मीना श्रीवास्तव को उनकी कृति के लिए सुश्री मधु सक्सेना द्वारा स्थापित ‘श्री द्वारका प्रसाद सक्सेना स्मृति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इस सम्मान के लिए मुंबई के ज्येष्ठ लेखक श्री हेमंत सामंत के मराठी लेखों से डॉ. मीना श्रीवास्तव द्वारा अनुवादित कृति ”भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अनकही कहानियां” को चुना गया था | इस पुस्तक में ३८ अध्याय हैं, जिनमें भारत तथा विदेशों में अनजाने क्रांतिकारियों द्वारा किये हुए स्वतंत्रता संघर्ष का वर्णन है।
डॉ. मीना श्रीवास्तव जी को ‘अनुवाद विद्या’ की श्रेणी में यह स्थापित पुरस्कार समारोह की अध्यक्षा मंत्री महोदया, महिला एवं बालविकास म. प्र. शासन मा. निर्मला भूरिया जी और रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं निदेशक विश्वारंग श्रीमान संतोष चौबे जी के हाथों स्मृतिचिन्ह, शॉल, श्रीफल एवं नकद राशि के रूप में प्रदान किया गया| इस पुरस्कार वितरण के अवसर पर रामायण शोध केंद्र, भोपाल के निदेशक डॉ. राजेश श्रीवास्तव, शिक्षाविद एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. आरती दुबे और हिन्दी लेखिका संघ मप्र भोपाल की प्रांताध्यक्ष डॉ. कुंकुम गुप्ता भी मंच पर उपस्थित थे।
दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ सहित प्रदेश के 22 साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में बहुभाषीय काव्य गोष्ठी का आयोजन भी किया गया, जिसमें आमंत्रित साहित्यकारों ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया।
ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से डॉ. मीना श्रीवास्तव जी को इस विशिष्ट उप्लब्धि के लिए हार्दिक बधाई
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
🏆 श्री सचिन पाटील यांना रावसाहेब पाटील साहित्य पुरस्कार-२०२५ जाहीर 🏆
प्रसिद्ध लेखक, चित्रकार सुरेन्द्र पाटील यांनी साहित्यक्षेत्रात उल्लेखनीय योगदान देणाऱ्या वाचन चळवळ-भाषा वृद्घीसाठी सातत्याने धडपडणाऱ्या लेखक, व्यक्ती यांच्या कार्याचा गौरव करण्यासाठी वडिलांच्या नावाने “रावसाहेब पाटील साहित्य पुरस्कार” देण्याचे ठरवले. विशेष म्हणजे या पुरस्कारासाठी कसलीही प्रवेशिका नाही की समारंभ नाही. हा पुरस्कार मिळणाऱ्या व्यक्तीपर्यंत स्वतः जाऊन सन्मानाने दिला जाईल. रोख ५००० रुपये, शाल, ग्रंथभेट, मानचिन्ह असे पुरस्काराचे स्वरुप आहे.
पहिला पुरस्कार सांगली जिल्ह्यातील कर्नाळ येथील श्री सचिन वसंत पाटील यांनी संपादित केलेल्या ‘मायबोली रंग कथांचे’ या पुस्तकास जाहीर केला आहे. २२ बोली भाषेतील कथा या पुस्तकात त्यांनी संपादित केल्या आहेत. कथाकार पाटील यांनी एका अपघातात दोन्ही पायातील शक्ती गमावली. कमरेखालचा भाग कायमचा निर्जीव झाला; परंतु पुस्तक वाचनाने त्यांच्या जगण्याला बळ मिळाले. लेखनकार्यात त्यांनी स्वत:ला गुंतवून सांगावा, अवकाळी विळखा, पाय आणि वाटा अशा दखलपात्र पुस्तकांची निर्मिती केली आणि वॉकरवर जिद्दीने पुन्हा उभे राहिले… त्यांचे जीवन अनेकांना प्रेरक आहे, म्हणून मराठी भाषा गौरव दिनानिमित्त,श्री सुरेन्द्र पाटील यांनी पुरस्काराची घोषणा केली आहे.
लवकरच युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त श्री कादंबरीकार देविदास सौदागर समवेत श्री सचिन पाटलांच्या घरी जाऊन हा पुरस्कार सन्मानपूर्वक प्रदान केला जाणार आहे.
💐✒️🙏ई अभिव्यक्ती मराठी ‘ चे लेखक श्री.सचिन पाटील यांचे समुहातर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि शुभेच्छा🙏✒️💐
संपादक मंडळ
ई अभिव्यक्ती मराठी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈
आपल्या समूहातील ज्येष्ठ लेखक व कथाकार श्री अरविन्द लिमये यांची दोन पुस्तके नुकतीच प्रकाशित झाली आहेत. यातील एक आहे लेखसंग्रह ‘शब्दरंगी रंगताना’, आणि एक आहे कथासंग्रह ‘डायरीतील कोरी पाने’. आपल्या सर्वांतर्फे श्री. लिमये यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील अशाच यशस्वी साहित्यिक वाटचालीसाठी असंख्य हार्दिक शुभेच्छा.
आजच्या अंकात वाचूया ‘डायरीतील कोरी पाने‘ या त्यांच्या नव्या संग्रहातील एक कथा ‘अॅप्रोच ‘.
संपादक मंडळ
ई अभिव्यक्ती मराठी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈
☆ “काव्योत्सव”, नवी मुंबई की 169 वीं काव्यगोष्ठी सम्पन्न ☆
विहंगावलोकन…
नवी मुम्बई की ख्याति प्राप्त संस्था “काव्योत्सव” की 169 वीं काव्यगोष्ठी, दिनांक 02 मार्च 2025 को शाम 5.45 बजे, सीनियर सिटीजन हॉल, नागा गना पाटिल र्गाडऩ, सेक्टर १५, मकडोन्लड की गली, सी.बी.डी. में बड़े ही गरिमामय और उत्साह के साथ सम्पन्न हुई।
सुप्रसिद्ध कहानी-लघु कथा लेखिका और अनुवादिका परम आदरणीया सौ. उज्जवला केलकर जी विशेष अतिथि के रूप विराजमान रहीं, साथ ही अध्यक्ष श्री करनानी जी, संरक्षक श्री विजय भटनागर जी एवं आदरणीय श्री सेवा सदन प्रसाद जी सहित संस्था के पदाधिकारियों की उपस्थिति रही। लगभग 15 प्रबुद्ध रचनाकार मनीषि कवि-कवियित्री उपस्थित रहे। श्री प्रसाद जी के उद्बबोधन से कार्यक्रम का आगाज़ हुआ। तत्पश्चात सरस्वती वन्दना के रूप मे मां सरस्वती के चरणों में शब्द पुष्प अर्पित किए गये। उसके बाद श्री भारतभूषण शारदा जी की अगुवाई में सभी सदस्यों ने राष्ट्रगान किया। तत्पश्चात संस्था की तरफ से संस्था के पदाधिकारियों द्वारा शाल और उपहार देकर मुख्य अतिथि जी का विशेष सम्मान किया गया।तदुपरांत कार्यक्रम प्रबंधन का दायित्व सुश्री वन्दना श्रीवास्तवजी को सौंप दिया गया।
उपस्थित कवि- कवियित्रियों ने एक से बढ़ कर एक उच्च कोटि का काव्यपाठ करके जो रंग बिखेरा… क्या कहें। आदरणीय उज्जवला केलकर जी ने अपनी लोकप्रिय लघुकथा का वाचन किया और अपनी लेखन यात्रा के बारे में बताया। उनके रचना वैभव का परिचय पाकर सभी बहुत उत्साहित थे। कार्यक्रम के अंत मे सभी ने आदरणीय ठक्कर दम्पति के द्वारा प्रायोजित सुस्वादु स्वल्पाहार का आनन्द लिया। एक सुंदर काव्य मयी संध्या नि: संदेह सभी के अंतस में संचित रहेगी
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≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ को गार्गी गुप्त अनुवाद-श्री सम्मान ☆
नई दिल्ली, 28 फरवरी। भारतीय अनुवाद परिषददिल्ली, प्रति वर्ष अनुवाद कार्य हेतु गार्गी गुप्त सम्मान प्रदान करती है। भारतीय विद्या भवन सभागार, नई दिल्ली में प्रख्यात साहित्यकार प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी को 2018-2019 के लिए डॉ. गार्गी गुप्त अनुवाद-श्री पुरस्कार संस्कृत – हिंदी – संस्कृत भाषा को आजीवन अनुवाद सेवा के लिए प्रदान किया गया।
उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए यह सम्मान उनकी ओर से उनके सुपुत्र श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी ने स्वीकार किया।
उल्लेखनीय है कि प्रो. श्रीवास्तव ने संस्कृत के विश्व ग्रंथों भगवत गीता, रघुवंश , मेघदूतम के समस्त श्लोकों का हिंदी छंद बद्ध गेय काव्य अनुवाद किया है।
ये अनुवादित पुस्तकें संस्कृत मूल, हिंदी काव्य, हिंदी अर्थ के साथ प्रकाशित हुई हैं। प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि- “इससे संस्कृत नहीं जानने वाले भी इन अमर ग्रन्थों का काव्यगत आनंद उठा सकते हैं। उन्होंने कहा कि अनुवाद कार्य से दोनों ही भाषाओं का साहित्य समृद्ध होता है।”
गुरुवर प्रो. श्रीवास्तव जी की कई अनुवादित पुस्तकों का ई-अभिव्यक्ति में समय समय पर क्रमबद्ध प्रकाशन भी किया गया है।
💐 ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से गुरुवर प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी को इस सम्मान के लिए हार्दिक शुभकमनाएं 💐
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
☆ मासिक व्यंग्य गोष्ठी में व्यंग्यकारों ने व्यंग्य बाण छोड़े ☆ साभार – श्री रमाकांत ताम्रकार ☆
जबलपुर। व्यंग्य विधा के उन्नयन के लिए समर्पित ‘व्यंग्यम्’ की मासिक गोष्ठी का आयोजन कछपुरा कॉफी हाउस में किया गया।
गोष्ठी में सर्वप्रथम श्री राकेश सोहम ने आम आदमी का वैलंटाइन, आचार्य विजय तिवारी ‘किसलय’ ने दुनिया सुधारने चला था, श्री रमाकांत ताम्रकार ने दान, श्री यशोवर्धन पाठक ने निरीक्षण सहकारी अस्पताल का,श्री अभिमन्यु जैन ने बधाई, श्री सुरेश मिश्र विचित्र ने शादियों के खाने में आइटम्स की होड़, डॉ. कुंदन सिंह परिहार ने राजनीति के रंगरूटों की प्रशिक्षण योजना शीर्षक वाले व्यंग्य लेखों का पाठ किया।
कार्यक्रम में व्यंग्यकार श्री अभिमन्यु जैन को उनके जन्मदिन की सभी ने शुभकामनाएँ दी। कार्यक्रम के अध्यक्ष देश के प्रसिद्ध कथाकार एवं व्यंग्यकार डॉ. कुंदन सिंह परिहार एवं विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री प्रतुल श्रीवास्तव थे। कार्यक्रम का संचालन यशस्वी व्यंग्यकार श्री यशोवर्धन तथा आभार प्रदर्शन व्यंग्यकार श्री अभिमन्यु जैन द्वारा किया गया।
साभार – श्री रमाकांत ताम्रकार, जबलपुर
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
विश्वयोग दर्शन, केंद्र मिरज-सांगली या संस्थेतर्फे आयोजित करण्यात आलेल्या योग निबंध स्पर्धेत आपल्या समुहातील ज्येष्ठ लेखिका सौ. पुष्पा प्रभुदेसाई यांना तृतीय पुरस्कार प्राप्त झाला आहे. त्यांच्या या यशाबद्दल ई अभिव्यक्ती समुहाकडून त्यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि शुभेच्छा !
त्यांचा पुरस्कार प्राप्त लेख “प्राणायाम… एक वैज्ञानिक अभ्यास…” आजच्या अंकात प्रकाशित करीत आहोत.
संपादक मंडळ
ई अभिव्यक्ती मराठी
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपके द्वारा प्रबुद्ध पाठकों से उनकी प्रयोगशील लघुकथाओं के लिए आमंत्रण ।)
☆ प्रयोगशील लघुकथा से तात्पर्य ऐसी लघुकथा से है…☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
प्रयोगशील लघुकथा से तात्पर्य ऐसी लघुकथा से है…
प्रयोगशील लघुकथा वह है जिसमें लेखक पारंपरिक ढांचे से हटकर कुछ नया करने का प्रयास करता है। यह प्रयोग कथानक, कथ्य, भाषा, शैली या अन्य किसी भी स्तर पर हो सकता है। आइए इसे विभिन्न उदाहरणों से समझते हैं:
कथानक के स्तर पर प्रयोग:
पारंपरिक लघुकथा: एक सीधी-सादी कहानी जो शुरू से अंत तक एक ही क्रम में चलती है।
प्रयोगशील लघुकथा: कथानक को गैर-रैखिक (non-linear) तरीके से प्रस्तुत किया जाए। इसके अंतर्गत आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी की लघुकथा को रख सकते हैं। उनकी टेबल के बाद लघुकथा एक अलग कथानक तैयार की गई थी। जिसमें पूरी टेबल यानी पहाड़ी की सहायता से लघुकथा को संपूर्ण किया गया था।
कथ्य के स्तर पर प्रयोग:
पारंपरिक लघुकथा: कहानी का संदेश स्पष्ट और सीधा होता है।
प्रयोगशील लघुकथा: कथ्य को अमूर्त (abstract) या प्रतीकात्मक (symbolic) तरीके से प्रस्तुत किया जाए। जैसे, एक लघुकथा जो मानवीय भावनाओं को प्रकृति के माध्यम से दर्शाती है, जहां पेड़-पौधे या जानवर मनुष्य की भावनाओं को व्यक्त करते हैं। इसे काव्य पंक्तियों, गजल अथवा अन्य कथ्य के माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
भाषा के स्तर पर प्रयोग:
पारंपरिक लघुकथा: सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।
प्रयोगशील लघुकथा: भाषा को अलंकृत, काव्यात्मक या असंगत (absurd) तरीके से प्रयोग किया जाए। जैसे, एक लघुकथा जिसमें शब्दों का अर्थ बदल दिया जाए या शब्दों को उलट-पलट कर प्रस्तुत किया जाए, जिससे पाठक को एक नया अनुभव मिले। मगर इस सब के बावजूद लघुकथा का अपना स्वरूप ना बदले। विपरितार्थी शब्दों को लेकर भी लघुकथा रची जा सकती है। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप इसमें किस तरह का प्रयोग कर सकते हैं।
शैली के स्तर पर प्रयोग:
पारंपरिक लघुकथा: सीधी-सादी शैली में लघुकथाएं कही जाती हैं।
प्रयोगशील लघुकथा: शैली में नवीनता लाई जाए। जैसे, एक लघुकथा जो पत्रों, डायरी के अंशों, या संवादों के माध्यम से लिखी गई हो। या फिर एक लघुकथा जो कविता और गद्य के मिश्रण से बनी हो। लघुकथा भले ही संवाद शैली में हो, मगर उसे चित्र प्रस्तुति के आधार पर प्रस्तुत किया जा सकता है। अथवा आप शैली के रूप में नया प्रयोग भी कर सकते हैं।
उदाहरण:
कथानक के स्तर पर प्रयोग:
एक लघुकथा जो अंत से शुरू होती है:
उदाहरण:
“रमेश ने आखिरी सांस ली। उसकी आंखों के सामने पूरा जीवन फिर से घूम गया। बचपन की वो गलियां, पहली नौकरी, पत्नी से पहली मुलाकात… और फिर वो दिन जब उसने अपने बेटे को खो दिया।”
भाषा के स्तर पर प्रयोग:
एक लघुकथा जिसमें शब्दों का अर्थ बदल दिया गया हो:
“आकाश नीला था, पर नीला क्या था? क्या रंग होता है नीला? क्या यह वही है जो हम देखते हैं या वह जो हम महसूस करते हैं? नीला एक भावना थी, एक सपना, एक सच्चाई जो हवा में तैर रही थी।”
शैली के स्तर पर प्रयोग:
एक लघुकथा जो पत्रों के माध्यम से लिखी गई हो:
“प्रिय मित्र,
आज मैंने एक ऐसा सपना देखा जो सच्चाई से भी ज्यादा सच लगा। तुम्हें याद है वो पुराना घर? वहां की दीवारें अब भी मुझसे बातें करती हैं…”
इस प्रकार, प्रयोगशील लघुकथा पारंपरिक ढांचे को तोड़कर नए विचारों और अभिव्यक्तियों को जन्म देती है, जिससे पाठक को एक नया और रोचक अनुभव मिलता है।
तब यह प्रश्न उठ सकता है कि हम लघुकथा में इस तरह का प्रयोग किस तरह कर सकते हैं? क्या उसे किसी और उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है?
तब हमारा उत्तर होगा कि जी हां, प्रयोगशील लघुकथाओं को नए और रचनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है और उसे उदाहरण द्वारा भी समझा जा सकता है। यहां कुछ ऐसे उदाहरण दिए गए हैं, जो विभिन्न स्तरों पर प्रयोग को दर्शाते हैं:
कथानक के स्तर पर प्रयोग:
उदाहरण:
“वह दिन जब समय ने अपनी दिशा बदल ली। सुबह का सूरज पश्चिम में उगा और शाम को पूर्व में डूब गया। लोगों ने देखा कि उनके बचपन की यादें अचानक भविष्य में चली गईं, और भविष्य के सपने अतीत में खो गए। एक बूढ़ा आदमी जवान होने लगा, और एक बच्चे की आंखों में बुढ़ापे की झुर्रियां दिखाई देने लगीं। समय ने सब कुछ उलट दिया, पर किसी को पता नहीं चला कि यह सब क्यों हुआ।”
प्रयोग:
यहां कथानक में समय के साथ प्रयोग किया गया है। समय की दिशा उलट दी गई है, जो पाठक को एक नया और अलग अनुभव देता है।
कथ्य के स्तर पर प्रयोग:
उदाहरण:
“एक पेड़ ने फैसला किया कि वह अब जड़ें नहीं बढ़ाएगा। उसने अपनी जड़ें जमीन से बाहर निकाल लीं और चलने लगा। लोग हैरान थे, पर पेड़ ने कहा, ‘मैं भी तुम्हारी तरह आजाद होना चाहता हूं।’ धीरे-धीरे उसकी पत्तियां झड़ने लगीं, और एक दिन वह सूखकर गिर गया। उसकी जगह एक नन्हा पौधा उग आया, जिसने फैसला किया कि वह कभी जड़ें नहीं छोड़ेगा।”
प्रयोग:
यहां कथ्य को प्रतीकात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। पेड़ की आजादी की चाहत और उसके परिणाम को मानवीय भावनाओं से जोड़कर दिखाया गया है।
भाषा के स्तर पर प्रयोग:
उदाहरण:
“शब्दों ने विद्रोह कर दिया। वे वाक्यों से निकलकर अलग हो गए और हवा में तैरने लगे। ‘प्यार’ शब्द ने कहा, ‘मैं अब किसी वाक्य का हिस्सा नहीं बनूंगा।’ ‘दर्द’ शब्द ने कहा, ‘मैं अब किसी के साथ नहीं जुड़ूंगा।’ शब्दों ने अपनी आजादी का जश्न मनाया, पर जल्द ही वे अकेले हो गए। उन्हें एहसास हुआ कि उनका अर्थ तभी है जब वे एक दूसरे से जुड़े हों।”
प्रयोग:
यहां भाषा के साथ प्रयोग किया गया है। शब्दों को मानवीय गुण दिए गए हैं, और उनकी आजादी की चाहत को एक नए ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
शैली के स्तर पर प्रयोग:
उदाहरण:
“डायरी के पन्ने:
दिन 1: आज मैंने एक तितली देखी। वह मेरे हाथ पर बैठ गई। मैंने सोचा, क्या वह मेरी आत्मा है?
दिन 2: तितली उड़ गई, पर मैंने महसूस किया कि मेरा दिल भी उसके साथ उड़ गया।
दिन 3: आज मैंने देखा कि मेरी छाया भी मुझे छोड़कर चली गई। शायद वह भी तितली बन गई।
दिन 4: अब मैं खुद एक तितली हूं। मेरे पंख हैं, पर उड़ने का साहस नहीं।”
प्रयोग:
यहां शैली में प्रयोग किया गया है। कहानी को डायरी के पन्नों के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठक को एक अलग अनुभव मिलता है।
संवाद के स्तर पर प्रयोग:
उदाहरण:
“दो पहाड़ों के बीच बातचीत:
पहाड़ 1: ‘तुम्हें लगता है हम हमेशा यहीं खड़े रहेंगे?’
पहाड़ 2: ‘हां, यही हमारी नियति है।’
पहाड़ 1: ‘पर मैं चलना चाहता हूं। समुद्र तक जाना चाहता हूं।’
पहाड़ 2: ‘तुम्हारे पैर कहां हैं?’
पहाड़ 1: ‘शायद मेरे सपनों में।’
पहाड़ 2: ‘तो फिर सपनों में चलो।’
और फिर पहाड़ 1 ने सपनों में चलना शुरू कर दिया।”
प्रयोग:
यहां संवाद के माध्यम से एक गहरी बात कही गई है। पहाड़ों को बोलते हुए दिखाकर एक नया प्रयोग किया गया है।
अमूर्तता के स्तर पर प्रयोग:
उदाहरण:
“एक रंग जो बोलता था। वह नीला था, पर उसकी आवाज लाल थी। जब वह बोलता, तो हवा में हरा रंग छा जाता। लोग उसे समझ नहीं पाते थे, पर वह बोलता रहा। एक दिन उसने कहा, ‘मैं वह हूं जो तुम देख नहीं सकते, पर महसूस कर सकते हो।’ और फिर वह गायब हो गया।”
प्रयोग:
यहां अमूर्तता के साथ प्रयोग किया गया है। रंगों को भावनाओं और ध्वनियों से जोड़कर एक नया आयाम दिया गया है।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि प्रयोगशील लघुकथा में कथानक, कथ्य, भाषा, शैली, संवाद, या अमूर्तता के स्तर पर नए और रचनात्मक प्रयोग किए जा सकते हैं। यह पाठक को एक नया अनुभव देती है और साहित्य को समृद्ध बनाती है।
फिर देर किस बात की — इस तरह के प्रयोग करने के बाद अपनी दो प्रयोगशील लघुकथाएं और उस विचार प्रक्रिया को, जिसकी वजह से लघुकथा ने जन्म लिया है, उसे अपने शब्दों में लिख कर और अपने भावों की अभिव्यक्ति सहित हमें इस ईमेल पर भेज दीजिए।
☆ श्री संतोष नेमा ‘संतोष’ की कृतियों सुमित्र संस्मरण’ एवं अधरों पर मुस्कान का विमोचन☆ साभार – मंथनश्री, पाथेय एवं डायनामिक संवाद टी वी ☆
जबलपुर। मंथनश्री एवं पाथेय संस्था के तत्वावधान में श्री संतोष नेमा ‘संतोष’ की दो कृतियों सुमित्र संस्मरण एवं अधरों पर मुस्कान दोहावली का विमोचन आज 8 फरवरी को सायं 5 बजे से कला वीधिका, रानी दुर्गावती संग्रहालय में आयोजित है।
समारोह संयोजक राजेश पाठक ‘ प्रवीण ‘ ने बताया कि इस अवसर पर श्री अशोक मनोध्या, पं. संतोष शास्त्री, डॉ.विजय तिवारी ‘किसलय’, डॉ. सलमा ‘ जमाल’, श्रीमती अर्चना द्विवेदी ‘ गुदालू’, मदन श्रीवास्तव,डॉ. गोपाल दुबे, रूपम बाजपेयी, कविता नेमा, कु. आराध्या तिवारी ‘ प्रियम ‘ को सम्मानित किया जायेगा।
समारोह के मुख्य अतिथि मदन तिवारी वरिष्ठ समाजसेवी हैं। अध्यक्षता महाकवि आचार्य भगवत दुबे करेंगे । विशिष्ट अतिथि महामहोपाध्याय डॉ. हरिशंकर दुबे, अमरेन्द्र नारायण वरिष्ठ पत्रकार गंगा पाठक, विजय बागरी एवं प्रतुल श्रीवास्तव होंगे । मंथनश्री से आशुतोष तिवारी एवं कविता राय ने समस्त साहित्य प्रेमियों से कार्यक्रम में उपस्थिति की अपील की है।
साभार – मंथनश्री, पाथेय एवं डायनामिक संवाद टी वी
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
☆ प्रयोगशील लघुकथाएं आमंत्रित – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश करेंगे शिरकत ☆
(1) एक या दो लघुकथा और
(2) इनमें आपने अपना प्रयोग किस स्तर पर किया है?
भाषा, शिल्प, कथ्य, कहन, शैली आदि किस स्तर पर और किस तरह का प्रयोग किया हैं?* (कम से कम 200 शब्दों में और अधिकतम 1000 शब्दों में लिखें।)
सभी साहित्यप्रेमी लघुकथाकारों, लेखकों और रचनाकारों से आग्रह है कि वे अपनी प्रयोगशील लघुकथाओं को हमारे साथ साझा करें। हम वरिष्ठ, कनिष्ठ, मध्यम श्रेणी के साहित्यकारों और नवोदित लेखकों से, जिन्होंने अभी लघुकथा लिखना आरंभ किया हो, उन सभी से समान रूप से लघुकथाएं आमंत्रित करते हैं। चाहे आप एक अनुभवी साहित्यकार हों या लिखने की यात्रा शुरू कर रहे हों, आपकी प्रयोगशील लघुकथाएं का मौलिकता और रचनात्मकता के साथ का स्वागत करते हैं। लघुकथा और उसकी प्रयोगशीलता —-
आप किसी भी वर्ग या श्रेणी के लघुकथाकार हैं, आप अपनी दो-दो लघुकथाएं भेज सकते हैं। प्रयोगशील लघुकथा के साथ अपना मंतव्य भेजना अनिवार्य है। आपने यह लघुकथा कब, क्यों और कैसे लिखी? अर्थात यह लघुकथा दिमाग में कैसे आई और किस प्रक्रिया के तहत कागज पर उतरी हैं? इसमें आपने अपना प्रयोग किस स्तर पर किया है? भाषा, शिल्प, कथ्य, कहन, शैली आदि किस स्तर पर और किस स्तर का प्रयोग किया हैं? यह बताना अनिवार्य है।
निर्देश:
आपकी लघुकथाएं मौलिक, प्रकाशित और अप्रकाशित हो सकती हैं।
लघुकथा भेजने के बाद, कम से कम 8 महीने तक पत्राचार न करें, क्योंकि यह एक लंबी और शोध आधारित प्रक्रिया है।
चयनित रचनाओं को एक शोधग्रंथ या पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जाएगा।
प्रकाशन प्रक्रिया:
इस प्रक्रिया के अंतर्गत सभी श्रेणियों की लघुकथाएं का चयन होगा। यह पुस्तक विशिष्ट प्रक्रिया और रचनात्मकता को नई पहचान देगी, बल्कि साहित्य जगत में लघुकथाओ के योगदान को भी रेखांकित करेगी।
आइए, इस रचनात्मक यात्रा का हिस्सा बनें और अपनी (1) एक या दो लघुकथा और (2) इसमें आपने अपना प्रयोग किस स्तर पर किया है? भाषा, शिल्प, कथ्य, कहन, शैली आदि किस स्तर पर और किस तरह का प्रयोग किया हैं? को हमारे साथ सांझा करें।
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈