आपण सुरु केलेले ई-अभिव्यक्तिचे अंक मी नियमित वाचते.अंकातील साहित्य प्रकारांचे,लेखकांनी केलेले लेखन विषयानुसरून आणि लालित्यपूर्ण वाटते.सर्व साहित्य प्रकारांचा समावेश असल्याने कंटाळा येत नाही.या अंकाच्या परिपूर्ण वाटचालीसाठी शुभेच्छा!
श्रीमती अनुराधा फाटक
अभिप्राय – 2
ही साईट खूप आवडली. साहित्य निर्मिती आणि साहित्याचा रसास्वाद या दोन्ही गोष्टींना उद्युक्त करणारा हा एक वेगळाच मंच, अतिशय नेटका आणि सुघटित वाटतो. यावर प्रकाशित होणाऱ्या साहित्यातले वैविध्य, त्याचे तितकेच वैविध्यपूर्ण सादरीकरण, आणि एकूणच साहित्याचा आणि या मंचाचा दर्जा खरोखरच भावणारा आहे. ह्या उपयुक्त कार्याबद्दल धन्यवाद. ????
दि. 15/08/20 पासून आम्ही ई-अभिव्यक्ती मराठी आवृत्ती नवीन स्वरूपात प्रकाशित करीत आहोत. यामध्ये साहित्याच्या विविध प्रकारांचा समावेश करून अंक वैविध्यपूर्ण बनवण्याचा आमचा प्रयत्न आहे.एक वाचक म्हणून आपल्याला अंकाचे स्वरूप कसे वाटते हे आम्ही जाणून घेऊ इच्छितो. तरी आपल्या प्रतिक्रिया, सूचना, अपेक्षा मोजक्या शब्दात आम्हाला कळवाव्यात, ही विनंती. निवडक प्रतिक्रिया आम्ही दर रविवारी प्रकाशित करू.
ई- अभिव्यक्ति साईटवरील साहित्य आता वेगळ्या स्वरूपात दिले जाणार आहे. मराठी, हिंदी, इंग्रजी साहित्य आता स्वतंत्रपणे लावलं जाईल. त्यानुसार आराखड्यातही थोडा बदल केला जाणार आहे.
१. कवितेचा उत्सव
२. जीवनरंग – यात लघुतम कथा येतील.
३. विविधा – यात स्फुट/ललित/वैचारिक/प्रासंगिक/व्यक्तिचित्रणपर /विडंबनपर लेखन
४. मनमंजुषेतून अविस्मरणीय/वाचनीय आठवण – अनुभव
५. क्षण सृजनाचे – एखादी कथा, कविता कशी सुचली . कवितेबद्दल असेल, तर कविताही द्यावी. कथा, लेख असेल, तर सूत्र द्यावे.
६. इंद्रधनुष्य – काही संग्राह्य वाचनीय माहिती..
वरील मराठी विभागांसाठी गद्य लेखनाचे स्वागत आहे. लेखन उत्तम, दर्जेदार असावे. लेखन ३५०-४०० शब्दांपर्यंत केलेले असावे.
e -abhivykti आता मराठी विभाग स्वतंत्रपणे घेऊन येत आहे. याच्या या नव्या स्वरूपाविषयी वाचकांनी आपली मतं , विचार प्रतिक्रिया कळवाव्या. स्वरूप व लेखन यावरील प्रतिक्रिया शाब्दिक स्वरूपात स्वागतार्ह. इमोजीस नकोत.
(आज का अंक ई – अभिव्यक्ति परिवार के परम आदरणीय सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार एवं हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी एवं उर्दू के विद्वान अग्रज कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी की परम पूज्यनीय माता जी स्वर्गीय दुर्गा सिंह पत्नी स्व० डा० शिवमूरत सिंह जी निवासिनी ग्राम व पोस्ट कैथी वाराणसी को समर्पित है।)
आज हमारे बीच नहीं रही वह मातृत्व सत्ता जो हमें हर बार मिलने पर ममतामयी स्नेह के बंधन में बांधती नजर आती थी।
जिनके हृदय में दुखी तथा पीड़ित जनों के लिए अपार स्नेह, सेवा भाव, तथा अपने दरवाजे पर हर आगंतुकों के लिए आतिथ्य धर्म का निर्वहन ही जिनकी दैनिक दिनचर्या का अंग थी।
उम्रदराज होने पर भी उमंग तथा उत्साह की प्रतिमूर्ति थी, जिनके भीतर नेतृत्व क्षमता कूट-कूट कर भरी थी दुबले-पतले शरीर पर भी उम्र का प्रभाव अथवा आलस्य का नामोनिशान नहीं, समय के प्रति पाबंदी, सब मिलाकर एक ऐसी शख्सियत की संरचना जो लोगों को संम्मोहित कर देती थी।
उनका हम लोगों के बीच से अचानक चले जाना जहां हम सभी को अचंभित कर गया, वहीं परिवार जनों को हतप्रभ, तथा स्तब्ध कर देने वाला रहा, हम जब कभी भी उस राह से गुजरेंगे तब कदाचित हमारे नेत्र उन्हें अवश्य ढूंढेंगे।
वे हमारी स्मृति पर हमेशा विराजमान रहेंगी, जाते जाते वे अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ गई है जिसमें पुत्र नवीन सिंह,आईएफएस, पुत्र कैप्टन प्रवीण सिंह रघुवंशी, NM, भारतीय नौसेना तथा पुत्रियाँ पुत्र वधुएं समेत परिवार जनों की लंबी श्रृंखला जो उनके सुखी पारिवारिक जीवन की कहानी कहती हैं। आपने गीता तथा रामायण के भाष्य को अपने दैनिक आचरण में जिया था।
हम ऐसे व्यक्तित्व की स्वामिनी दुर्गा मइया को शत् शत् नमन अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ईश्वर से कामना करते कि पंचतत्व में विलीन मरणधर्मा पुण्य शरीरा की मृतक आत्मा को शांति प्रदान करें तथा परिवार जनों को दुख सहने की असीम शक्ति दे।।।
सादर नमन। अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः !!
श्री सूबेदार पाण्डेय, वाराणसी, हेमन्त बावनकर, पुणे एवं समस्त ई -अभिव्यक्ति साहित्यिक परिवार
☆ मन्थन की ऑनलाइन अखिल भारतीय काव्य गोष्ठी आयोजित ☆
24 मई 2020 को साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मन्थन” की अखिल भारतीय काव्य गोष्ठी जो कि कोरोना योद्धाओं के सम्मान में ज़ूम एप्प पर सायं 3 बजे से श्री विजय नेमा अनुज की अध्यक्षता श्री सूरज राय सूरज जी के मुख्य आथित्य में सोल्लास सम्प्पन हुई। गोष्ठी में डॉ सलमा जमाल, बंगलोर से श्रीमती मधु सक्सेना, इंदौर से स्मिता माथुर, बरेली से अदीबा रहमान, मनोज शुक्ल, श्री राजेन्द्र जैन रतन, सतीष जैन नवल, सिवनी से कविता नेमा, श्री सलिल तिवारी और श्री संतोष नेमा “संतोष”ने एक से बढ़कर एक रचनाएँ सुनाई कार्यक्रम का प्रारम्भ श्रीमती स्मिता माथुर द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ. गोष्ठी का बखूबी संचालन श्री सतीष जैन नवल एवं आभार प्रदर्शन सन्तोष नेमा “संतोष द्वारा किया गया.
ये पंक्तियां खूब सराही गई
भूख पेट में दबा कर,चलता नँगे पांव
राजनीति की तपन में,कहाँ मिलेगी छाँव
श्री मनोज शुक्ल जी की
प्रियवर मुझे न दो आमंत्रण।
कोरोना का हुआ आक्रमण।
तेरा हो या मेरा जीवन
हो विषाणु पर पूर्ण नियंत्रण
श्री सतीष नवल जी
हार बांहों का जैसे कैद खाना हो गया
चोरनी सा दिल जैसे थाना हो गया
प्रस्तुति – श्री संतोष नेमा “संतोष, अध्यक्ष , मंथन, जबालपुर म प्र
☆ विश्ववाणी हिंदी संस्थान – २० वां दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान लघुकथा पर्व आयोजित ☆
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
जबलपुर, २३-५-२०२०। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के २० वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान लघुकथा पर्व में देश के विविध राज्यों के २५ लघुकथाकारों ने सहभागिता की। इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान की मुखिया समर्पित समाजसेवी, से. नि. प्राध्यापक आशा रिछारिया तथा पाहुना लघुकथा आंदोलन की शिखर हस्ताक्षर कांता रॉय भोपाल के स्वागतोपरान्त इंजी. उदयभानु तिवारी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कोकिलकंठी गायिका मीनाक्षी शर्मा ‘तारिका’ ने आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ द्वारा रचित हिंदी महिमा के दोहों की प्रभावी प्रस्तुति की। विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ने मनुष्य के जन्म के पूर्व ही कथा के उद्भव का संकेत देते हुए महाभारत के अभिमन्यु प्रसंग को उठाया। उन्होंने शिशु कथा, बाल कथा, किशोर कथा, पर्व कथा, बोध कथा, लोक कथा, आदि को लघु कथा के विविध प्रकार निरूपित करते हुए मानकों के पिंजरे में रचनाधर्मिता को कैद कर कृत्रिम साहित्य सृजन को दिशाहीन बताया।
वरिष्ठ लघुकथाकार लक्ष्मी शर्मा ने ‘स्टोर रूम’ शीर्षक लघुकथा में वृद्धों को घरों से बाहर किये जाने की समस्या को उठाया। अर्चना मलैया की लघुकथा ‘बोलते पौधे’ में हरीतिमा के प्रति संवेदशीलता प्रदर्शित हुई। छाया त्रिवेदी की लघुकथा ‘पत्तल दोना और कोरोना’ में परिस्थितिजनित व्यवहारिकता को प्रस्तुत किया। संस्कृत, हिंदी और बुंदेली की विदुषी लेखिका डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने ‘कचौट’ लघुकथा में सामाजिक मर्यादा के नाम पर असंवेदनशील व्यवहार से जीवन भर टीसती कचौट को सामने लाती है और बदलती सामाजिक परिस्थितियों को स्वीकारने का संदेश देती है। ‘प्रश्नचिन्ह’ शीर्षक लघुकथा में डॉ. भावना मिश्र ने व्यक्तिगत हित को वरीयता देने और सामाजिक संबंधों की उपेक्षा से उपजी त्रासदी को शब्दित किया। प्रीती मिश्र की लघुकथा ‘स्वच्छता’ शीर्षकानुरूप सन्देशवाही लघुकथा है। टीकमगढ़ के लघुकथाकार राजीव् नामदेव ‘राना लिघौरी’ ने ‘बिजनेस’ शीर्षक लघुकथा में भिखारी द्वारा चल करने और उसे उचित ठहरने की मानसिकता को उद्घाटित किया।
डॉ. मुकुल तिवारी ने ‘प्यासे पशु’ शीर्षक लघुकथा में व्यावहारिक बुद्धि के अभावऔर मीना भट्ट की लघुकथा ने जेबकतरी से उत्पन्न त्रासदी को शब्द दिए। दतिया के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव ‘असीम’ ने लघुकथा ‘सोच’ में माँ के प्रति लापरवाह बेटे और बेटे के प्रति मोहान्ध माँ को चित्रित किया। इंजी. सुरेंद्र सिंह पवार की लघुकथा ‘नर्मदा मैया की जय विकास कार्यों के प्रति ग्रामीणों के अंध विरोध तथा उनसे लाभ मिलने पर स्वीकारने की मानसिकता को सामने लाती है। विश्वासघाती पति को दो पत्नियों द्वारा दंडित करने पर केंद्रित लघुकथा प्रस्तुत की भारती नरेश पाराशर ने। ‘स्पेसवासी’ लघुकथा में छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ने लघुकथा ‘स्पेसवासी’ में पारिस्थितिक जटिलता को परिहास में लेकर जिंदादिली से जीने एक संदेश देती है। इंजी अरुण भटनागर ने कोरोना त्रासदी की नीरसता को पौधों की प्रेम वार्ता के माध्यम से तोड़ते हुए जीवन को पूर्णता से जीन एक संदेश दिया। सपना सराफ की लघुकथा ‘प्रेमकथा’ चित्रपटीय नाटकीयता पूर्ण है। पानीपत से सम्मिलित हुई मंजरी शुक्ल ने ‘सोच’ शीर्षक लघुकथा में औरों की खुशी में सम्मिलित होकर खुश होने का सुन्दर संदेश दिया। भिंड से आई लघुकथाकार मनोरमा जैन ‘पाखी’ ने छद्म शौक के पाखंड पर प्रहार करती लघुकथा प्रस्तुत की। नक्सलवाद से प्रभावित बस्तर से सुपरिचित लघुकथाकार रजनी शर्मा ने आदिवासी बोली हल्बी मिश्रित हिंदी में जीवन परिदृश्य प्रस्तुत करते हुए अणुदा लघुकथा आदिवासियों और वनों के संबंध में बाधक बनते शासन-प्रशासन और विकास कार्यों से उपजी त्रासदी को उद्घाटित करती है। मीनाक्षी शर्मा ‘तारिका’ ने प्रथम लघुकथा प्रस्तुत करते हुए कल की चिंता छोड़कर आज का स्वागत करने का संदेश दिया। सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ने ‘सहोदर’ शीर्षक लघुकथा में घटनाओं के तानेबाने में छिपे संबंधों के कुहासे में सच को तलाशते किशोर की मानसिक समस्या, सवालों को उठाती है। कार्यक्रम की मुखिया से. नि. प्राध्यापिका आशा रिछारिया की लघुकथा ‘असल धर्म’ में कोरोना त्रासदी से भूखे मजदूरों मजदूरों की मदद देने का प्रेरक संदेश देती है। विश्ववाणी हिंदी संसथान के संयोजक-संचालक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ने लघुकथा मोहन भोग में रोजगार गंवा चुके मजदूरों के पलायन और भुखमरी की समस्या को उठाते हुए उन्हें भोजन करने को भगवन को चढ़ाये मोहन भोग की तरह बताया। दमोह की लघुकथाकार बबीता चौबे ‘शक्ति’ ने अपनी लघुकथा ‘तुम्हारी साथी’लघुकथा में पंचेन्द्रियों से संवाद के माध्यम से नारी विश्वास का संकेतन किया गया। दिल्ली की सफल लघुकथाकार सुषमा शैली की लघुकथा ‘बाल मन’ में आर्थिक अभाव के बावजूद एक बच्चे के मन में दूसरे बच्चे के प्रति उपजी संवेदना उभर कर सामने आई।
अध्यक्षीय संबोधन में श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता आशा रिछारिया जी ने विविध भाषा-बोलिओं के समन्वय को श्रेयस्कर बताते हुए लघुकथा में विविध प्रांतों के लघुकथाकारों के सम्मिलित होने पर हर्ष व्यक्त करते हुए कार्यक्रम को सफल निरूपित किया। मुख्य अतिथि कांता राय ने विषय प्रवर्तन में प्रस्तुत किये गए लघुकथा के विकास को सराहते हुए प्रत्येक लघुकथा पर अपनी राय व्यक्त की। अंत में इंजी अरुण भटनागर ने आभार प्रदर्शन किया।
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,
(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी वर्तमान में महानिदेशक (आयकर), हैदराबाद के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं।)
(श्री राकेश कुमार पालीवाल जी के इस महाभियान में ई- अभिव्यक्ति अपने सामाजिक दायित्व से विमुख नहीं हो सकता। हम आपके ऐसे सभी मानवीय महाभियानों के सहभागी हैं। )
☆ Campaign against Spitting ☆
☆ थूकने और थूक लगाने की बुरी आदत छोड़ो अभियान ☆
थूकने और थूक लगाने की बुरी आदत छोड़ो अभियान :
आपको याद होगा हम कई साल से घर, दफ्तर, बसों, बैंकों, बाजारों आदि में लोगों को समझाने का यह अभियान चला रहे हैं कि कहीं भी थूकने और कागजों और नोटों पर थूक लगाने से कई बीमारियां फैलती हैं।
आजकल कोरोना की महामारी भी थूक से फ़ैल रही है। कृपया इस संदेश को अपने घर, दफ्तर बैंको, बाजारों और जहां तक संभव हो वहां तक फैलाइए और बिना खर्च किए जनसेवा का आनन्द उठाइए।
कहीं भी थूकने की आदत तुरंत छोड़ें।
किताबों और फाइलों के पन्नों को पलटते हुए थूक मत लगाएं।
नोटों को गिनते हुए थूक का प्रयोग मत करें।
जब आप नोटों या कागजों पर थूक लगाते हैं ध्यान रहे उसमें पहले भी किसी का थूक लगा होगा। आप उससे बीमारी ले भी रहे हैं और थूक लगाकर किसी को दे भी रहे हैं।
कृपया यह बुरी आदत खुद भी छोड़ें और आराम से समझाकर दूसरों से भी छुड़वाए।
☆ कृपया कार्यालयों/सार्वजनिक स्थलों के डस्टबिन को पीकदान न बनायें ☆
(आप सब से करबद्ध प्रार्थना है इस महाअभियान पर सबके साथ चलिए और प्रण लीजिये – हम चलेंगे दो कदम)
(मानवता के हित में श्री राकेश कुमार पालीवाल जी एवं डॉ निशा पचौरी जी के फेसबुक से पेज साभार)
☆ आपकी अब तक की रिश्तों / संबंधों पर आधारित सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ आमंत्रित ☆
यह कोई प्रतियोगिता नहीं है। हम आपकी मनोभावनाओं को प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने के लिए एक एक मंच प्रदान कर रहे हैं।
सम्माननीय लेखक गण / प्रबुद्ध पाठक गण,
ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं, जो हमें पृथ्वी के किसी भी कोने में बसे जाने अनजाने लोगों से आपस में अदृश्य सूत्रों से जोड़ देते हैं। अब मेरा और आपका ही रिश्ता ले लीजिये। आप में से कई लोगों से न तो मैं व्यक्तिगत रूप से मिला हूँ और न ही आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिले हैं किन्तु, स्नेह का एक बंधन है जो हमें बांधे रखता है। आप में से कई मेरे अनुज/अनुजा, अग्रज/अग्रजा, मित्र, परम आदरणीय /आदरणीया, गुरुवर और मातृ पितृ सदृश्य तक बन गए हैं। ये अदृश्य सम्बन्ध मुझमें ऊर्जा का संचार करते हैं। मेरा सदैव प्रयास रहता है और ईश्वर से कामना करता हूँ कि मैं अपने इन सम्बन्धों को आजीवन निभाऊं। और आपसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि मेरे प्रति यह स्नेह ऐसा ही बना रहेगा।
मेरा और आपका सम्बन्ध मात्र रचनाओं के आदान प्रदान तक ही सीमित नहीं है, इस सम्बन्ध में हमारी संवेदनाएं भी जुडी हुई हैं। संभवतः संवेदनहीन सम्बन्ध कभी सार्थक नहीं होते।
मैंने ऊपर जिन संबंधों की चर्चा की है उनमें रक्त संबंधों के अतिरिक्त भी ऐसे कई सम्बन्ध हैं जिन पर अति सुन्दर साहित्य रचा गया है। मेरा मानना है कि कोई भी साहित्य जो आज तक रचा गया है उसका आधार कोई सम्बन्ध या रिश्ता न हो ऐसा शायद ही संभव हो । कई सम्बन्ध ऐसे होते हैं जिनके बारे में हम भावनात्मक रूप से लिख देते हैं किन्तु, वे सम्बन्ध परिपेक्ष्य में रहते हैं ।
ई-अभिव्यक्ति साहित्य में सकारात्मक नए प्रयोग करने के लिए कटिबद्ध है। मेरे उपरोक्त विचारों से आप निश्चित रूप से सहमत होंगे। इस पूरी प्रक्रिया में मन में एक विचार आया कि क्यों न आपसे रिश्तों या संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित की जाएँ और अपने प्रबुद्ध पाठकों से एक नवीन रूप से साझा की जाएँ।
वैसे तो पारिवारिक रिश्तों की एक लम्बी फेहरिश्त है जिनमें प्रपौत्र-प्रपौत्री से लेकर परनाना-परनानी, परदादा-परदादी तक जिनसे हम प्रतिदिन रूबरू होते रहते हैं । वैसे ही सामाजिक संबंधों की भी असीमित लम्बी फेहरिश्त है। कुछ सम्बन्ध और रिश्ते जो इस समय मेरे मस्तिष्क में आ रहे हैं आपसे उदाहरणार्थ साझा करने का प्रयास करता हूँ। इससे परे भी आपके मस्तिष्क में कई सम्बन्धो होंगे जो हम साझा करना चाहेंगे ।
पति पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, मित्र, पड़ौसी तो सामान्य हैं ही। आज जब इंसानियत तार तार हो रही है ऐसे में मानवीय सम्बन्ध, हमारा राष्ट्र से सम्बन्ध, प्रकृति एवं पर्यावरण से सम्बन्ध, पालतू एवं अन्य जानवरों से सम्बन्ध, थर्ड जेंडर जो कभी कभार हमसे रूबरू होते हैं उनसे सम्बन्ध, समाज में बमुश्किल स्वीकार्य रिश्ते (लिव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिक) और ऐसे बहुत सारे सम्बन्ध और रिश्ते जो आपके विचारों में आ रहे हैं और मेरे विचारों में नहीं आ पा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह कि कोई भी और कैसा भी सम्बन्ध या रिश्ता न छूटने पाये।
तो फिर देर किस बात की कलम / कम्प्यूटर कीबोर्ड पर शुरू हो जाइये और भेज दीजिये किसी भी संबंध / रिश्ते पर आधारित अपनी अब तक की सर्वोत्कृष्ट हिंदी/मराठी /अंग्रेजी भाषा में अधिकतम दो रचनाएँ (कविता /लघुकथा /आलेख / संस्मरण / लघुनाटिका / कलात्मक चित्र / आपके द्वारा खिंचा गया फोटोग्राफ ) अधिकतम 750-1000 शब्दों में निम्न ईमेल आई डी पर
समय सीमा – जितनी जल्दी हम आपके कार्य को सर्वोत्कृष्ट आकार दे सकें।
आयु सीमा – मनोभावनाओं की कोई आयु सीमा नहीं होती।
आपकी अनुमति / रचनाओं की मौलिकता – ई-अभिव्यक्ति को किसी भी रूप में प्रकाशित करने की स्वतंत्रता की आपकी अनुमति के साथ रचना पर कॉपीराइट आपका। रचनाएँ / कलाकृतियां मौलिक एवं आपकी स्वरचित /स्वयं की होनी चाहिए।
हाँ रचना प्रेषित करते समय ई-अभिव्यक्ति के मूलमंत्र जो डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी के आशीर्वचन में व्याप्त है का अवश्य ध्यान रखें।
सन्दर्भ : अभिव्यक्ति
संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।
दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।
काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।
बंद तिजोरी सा यहाँ, दिखता है हर व्यक्ति ।।
मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।
यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।
सजग नागरिक की तरह, जाहिर हो अभिव्यक्ति।
सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।
– डॉ राजकुमार “सुमित्र”
हमारे आमंत्रण पर रिश्तों से सम्बंधित अतिसुन्दर संवेदनशील रचनाएँ हमारे पास आई हैं और सतत आ रही हैं, जिनका संकलन का कार्य भी चल रहा है। उन रचनाओं को अतिसुन्दर स्वरुप में प्रस्तुत करने का प्रयास जारी है।
हाँ, अपने मित्र लेखकों / प्रबुद्ध पाठकों से इस जानकारी को अवश्य साझा कर इस अनुष्ठान में सहयोग करें।
आपकी अब तक की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं की प्रतीक्षा में।