(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ सब पर भारी-अटलबिहारी… ☆
कल भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी जी की जयंती थी। उनके स्मरण में मैंने अटल जी को सम्बोधित अपनी एक रचना की कुछ पंक्तियाँ साझा की थीं। इसके बाद अनेक मित्रों ने पूरी रचना पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर की। मित्रों के अनुरोध को मान देते हुए यह रचना प्रस्तुत है।
संदर्भ के लिए पाठकों को स्मरण होगा कि 21 फरवरी 1999 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी ने बस से लाहौर की यात्रा कर इतिहास रच दिया था। इस दौरान येन केन प्रकारेण चर्चा में आने की ओछी मानसिकता के चलते अतिया शमशाद नामक पाकिस्तानी लेखिका ने कश्मीर की एवज में अटलजी से विवाह का प्रस्ताव किया था। उक्त प्रस्ताव के संदर्भ में उन दिनों उपजी और चर्चित रही रचना साझा कर रहा हूँ।
लगभग 22 वर्ष पूर्व लिखी यह रचना ‘चेहरे’ कविता संग्रह में संग्रहित है।
सब पर भारी-अटलबिहारी… ✍️
बरसों का तप
दर्शकों के सिद्धांत भी टल गये,
पाकिस्तानी बाला के
विवाह प्रस्ताव से
अटलजी भी हिल गए।
जीवन की संध्या में
ऐसा प्रस्ताव मिलना
नहीं किसी अलौकिक प्रकार से कम है,
लेकिन अटल जी का व्यक्तित्व
क्या किसी चमत्कार से कम है ?
सोचा, प्रस्ताव पर
ग़ौर कर लेने में क्या हर्ज है?
साझा संस्कृति में
बड़प्पन दिखाना ही तो फर्ज़ है।
कवि मन की संवेदनशील आतुरता,
राजनेता की टोह लेती सतर्कता
प्रस्ताव को पढ़ने लगी-
आप कुँवारे-मैं कुँवारी
आप कवि, मैं कलमनवीस
आप हिन्दुस्तानी,
मैं पाकिस्तानी
क्यों न हम एक दिल हो जाएँ
बशर्त सूबा-ए-कश्मीर हमें मिल जाए!
उत्साह ठंडा हो गया
भावनाएँ छिटक कर दूर गिरीं
सारी उमंग चकनाचूर हुई अनुभव को षड्यंत्र की बू हुई।
माना कि ज़माना बदल गया है
दहेज का चलन दोनों ओर चल गया है,
पहले केवल लड़के वाले मांगा करते थे
अब लड़की वाले भी मांग रख पाते हैं,
पर यह क्या; रिश्ते की आड़ में
आप तो मोहब्बत को ही छलना चाहते हैं!
और मांगा भी तो क्या
कश्मीर…..?
वह भी अटल जी से…..?
शरीर से आत्मा मांगते हो
पुरोधा से आत्मबल मांगते हो,
बदन से जान चाहते हो
अटल के हिंदुस्तान की आन चाहते हो?
मोहतरमा!
इस शख्सियत को समझी नहीं
चकरा गई हैं आप,
कौवों की राजनीति में
राजहंस से टकरा गयी हैं आप।
दिल कितना बड़ा है
जज़्बात कितने गहरे हैं
इसे समझो,
सीमाओं को तोड़ते
दिलों को जोड़ते
ज्यों सरहद की बस चलती है,
नफरत की हर आंधी
जिसके आवेग से टलती है,
मोहब्बत की हवाएँ
जिसका दम भरती हैं,
पूछो अपने आप से
क्या तुम्हारे दिलों पर
अटल की हुकूमत नहीं चलती है?
युग को शांति का
शक्तिशाली योद्धा मिला है,
इस योद्धा के सम्मान में गीत गाओ,
नफरत और जंग की सड़क पर
हिन्दुस्तानी मोहब्बत और
अमन की बस आती है,
इस बस में चढ़ जाओ।
बहुत हुआ
अब तो मन की कालिख धो लो,
शांति और खुशहाली के सफर में
इस मसीहा के संग हो लो।
काश! शादी करके यहाँ बसने का
आपका खयाल चल पाता,
हमें तो डर था
कहीं घरजवाई होने का
प्रस्ताव न मिल जाता।
प्रस्ताव मिल जाता तो
हमारा तो सब कुछ चला जाता
पर चलो तुम्हारा
तो कल सुधर जाता
यहाँ का अटल
वहाँ भी बड़ी शान से चल जाता।
सारी दुनिया आज दुखियारी है
हर नगरी अंधियारी है,
अंधेरे मे चिंगारी है
सब पर जो भारी है
हमें दुख है, हमारे पास
केवल एक अटलबिहारी है।
वैसे भी तुम्हारे हाल तो खस्ता हैं
ऐसे में अटलजी से
रिश्ता जोड़ने का खयाल अच्छा है।
वाजपेयी जी!
सौगंध है आपको,
हमें छोड़ मत जाना
क्योंकि अगर आप चले जाएँगे,
तो-
वेश्या-सी राजनीति
गिद्धों-से राजनेताओं
और अमावस-सी अंधेरी व्यवस्था में
दीप जलाने, राह दिखाने
दूसरा अटल कहाँ से लायेंगे ?
© संजय भारद्वाज