अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (24) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्‍कारेण वा पुनः।

क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम्‌॥

जो फल इच्छा सहित हो, कर्म अहं-सायास

उसको कहते राजस, भले हो बिना प्रयास।।24।।

भावार्थ :  परन्तु जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है॥24॥

But that action which is done by one longing for the fulfilment of desires or gain, with egoism or with much effort-that is declared to be Rajasic.

 

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ एलिअन/Alien – श्री संजय भारद्वाज ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem  “एलिअन ” . We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज 

☆ एलिअन ☆ 

मुखौटोंवाला झुंड

निरंतर नोंचता रहा

मेरा चेहरा,

दूसरी-तीसरी-चौथी

परत के भ्रम में

खींचता रहा मांस

झिल्ली-दर-झिल्ली,

मैं तड़पता रहा,

चिल्लाता रहा,

दर्द से बिलबिलाता रहा,

झुंड पर कोई असर नहीं पड़ा,

एकाएक

उसके चेहरे पर

भय नज़र आने लगा है,

समूह मुझसे

दूर जाने लगा है,

झुंड ने मुझे

घोषित कर दिया है

एलिअन,..,

उसकी मान्यता है,

मुखौटेविहीन चेहरा

धरती पर

नहीं पाया जाता।

 

☆ Alien

 

Masked herd

Kept tearing off

my face,

In the delusion of

second, third, fourth

under layers

Nipping off flesh Membrane-by-membrane,

layer-by-layer…

I kept on writhing in pain,

Kept crying, Kept sobbing

in excruciating pain,

But, the herd remained unmoved

All of a sudden

fear began to appear

on their faces…

They started to run away from me

Declaring me to be

an alien,

Herd believed,

Mask less face

doesn’t even exist

on the earth..!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (23) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

नियतं सङ्‍गरहितमरागद्वेषतः कृतम।

अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते॥

 

राग द्वेष से रहित हो, लिप्ति बिना, कृत कर्म

कहलाता है सात्विक, यही धर्म का मर्म ।।23।।

 

भावार्थ :  जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभिमान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग-द्वेष के किया गया हो- वह सात्त्विक कहा जाता है॥23॥

An action which is ordained, which is free from attachment, which is done without love or hatred by one who is not desirous of any reward-that action is declared to be Sattwic.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ एलिअन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ एलिअन

मुखौटोंवाला झुंड

निरंतर नोंचता रहा

मेरा चेहरा,

दूसरी-तीसरी-चौथी

परत के भ्रम में

खींचता रहा मांस

झिल्ली-दर-झिल्ली,

मैं तड़पता रहा,

चिल्लाता रहा,

दर्द से बिलबिलाता रहा,

झुंड पर कोई असर नहीं पड़ा,

एकाएक

उसके चेहरे पर

भय नज़र आने लगा है,

समूह मुझसे

दूर जाने लगा है,

झुंड ने मुझे

घोषित कर दिया है

एलिअन,..,

उसकी मान्यता है,

मुखौटेविहीन चेहरा

धरती पर

नहीं पाया जाता।

 

©  संजय भारद्वाज 

(कवितासंग्रह ‘योंही’ से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (22) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम्‌।

अतत्त्वार्थवदल्पंच तत्तामसमुदाहृतम्‌॥

 

जब कोई एक ही कार्य को ‘सब कुछ यह ही‘ भाव

रखकर बिना हेतु आसक्त हो, तो वह तामस भाव ।।22।।

 

भावार्थ :  परन्तु जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला, तात्त्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है- वह तामस कहा गया है॥22॥

 

But that which clings to one single effect as if it were the whole, without reason, without foundation in Truth, and trivial-that is declared to be Tamasic (dark).

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ लघुकथा – आग ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ लघुकथा – आग

दोनों कबीले के लोगों ने शिकार पर अधिकार को लेकर एक-दूसरे पर धुआँधार पत्थर बरसाए। बरसते पत्थरों में कुछ आपस में टकराए। चिंगारी चमकी। सारे लोग डरकर भागे।

बस एक आदमी खड़ा रहा। हिम्मत करके उसने फिर एक पत्थर दूसरे पर दे मारा। फिर चिंगारी चमकी। अब तो जुनून सवार हो गया उसपर। वह अलग-अलग पत्थरों से खेलने लगा।

वह पहला आदमी था जिसने आग बोई, आग की खेती की। आग को जलाया, आग पर पकाया। एक रोज आग में ही जल मरा।

लेकिन वही पहला आदमी था जिसने दुनिया को आग से मिलाया, आँच और आग का अंतर समझाया। आग पर और आग में सेंकने की संभावनाएँ दर्शाईं। उसने अपनी ज़िंदगी आग के हवाले कर दी ताकि आदमी जान सके कि लाशें फूँकी भी जा सकती हैं।

वह पहला आदमी था जिसने साबित किया कि भीतर आग हो तो बाहर रोशन किया जा सकता है।

 

©  संजय भारद्वाज 

रात्रि 8.16 बजे  04.08.2019

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (21) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान्‌।

वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्‌।।21।।

 

जब भूतों की विविधता में पृथकत्व का भान

तब ऐसे भाव को तो कहते राजस ज्ञान ।।21।।

 

भावार्थ :  किन्तु जो ज्ञान अर्थात जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान।।21।।

But that knowledge which sees in all beings various entities of distinct kinds as different from one another-know thou that knowledge to be Rajasic (passionate).।।21।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ समंदर ☆ श्री संजय भारद्वाज

 

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ समंदर

वह प्याले में

उठे तूफान के

किस्से सुनाता रहा,

अपने भीतर

एक समंदर छिपाये

मैं चुपचाप सुनता रहा।

 

©  संजय भारद्वाज 

प्रातः 6:50 17.10.18

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते ।

अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम् ॥

वही ज्ञान है सात्विक, सच्चा और पवित्र

विभिन्न भूलों को देखते अमर और अविभक्त ।।20।।

भावार्थ :  जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक-पृथक सब भूतों में एक अविनाशी परमात्मभाव को विभागरहित समभाव से स्थित देखता है, उस ज्ञान को तू सात्त्विक जान॥20॥

 

That by which one sees the one indestructible Reality in all beings, not separate in all the separate beings-know thou that knowledge to be Sattwic (pure).

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 66 ☆ शक्तिपर्व नवरात्रि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच –  शक्तिपर्व नवरात्रि ☆

शक्तिपर्व नवरात्रि आज से आरंभ हो रहा है। शास्त्रोक्त एवं परंपरागत पद्धति के साथ-साथ इन नौ संकल्पों के साथ देवी की उपासना करें। निश्चय ही दैवीय आनंद की प्राप्ति होगी।

  1. अपने बेटे में बचपन से ही स्त्री का सम्मान करने का संस्कार डालना देवी की उपासना है।
  2. घर में उपस्थित माँ, बहन, पत्नी, बेटी के प्रति आदरभाव देवी की उपासना है।
  3. दहेज की मांग रखनेवाले घर और वर तथा घरेलू हिंसा के अपराधी का सामाजिक बहिष्कार देवी की उपासना है।
  4. स्त्री-पुरुष, सृष्टि के लिए अनिवार्य पूरक तत्व हैं। पूरक न्यून या अधिक, छोटा या बड़ा नहीं अपितु समान होता है। पूरकता के सनातन तत्व को अंगीकार करना देवी की उपासना है।
  5. स्त्री को केवल देह मानने की मानसिकता वाले मनोरुग्णों की समुचित चिकित्सा करना / कराना भी देवी की उपासना है।
  6. हर बेटी किसीकी बहू और हर बहू किसीकी बेटी है। इस अद्वैत का दर्शन देवी की उपासना है।
  7. किसीके देहांत से कोई जीवित व्यक्ति शुभ या अशुभ नहीं होता। मंगल कामों में विधवा स्त्री को शामिल नहीं करना सबसे बड़ा अमंगल है। इस अमंगल को मंगल करना देवी की उपासना है।
  8. गृहिणी 24×7 अर्थात पूर्णकालिक सेवाकार्य है। इस अखंड सेवा का सम्मान करना तथा घर के कामकाज में स्त्री का बराबरी से या अपेक्षाकृत अधिक हाथ बँटाना, देवी की उपासना है।
  9. स्त्री प्रकृति के विभिन्न रंगों का समुच्चय है। इन रंगों की विविध छटाओं के विकास में स्त्री के सहयोगी की भूमिका का निर्वहन, देवी की उपासना है।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

? शारदीय नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएँ ?

 

© संजय भारद्वाज

(लेखन-10.10.2018)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print