अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (7) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन)

 

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।

न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।।7।।

असुरो में न पवित्रता, दया न शुभ आचार

सत्य से कोसो दूर रह, करते पापाचार ।।7।।

 

भावार्थ :  आसुर स्वभाव वाले मनुष्य प्रवृत्ति और निवृत्ति- इन दोनों को ही नहीं जानते। इसलिए उनमें न तो बाहर-भीतर की शुद्धि है, न श्रेष्ठ आचरण है और न सत्य भाषण ही है।।7।।

 

The demoniacal know not what to do and what to refrain from; neither purity nor right conduct nor truth is found in them.।।7।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ एकाक्षी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ एकाक्षी ☆

 

एकाक्षी होना चाहता हूँ,

आवश्यक नहीं

एक आँख बंद कर लूँ,

वांछित है, दोनों में

समत्व विकसित कर लूँ!

 

©  संजय भारद्वाज 

10 अगस्त 17, संध्या 7.10

#आपका दिन सार्थक हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (6) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन)

 

द्वौ भूतसर्गौ लोकऽस्मिन्दैव आसुर एव च।

दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ में श्रृणु।।6।।

इस जग में दो सृष्टि है, दैव आसुरी नाम

क्रमशः अच्छे बुरे है इन  दोनो के काम ।।6।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, एक तो दैवी प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला। उनमें से दैवी प्रकृति वाला तो विस्तारपूर्वक कहा गया, अब तू आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य समुदाय को भी विस्तारपूर्वक मुझसे सुन।।6।।

 

There are two types of beings in this world-the divine and the demoniacal; the divine has been described at length; hear from Me, O Arjuna, of the demoniacal!।।6।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष ‘संजय उवाच’ – कृष्णनीति ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”)

☆ श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष ‘संजय उवाच’ – कृष्णनीति ☆

जीवन अखंड संघर्ष है। इस संघर्ष के पात्रों को प्रवृत्ति के आधार पर दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, भाग लेनेवाले और भाग लेनेवाले। एक संघर्ष में भाग लेता है, दूसरा संघर्ष से भाग लेता है। बिरला कोई रणनीतिकार होता है जो भाग लेने के लिए सृष्टि के हित में भाग लेता है। ऐसा रणनीतिकार कालजयी होता है। ऐसा रणनीतिकार संयोग से नहीं अपितु परम योग से बनता है। अत: योगेश्वर कहलाता है।

योगेश्वर श्रीकृष्ण के वध के लिए जरासंध ने  कालयवन को भेजा। विशिष्ट वरदान के चलते कालयवन को परास्त करना सहज संभव न था। शूरवीर मधुसूदन युद्ध के क्षेत्र से कुछ यों निकले कि कालयवन को लगा, वे पलायन कर रहे हैं। उसने भगवान का पीछा करना शुरू कर दिया।

कालयवन को दौड़ाते-छकाते श्रीकृष्ण उसे उस गुफा तक ले गए जिसमें ऋषि मुचुकुंद तपस्या कर रहे थे। अपनी पीताम्बरी ऋषि पर डाल दी। उन्माद में कालयवन ने ऋषिवर को ही लात मार दी। विवश होकर ऋषि को चक्षु खोलने पड़े और कालयवन भस्म हो गया। साक्षात योगेश्वर की साक्षी में ज्ञान के सम्मुख  अहंकार को भस्म तो होना ही था।

कृष्ण स्वार्थ के लिए नहीं सर्वार्थ के लिए लड़ रहे थे। यह ‘सर्व’ समष्टि से तात्पर्य रखता है। यही कारण था कि रणकर्कश ने समष्टि के हित में रणछोड़ होना स्वीकार किया।

भगवान भलीभाँति जानते थे कि आज तो येन केन प्रकारेण वे असुरी शक्ति से लोहा ले लेंगे पर कालांतर में जब वे पार्थिव रूप में धरा पर नहीं होंगे और इसी तरह के आक्रमण होंगे तब प्रजा का क्या होगा? ऋषि मुचुकुंद को जगाकर कृष्ण आमजन में अंतर्निहित सद्प्रवृत्तियों को जगा रहे थे, किसी कृष्ण की प्रतीक्षा की अपेक्षा सद्प्रवृत्तियों की असीम शक्ति का दर्शन करवा रहे थे।

स्मरण रहे, दुर्जनों की सक्रियता नहीं अपितु सज्जनों की निष्क्रियता समाज के लिए अधिक घातक सिद्ध होती है। कृष्ण ने सद्शक्ति की लौ समाज में जागृत की।

प्रश्न है कि कृष्णनीति की इस लौ को अखंड रखने के लिए हम क्या कर रहे हैं? हमारी आहुति स्वार्थ के लिए है या सर्वार्थ के लिए? विवेचन अपना-अपना है, निष्कर्ष भी अपना-अपना ही होगा।

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (5) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।

मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।5।।

 

दैवी संपत्ति शुद्धि हित, आसुरी दुखद महान

पार्थ ! तू दैवी युक्त है, मत कर शोक सुजान।।5।।

 

भावार्थ :  दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और आसुरी सम्पदा बाँधने के लिए मानी गई है। इसलिए हे अर्जुन! तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है ।।5।।

The divine nature is deemed for liberation and the demoniacal for bondage. Grieve not, O Arjuna, for thou art born with divine properties! ।।5।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ असंभव ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ असंभव ☆

उसका समय

आया नहीं

पर चलो

कुछ छल करें,

छिप जाओ तुम

तुम्हारी एवज़ में

उसके प्राण हरें,

गलती पकड़ी जाएगी

तब देखी जाएगी,

तब तक तुम्हारी

जीवन-नैया भी

खेई जाएगी,

मेरे नकार से

तमतमा गया,

क्रोध के साथ

अचरज आ गया,

जीवन भर

सिद्धांतों पर

चलता रहा,

छल को पास

फटकने न दिया,

अब मृत्यु से

रक्षा के लिए

सिद्धांतों से समझौता

संभव नहीं,

काल!

एक नहीं

अनेक बार

अकाल हरो

पर जीवन से

छल करुँ,

संभव नहीं!

 

©  संजय भारद्वाज 

( 3 अगस्त 2018, मध्याह्न)

#आपका दिन सार्थक हो।

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (4) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्‌।।4।।

असुरो की संपत्ति है, दम्भ, दर्प, अभिमान

दुर्गुण, क्रोध, निठुर वचन और बडा अज्ञान ।।4।।

 

भावार्थ :  हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं।।4।।

 

Hypocrisy, arrogance, self-conceit, harshness and also anger and ignorance, belong to one who is born in a demoniacal state, O Arjuna! ।।4।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सृष्टि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सृष्टि☆

तुम समेटती रही

अपनी दुनिया और

मुझ तक आकर ठहर गई,

मैं विस्तार करता रहा तुम्हारा

और दुनिया तुममें

सिमट कर रह गई,

अपनी-अपनी सृष्टि है प्रिये!

अपनी-अपनी दृष्टि है प्रिये!

©  संजय भारद्वाज 

सुबह 10.25 बजे, 17.6.19

#आपका दिन सार्थक हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (3) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता।

भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।3।।

तेजस्विता, क्षमा तथा मन में द्रोह अभाव

ये सब दैवी संपदा, दिव्य पुरूष के भाव ।।3।।

 

भावार्थ :  तेज (श्रेष्ठ पुरुषों की उस शक्ति का नाम ‘तेज’ है कि जिसके प्रभाव से उनके सामने विषयासक्त और नीच प्रकृति वाले मनुष्य भी प्रायः अन्यायाचरण से रुककर उनके कथनानुसार श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं), क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्धि (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी देखनी चाहिए) एवं किसी में भी शत्रुभाव का न होना और अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव- ये सब तो हे अर्जुन! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं।।3।।

Vigour, forgiveness, fortitude, purity, absence of hatred, absence of pride-these belong to one born in a divine state, O Arjuna!।।3।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (2) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्‌।

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्‌।।2।।

शांति अक्रोध, सत, अहिंसा और कर्मफल त्याग

मृदुता, लज्जा, धैर्य औ” जीवदया प्रतिराग ।।2।।

 

भावार्थ :  मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण (अन्तःकरण और इन्द्रियों के द्वारा जैसा निश्चय किया हो, वैसे-का-वैसा ही प्रिय शब्दों में कहने का नाम ‘सत्यभाषण’ है), अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग, अन्तःकरण की उपरति अर्थात्‌ चित्त की चञ्चलता का अभाव, किसी की भी निन्दादि न करना, सब भूतप्राणियों में हेतुरहित दया, इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें आसक्ति का न होना, कोमलता, लोक और शास्त्र से विरुद्ध आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव।।2।।

 

Harmlessness, truth,   absence   of   anger,   renunciation,   peacefulness,   absence   of crookedness,  compassion  towards  beings,  uncovetousness,  gentleness,  modesty,  absence  of fickleness.।।2।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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