हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विश्वास ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ विश्वास 

रोज रात

सो जाता हूँ

इस विश्वास से कि

सुबह उठ जाऊँगा,

दर्शन कहता है-

साँसें बाकी हैं

तोे उठ पाता हूँ,

मैं सोचता हूँ-

विश्वास बाकी है

सो उठ जाता हूँ..!

©  संजय भारद्वाज

(बुधवार 15 जून 2016, रात्रि 12:10 बजे)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (4) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति)

 

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।

तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ।।4।।

सभी योनि में मूर्तियाॅ होती जो उत्पन्न

उनकी सर्जक है प्रकृति, मैं हूॅ बीज समान।।4।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ अर्थात शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सबकी गर्भधारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ।।4।।

 

Whatever forms are produced, O Arjuna, in any womb whatsoever, the great Brahma is their womb and I am the seed-giving father.।।4।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सत्य ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सत्य 

इसका सत्य

उसका सत्य,

मेरा सत्य

तेरा सत्य,

क्या सत्य सापेक्ष होता है?

अपनी सुविधा

अपनी परिभाषा,

अपनी समझ

अपना प्रमाण,

दृष्टि सापेक्ष होती है,

साधो! सत्य निरपेक्ष होता है!

©  संजय भारद्वाज

रात्रि 12:27 बजे, 16.6.19

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (3) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति)

 

मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम् ।

सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत ।।3।।

सदब्रहम (प्रकृति/योनि) में, मैं ही तो करता गभनिधान

जिससे पाता जन्म है जग में सकल जहान।।3।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! मेरी महत्ब्रह्मरूप मूल-प्रकृति सम्पूर्ण भूतों की योनि है अर्थात गर्भाधान का स्थान है और मैं उस योनि में चेतन समुदायरूप गर्भ को स्थापन करता हूँ। उस जड़-चेतन के संयोग से सब भूतों की उत्पति होती है।।3।।

 

My womb is the great Brahma; in that I place the germ; thence, O Arjuna, is the birth of all beings!।।3।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सिंफनी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सिंफनी 

उठना चाहता है

लहर की तरह,

उठ पाता है

बुलबुले की तरह,

समय, प्रयत्न

और भाग्य की सिंफनी

सफलता तय करती हैं,

स्वप्न और सामर्थ्य

के बीच की दूरी

उफ़ कितनी खीझ

उत्पन्न करती है!

 

©  संजय भारद्वाज

( मंगलवार, 7 जून 2016, प्रातः 6:51)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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मोबाइल– 9890122603

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (2) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति)

 

इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः ।

सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ।।2।।

 

इसे जानकर, मुझ सा हरि उन्हें मिला अविना श

सर्ग-प्रलय के बंध से मुक्ति का प्रिय विश्वास ।।2।।

 

भावार्थ :  इस ज्ञान को आश्रय करके अर्थात धारण करके मेरे स्वरूप को प्राप्त हुए पुरुष सृष्टि के आदि में पुनः उत्पन्न नहीं होते और प्रलयकाल में भी व्याकुल नहीं होते।।2।।

 

They who, having taken refuge in this knowledge, attain to unity with Me, are neither born at the time of creation nor are they disturbed at the time of dissolution.।।2।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #52 ☆ साक्षात्कार ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ☆

शुभ प्रभात। आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। योग, सनातन संस्कृति द्वारा मानवता को दिया गया सबसे बड़ा उपहार है।

योग का शाब्दिक अर्थ मेल या मिलना है। सूक्ष्म और स्थूल के मेल से देह, मन एवं चेतना को सक्रिय करने तथा सक्रिय रखने का अद्भुत साधन है योग।

यदि योग, ध्यान, प्राणायम करते हैं तो नियमित रखिए। यदि नहीं तो आज से अवश्य आरम्भ कीजिए।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # साक्षात्कार

शाम के घिरते धुँधलके में बालकनी से सड़क की दूसरी ओर का दृश्य निहार रहा हूँ। काफी ऊँचाई पर सुदूर आकाश में दो पंछी पंख फैलाये, धीमी गति से उड़ते दिख रहे हैं। एक धीरे-धीरे नीचे की ओर आ रहा है। नीचे आने की क्रिया में पेड़ के पीछे की ओर जाकर विलुप्त हो गया। संभवत: कोई घोंसला उसकी प्रतीक्षा में है। दूसरा दूर और दूर जा रहा है, निरंतर आकाश की ओर। थोड़े समय बाद आँखों को केवल आकाश दिख रहा है।

जीवन भी कुछ ऐसा ही है। घोंसला मिलना, जगत मिलना। जगत मिलना, जन्म पाना।आकाश में ओझल होना, प्रयाण पर निकलना। प्रयाण पर निकलना, काल के गाल में समाना।

प्रकृति को निहारो, हर क्षण जन्म है। प्रकृति को निहारो, हर क्षण मरण है। प्रकृति है सो पंचमहाभूत हैं। पंचमहाभूत हैं सो जन्म है। प्रकृति है सो पंचतत्वों में विलीन होना है, पंचतत्वों में विलीन होना है सो मरण है। प्रकृति है सो पंचेंद्रियों के माध्यम से जीवनरस का पान है। जीवनरस का पान है सो जीवन का वरदान है। जन्म का पथ है प्रकृति, जीवन का रथ है प्रकृति, मृत्यु का सत्य है प्रकृति।

प्रकृति जन्म, परण, मरण है। जन्म, परण, मरण, जीव की गति का अलग-अलग भेष हैं।जन्म, परण, मरण ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश,त्रिदेव हैं। प्रकृति त्रिदेव है। सहजता से त्रिदेव के साक्षात दर्शन कर सकते हो।

साधो! कब करोगे दर्शन?

©  संजय भारद्वाज

संध्या 7:28, 13.6.20

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (1) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति)

श्री भगवानुवाच

परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानं मानमुत्तमम् ।

यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ।।1।।

 

श्री भगवान ने कहा-

तुम्हें बताता हॅू पुनः, ज्ञानों का भी ज्ञान

जिसे जानकर सिद्ध मुनि पा जाते निर्वाण।।1।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- ज्ञानों में भी अतिउत्तम उस परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब मुनिजन इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गए हैं।।1।।

 

I will again declare (to thee) that supreme knowledge, the best of all knowledge, having known which all the sages have gone to the supreme perfection after this life.।।1।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विकल्प ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ विकल्प 

यात्रा में संचित

होते जाते हैं शून्य,

कभी छोटे, कभी विशाल,

कभी स्मित, कभी विकराल..,

विकल्प लागू होते हैं

सिक्के के दो पहलू होते हैं-

सारे शून्य मिलकर

ब्लैकहोल हो जाएँ

और गड़प जाएँ अस्तित्व

या मथे जा सकें

सभी निर्वात एकसाथ

पाये गर्भाधान नव कल्पित,

स्मरण रहे-

शून्य मथने से ही

उमगा था ब्रह्मांड

और सिरजा था

ब्रह्मा का अस्तित्व,

आदि या इति

स्रष्टा या सृष्टि

अपना निर्णय, अपने हाथ

अपना अस्तित्व, अपने साथ,

समझ रहे हो न मनुज..!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

[email protected]

( प्रात: 8.44 बजे, 12 जून 2019)

#हरेक के भीतर बसे ब्रह्मा को नमन। आपका दिन सार्थक हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (34) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

 

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा ।

भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्‌।।34।।

 

क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ की ,जिन्हें सही पहचान

प्रकृति बधंनो से उन्हें ,मुक्ति का मालुम ज्ञान ।।34।।

भावार्थ :  इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को (क्षेत्र को जड़, विकारी, क्षणिक और नाशवान तथा क्षेत्रज्ञ को नित्य, चेतन, अविकारी और अविनाशी जानना ही ‘उनके भेद को जानना’ है) तथा कार्य सहित प्रकृति से मुक्त होने को जो पुरुष ज्ञान नेत्रों द्वारा तत्व से जानते हैं, वे महात्माजन परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं।।34।।

 

They who, through the eye of knowledge, perceive the distinction between the Field and its Knower, and also the liberation from the Nature of being, they go to the Supreme.।।34।।

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगो नाम त्रयोदशोऽध्यायः॥13॥

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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