श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ☆
शुभ प्रभात। आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। योग, सनातन संस्कृति द्वारा मानवता को दिया गया सबसे बड़ा उपहार है।
योग का शाब्दिक अर्थ मेल या मिलना है। सूक्ष्म और स्थूल के मेल से देह, मन एवं चेतना को सक्रिय करने तथा सक्रिय रखने का अद्भुत साधन है योग।
यदि योग, ध्यान, प्राणायम करते हैं तो नियमित रखिए। यदि नहीं तो आज से अवश्य आरम्भ कीजिए।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # साक्षात्कार☆
शाम के घिरते धुँधलके में बालकनी से सड़क की दूसरी ओर का दृश्य निहार रहा हूँ। काफी ऊँचाई पर सुदूर आकाश में दो पंछी पंख फैलाये, धीमी गति से उड़ते दिख रहे हैं। एक धीरे-धीरे नीचे की ओर आ रहा है। नीचे आने की क्रिया में पेड़ के पीछे की ओर जाकर विलुप्त हो गया। संभवत: कोई घोंसला उसकी प्रतीक्षा में है। दूसरा दूर और दूर जा रहा है, निरंतर आकाश की ओर। थोड़े समय बाद आँखों को केवल आकाश दिख रहा है।
जीवन भी कुछ ऐसा ही है। घोंसला मिलना, जगत मिलना। जगत मिलना, जन्म पाना।आकाश में ओझल होना, प्रयाण पर निकलना। प्रयाण पर निकलना, काल के गाल में समाना।
प्रकृति को निहारो, हर क्षण जन्म है। प्रकृति को निहारो, हर क्षण मरण है। प्रकृति है सो पंचमहाभूत हैं। पंचमहाभूत हैं सो जन्म है। प्रकृति है सो पंचतत्वों में विलीन होना है, पंचतत्वों में विलीन होना है सो मरण है। प्रकृति है सो पंचेंद्रियों के माध्यम से जीवनरस का पान है। जीवनरस का पान है सो जीवन का वरदान है। जन्म का पथ है प्रकृति, जीवन का रथ है प्रकृति, मृत्यु का सत्य है प्रकृति।
प्रकृति जन्म, परण, मरण है। जन्म, परण, मरण, जीव की गति का अलग-अलग भेष हैं।जन्म, परण, मरण ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश,त्रिदेव हैं। प्रकृति त्रिदेव है। सहजता से त्रिदेव के साक्षात दर्शन कर सकते हो।
साधो! कब करोगे दर्शन?
© संजय भारद्वाज
संध्या 7:28, 13.6.20
# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆