डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं। आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक सार्थक एवं विचारणीय आलेख “विकास के महासमर में नारी – महिला सशक्तिकरण”. )
☆ किसलय की कलम से # 29 ☆
☆ विकास के महासमर में नारी – महिला सशक्तिकरण ☆
प्राचीन भारत का लिखित-अलिखित इतिहास साक्षी है कि भारतीय समाज ने कभी मातृशक्ति के महत्त्व का आकलन कम नहीं किया। न ही मैत्रेयी, गागी, विद्योतमा, लक्ष्मीबाई, दुर्गावती के भारत में इनका महत्त्व कम रहा। हमारे वेद और ग्रंथ नारी-शक्ति के योगदान से भरे पड़े हैं। इतिहास वीरांगनाओं के बलिदानों का साक्षी है। जब आदिकाल से ही मातृशक्ति को सोचने, समझने, कहने और कुछ कर गुजरने के अवसर मिलते रहे हैं तब वर्तमान में क्यों नहीं ? आज जब परिवार, समाज और राष्ट्र नारी की सहभागिता के बिना अपूर्ण है, तब हमारा दायित्व बनता है कि हम बेटियों में दूना – चौगुना उत्साह भरें। उन्हें घर, गाँव, शहर, देश और अंतरिक्ष से भी आगे सोचने का अवसर दें। उनकी योग्यता और क्षमता का उपयोग समाज और राष्ट्र के विकास में होने दें। आज भले ही हम विकास के अभिलेखों में नारी सहभागिता को उल्लेखनीय कहें परंतु अभी भी पर्याप्त नहीं कह सकते। अब समय आ गया है कि हम बेटियों के सुनहरे भविष्य के लिए गहन चिंतन करें। सरोजिनी नायडू, मदर टेरेसा, अमृता प्रीतम, डॉ. शुभलक्ष्मी, पी.टी. उषा, कल्पना चावला जैसी नारियाँ वे प्रतिभाएँ हैं जो विकास-पथ में मील की पत्थर सिद्ध हुई हैं । बावजूद इसके विकास यात्रा निरंतर आगे बढ़ती रहेगी। नई नई दिशाओं में, नए आयामों में, सुनहरे कल की ओर।
पहले नारी चहारदीवारी तक ही सीमित थी परंतु आज हम गर्वित हैं कि नारी की सीमा समाजसेवा, राजनीति, विज्ञान, चिकित्सा, खेलकूद, साहित्य और संगीत को लाँघकर दूर अंतरिक्ष तक जा पहुँची है। एक नारी ने अंतरिक्ष में जाकर अपनी उपस्थिति से समग्र नारी समाज को गौरवान्वित किया है। महिला वर्ग में शिक्षा के प्रति जागरूकता, पुरुषों की नारी के प्रति बदलती हुई सोच, नारी प्रतिभा और इनके महत्त्व का एहसास आज सभी को हो चला है। उद्योग-धंधे हों या फिर विज्ञान, चिकित्सा आदि का क्षेत्र। आज ऐसे सभी क्षेत्रों में नारियों का प्रतिनिधित्व स्वाभाविक सा लगने लगा है। अनेक क्षेत्रों में नारी पुरुषों से कहीं आगे निकल गई हैं।
तुम्हारे बिना समाज अधूरा
समाज महिला और पुरुष दो वर्गों का मिला-जुला रूप है। चहुँमुखी विकास में दोनों की सक्रियता अनिवार्य है। महिलाओं की प्रगति का अर्थ है, आधी सामाजिक चेतना और जनकल्याण। महिलाएँ घर और बाहर दोनों जगह महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकती हैं, बशर्ते वे शिक्षित हों, जागरूक हों। उन्हें उत्साहित किया जाए। उन्हें एहसास कराया जाए कि नारी! तुम्हारे बिना यह समाज अधूरा है। तुम्हारे बिना मानव विकास अपूर्ण है। अब स्वयं ही तुम्हें अपने बल, बुद्धि और विवेक से आगे बढ़ने का वक्त आ गया है। कब तक पुरुषों का सहारा लोगी ? बैसाखी पकड़कर चलने की आदत कभी तुम्हें स्वावलंबी नहीं बनने देगी । कर्मठता का दीप प्रज्ज्वलित करो। श्रम की सरिता बहाओ। बुद्धि का प्रकाश फैलाओ और अपनी नारी शक्ति का वैभव दिखा दो। नारी-विकास के पथ में आने वाले रोड़ों को दूर हटा दो। घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर कूद पड़ो विकास के महासमर में। छलाँग लगा दो विज्ञान के अंतरिक्ष में। परिस्थितियाँ और परिवेश बदले हैं। आत्मनिर्भरता बढ़ी है। बस दृढ़ आत्मविश्वास की और आवश्यकता है।
आंदोलन भर से क्या होगा?
अकेले नारी मुक्ति आंदोलन से कुछ नहीं होगा। पहले तुम्हें स्वयं अपना ठोस आधार निर्मित करना होगा। इसके लिए शिक्षा, कर्मठता का संकल्प, भविष्य के सुनहरे सपने और आत्मविश्वास रूपी आधारशिला की आवश्यकता है। इन्हें प्राप्त कर इनको ही विकास की सीढ़ी बनाओ और पहुँचने की कोशिश करो प्रगति के सर्वोच्च शिखर पर। कोशिशें ही एक तरह से हमारे कर्म हैं। कर्म करते चलो, परिणाम की चिंता मत करो।
नारी तुम्हारा श्रम, तुम्हारी निष्ठा, तुम्हारी सहभागिता, तुम्हारे श्रम-सीकर व्यर्थ नहीं जाएँगे। कल तुम्हारा होगा। तुम्हारी तपस्या का परिणाम नि:संदेह सुखद ही होगा, जिसमें तुम्हारी, हमारी और सारे समाज भलाई निहित है।
© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
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