हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #16 – कागज जलाना मतलब पेड़ जलाना  ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “कागज जलाना मतलब पेड़ जलाना ” ।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 17 ☆

 

☆ कागज जलाना मतलब पेड़ जलाना ☆

 

स्कूलों में, कार्यालयों में प्रतिदिन ढ़ेरों कागज साफ सफाई के नाम पर जला दिया जाता है……. कभी आपने जाना है कि कागज कैसे बनता है ? जब हम यह समझेंगे कि कागज कैसे बनता है, तो हम सहज ही समझ जायेंगे कि एक कागज जलाने का मतलब है कि हमने एक हरे पेड़ की एक डगाल जला दी.रद्दी  कागज को रिसाइक्लिंग के द्वारा पुनः नया कागज बनाया जा सकता है और इस तरह जंगल को कटने से बचाया जा सकता है.

हमारे देश में जो पेपर रिसाइक्लिंग प्लांट हैं, जैसे खटीमा, उत्तराखण्ड में वहां रिसाइक्लिंग हेतु रद्दी कागज अमेरिका से आयात किया जाता है. दूसरी ओर हम सफाई के नाम पर जगह जगह रोज ढ़ेरो कागज जलाकर प्रदूषण फैलाते हैं.

अखबार वाले, अपने ग्राहकों को समय समय पर तरह तरह के उपहार देते हैं. क्या ही अच्छा हो कि अखबार की रद्दी हाकर के ही माध्यम से प्रतिमाह वापस खरीदने का अभियान भी अखबार वाले चलाने लगें और इसका उपयोग रिसाइक्लिंग हेतु किया जावे. अभियान चलाकर स्कूलो, अदालतो, अखबार, पत्र पत्रिकाओ को व अन्य संस्थाओ को  रद्दी कागज को जलाने की अपेक्षा कागज बनाकर पुनर्उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करने के प्रयास होने चाहिये. ई बुक्स व पेपर लैस कार्यालय प्रणाली को अधिकाधिक प्रोत्साहन दिये जाने की भी जरूरत है.  इससे जंगल भी कटने से बचेंगे.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ संजय उवाच – #13 – चौरासी कोसी परिक्रमा ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली   कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 13 ☆

 

☆ चौरासी कोसी परिक्रमा ☆

 

लगभग एक घंटे पहले छिटपुट बारिश हुई है। भोजन के पश्चात घर की बालकनी में आया तो वहाँ का दृश्य देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा। सुरक्षा जाली की सलाखों पर पानी की मोटी बूँदें झूल रही थीं। बालकनी के पार खड़े विशाल पेड़ अपनी फुनगियों पर गुलाबी फूलों से लकदक यों झूम रहे थे मानों सुबह-सवेरे कोई मुनिया अपनी चोटियों पर दो गुलाबी रिबन कसे इठलाती हुई स्कूल जा रही हो। इस दृश्य को कैमरे में उतारने का मोह संवरण न कर सका।

मोबाइल के कैमरे ने चित्र उतारा तो मन का कैमरा चित्र को मस्तिष्क की तरंगों तक ले गया और मन-मस्तिष्क क गठजोड़ विचार करने लगा। क्या हमारा क्षणभंगुर जीवन साँसों का आलंबन लिए इन बूँदों जैसा नहीं है? हर बूँद को लगता है  जैसे वह कभी न ढलेगी, न ढलकेगी। सत्य तो यह है कि अपने ही भार से बूँद प्रतिपल माटी में मिलने की ओर बढ़ रही है। कालातीत सत्य का अनुपम सौंदर्य देखिए कि बूँद माटी में मिलेगी तो माटी उम्मीद से होगी। माटी उम्मीद से होगी तो अंकुर फूटेंगे। अंकुर फूटेंगे तो पौधे पनपेंगे। पौधे पनपेंगे तो वृक्ष खड़े होंगे। वृक्ष खड़े होंगे तो बादल घिरेंगे। बादल घिरेंगे तो बारिश होगी। बारिश होगी तो बूँदें टपकेंगी। बूँदें टपकेंगी तो सलाखें भीगेंगी। सलाखें भीगेंगी तो उन पर पानी की मोटी बूँदें झूलेंगी…!

वस्तुत: सलाखें, बूँदें, पेड़, सब प्रतीक भर हैं। जीवात्मा असीम आनंद के अनंत चक्र की चौरासी कोसी परिक्रमा कर रहा है। बरसाती बादल की तरह छिपते-दिखते इस चक्र को अद्वैत भाव से देख सको तो जीवन के ललाट पर सतरंगा इंद्रधनुष उमगेगा।…इंद्रधनुष उमगने के पहले चरण में चलो निहारते हैं सलाखें, बूँदें और पेड़…!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – स्वप्न ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

We present an English Version of this poem with the title ✍ Dreams ✍  published today. We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

 

✍ संजय दृष्टि  – स्वप्न  ✍

 

कभी डराया, कभी धमकाया,

 कभी कुचला,  कभी दबाया,

  कभी तोड़ा, कभी फोड़ा,

   कभी  रेता, कभी मरोड़ा…

 

सब कुछ करके हार गईं,

 हाँफने लगीं परिस्थितियाँ।….

  जाने क्या है जो मेरे

   सपने कभी मरते ही नहीं..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 9 – सीता की गीता ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “अद्भुत पराक्रम।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 9 ☆

 

☆ सीता की गीता

 

देवी सीता ने कहा, “मेरी प्यारी बेटी, पत्नी को केवल अपने पति की नियति का पालन करना चाहिए । एक स्त्री  के लिए उसके पिता, उसका बेटा, उसकी माँ, उसकी सखियों, बहन, भाई, एवं स्वयं से बढ़कर भी उसका पति ही है, जो इस संसार में और उसकी आने वाली आगामी जिंदगियों में मोक्ष का उसका एकमात्र साधन है । एक स्त्री के लिए सबसे बड़ी सजावट बाह्य आभूषण नहीं बल्कि उसके पति की खुशी है ।

अपनी बेटी को अपने पति और अपने सास- ससुर को प्यार, सम्मान और स्नेह देने के लिए प्रशिक्षित करना एक माता का परम कर्तव्य है ।

देवी सीता ने आगे कहा, “अब मैं आपको पत्नी के कुछ कर्तव्यों को बताऊँगी जिन्हें हर एक पत्नी को उसकी जाति, संस्कृति, पृष्ठभूमि, देश इत्यादि के बावजूद पालन करना चाहिए । वे निम्नलिखित हैं :

  • एक अच्छी पत्नी को अपने पति के घर में खुद को स्थायी रूप से स्थापित करना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति की देख रेख में ही रहना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति के प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण की ओर आकर्षित रहना चाहिए और हमेशा अपने पति के प्रति ईमानदार रहना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति के घर में इतना प्यार और स्नेह खोजना चाहिए कि उसे अपने माता-पिता के घर को याद ही ना आये ।
  • पत्नी को अपने पति के प्रति मधुर रूप से आचरण करना चाहिए ।

पत्नी के कुछ अन्य मुख्य गुण :

उसे केवल अपने पति की ओर कामुक होना चाहिए, उसे घर के कामो के प्रति मेहनती होना चाहिए, सर्वोत्तम व्यवहार करना चाहिए, घर को सर्वोत्तम तरीके से बनाए रखने, पति के धन- धान्य को संरक्षित करने और बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, एवं ज़रूरत वाले लोगों पर पति की कमाई का भाग खर्च करना, घर को बहुत परिपक्व तरीके से बढ़ाने के लिए, पति की कमाई को सावधानी पूर्वक इस्तमाल करना चाहिए । उसे दुःख और क्रोध से प्रभावित नहीं होना चाहिए, हर किसी को अपने अच्छे व्यवहार से खुश रखना चाहिए, उसे हर रोज सूर्योदय से पहले जागना चाहिए एवं कभी भी अपने पति से अलग होने के विषय में नहीं सोचना चाहिए ।

त्रिजटा ने कहा, “माँ मुझे जो आपने अपने ज्ञान का आशीर्वाद दिया है वह अद्भुत है, अब कृपया मुझे पति के कर्तव्यों के विषय में बताएं”

देवी सीता ने कहा, “पुत्री अपने कर्तव्यों को पूर्णतय पालन करने का सबसे अच्छा उपाय यह है की हम दूसरों के कर्तव्यों से अपने कर्तव्यों की तुलना ना करे । मैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान की पत्नी हूँ और मैं केवल अपने पति और उनके परिवार के लिए अपने कर्तव्यों को पूरा करने के विषय में ही सोचती और जानती हूँ लेकिन पुत्री यदि तुम पूछ ही रही हो तो मैं तुमको बता दूँगी, एक बार मेरे पति ने मुझे पति के कर्तव्यों के विषय में समझाया था, वे ये हैं:

  • पति के प्यारे और प्यारे व्यवहार से पत्नी को उसके प्रति प्यार और स्नेह पैदा करना चाहिए ।
  • पति को पत्नी से कुछ छिपाना नहीं चाहिए ।
  • उसे एक अनुशासित, पवित्र जीवन जीना चाहिए ।
  • वह अपने विवाहित जीवन को बनाए रखने के लिए पैसे कमाने में सक्षम होना चाहिए।
  • पति को अपनी पत्नी का सम्मान करना चाहिए ।

मर्यादा पुरुषोत्तम मर्यादा का अर्थ है केवल वो ही कार्य करना जो एक व्यक्ति के उसकी जाति, राज्य, अवस्था आदि से निर्धारित उसके धर्म है । पुरुषोत्तम का अर्थ है पुरुषो में उत्तम या जो आदर्श पुरुष हो । पुरुषोत्तम भगवान विष्णु के नामों में से एक हैं और महाभारत के विष्णु सहस्रनाम में भगवान विष्णु के 24 वें नाम के रूप में प्रकट होता हैं । भागवत गीता के अनुसार, पुरुषोत्तम को क्षार और अक्षार के ऊपर और परे समझाया गया है या एक सर्वज्ञानी ब्रह्मांड के रूप में समझाया गया है । भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, जबकी भगवान विष्णु को भगवान कृष्णा के अवतार के रूप में लीला या पूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में जाना जाता है ।

 

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – चिंतन तो बनता है ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – चिंतन तो बनता है ☆

 

सोमवार 16 सितम्बर 2019 को हिंदी पखवाड़ा के संदर्भ में केंद्रीय जल और विद्युत अनुसंधान संस्थान, खडकवासला, पुणे में आमंत्रित था। कार्यक्रम के बाद सैकड़ों एकड़ में फैले इस संस्थान के कुछ मॉडेल देखे। केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के लिए अनेक बाँधों की देखरेख और छोटे-छोटे चेकडैम बनवाने में  संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संस्थान चूँकि जल अनुसंधान पर काम करता है, भारत की नदियों पर बने पुल और पुल बनने के बाद जल के प्रवाह में आनेवाले परिवर्तन से उत्पन्न होनेवाले प्रभाव का यहाँ अध्ययन होता है। इसी संदर्भ में यमुना प्रोजेक्ट का मॉडेल देखा। दिल्ली में इस नदी पर कितने पुल हैं, हर पुल के बाद पानी की धारा और अविरलता में किस प्रकार का अंतर आया है, तटों के कटाव से बचने के लिए कौनसी तकनीक लागू की जाए,  यदि राज्य सरकार कोई नया पुल बनाने का निर्णय करती है तो उसकी संभावनाओं और आशंकाओं का अध्ययन कर समुचित सलाह दी जाती है। आंध्र और तेलंगाना के लिए बन रहे नए बाँध पर भी सलाहकार और मार्गदर्शक की भूमिका में यही संस्थान है। इस प्रकल्प में पानी से 900 मेगावॉट बिजली बनाने की योजना भी शामिल है। देश भर में फैले ऐसे अनेक बाँधों और नदियों के जल और विद्युत अनुसंधान का दायित्व संस्थान उठा रहा है।

मन में प्रश्न उठा कि पुणे के नागरिक, विशेषकर विद्यार्थी, शहर और निकटवर्ती स्थानों पर स्थित ऐसे संस्थानों के बारे में कितना जानते हैं? शिक्षा जबसे व्यापार हुई और विद्यार्थी को विवश ग्राहक में बदल दिया गया, सारे मूल्य और भविष्य ही धुँधला गया है। अधिकांश निजी विद्यालय छोटी कक्षाओं के बच्चों को पिकनिक के नाम पर रिसॉर्ट ले जाते हैं। बड़ी कक्षाओं के छात्र-छात्राओं के लिए दूरदराज़ के ‘टूरिस्ट डेस्टिनेशन’ व्यापार का ज़रिया बनते हैं तो इंटरनेशनल स्कूलों की तो घुमक्कड़ी की हद और ज़द भी देश के बाहर से ही शुरू होती है।

किसीको स्वयं की संभावनाओं से अपरिचित रखना अक्षम्य अपराध है। हमारे नौनिहालों को अपने शहर के महत्वपूर्ण संस्थानों की जानकारी न देना क्या इसी श्रेणी में नहीं आता? हर शहर में उस स्थान की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक धरोहर से कटे लोग बड़ी संख्या में हैं। पुणे का ही संदर्भ लूँ तो अच्छी तादाद में ऐसे लोग मिलेंगे जिन्होंने शनिवारवाडा नहीं देखा है। रायगढ़, प्रतापगढ़ से अनभिज्ञ लोगों की कमी नहीं। सिंहगढ़ घूमने जानेवाले तो मिलेंगे पर इस गढ़ को प्राप्त करने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के जिस ‘सिंह’ तानाजी मालसुरे ने प्राणोत्सर्ग किया था, उसका नाम आपके मुख से पहली बार सुननेवाले अभागे भी मिल जाएँगे।

लगभग एक वर्ष पूर्व मैंने महाराष्ट्र के तत्कालीन शालेय शिक्षामंत्री को एक पत्र लिखकर सभी विद्यालयों की रिसॉर्ट पिकनिक प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया था। इसके स्थान पर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व के स्थानीय स्मारकों, इमारतों, महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों  की सैर आयोजित करने के निर्देश देने का अनुरोध भी किया था।

धरती से कटे तो घास हो या वृक्ष, हरे कैसे रहेंगे? इस पर गंभीर मनन, चिंतन और समुचित क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – सफलता का सूत्र ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – सफलता का सूत्र  ☆

किसी टाइल या एसबेस्टॉस की शीट के छोटे टुकड़े को अपनी तर्जनी से दबाएँ। फिर यही प्रक्रिया क्रमशः मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा और अंगूठे से करें। हर बार कम या अधिक दबाव शीट या टाइल पर पड़ेगा पर वह अखंडित रहेगी। अब उंगलियों और अंगूठे को एक साथ भींच लीजिए, मुट्ठी बन जाएगी। मुट्ठी की गुद्दी से वार कीजिए। टाइल या शीट चटक जाएगी।

जीवन का गुपित और निहितार्थ इस छोटे-से प्रयोग में छिपा है। प्रत्येक का अपना सामर्थ्य और अपना अस्तित्व है। इस अस्तित्व की सीमाओं का भान रखनेवाला बुद्धिमान होता है जबकि अपने  गुमान में जीनेवाला नादान होता है। अकेले अस्तित्व के अहंकार से मुक्त होकर सामूहिकता का भान करना जिसने सीख लिया, सफलता और आनंद का रुबिक क्यूब उसने हल कर लिया।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – भाषा और अभिव्यक्ति ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – भाषा और अभिव्यक्ति  ☆

 

नवजात का रुदन

जगत की पहली भाषा,

अबोध की खिलखिलाहट

जगत का पहला महाकाव्य,

शिशु का अंगुली पकड़ना

जगत का पहला अनहद नाद,

संतान का माँ को पुकारना

जगत का पहला मधुर निनाद,

प्रसूत होती स्त्री केवल

एक शिशु को नहीं जनती,

अभिव्यक्ति की संभावनाओं के

महाकोश को जन्म देती है,

संभवतः यही कारण है

भाषा स्त्रीलिंग होती है।

 

अपनी भाषा में अभिव्यक्त होना अपने अस्तित्व को चैतन्य रखना है।….आपका दिन चैतन्य रहे।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #16 – कचरे के खतरे ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “कचरे के खतरे” ।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 16 ☆

 

☆ कचरे के खतरे ☆

 

घर-आँगन सब आग लग रही, सुलग रहे वन-उपवन
दर-दीवारें चटख रही हैं, जलते छप्पर-छाजन

तन जलता है, मन जलता है जलता जन-धन जीवन
एक नहीं जलते सदियों से जकड़े गर्हित बन्धन।

दूर बैठकर ताप रहा है, आग लगाने वाला
मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझाने वाला।

….. डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन

विकास का सूचक और अर्थव्यवस्था का आधार  बढ़ता मशीनीकरण आज आधुनिक जीवन के हर क्षेत्र को संचालित कर रहा है । आधुनिक जीवन मशीनों पर इस कदर निर्भर है कि इसके बिना कई काम रूक जाते हैं । इंटरनेट और मोबाइल  दूरी व समय की सीमाओं को लांघ कर सारी दुनिया को अपने में समेटने का दावा करते हैं । इस यंत्र युग में सारी दुनिया में हिंसा, शोषण, विषमता और बेरोजगारी भी बढ़ रही है । स्वास्थ्य समस्याएँ और पर्यावरण विनाश भी अपने चरम पर हैं । दौड़ती-भागती जिंदगी में समय का अभाव प्राय: आम शिकायत रहती है । रिश्तों में कृत्रिमता और दूरियाँ बढ़ रही हैं।  लोग स्वयं को बेहद अकेला महसूस करने लगे हैं । बढ़ती मशीनों ने मनुष्य की शारीरिक श्रम की आदत को कम करके स्वास्थ्य समस्याओ का आधार तैयार किया है । दूरदर्शी गांधीजी ने चेताया था – ”अगर मशीनीकरण की यह सनक जारी रही, तो काफी संभावना है कि एक समय ऐसा आएगा जब हम इतने असमर्थ और लाचार हो जाएगे कि अपने को ही यह कोसने लगेंगे कि हम भगवान द्वारा दी गई शरीर रूपी मशीन का इस्तेमाल करना क्यों भूल गए” । बढ़ता मशीनीकरण उपभोक्तावाद को बढ़ावा देकर समाज में विषमता की नींव को पुख्ता करता आया है । एक औद्योगिककृत अर्थव्यवस्था में अंधाधुंध बढ़ता मशीनीकरण वस्तुत: स्थानीय जरूरतों व सीमाओ को लांघकर व्यापक स्तर पर वस्तुओ के उत्पादन, बिक्री या खपत को बढ़ाने की महत्वाकांक्षाओ से प्रेरित होता है । औद्योगिक कचरे को व्यापाकता से बढ़ाता है ! ग्लोबल वार्मिंग को जन्म देता है । पर्यावरण प्रदूषण की  ऐसी आग को जन्म देता है जिसे बुझाने वाला सचमुच  कोई नहीं है ।

भोपाल गैस त्रासदी को २३ वर्ष हो गए हैं । वहां पर पड़ा जहरीला अपशिष्ट प्रत्येक मानसून में जमीन में रिस कर प्रति वर्ष  क्षेत्र को और अधिक जहरीला बना रहा है । कंपनी को इस बात के लिए मजबूर किया जाना चाहिये कि वह इसे अमेरिका ले जाकर इसका निपटान वहां के अत्याधुनिक संयंत्रों में करे । परन्तु इसके बजाय सरकारें अब भोपाल ही नहीं गुजरात में अंकलेश्वर व म.प्र. के पीथमपुर के भस्मकों में इसे जला कर इस औद्योगिक कचरे को नष्ट करना चाहती है ।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनुपयोगी हो जाने से इकट्ठा हो रहे कचरे का निपटान सही ढंग से नहीं हो पाने के कारण पर्यावरण के खतरे बढ़ रहे है । एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख टन ई-वेस्ट या इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ रहा है । इसमें देश में बाहर से आने वाले कबाड़ को जोड़ दिया जाए तो न केवल कबाड़ की मात्रा दुगुनी हो जाएगी, वरन् पर्यावरण के खतरों और संभावित दुष्परिणामों का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा । प्रतिवर्ष भारत में बीस लाख कम्प्यूटर अनुपयोगी हो जाते हैं । इनके अलावा हजारों की तादाद में प्रिंटर, फोन, मोबाईल, मॉनीटर, टीवी, रेडियो, ओवन, रेफ्रिजरेटर, टोस्टर, वेक्यूम क्लीनर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, पंखे, कूलर, सीडी व डीवीडी प्येयर, वीडियो गेम, सीडी, कैसेट, खिलौने, फ्लोरेसेंट ट्यूब, बल्ब, ड्रिलिंग मशीन, मेडिकल इंस्टूमेंट, थर्मामीटर और मशीनें आदि भी बेकार हो जाती हैं । जब उनका उपयोग नहीं हो सकता तो ऐसा औद्योगिक कचरा खाली भूमि पर इकट्ठा होता रहता है, इसका अधिकांश हिस्सा जहरीला और प्राणीमात्र के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है । कुछ दिनों पहले इस तरह के कचरे में खतरनाक हथियार व विस्फोटक सामगी भी पाई गई थी । इनमें धातुओ व रासायनिक सामग्री की भी काफी मात्रा होती है जो संपर्क में आने वाले लोगों की सेहत के लिए खतरनाक होती है । लेड, केडमियम, मरक्यूरी, एक्बेस्टस, क्रोमियम, बेरियम, बेटीलियम, बैटरी आदि यकृत, फेफड़े, दिल व त्वचा की अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं । अनुमान है कि यह कचरा एक करोड़ से अधिक लोगों को बीमार करता है । इनमें से ज्यादातर गरीब, महिलाएँ व बच्चे होते हैं । इस दिशा में गंभीरता से कार्रवाई होना जरूरी है । मगर देश के लोगों की मानसिकता अभी कबाड़ संभालने व कचरे से आजीविका कमाने की बनी हुई है ।

उर्जा उत्पादन हेतु ताप विद्युत संयंत्र , बड़े बाँध , प्रत्यक्ष, परोक्ष बहुत अधिक मात्रा में औद्योगिक कचरा फैला रहे हैं।  सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा, ऊर्जा के बेहतरीन विकल्प माने गए हैं । राजस्थान में इन दोनों विकल्पों के अच्छे मानक स्थापित हुए हैं । सोलर लैम्प, सोलर कुकर जैसे कुछ उपकरण प्राय: लोकप्रिय रहे हैं।   एशियन डेवलपमेंट बैंक के साथ मिलकर टाटा पॉवर कंपनी लिमिटेड देश में (विशेषकर महाराष्ट्र में) कई करोड़ों रूपये के बड़े पवन ऊर्जा प्लांट लगाने की योजना बना रही है । इसी तरह से दिल्ली सरकार भी ऐसी कुछ निजी कंपनियों की ओर ताक रही हैं जो राजस्थान में पैदा होती पवन ऊर्जा दिल्ली पहुंचा सकें । परमाणु ऊर्जा के निर्माण से पैदा होते परमाणु कचरे में प्लूटोनियम जैसे ऐसे रेडियोएक्टिव तत्वों का यह प्रदूषण पर्यावरण में भी फैल सकता है और भूमिगत जल में भी ।

एशियन डेवलपमेट बैक ने हाल ही गंगा के प्रदूषण रोकने के लिए एक योजना तैयार की है । गंगा के किनारे के  नगरों की पानी, सवरेज, सॉलिड वेस्ट मेनेजमेंट, सड़क, ट्रेफिक व नदियों के प्रदूषण को दूर किया जायेगा।संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में कहा है कि व्यापक औद्योगिक कचरे ,भूमि का जरूरत से ज्यादा दोहन और सिंचाई के गलत तरीकों से  जलवायु परिवर्तन हो रहा है .मरूस्थलों के बढ़ते क्षैत्रफल के कारण लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो सकते हैं।  रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि का मरूस्थल में बदलना पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है और विश्व की एक तिहाई जनसंख्या इसका शिकार बन सकती है । रिपोर्ट के अनुसार औद्योगिक संतुलन, कृषि के कुछ सरल तरीके अपनाने आदि से वातावरण में कार्बन की मात्रा कम हो सकती है । इसमें सूखे क्षैत्रों में पेड़ उगाने जैसे कदम शामिल हैं।औद्योगिक अपशिष्ट से दिल्ली की जीवन धारा यमुना, इस कदर मैली हो चुकी है कि राज्य सरकार १९९३ से ही ‘यमुना एक्शन प्लान’ जैसी कई योजनाओ द्वारा सफाई अभियान चला रही है, जिस पर करोड़ों-अरबों रूपए लगाए जा चुके हैं। किसी भी नदी को जिंदा रखने के लिए ‘इको सिस्टम’ की सुरक्षा उतनी ही जरूरी है जितनी उसमें बहते पानी की गुणवत्ता।

पर्यटन जनित डिस्पोजेबल प्लास्टिक कचरे से बढ़ता प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुँच रहा है ,जिस पर त्वरित नियंत्रण जरूरी है .सरकार ने  रिसायकल्ड पॉलिथिन के उपयोग पर पाबंदी लगा रखी है । केवल नए प्लास्टिक दानों से बनी बीस माइक्रोन से अधिक की थैलियों का ही उपयोग किया जा सकता है । 25 माइक्रोन से कम की रिसायकल्ड प्लास्टिक की थैलियां और २० माइक्रोन से कम की नई प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग पर प्रतिबंध रहेगा। किसी भी नदी-नाले, पाइप लाइन और पार्क आदि सार्वजनिक स्थलों पर इन थैलियों का कचरा डालने पर रोक रहेगी । नगरीय निकाय इन थैलियों के लिए अलग-अलग कचरा पेटी रखेंगे।  पॉलीथिन के कारण सीवर लाइन बंद हो जाती है । इस वजह से दूषित पानी बहकर पाइप लाइन तक पहुंचकर पेयजल को दूषित करता है जिससे बीमारियां फैलती है । इसे उपजाऊ जमीन में फेंकने से भूमि बंजर होती जाती है । कचरे के साथ जलाने से जहरीली गैसे निकलती है जो वायु प्रदूषण फैलाती  है और ओजोन परत को क्षति पहुंचाती है ।गाय बैल आदि जानवर पालिथिन में चिपके खाद्य पदार्थ खाने के प्रलोभन में पतली पालीथिन की पन्नियां गुटक जाते हैं जो उनके पेट में फँस कर रह जाती हैं एवं उनकी मृत्यु हो जाती है . अतः पालीथिन पर प्रभावी नियंत्रण जरूरी है ।

प्रधानमंत्री जी ने बेहद महत्वपूर्ण देशव्यापी स्वच्छता अभियान चलाया हुआ है । रोजमर्रा शहरो से निकलने वाले घरेलू कचरे का सुरक्षित निष्पादन बहुत जरूरी है । ज्वलनशील कचरे को जलाकर बिजली उत्पादन की परियोजनायें बनाई जा रही हैं . जबलपुर में एक ऐसी ही परियोजना से प्रतिदि ८ मेगावाट बिजली इन दिनो बन रही है । जो प्लास्टिक, कागज, पुट्ठे का कचरा रिसाइकिल हो सकता है उसे निरंतर पुनरूपयोग किया जाना आवश्यक है । इसके लिये भी उद्योग स्थापित किये जाने को प्रोत्साहन की आवश्यकता है । जो बायो डिग्रेडबल कचरा कम्पोस्ट जैसी खाद बना सकता है उससे खाद बनाने की इकाईयां लगानी जरूरी हैं ।  समग्र रूप से कहा जा सकता है कि  कचरा प्रगति का दूसरा पहलू है जिससे बचना मुश्किल है, पर उसके समुचित तरीके से डिस्पोजल से ही हम मानव जीवन और प्रगति के बीच तादात्म्य बना कर विज्ञान के वरदान को अभिशाप बनने से रोक सकते हैं ।

 

© अनुभा श्रीवास्तव

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हिंदी साहित्य – अभियंता दिवस विशेष – ☆ भारत रत्न अभियंता सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया के जन्म दिवस पर विशेष ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

अभियंता दिवस विशेष 
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(अभियंता दिवस पर  वरिष्ठ साहित्यकार एवं अभियंता  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी का  विशेष आलेख  भारत रत्न अभियंता सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया के जन्म दिवस पर विशेष.) 

 

 ☆ भारत रत्न अभियंता सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया के जन्म दिवस पर विशेष ☆

 

आज अमेरिका में सिलिकान वैली में तब तक कोई कंपनी सफल नही मानी जाती जब तक उसमें कोई भारतीय इंजीनियर कार्यरत न हो, भारत के आई आई टी जैसे संस्थानो के इंजीनियर्स ने विश्व में अपनी बुद्धि से भारतीय श्रेष्ठता का समीकरण अपने पक्ष में कर दिखाया है, प्रतिवर्ष भारत रत्न सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया का जन्मदिवस इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है, पंडित नेहरू ने कल कारखानो को नये भारत के तीर्थ कहा था, इन्ही तीर्थौ के पुजारी, निर्माता इंजीनियर्स को आज अभियंता दिवस पर बधाई,…विगत कुछ दशको में इंजीनियर्स की छबि में भ्रष्टाचार के घोलमाल में बढ़ोत्री हुई है, अनेक इंजीनियर्स शासनिक अधिकारी या मैनेजमेंट की उच्च शिक्षा लेकर बड़े मैनेजर बन गये हैं, आइये आज इंजीनियर्स डे पर कुछ पल चिंतन करे समाज में इंजीनियर्स की इस दशा पर, हो रहे इन परिवर्तनो पर

… इंजीनियर्स अब राजनेताओ के इशारो चलने वाली कठपुतली नही हो गये हैं क्या? देश में आज इंजीनियरिंग शिक्षा के हजारो कालेज खुल गये हैं, लाखो इंजीनियर्स प्रति वर्ष निकल रहे हैं, पर उनमें से कितनो में वह योग्यता या जज्बा है जो भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया में था,……मनन चिंतन का विषय है.

भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया की जीवनी, अध्ययन और  प्रेरणा पुंज

भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर 1860 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत के विद्वान थे। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्म स्थान से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलूर के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन यहां उनके पास धन का अभाव था। अत: उन्हें टयूशन करना पड़ा। विश्वेश्वरैया ने 1881 में बीए की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया। इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। 1883 की एलसीई व एफसीई (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया।

दक्षिण भारत के मैसूर, कर्र्नाटक को एक विकसित एवं समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया का अभूतपूर्व योगदान है। तकरीबन 55 वर्ष पहले जब देश स्वंतत्र नहीं था, तब कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत अन्य कई महान उपलब्धियां एमवी ने कड़े प्रयास से ही संभव हो पाई। इसीलिए इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहते हैं। जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए समिति बनाई। इसके लिए भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया ने एक नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया।

उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था। उनके इस सिस्टम की प्रशंसा ब्रिटिश अधिकारियों ने मुक्तकंठ से की। आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है।

विश्वेश्वरैया ने मूसा व इसा नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किए। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया।

उस वक्त राज्य की हालत काफी बदतर थी। विश्वेश्वरैया लोगों की आधारभूत समस्याओं जैसे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि को लेकर भी चिंतित थे। फैक्टरियों का अभाव, सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भरता तथा खेती के पारंपरिक साधनों के प्रयोग के कारण समस्याएं जस की तस थीं। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्वेश्वरैया ने इकॉनोमिक कॉन्फ्रेंस के गठन का सुझाव दिया। मैसूर के कृष्ण राजसागर बांध का निर्माण कराया।

कृष्णराजसागर बांध के निर्माण के दौरान देश में सीमेंट नहीं बनता था, इसके लिए इंजीनियरों ने मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। 1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया।

विश्वेश्वरैया शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे। लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण वह अशिक्षा को मानते थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या को 4,500 से बढ़ाकर 10,500 कर दिया। इसके साथ ही विद्यार्थियों की संख्या भी 1,40,000 से 3,66,000 तक पहुंच गई। मैसूर में लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल तथा पहला फ‌र्स्ट ग्रेड कॉलेज (महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय भी विश्वेश्वरैया को ही जाता है। उन दिनों मैसूर के सभी कॉलेज मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध थे। उनके ही अथक प्रयासों के चलते मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जो देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। इसके अलावा उन्होंने श्रेष्ठ छात्रों को अध्ययन करने के लिए विदेश जाने हेतु छात्रवृत्ति की भी व्यवस्था की। उन्होंने कई कृषि, इंजीनियरिंग व औद्योगिक कालेजों को भी खुलवाया।

वह उद्योग को देश की जान मानते थे, इसीलिए उन्होंने पहले से मौजूद उद्योगों जैसे सिल्क, संदल, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और अधिक विकसित किया। धन की जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने बैंक ऑफ मैसूर खुलवाया। इस धन का उपयोग उद्योग-धंधों को विकसित करने में किया जाने लगा। 1918 में विश्वेश्वरैया दीवान पद से सेवानिवृत्त हो गए। औरों से अलग विश्वेश्वरैया ने 44 वर्ष तक और सक्रिय रहकर देश की सेवा की। सेवानिवृत्ति के दस वर्ष बाद भद्रा नदी में बाढ़ आ जाने से भद्रावती स्टील फैक्ट्री बंद हो गई। फैक्ट्री के जनरल मैनेजर जो एक अमेरिकन थे, ने स्थिति बहाल होने में छह महीने का वक्त मांगा। जोकि विश्वेश्वरैया को बहुत अधिक लगा। उन्होंने उस व्यक्ति को तुरंत हटाकर भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षित कर तमाम विदेशी इंजीनियरों की जगह नियुक्त कर दिया। मैसूर में ऑटोमोबाइल तथा एयरक्राफ्ट फैक्टरी की शुरूआत करने का सपना मन में संजोए विश्वेश्वरैया ने 1935 में इस दिशा में कार्य शुरू किया। बंगलूर स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स तथा मुंबई की प्रीमियर ऑटोमोबाइल फैक्टरी उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है। 1947 में वह आल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। उड़ीसा की नदियों की बाढ़ की समस्या से निजात पाने के लिए उन्होंने एक रिपोर्ट पेश की। इसी रिपोर्ट के आधार पर हीराकुंड तथा अन्य कई बांधों का निर्माण हुआ।

वह किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने में विश्वास करते थे। 1928 में पहली बार रूस ने इस बात की महत्ता को समझते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना तैयार की थी। लेकिन विश्वेश्वरैया ने आठ वर्ष पहले ही 1920 में अपनी किताब रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया में इस तथ्य पर जोर दिया था।

इसके अलावा 1935 में प्लान्ड इकॉनामी फॉर इंडिया भी लिखी। मजे की बात यह है कि 98 वर्ष की उम्र में भी वह प्लानिंग पर एक किताब लिख रहे थे। देश की सेवा ही विश्वेश्वरैया की तपस्या थी। 1955 में उनकी अभूतपूर्व तथा जनहितकारी उपलब्धियों के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। जब वह 100 वर्ष के हुए तो भारत सरकार ने डाक टिकट जारी कर उनके सम्मान को और बढ़ाया। 101 वर्ष की दीर्घायु में 14 अप्रैल 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया। 1952 में वह पटना गंगा नदी पर पुल निर्माण की योजना के संबंध में गए। उस समय उनकी आयु 92 थी। तपती धूप थी और साइट पर कार से जाना संभव नहीं था। इसके बावजूद वह साइट पर पैदल ही गए और लोगों को हैरत में डाल दिया। विश्वेश्वरैया ईमानदारी, त्याग, मेहनत इत्यादि जैसे सद्गुणों से संपन्न थे। उनका कहना था, कार्य जो भी हो लेकिन वह इस ढंग से किया गया हो कि वह दूसरों के कार्य से श्रेष्ठ हो।

उनकी जीवनी हमारे लिये प्रेरणा है।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो. ७०००३७५७९८

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ संजय उवाच – #12 – समष्टि….व्यष्टि! ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली    । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 12 ☆

 

☆ समष्टि …. व्यष्टि ! ☆

 

रेल में भीड़-भड़क्का है। हर कोई अपने में मशगूल। एक तीखा, अनवरत स्वर ध्यान बेधता है। साठ से ऊपर की एक स्त्री, संभवतः स्वर यंत्र में कोई दोष है। बच्चा मचलकर किसी वस्तु के लिए हठ करता है, एक साँस में रोता है, कुछ उसी तरह के स्वर में भुनभुना रही है वह। अंतर इतना कि बच्चे के स्वर को उसके अबोध भाव के चलते बहुत देर तक बरदाश्त किया जा सकता है पर यह स्वर बिना थके इतना लगातार कि खीज पैदा हो जाए। दूर से लगा कि यह भीख मांगने का एक और तरीका भर है। वह निरंतर आँख से दूर जा रही थी और साथ ही कान भुनभुनाहट से राहत महसूस कर रहे थे।

किसी स्टेशन पर रेल रुकी। प्लेटफॉर्म की विरुद्ध दिशा में वही भुनभुनाहट सुनाई दी। वह स्त्री पटरियों पर उतरकर दूसरी तरफ के प्लेटफॉर्म पर चढ़ी। हाथ से इशारा करती, उसी तरह भुनभुनाती बेंच पर बैठे एक यात्री से उसका बैग छीनने लगी। बैगवाला व्यक्ति हड़बड़ा गया। उस स्टेशन से रोज यात्रा करनेवाले एक यात्री ने हाथ के इशारे से महिला को आगे जाने के लिए कहा। बुढ़िया आगे बढ़ गई।

माज़रा समझ में आ गया। बुढ़िया का दिमाग चल गया है। पराया सामान, अपना समझती है, उसके लिए विलाप करती है।

चित्र दुखद था। कुछ ही समय में चित्र एन्लार्ज होने लगा। व्यष्टि का स्थान समष्टि ने ले लिया था। क्या मर्त्यलोक में मनुष्य परायी वस्तुओं के प्रति इसी मोह से ग्रसित नहीं है? इन वस्तुओं को पाने के लिए भुनभुनाना, न पा सकने पर विलाप करना, बौराना और अंततः पूरी तरह दिमाग चल जाना।

अचेत अवस्था से बाहर आओ। समय रहते चेत जाओ अन्यथा समष्टि का चित्र रिड्युस होकर व्यष्टि पर रुकेगा। इस बार हममें से कोई उस बुढ़िया की जगह होगा।

इति।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

 

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