☆ जब तक चाहें आपका ☆
🙏💐 प्रिय भाई और मित्र अभिमन्यु शितोले जी – अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि 💐🙏
उफ़…! भाई अभिमन्यु, यह कोई उम्र थी जाने की। अभिमन्यु शितोले का असमय जाना, नवभारत टाइम्स के राजनीतिक विषयों के सम्पादक का जाना, एक सच्चे और निर्भीक पत्रकार का जाना, मेरे एक बहुत अच्छे मित्र का जाना है। हम जब मिलते, अधिक से अधिक देर तक साथ रहने का प्रयास करते। दोनों सिद्धांतप्रिय, अधिकांश मसलों पर दोनों एकमत। महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी में हमने साथ काम किया। मित्रता का जन्म भी यहीं हुआ और परवान भी यहीं चढ़ी। अकादमी की बैठक के लिए मुंबई जाते और लौटते समय प्राय: मैं कोई आलेख या कविता लिखता। अभिमन्यु न केवल उसके पहले पाठकों में होते बल्कि सदा अपनी प्रतिक्रिया भी देते। अकादमी के लिए मैंने अटल जी की कविताओं पर आधारित एक कार्यक्रम रवींद्र नाट्य मंदिर में किया था। उसका धन्यवाद प्रस्ताव अभिमन्यु ने किया। उन्होंने कहा कि आज तक संजय को लेखक के रूप में जानता था, आज पहली बार निर्देशक, सूत्रधार संजय से मिला और बस उसका ही हो गया। यह पहला मौका था जब अभिमन्यु ने मेरे नाम के साथ ‘जी’ लगाने की औपचारिकता उतार फेंकी थी। वह दिल से गले मिले। तब से कभी संजय कहते, कभी संजय भैया।
बाद में जब कभी मैं मुंबई होता, हम यथासंभव मिलते। गत वर्ष 10 और 11 जनवरी को एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ स्टडीज़ की बैठक थी। 10 जनवरी की रात मिलना तय हुआ। उन्होंने कहा कि रात का भोजन साथ करेंगे। किसी कारणवश उस दिन हम नहीं मिल पाए। अगले दिन शाम 5 की ट्रेन से मैं लौटने वाला था। वे डोंबिवली से जल्दी निकले। प्रेस क्लब में बैठकर हमने लम्बी चर्चा की। गत वर्ष किसी विवाह में बेटे के साथ पुणे आए थे। तय हुआ कि विवाह में भोजन करने के बजाय हम शहर के एक रेस्टोरेंट में साथ में भोजन करेंगे, पर इस बार भी साथ में भोजन नहीं हो पाया। हम रेल्वे स्टेशन पर मिले। लगभग डेढ़-दो घंटे साथ थे। बहुत सारी बातें कीं। घर-परिवार, नौकरी-कारोबार, बाल-बच्चे, चढ़ाव-उतार और भी जाने क्या-क्या! उनकी चिंताओं को पहली बार उन्होंने अभिव्यक्त किया। स्टेशन के सामने एक चालू किस्म की होटल में हमने चाय पी। संभवत: उनसे वह अंतिम प्रत्यक्ष संवाद था।
अपनी-अपनी रोटी सेंकने के इस दौर में अभिमन्यु ने लेखनी से सच के पक्ष में सदैव आवाज़ उठाई। एक विषय पर तो नामोल्लेख के साथ मेरे पक्ष का उन्होंने समर्थन किया। बात मेरे या आपके पक्ष की नहीं, बात सच के समर्थन की थी।
भाई अभिमन्यु! कल ही किसी संदर्भ में याद किया था। यह भी कोई आयु थी जाने की? अपनी बीमारी के बारे में बताया होता तो कभी मिल ही लेते।
श्री संजय भारद्वाज
अकादमी के लिए मुंबई अप-डाउन करते हुए एक कविता लिखी थी। इसमें पौराणिक अभिमन्यु का संदर्भ था। इसे आज अभिमन्यु को ही श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित कर रहा हूँ।
मेरे इर्द-गिर्द
कुटिलता का चक्रव्यूह
आजीवन खड़ा रहा,
सच और हौसले
की तलवार लिए
मैं द्वार बेधता रहा,
कितने द्वार बाकी,
कितने खोल चुका,
क्या पता….,
जीतूँगा या
खेत रहूँगा
क्या पता….,
पर इतना
निश्चित है-
जब तक
मेरा श्वास रहेगा,
अभिमन्यु मेरे भीतर
वास करेगा..!
अंतिम बात, तुम्हारी डीपी की बायो थी, जब तक चाहें आपका… हम मित्रों की चाहत में तुम हमेशा थे, हमेशा रहोगे। हम तुम्हें हमेशा चाहेंगे यार!
ईश्वर, पुण्यात्मा को मोक्ष में स्थान दीजिएगा।
संजय भारद्वाज
अतिथि संपादक (ई-अभिव्यक्ति)
08 मार्च 2025
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈