हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 227 – बुन्देली कविता – कौनऊँ सें का कैनें… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – कौनऊँ सें का कैनें।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 227 – कौनऊँ सें का कैनें… ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से)

कौनऊँ सें का कैनें

जौन भाँत सें राखें राम

तौन भाँत सें रैनें ।

अपनी पीरा कयें कौन सें

कैबे सें का होने ।

पीर कौ मारौ जगे रातभर

बाकी सबखों सोनें ।

 

अपने मों में कयें कायरवों

ऊसर में का बौनें

भैया खता आँग को अपने

खुदइ परत है धोनें ।

 

कैबे खों तो सबरे अपने

कोउ काउ को नइँयाँ

बखत परे पे बता देते हैं

सब के सब कुतकैयाँ ।

 

ऐई में हमने सोच लई अब

हम खाँ चुप्पइ रैनें ।

कोनऊँ सें का कैनें ।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 227 – “राघवेंद्र के दोहे…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है “राघवेंद्र के दोहे...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 227 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “राघवेंद्र के दोहे” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

नाक सुड़कता फिर रहा, सर्दी में परिवार ।

मँगवाने ही पड़ेगे,   कुछ स्वेटर इसबार ॥

*

लोग रजाई में दुबक, सोच रहे यह बात ।

झबरा होता पास में, तो कट जाती रात ॥

*

मुझे दिखाई दीअभी, वही ठंड की बात ।

प्रेमचंद जी लिखो न, कथा , “पूस की रात”॥

*

इसी मोहल्ले में कभी, जलता रहा अलाव ।

जिसे साथ में ले गया, मध्यावधी चुनाव ॥

*

वह चाची का चबूतरा, हुक्के में तल्लीन –

रहा,अलाव कि जा बुझा, तब से सब गमगीन ॥

*

जोड्योढ़ी से गुजरता, उसको रहता याद ।

बाहर बैठे वृद्ध से, करना है सम्वाद ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

25 – 01 – 2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – खेल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – खेल ? ?

शब्द पहेली,

सुडोकू,

अल्फाबेटिक क्विज़,

बिल्ट योअर वोकेबुलरी,

अक्षर से खेलना;

शब्द से खेलना;

ब्रह्म से खेलना..,

कौन कहता है;

केवल ब्रह्म ही

मनुष्य से खेलता है?

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री शिव महापुराण का पारायण सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 617 ⇒ जी व न ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “जी व न।)

?अभी अभी # 617 ⇒  जी व न ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

ये जीवन है

जन जीवन है

वन में भी जीवन है ।

जब तक जान है,

यह जीवन है ।।

प्राणी में जीव है

वनस्पति में जीव है

तो फिर क्या निर्जीव है ?

जड़ में भी जीव

चेतन में भी जीव ।

जहां पांच तत्व

पृथ्वी, जल,अग्नि,

वायु आकाश

कभी अंधकार,

कभी प्रकाश ।।

पंच तत्व ही प्राण तत्व !

तन में प्राण,मन में प्राण

वन,उपवन,जगत में प्राण ।

प्राण ही वायु, प्राण ही तत्व

प्राण से सृष्टि,प्राण से ममत्व ।

किसने प्राण फूंके

इस धरती में,इस अंबर में

इस देह रूपी आडंबर में !

द्वैत,अद्वैत, आस्तिक,नास्तिक,

किंकर्तव्यविमूढ़,

गुरु तत्व,प्राण तत्व

अथवा ईश्वर तत्व ।।

जब तक प्राण था ,तब तक हम थे

यह सृष्टि थी,यह दृष्टि थी

यह जीवन था ।

जब प्राण पखेरु बन

उड़ गया,

तो यह तन गया ।

देखो,साला कैसा तन गया !

तो क्या सारा जीवन गया ?

कहां गए वो प्राण

जो कल तक देह में थे

मुक्त कर गए ,

जीव को निर्जीव बना गए

अब चाहो फूंको,जलाओ,

गाड़ो, अपनी बला से ।।

लो जी,प्राण पुनः

पंच तत्व में विलीन हो गए

तो फिर आप कहां गए !

क्या धरती खा गई

या खा गया यह आसमान ?

स्वर्ग नरक का टिकिट कटा

या पहुंचे वैकुंठ धाम

जिनसे चुन चुनकर बदला लेना था,उनका क्या हुआ !

तो भटको अतृप्त आत्मा बनकर,या फिर एक और

पुनर्जन्म !

कोई मनी बैक गारंटी नहीं

इस जीवन की ।

उस जीवन दाता का एक

Data था, जो खत्म हो गया । नो रिचार्ज,

नो रि -फिल, नो रिन्यूअल ।।

अपने सभी हिसाब किताब

इस जीवन में ही निपटा कर जाएं,

दुरुस्त करके जाएं । 

हो सकता है एक पारी और खेलने को मिल जाए,

अथवा यह तन – प्राण

जीवन् मुक्त हो जाए ।।

आमीन !

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 208 ☆ # “सुख और दुख…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सुख और दुख…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 209 ☆

☆ # “सुख और दुख…” # ☆

सुख और दुख की अलग ही माया है

इसे कोई समझ नहीं पाया है

कभी कुछ पल हंसाया

तो कभी कुछ पल रुलाया है

 

सुख कहां स्थाई रहता है

जल की धारा की तरह बहता है

फुहारों से सबको भिगोता  है

इसी भ्रम में व्यक्ति

जीवनभर सबकुछ सहता है

 

दुख का अलग ही मजा है

लगता है कि वह एक सजा है

पर वह जीने की कला सिखाता है

और हम परेशान बेवजां है

 

जीने के लिए दोनों जरूरी है

इनके बिना जिंदगी अधूरी है

दोनों साथ-साथ चलते हैं

इनमें बस क्षण भर की दूरी है

 

खुशी हो या गम जब बरसता है

हर चेहरे पर वह झलकता है

कभी मायूस होता है चेहरा

तो कभी फूलों सा महकाता है

 

मानव की कभी जीत तो कभी हार है

जीवन का बस यही सार है

सुख तो कुछ पल का साथी है

दुखों से भरा तो यह संसार है

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – पकड़े गए कृष्ण भगवान… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता पकड़े गए कृष्ण भगवान।)

☆ कविता – पकड़े गए कृष्ण भगवान… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

बनी यशोदा जिलाधीश,

 राधा पुलिस कप्तान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान,

*

एक ग्वालिन के घर जाकर,

माखन खाने लगे चुराकर,

जाग उठी वो चतुर सयानी,

पकड़ लिए हैं कान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

*

बीच कचहरी में ले जाकर,

मुलजिम पेश किया ले जाकर,

हाथ बंधे थे,आरोपी के,

अधरों पर मुस्कान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

*

जो जग के बंधन को खोले,

आज बंधा है,कुछ न बोले,

नजर झुका कर मां को देखे,

ममता का है ज्ञान

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

*

मैय्या मैं नहीं माखन खायो,

ग्वाल बाल बरबस लिपटायो,

मैं बालक हूं सीधा सादा,

ये सब हैं शैतान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

*

माता का भी दिल भर आया,

बंधन खोले,गले लगाया,

झर झर आंसू,बहे मात के,

लाल है मेरी जान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 225 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 225 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 225) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 225 ?

☆☆☆☆☆

लब तो खामोश रहेंगे…

ये वादा है मेरा  तुमसे…

अगर कह बैठी कुछ निगाहें…

तो  बस खफा मत होना…

☆☆

Lips shall always remain silent…

This is my promise to you …

Please don’t  get upset

If eyes just utter something…

☆☆☆☆☆

माना कि इश्क़

ज़बरदस्ती नहीं होता

मगर कमबख़्त

होता जबरदस्त है…

☆☆

Agreed  that  the  love

Never happens  by coercing

But then, this wretched thing

Happens to be awesome…

☆☆☆☆☆

जो ज़ाहिर हो जाए,

वो दर्द कैसा, और…

जो ख़ामोशी ना पढ़ पाए,

वो हमदर्द ही कैसा….

☆☆

What  kind of  pain is that,

That  gets  expressed, and

What kind of soul mate is that

Who cannot read the silence…

☆☆☆☆☆

और कोई नहीं है जो

मुझको तसल्ली देता हो,

बस तेरी यादें  ही हैं जो

दिल पर हाथ रख देती है…

☆☆

There is no one else who can 

Give me comforting solace,

It is just your memories that 

give consolation to the heart…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 224 – गीत – यार शिरीष! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 224 ☆

☆ गीत – यार शिरीष! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

अब भी खड़े हुए एकाकी

रहे सोच क्यों साथ न बाकी?

तुमको भाते घर, माँ, बहिनें

हम चाहें मधुशाला-साकी।

तुम तुलसी को पूज रहे हो

सदा सुहागन निष्ठा पाले।

हम महुआ की मादकता के

हुए दीवाने ठर्रा ढाले।

चढ़े गिरीश

पर नहीं बिगड़े

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

राजनीति तुमको बेगानी

लोकनीति ही लगी सयानी।

देश हितों के तुम रखवाले

दुश्मन पर निज भ्रकुटी तानी।  

हम अवसर को नहीं चूकते 

लोभ नीति के हम हैं गाहक।

चाट सकें इसलिए थूकते 

भोग नीति के चाहक-पालक।

जोड़ रहे

जो सपने बिछुड़े

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

तुम जंगल में धूनि रमाते

हम नगरों में मौज मनाते।

तुम खेतों में मेहनत करते 

हम रिश्वत परदेश-छिपाते।

ताप-शीत-बारिश हँस झेली

जड़-जमीन तुम नहीं छोड़ते।

निज हित खातिर झोपड़ तो क्या

हम मन-मंदिर बेच-तोड़ते।

स्वार्थ पखेरू के

पर कतरे।

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

तुम धनिया-गोबर के संगी

रीति-नीति हम हैं दोरंगी।

तुम मँहगाई से पीड़ित हो

हमें न प्याज-दाल की तंगी।  

अंकुर पल्लव पात फूल फल

औरों पर निर्मूल्य लुटाते।

काट रहे जो उठा कुल्हाड़ी

हाय! तरस उन पर तुम खाते। 

तुम सिकुड़े

हम फैले-पसरे।

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #215 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – एक ही भगवान की संतान… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – एक ही भगवान की संतान। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 215 ☆

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – एक ही भगवान की संतान…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

सिक्ख पारसी ईसाई ज्यूँ हिन्दू या मुसलमान

हम सब हैं उसी एक ही भगवान की संतान

*

कहते जो धर्म अलग हैं वे सचमुच हैं ना समझ

कुदरत ने तो पैदा किये सब एक से इन्सान ।

*

सब चाहते हैं जिंदगी में सुख से रह सकें

सुख-दुख की बातें अपनों से हिलमिल के कह सकें

*

खुशियों को उनकी लग न पाये कोई बुरी नजर

इसके लिये ही करते हैं सब धर्म के विधान ।

*

सब धर्मों के आधार हैं आराधना विश्वास

स्थल भी कई एक ही हैं या हैं पास-पास

*

करते जहाँ चढ़ौतियाँ मनोतियाँ सब साथ

ऐसे भी हैं इस देश में ही सैकड़ों स्थान ।

*

मंदिर हो या दरगाह हो मढ़िया या हो या मजार

हर रोज दुआ माँगने जाते वहाँ हजार

*

संतो औ’ सूफियों की दर पै भेद नहीं कुछ

इन्सान कोई भी हो वे सब पे है मेहरबान ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 149 ☆ मुक्तक – ।। खुशियों का कोई बाजार नहीं होता ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 149 ☆खुशियों का कोई बाजार नहीं होता

☆ मुक्तक – ।। खुशियों का कोई बाजार नहीं होता ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

अमृत जहर एक ही जुबां पर, निवास करते हैं।

इसीसे लोग व्यक्तित्व का, आभास करते हैं।।

कभी नीम कभी शहद, होती जिव्हा हमारी।

इसीसे जीवन का हम सही, अहसास करते हैं।।

=2=

बहुत नाजुक दौर किसी से, मत रखो बैर।

हो सके मांगों प्रभु से, सब की ही खैर।।

तेरी जुबान से ही तेरे दोस्त, और दुश्मन बनेंगें।

हर बात बोलने से पहले, जाओ कुछ देर ठहर।।

=3=

तीर कमान से निकला, वापिस नहीं आ पाता है।

शब्द भेदी वाण सा फिर, घाव करके आता है।।

दिल से उतरो नहीं पर, बल्कि दिल में उतर जाओ।

गुड़ दे नहीं सकते मीठा, बोलने में क्या जाता है।।

=4=

जानलो खुशी देना खुशी पाने, का आधार होता है।

वो ही खुशी दे पाता जिसमें, सरोकार होता है।।

खुशी कभी आसमान से, कहीं भी टपकती नहीं।

कहीं पर खुशी का लगता, बाजार नहीं होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares