हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #229 – कविता – अब गुलाब में केवल काँटे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “अब गुलाब में केवल काँटे…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #229 ☆

☆ अब गुलाब में केवल काँटे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बातें अपनी

कुछ जन-मन की

किससे कहें, सुनें

विचलन की।।

 

नित नूतन आडंबर लादे

घूम रहे राजा के प्यादे

गुटर गुटर गू करे कबूतर

गिद्ध अभय के करते वादे,

बात शहर में

बीहड़ वन की।…

 

सपनों में रेशम सी बातें

करते हैं छिपकर फिर घातें

ये बेचैन, विवश है रोटी

वे खा-खा कर, नहीं अघाते,

बातें भूले

अपनेपन की।……

 

अब गुलाब में केवल काँटे

फूल, परस्पर खुद में बाँटे

गेंदा, चंपा, जूही, मोगरा

इनको है मौसम के चाँटे,

 रौनक नहीं रही

 उपवन की।……,

 

है,अपनों के बीच दीवारें

सद्भावों के नकली नारे

कानों में मिश्री रस घोले

मिले स्वाद किंतु बस खारे

कब्रों से हुँकार

गगन की।….

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 53 ☆ रामलखन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “रामलखन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 53 ☆ रामलखन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

भरी जवानी में बूढ़ा

दिखता है रामलखन।

 

पौ फटते ही

मज़दूरी के लिए निकल जाता

साँझ ढले पर

लुटा-पिटा सा घर को आ पाता

 

आते घरवाली कहती

अब बचा नहीं राशन।

 

बिना फ्राक के

मुनिया कैसे जायेगी स्कूल

छप्पर टूटा

कहता मुझको न जाना तुम भूल

 

अब की बारिश के पहले

कर लेना कोई जतन।

 

पिछड़ों में भी

नाम लिखाया था पटवारी को

बहन लाड़ली

में भी जोड़ा था घरवारी को

 

नहीं कहीं है सुनवाई

विपदा भोगे निर्धन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ टूट गई पतवार भँवर में… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “टूट गई पतवार भँवर में“)

✍ टूट गई पतवार भँवर में… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मन दर्पण में सुधियों का अंबार लगा

खुशियों में भी मेरे मन पर भार लगा

नूर नहीं चहरे पर दुख की छाया है

जिसको देखो आज वही बीमार लगा

 *

जो देता वो उसमें ही खुश रहना है

सब उपदेशों का यह मुझको सार लगा

 *

सच को सच कहने से मुखिया डरता है

कुर्सी पाकर वो कितना लाचार लगा

 *

टूट गई पतवार भँवर में नाँव फसी

ईश्वर मेरे तू ही मुझको पार लगा

 *

इक दिन जाना तय है जो भी आया है

चार दिनों का मेला यह संसार लगा

 *

मरघट सा सन्नाटा घर में फैला था

तुम आये तो भीड़ भरा बाजार लगा

 *

हाथ रखा जबसे तुमने सर पर मेरे

अपना हर सपना होता साकार लगा

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 53 – खुद ही उंगली जला ली आपने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – खुद ही उंगली जला ली आपने।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 53 – खुद ही उंगली जला ली आपने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

बात मेरी न टाली आपने 

लाज सबकी बचा ली आपने

*

बंद, मुंह, कर दिया जमाने का 

माँग भर दी जो खाली आपने

*

तोड, जंजीर रूढ़ियों की सब 

हथकड़ी धागे की, डाली आपने

*

काटकर कुप्रथाओं के पर्वत 

राह उससे निकाली आपने

*

शत्रु लाचार को, शरण देकर 

कितनी जोखिम उठा ली आपने

*

शांति के यज्ञ में, हवन करके 

खुद ही, उंगली जला ली आपने

*

आग मजहब की तो, बुझा आये 

दुश्मनी, कितनों से पाली आपने

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 129 – ईश्वर ने उपकार किया है… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “ईश्वर ने उपकार किया है…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 129 – ईश्वर ने उपकार किया है… ☆

ईश्वर ने उपकार किया है ।

धरती का शृंगार किया है।।

 *

संघर्षों से जीना सीखा,

मानव का उद्धार किया है।।

 *

निज स्वारथ में डूबे रहते,

उनने बंटाढार किया है।

 *

संस्कार को जिसने रोपा,

सुख का ही भंडार किया है।

 *

लालच बुरी बला है यारो,

कुरसी पा अपकार किया है।

 *

जब-जब नेता भरें तिजोरी,

जन-मन अत्याचार किया है।

 *

सुख-दुख जीवन में हैं आते,

यही सत्य स्वीकार किया है।

 *

सुख की बदली जब भी बरसी,

जनता ने आभार किया है।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

8/5/2024

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नि:शब्द.. ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – नि:शब्द.. ? ?

तुम अंतर्भूत रही

मेरे सुख में, मेरे दुख में,

साथ बहती रही,

साथ सहती रही,

उपेक्षित होती रही,

सुविज्ञ हूँ मैं कि

लगा दूँ अपने शब्दों की

सारी जमा-पूँजी

तब भी

बौने पड़ेंगे सारे भाव

तुम्हारी प्रशंसा कर सकने में,

बस रहना

यों ही अंतर्भूत

मेरे होने का प्रमाण,

मेरे होने की गारंटी,

और वारंटी बनकर,

सोचता हूँ

क्या झाड़े जा रहा हूँ मैं

जबकि

जानता हूँँ कि

समझाने के लिए

भले ही मुझे चाहिए हों शब्द

तुम विषय को जान लेती हो निःशब्द!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 360 ⇒ गलत सही… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गलत सही।)

?अभी अभी # 360 गलत सही? श्री प्रदीप शर्मा  ?

वे लोग सही नहीं होतेे

जो दंभ भरते हैं कि

वे कभी ग़लत

नहीं हो

सकते।

सही वे ही होते हैं

जो यह स्वीकारते हैं

कि वे भी कभी

ग़लत भी हो

सकते हैं !!!!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 281 ☆ कविता – कापी पेस्ट ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक कविता – कापी पेस्ट। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 280 ☆

? कविता – कापी पेस्ट ?

अब

मौलिक नया

कम,

 

ऊपर का नीचे

नीचे का पैरा ऊपर

पहला और अंतिम वाक्य

अपना

शीर्षक चटकारी

इसका उसमे

उससे इसमें

उनकी कविता

जाने किसके किसके

नाम

अपने नेरेटिव

स्थापित नामो के साथ

 

यदि एक दो

विदेशी भाषाएं

जानते हैं तब तो

पौ बारह

वरना अनुवाद भी सुलभ

 

विकिपीडिया

पुरानी किताबें हैं न

हर विषय पर

कापी पेस्ट

 

पुस्तकें ज्यादा

काम कम

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… मातृ दिवस ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशित। गीत कलश (छंद गीत) और निर्विकार पथ (मत्तसवैया) प्रकाशाधीन। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 350 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… मातृ दिवस ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

जीवन में अस्तित्व की पहचान है माँ ।

धरती से अंबर तक प्रेम महान है माँ ।।

*

धरा पर ईश्वर का रूप अनोखा है माँ ।

दुख को समेटे सुख लेखा है माँ ।।

*

चारों धाम की पुन्य प्रताप दयाला है माँ ।

जीवन के विष में अमृत प्याला है माँ ।।

*

चाँद तारे सूरज पूरा आसमान है माँ ।

पृथ्वी प्रकृति सृष्टि सी अरमान है माँ ।।

*

जिंदगी की धूप में ठंडी छाँव है माँ ।

प्रेमिल ममता का सुंदर गाँव है माँ ।।

*

सरिता सी बहती शीतल धारा है माँ ।

सभ्यता संस्कृति अर्पित सारा है माँ ।।

*

जीवन में पहला ज्ञान का भंडार है माँ ।

अतुल्य स्नेह की अमूल्य धरोहर है माँ ।।

*

बैचैन सी दुनिया में आत्मसंतुष्टि है माँ ।

नि:स्वार्थ भाव से तत्पर वृष्टि है माँ ।।

*

ममतामयी आँचल की सौगात है माँ ।

हर पल प्रेमिल हृदय बरसात है माँ ।।

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 189 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 189 – कथा क्रम (स्वगत)✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

सुनता रहा हूँ

बाल्यकाल से

वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण

और

महाभारत की कथाएँ।

युवावस्था में

उन्हें

बाँचा

टूट गया साँचा

कल्पना का।

जाग उठीं

जिज्ञासाएँ

किससे पूछें

किसे बतायें?

अतीत के अंधेरे से

निकलकर

मन के शिलालेख पर

टैंकने लगीं छवियाँ, चित्र

और चरित्र,

सीता, तारा, मन्दोदरी

अहल्या, कुन्ती, द्रौपदी

सत्यवती

और

माधवी ।

दीक्षान्त में

गुरु दक्षिणा देने का

हठाग्रह किया

शिष्य गालव ने ।

क्रमशः आगे —

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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