हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #45 ☆ कविता – “क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 45 ☆

☆ कविता ☆ “क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?…☆ श्री आशिष मुळे ☆

दिल आजकल बुझसा गया है

धड़कन शरमा जो रही है

उमर बढ़सी गई है

कीमत घटसी गई है

क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?

 *

फिर तेरी याद आती है

नज़र ख़्वाब देखती है

धड़कन फिर तेज़ होती है

फिर एक बार दुनिया आइना दिखाती है

क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?

 *

क्या सच में कुछ सच झुटे होते है

मुहब्बतकी पैरो में जंजीरे क्यों होती है

ऐसी मैंने क्या मांग लगाई है

उम्र नहीं बस जान ही तो मांगी है

क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?

 *

हर कोई मुहब्बत के ख़िलाफ़ क्यों है

क्यों इंसान को जन्नतमें सलांखे है

जो अभी इस वक्त पा सकते है

उसके लिए क्या मरना जरूरी है

क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 203 ☆ बाल गीत – भिन्न – भिन्न सबके चेहरे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 203 ☆

☆ बाल गीत – भिन्न – भिन्न सबके चेहरे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

प्रभु की लीला अजब गजब है

भिन्न – भिन्न सबके चेहरे।

कोई काला कोई गोरा

कुछ लँगड़े हैं कुछ बहरे।।

सभी इन्द्रियाँ जिनकी अच्छी

तन – मन जिनका स्वस्थ बनाया।

भाग्यवान ही वही मनुज हैं

जिनको घर , भोजन मिल पाया।।

 *

जो ईश्वर से खुश हैं रहते

नित पूजें शाम सवेरे।।

 *

नहीं अहम , बहम होता है अच्छा

सत्य मार्ग पर सदा चलो।

सरल , सहज जीवन अपनाकर

लक्ष्य बनाकर सदा बढ़ो।।

 *

हिम्मत कभी नहीं हारें हम

छट जाते सभी अँधरे।।

 *

सोच सदा अच्छी ही रखना

यही प्रेम ,आशा ,परिभाषा।

वाणी में यदि प्रेम घुल गया

हटे कपट , मन वैर निराशा।।

 *

सबमें खोजा यदि ईश्वर को

हटें भेद तेरे – मेरे।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 52 ☆ खिलखिलाती अमराइयाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “खिलखिलाती अमराइयाँ…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 52 ☆ खिलखिलाती अमराइयाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हवा कुछ ऐसी चली है

खिलखिलाने लगीं हैं अमराइयाँ।

माघ की ख़ुशबू

सोंधापन लिए है

चटकती सी धूप

सर्दी भंग पिए है

रात छोटी हो गई है

नापने दिन लगे हैं गहराइयाँ।

नदी की सिकुड़न

ठंडे पाँव लेकर

लग गई हैं घाट

सारी नाव चलकर

रेत पर मेले लगे हैं

बड़ी होने लगीं हैं परछाइयाँ।

खेत पीले मन

सरसों हँस रही है

और अलसी,बीच

गेंहूँ फँस रही है

खेत बासंती हुए हैं

बज रहीं हैं गाँव में शहनाइयाँ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बिटविन द लाइन्स ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  बिटविन द लाइन्स ? ?

वे सोचते थे

मेरी माँ

समझ नहीं पाती होगी

मेरी कविता में प्रयुक्त

शब्दों के अर्थ,

उस रोज़

मेरे काव्य पाठ में

शब्दों के चयन पर

वाह-वाह करती

भीड़ में

माँ की आँखों से

प्रवाहित आह ने

उन्हें झूठा साबित कर दिया,

मेरी पोएट्री लाइन्स पर

भीड़ तालियाँ कूटती रही,

केवल मेरी माँ

‘बिटविन द लाइन्स’

पढ़ती रही!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – आलेख ☆ आँखें ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ आँखें 👁️ ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

दिल जो चाहे  वो  बोलो

हां बोलो  या ना बोलो ।।

*

मसिजीवी कहलाते  हो

थोड़ा सा तो मुंह खोलो ।।

*

तलुए  चाटो  कुर्सी   के

या फिर मिट्टी के हो लो ।।

*

अपनी  जिम्मेदारी   को

कुछ सिक्कों से मत तोलो।।

*

वक्त की सौ सौ आँखें  हैं

बच पाओगे, सच  बोलो ।।

*

खामोशी  आकंठ    हुई

विप्लव की राहें खोलो ।।

🌳🦚🐥

💧🐣💧

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़म ख़ुशी का है सिलसिला न डरो… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “ग़म ख़ुशी का है सिलसिला न डरो“)

✍ ग़म ख़ुशी का है सिलसिला न डरो… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जब ग़ज़ल अपना सर उठाती है

शाहों के तख़्त तक गिराती है

ज़िन्दगीं साथ कब निभाती है

मौत से कितना ख़ौफ़ खाती है

 *

उससे इतना तो रब्त है मेरा

वो ग़ज़ल मेरी गुनगुनाती है

 *

मेरा जब भी उदास मन होता

माँ ख़यालों में मुस्कराती है

 *

नेवले साँप दोस्त बन जाते

जब सियासत हुनर दिखाती है

 *

हार से लेके जो सबक लड़ता

ज़िन्दगीं उसको ही जिताती है

 *

ग़म ख़ुशी का है सिलसिला न डरो

ज़िन्दगीं हर कदम बताती है

 *

मदरसों में जो हम न पढ़ पाए

ज़िन्दगीं वो हमें सिखाती है

 *

इस जहाँ की हवस है ऐसी हवस

खून का रिश्ता भूल जाती है

 *

लगता बच्चे किसान को झूमें

फ़स्ल जब उसकी लहलहाती है

 *

ये अदालत है न्याय कब करती

अपना बस फैसला सुनाती है

 *

दस्त पर जिसको है यक़ीन अरुण

मुफ़लिसी उसको कब सताती है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 52 – नाहक, तीरथधाम किया है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – नाहक, तीरथधाम किया है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 52 – नाहक, तीरथधाम किया है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

ऊँचा, तेरा नाम किया है 

पर, तुमने बदनाम किया है

*

तुम कतराते रहे, हमेशा 

मैंने, सदा प्रणाम किया है

*

वादा किया, न फिर भी आये

जीना यहाँ हराम किया है

*

मैंने, रात तड़पकर काटी 

तुमने तो आराम किया है

*

दर्शन तेरे, हुए न पहले 

नाहक, तीरथधाम किया है

*

चलो, देर से ही आये, पर 

वातावरण ललाम किया है

*

प्रणय कथानक, बढ़ सकता है

अभी न, पूर्ण विराम किया है

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 128 – सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 127 – सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने ☆

समांत – आह

पदांत – नहीं है

मात्रा भार – सोलह

 

मन में अब उत्साह नहीं है।

दिखती मुझको राह नहीं है।।

 *

अपनों ने जो जख्म दिए हैं।

उसकी कोई थाह नहीं है।।

 *

मैंने खूब सजाया आँगन।

पर उनको परवाह नहीं है।।

*

एक-एक कर बिछुड़े अपने।

इक जुटता की चाह नहीं है।।

 *

पूरा जीवन खपा दिया जब।

मन में चिंता, दाह नहीं है।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्षितिज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  क्षितिज ? ?

छोटेे-छोटे कैनवास हैं

मेरी कविताओं के

आलोचक कहते हैं,

और वह बावरी

सोचती है

मैं ढालता हूँ

उसे ही अपनी

कविताओं में,

काश!

उसे लिख पाता

तो मेरी कविताओं का

कैनवास

क्षितिज हो जाता!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… परशुराम जयंती विशेष  – भगवान परशुराम ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… परशुराम जयंती विशेष  भगवान परशुराम ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(परशुराम जयंती विशेष – 2 मई)

अमर जयंती शुभ दिवस ,शुक्ल पक्ष तिथि आज।

परशुराम वह नाम है, शूर वीर के काज।।

शूर वीर के काज,विष्णु के जो अवतारी ।

पुत्र हुए मिल पाँच, पिता यह आज्ञाकारी।।

करे योगिता जाप,प्रगट है पूजें संती।

अक्षय मिले वरदान,मनातें अमर जयंती ।।1।।

मात रेणुका हर्ष में , चहुँदिशि देख प्रकाश।

परशुराम जमदग्नि सुत,करते दूर निराश।।

करते दूर निराश, बढ़ी खुशियांँ जग भारी।

ओज शौर्य में पूर्ण, कहें सब फरसाधारी।।

कुल द्रोही बन आप,हुए भू अनालुंबुका।

पाप मिटाते पुत्र,नमन कर मात रेणुका।‌।2।।

 *

वंदन बारंबार है, योद्धा जन्में वीर।।

अस्त्र-शस्त्र संज्ञान से, कहलाते रणधीर।।

कहलाते रणधीर,तभी सब काँपे रिपु दल।

छटे विष्णु अवतार, कष्ट का देते सब हल।।

प्रेमा करें प्रणाम, तिलक कर माथे चंदन।

शुभ अक्षय शुचि प्राप्त, करें जो इनको वंदन।।3।।

 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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