हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 143 ☆ मुक्तक – ।। ऐ जिंदगी तेरा अभी कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 143 ☆

☆ मुक्तक ।। ऐ जिंदगी तेरा अभी कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

जिंदगी अभी चल कि प्रभु कर्ज चुकाना बाकी  है।

किसी पराए का भी कुछ दर्द     मिटाना बाकी है।।

रिश्तों की   तुरपाई  करनी है वैसी  ही मिल  कर।

ईश्वर के शुकराने में भी सिर    झुकाना बाकी है।।

=2=

किसी के उदर कीआग अभी बुझाना    बाकी है।

नई-नई पीढ़ी को भी सही राह सुझाना बाकी है।।

बहुत ही काम कर लिया जीवन के इस सफर में।

लेकिन फिर भी कुछ नया करके दिखाना बाकी है।।

=3=

जीवन की राहों में गाँठे अभी सुलझाना बाकी है।

हँसते-हँसते हुए अभी रूठना मनाना  बाकी है।।

छूट गया जो भी   जीवन   की लंबी सी दौड़ में।

तिनका-तिनका जोड़ कर उसको जुटाना बाकी है।।

=4=

दिल की अधूरी बात अभी सबको सुनाना बाकी है।

किसी रोते हुए को भी हमें अभी हँसाना बाकी है।।

जो मिली अनमोल वरदान  सी यह  एक  जिंदगी।

उस जिंदगी का रह गया फ़र्ज़ अभी निभाना बाकी है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 209 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “शिक्षाप्रद बाल गीत – भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 209 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये ।

औरों के कष्ट का सही अनुमान दीजिये ॥

*

दुनिया में भाई-भाई से हिलमिल के सब रहें

है द्वेष जड़ लड़ाई की – यह ज्ञान दीजिये ॥

*

होता नहीं लड़ाई से कुछ भी कभी भला

सुख-शांति के निर्माण का अरमान दीजिये ॥

*

निर्दोष मन औ’ शुद्ध भावनाओं के लिये

हर व्यक्ति को सबुद्धि औ’ सद्ज्ञान दीजिये ॥

*

दुनिया सिकुड़ के  आज हुई एक नीड़ सी

इस नीड़ के कल्याण का विज्ञान दीजिये ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #36 – गीत – बावरा मन चाहता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतबावरा मन चाहता

? रचना संसार # 36 – गीत – बावरा मन चाहता…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

बावरा मन चाहता प्रभु प्रेम ही संसार में।

अब किनारा भी दिखादो, डूबते मझधार में।।

 *

प्रेम की सौगात ढूँढे ,हम बिछे इन शूल में।

साथ बस उल्लास हो अब भावना के मूल में।।

छल कपट का बोलबाला झूठ की सत्ता सजे।

मौन बैठा ये गगन पाखंड की वंशी बजे।।

द्वेष कटुता ही बसी हिय,क्या रखा सत्कार में।

बावरा मन चाहता प्रभु प्रेम ही संसार में।।

 *

धर्म  को सब भूलते गठरी भरी है पाप की।

लोभ की सत्ता रहे ये नित्य ही संताप की।।

अब कहाँ रिश्ते रहे हैं डोर टूटी आस की ।

भूलते निज कर्म को सब छोड़ गति विश्वास की।।

सब मनुज ने अब गँवाया जान लो इंकार में।

बावरा मन चाहता प्रभु प्रेम ही संसार में।।

 *

दुष्टता बढ़ती धरा में फैलता  व्यभिचार है।

त्याग का अब नाम क्या जीवन बना अब भार है।।

शांति अरु सदभाव रूठे देख कैसी ये घड़ी।

रक्तरंजित है डगर आहत हुई आत्मा बड़ी।।

तार दो रघुनाथ हमको हम खड़े हैं द्वार में।

बावरा मन चाहता प्रभु प्रेम ही संसार में।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #263 ☆ भावना के दोहे – पर्यावरण ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – पर्यावरण)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 263 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – पर्यावरण ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

झरने झील पहाड़ की, करो न कोई बात।

याद मुझे आने लगी, वहीं सुहानी रात।।

*

मन प्रसन्न अब हो गया, देख तेरा ये रुप।

तुझमें अन्तर बहुत है, लगी समय की धूप।।

*

चिंता अब बढ़ने लगी, नहीं बचेंगे प्राण।

पर्यावरण  को नष्ट कर, करते भवन निर्माण।।

*

भानु देवता कर रहे, चारों ओर प्रकाश।

सूर्य उगता दिखा रहा, है सुंदर आकाश।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #245 ☆ संतोष के दोहे – अहम… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – अहम आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 245 ☆

☆ संतोष के दोहे – अहम… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कभी न हम पालें अहम, इसकी गहरी मार

मान गिराता यह सदा, होता है अपकार

*

अहम करे किस बात का, हे मूरख इंसान

जाना सबको एक दिन, बचता नहीं निशान

*

बचें सदा हम क्रोध से, इसमें लिपटा दंभ

अहंकार की आग में, गिरें टूट के खम्भ

*

सदा कभी रहता नहीं, धन-वैभव अभिमान

माटी में मिलता सदा, माटी का इंसान

*

साथ न देते बंधु प्रिय, महल अटारी कोष

वहम बढ़ाता अहम को, और बढ़ाये रोष

*

धन दौलत सम्मान से, मिले अहम को खाद

कमतर समझे गैर को, करे झूठ आबाद

*

अहंकार से सब मिटे, वैभव, इज्जत, वंश

देखें तीन उदाहरण, रावण, कौरव, कंस

*

साईं इतना दीजिए, आ ना सके गुरूर

चलें धर्म की राह हम, प्रेम रहे भरपूर

*

मनसा, वाचा कर्मणा, सबके बनें चरित्र

स्वयं रहे “संतोष” भी, रहें विचार पवित्र

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पाठशाला ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पाठशाला ? ?

पाठशाला के दिन अच्छे थे,

संगी-साथी गणित में कच्चे थे,

फिर क़िताबों को पढ़ना बंद हुआ,

आदमी को पढ़ने का सिलसिला हुआ,

हानि पहुँचाने के गणित में तब जो कच्चे थे,

अपना लाभ उठाने के गणित में अब पक्के हैं,

संबंधों को कंधा बनाने के मर्मज्ञ हैं,

मैं और मेरा के अनन्य विशेषज्ञ हैं,

नि:स्वार्थ भाव पढ़ाती थी पाठशाला,

पग-पग स्वार्थ का अब बोलबाला,

निष्कपट थे, सादे थे, सच्चे थे,

पाठशाला के दिन अच्छे थे..!

?

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 6:47 बजे, 5 मार्च 2024)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 235 ☆ गीत – घर – घर बड़ा झमेला है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 235 ☆ 

☆ गीत – घर – घर बड़ा झमेला है…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

शिकवे – गिले दूर कर लेना,

आई अंतिम बेला है।

हमने तो बस पुष्प लुटाए,

हंसा चला अकेला है।।

 **

मिलीं उपाधी खुशियों वाली,

अनगिन जन ने प्रेम दिया।

कुछ ने ही खुद काँटे बोकर,

जाने क्या – क्या खेल किया।

 *

चक्रव्यूह – सा जीवन सारा

पाप – पुण्य का खेला है।।

 **

जोड़ा हमने ये भी वो भी

सबका ही इतिहास बना।

पर भूगोल बदल न पाए,

शतरंजी यह पाश बना।

 *

आडम्बर की नई दुकानें

घर – घर बड़ा झमेला है।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मकर संक्रांति  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता – मकर संक्रांति ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

भारत त्योहारों का देश है अनोखा अति मतवाला।

पग-पग पर यह तो नित खुशियां बिखेरने वाला।।

*

रौनक है, नाच-गान और मस्तियों के मेले हैं।

सारे उमंग में भरे हैं, कोई भी यहां नहीं अकेले हैं।।

*

कहीं सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का पर्व है।

तो कहीं मतवाले पोंगल पर हो रहा सबको गर्व है।।

*

कहीं लोहड़ी का हो रहा सच में व्यापक सम्मान है।

तो कहीं नदी स्नान से पावनता की बढ़ी आन है।।

*

 संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का उत्सव है।

तो भांगड़े की तान पर थिरकता हुआ मानव है।।

*

खिचड़ी का स्वाद है, तो तिली के लड्डू का जलवा है।

बिखर रहा भाईचारा, प्रेम, नहीं किसी तरह का बल्ला है।।

*

आकाश में छाई है आकर्षक पतंगों की निराली छटा।

नदियों के किनारे लगे झूले, भरे मेरे, है सुंदर घटा।।

*

दान-पुण्य के प्रति व्यापक अनुराग पल रहा है।

जो है उल्लास से दूर वह आँखों को मल‌ रहा है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #263 – कविता – ☆ हम पढ़ रहे ककहरे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता हम पढ़ रहे ककहरे हैं…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #263 ☆

☆ हम पढ़ रहे ककहरे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

हम पढ़ रहे ककहरे हैं

विषय बाद के गहरे हैं।

कौन सुनें मन की बातें

कान सभी के बहरे हैं।

 *

अलग अलग सब के झंडे

एक साथ कब फहरे हैं।

 *

गठबंधन को  यूँ समझें

आती जाती लहरें हैं।

 *

वे सरिता वे हैं सागर

बाकी केवल नहरें हैं।

 *

सोच समझ कर कहें सुनें

लगे चतुर्दिश पहरे हैं।

 *

है कुछ दिन की बात यहाँ

बस कुछ पल को ठहरे हैं।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 87 ☆ किसको दें इल्ज़ाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “किसको दें इल्ज़ाम…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 87 ☆ किसको दें इल्ज़ाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

शहर बिक गया

औने-पौने दाम।

 

कचरा ठेके पर

बिजली की आँखमिचोली

गड्ढों में सड़कें

सड़कों पर धूल की होली

शहर सो गया

बोलो सीताराम ।

 

सत्ता खेले खेल

दाँव पर लगी है जनता

पैसों के पीछे

चकमक में खोया रिश्ता

शहर लुट गया

गली-गली बदनाम।

 

सुस्त पड़े कानून

नियम सब कागज ढोते

मंदिर-मस्जिद के

झगड़े में वैमनस्य बोते

शहर रुक गया

किसको दें इल्ज़ाम ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

१०.१२.२४

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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