हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ज्योतिर्गमय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – ज्योतिर्गमय ??

अथाह, असीम

अथक अंधेरा,

द्वादशपक्षीय

रात का डेरा,

ध्रुवीय बिंदु

सच को जानते हैं

चाँद को रात का

पहरेदार मानते हैं,

बात को समझा करो

पहरेदार से डरा करो,

पर इस पहरेदार की

टकटकी ही तो

मेरे पास है,

चाँद है सो

सूरज के लौटने

की आस है,

अवधि थोड़ी हो

अवधि अधिक हो,

सूरज की राह देखते

बीत जाती है रात,

अंधेरे के गर्भ में

प्रकाश को पंख फूटते हैं,

तमस के पैरोकार,

सुनो, रात काटना

इसे ही तो कहते हैं..!

(रात्रि 3:31 बजे, 6.6.2020)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #181 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 181 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

पथिक

आती बाधा रोककर, पथिक चला है राह।

डिगा नहीं तूफान से,कभी न निकली आह।।

मझधार

नाव फँसी मझधार में,बहती धाराधार।

पानी बढ़ता जा रहा, कैसे जाऊँ पार।।

आभार

मान रहे हैं आपको,करो आप उद्धार।

अर्जी मेरी प्रभु सुनो ,मानेंगे आभार।।

उत्सव

जश्न मनाओ खूब तुम, मचती उत्सव धूम।

बादल आए घूम के,बरसेंगे वो झूम।।

छाँव

पथिक राह में ढूँढता, मिली नहीं है छाँव।

चलते -चलते थक गया,अब तक मिली न ठाँव।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #167 ☆ “संतोष के दोहे… कर्म पर दोहे” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 166 ☆

☆ “संतोष के दोहे …कर्म पर दोहे☆ श्री संतोष नेमा ☆

जीवन के किस मोड़ पर, जाने कब हो अंत

मिलकर रहिये प्रेम से, कहते  साधू संत

कोई भी न देख सका, आने वाला काल

काम करें हम नेक सब, रहे न कभी मलाल

कौन यहाँ कब पढ़ सका, कभी स्वयं का भाल

कोई भी न समझ सका, यहाँ समय की चाल

ईश्वर ने हमको दिये, जीवन के दिन चार

दूर रहें छल-कपट से, रखिये शुद्ध विचार

जीवन में गर चाहिए, सुख शांति “संतोष”

काम-क्रोध् मद-लोभ् से, दूर रहें रख होश

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सार ??

कितना अलग है

एक आँख का

कई सपने देखना और

कई आँखों का मिलकर

एक सपना देखना,

माना कि व्याकरण में

एकवचन से

बहुवचन होना विस्तार है

पर जीवन की बारहखड़ी में

बहुवचन को

एकवचन में बदल पाना

संसार का सार है!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 159 ☆ बाल सजल – मनमौजी हैं तोते राजा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 159 ☆

☆ बाल सजल – मनमौजी हैं तोते राजा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

मनमौजी हैं तोते राजा।

मिलकर खूब बजाते बाजा।।

 

कभी तार पर झूलें हिलमिल

फल खाते हैं ताजा – ताजा।।

 

रुचि से खाएँ बिस्किट, दाना

इनका गीत सभी को साजा।।

 

नूडल, चाऊमीन ना खाते

पिएँ न कोल्डड्रिंक ये माजा।।

 

सदा बोलते मीठा – मीठा

सबसे कहते आ जा, आ जा।।

 

हरे – हरे हैं नभ को छू लें

हँस – हँस कर सब करते काजा।।

 

चोंच नुकीली अतिशय प्यारी

सबसे कहते भोजन खा जा।।

 

दे जाते हैं रोज खुशी ये

अतिथि बनाकर इन्हें नवाजा।।

 

जगें भोर में सोने वाले

तोता सबको पाठ पढ़ा जा।।

 

नहीं जगें जो बच्चे जल्दी

तोता इनको डाँट लगा जा।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #137– बाल गीत – “पानी चला सैर को” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक बाल गीत – “पानी चला सैर को)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 137 ☆

 ☆ बाल गीत – “पानी चला सैर को” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’         

पानी चला सैर को 

संगी-साथी से मिल आऊ.

 

बादल से बरसा झमझम 

धरती पर आया था.

पेड़ मिले न पौधे 

देख, मगर यह चकराया था.

कहाँ गए सब संगी-साथी 

उन को गले लगाऊं.

 

नाला देखा उथलाउथला 

नाली बन कर बहता.

गाद भरी थी उस में 

बदबू भी वह सहता .

उसे देख कर रोया 

कैसे उस को समझाऊ.

 

नदियाँ सब रीत गई 

जंगल में न था मंगल.

पत्थर में बह कर वह 

पत्थर से करती दंगल.

वही पुराणी हरियाली की चादर 

उस को कैसे ओढाऊ.

 

पहले सब से मिलता था 

सभी मुझे गले लगते थे.

अपने दुःख-दर्द कहते थे 

अपना मुझे सुनते थे.

वे पेड़ गए कहाँ पर 

कैस- किस को समझाऊ. 

 

जल ही तो जीवन है 

इस से जीव, जंतु, वन है.

इन्हें बचा लो मिल कर 

ये अनमोल हमारे धन है.

ये बात बता कर मैं भी 

जा कर सागर से मिल जाऊ. 

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

28-04-2023

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 06 ☆ गौरैया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “गौरैया।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 06 ☆ गौरैया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कहती है गौरैया

आँगन हुए प्रदूषित

मैं क्यों आऊँ द्वार तुम्हारे।

 

जहाँ-तहाँ बैठाए पहरा

रोते हो रोना

नहीं कहीं खाली छोड़ा है

कोई भी कोना

 

अपनी मर्ज़ी के

मालिक हैं यह कहना

बैठे बंद किए गलियारे ।

 

कभी फुदकती घर के भीतर

कभी खिड़कियों पर

कभी किताबों पर मटकाती

आँख झिड़कियों पर

 

बनकर भोली उड़े

फुर्र से जब चिचियाकर

फिर बतलाती दोष हमारे।

 

देख हमे फुरसत में अपना

नीड़ सँवारे गुपचुप

चोंच दबाए तिनका रखती

रोशनदान में छुप-छुप

 

भरे सकोरे पर हक

जतलाती है हरदम

रोज जगाती है भिनसारे।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीदार यूँ भले न हो… ☆ श्री अरविन्द मोहन नायक ☆

श्री अरविन्द मोहन नायक

(ई-अभिव्यक्ति में श्री अरविन्द मोहन नायक जी का हार्दिक स्वागत। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एवं टेलीकम्यूनिकेशन में स्नातक। सार्वजनिक क्षेत्रों में 37 वर्षों में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए ओएनजीसी से महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत। कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर की समितियों में वरिष्ठ पदों का सफलतापूर्वक निर्वहन। आजीवन सदस्यता – FIETE, FIEI, SMCSI, MISTD। प्रकाशित कार्य – चार काव्य संकलन, यथा – ‘प्रयास’, ‘एहसास’, ‘आरोह’ एवं ‘सफर’।  भावी योजनाएँ (सूक्ष्म संकेत) – लेखन के साथ-साथ जन जागरण और युवाओं में नई चेतना के संचार हेतु प्रयासरत। हम आपके साहित्य को अपने प्रबुद्ध पाठकों से समय -समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना दीदार यूँ भले न हो।)

✍ दीदार यूँ भले न हो… ☆ श्री अरविन्द मोहन नायक

फ़ासलों ने बख़्श दीं, नज़दीकियां हमें

याद उनकी आती है, हर वक़्त क्यों हमें

दीदार यूँ भले न हो, मौज़ू हैं दिल में वो

नज़रों में वो समाए हैं, दिखते हैं वो हमें

होता हूँ गो मैं रूबरू, आईने से गर

तेरा ही अक्स देखकर, याद आती है हमें

‘नायक’ तेरी नियामतें, है तेरा शुक्रिया

तस्वीर कोई हो मगर, पाता तुझे हूँ मैं

© श्री अरविन्द मोहन नायक 

सम्पर्क : २०३ नेपियर ग्रैंड, होम साइंस कॉलेज के समीप, नेपियर टाऊन, जबलपुर म प्र – ४८२००१

मो  +९१ ९४२८० ०७५१८ ईमेल – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… पिया प्रीत के गीत… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… पिया प्रीत के गीत☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(सिंहावलोकनी दोहा छंद + समान सवैया)

आदि अंत तुम हो पिया, पिया प्रीत के गीत ।

गीत बिना संवाद क्या, वाद सुने सब रीत ।‌।

 

रीत निभाती चलती जाती,

मुश्किल कितनी है लगती अब ‌।

पगली तुझसे कहती माधव,

जपती हृद प्रिय अष्ट घड़ी सब ‌।।

 

पाना मंजिल मान चुकी हूँ,

चाह जिंदगी पूरित हो तब ।

जोगन बनी प्रीत हूँ कहती,

देर बहुत है आओगे कब ।।

☆ 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

(दोहा कलश (जिसमें विविध प्रकार के दोहा व विधान है) के लिए मो 8435157848 पर संपर्क कर सकते हैं ) 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 02 – गये चाटने पत्तल जूठी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – गये चाटने पत्तल जूठी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 02 – गये चाटने पत्तल जूठी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

बाजारों के आकर्षण में

     लोगों ने सर्वस्व लुटाया

 

बढ़ी विश्व के बाजारों में

चकाचोंध नकली सोने की

जितनी, धन पाने की लिप्सा

उतनी आशंका खोने की

जलाशयों के विज्ञापन ने

     मृग मरीचिका सा भटकाया

 

संस्कारों की सारी दौलत

नग्न सभ्यताओं ने लूटी

सात्विक व्यंजन को ठुकराकर

गये चाटने पत्तल जूठी

वैभव पाने की चाहत ने

     घर छानी-छप्पर बिकवाया

 

करती रही छलावा हमसे

अर्थव्यवस्था पूँजीवादी

प्रतिभाओं का हुआ पलायन

वाट जोहते दादा-दादी

रंग-रूप के सम्मोहन ने

     भ्रामक इन्द्रजाल फैलाया

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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