हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #184 – 70 – “कई सुखनवर कहते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “कई सुखनवर कहते हैं…”)

? ग़ज़ल # 70 – “कई सुखनवर कहते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ग़ज़ल बनती नहीं है महबूबा तेरे बिना,

जमता नहीं रदीफ़्र क़ाफ़िया तेरे बिना।

ग़र तू नज़दीक हो कुछ न चाहिए मुझे,

दुश्वार है मुझे ए सनम जीना तेरे बिना।

दिखता मुझे तेरा ही अक्स भरे प्यालों में,

मय भी अब ज़हर लगे है जाना तेरे बिना।

हर काम करने का आता है सलीक़ा तुम्हें,-

मुमकिन नहीं है घर का सँवरना तेरे बिना

कई सुखनवर कहते हैं बहुत अच्छी ग़ज़ल,

फीकी लगे है महफिल ऐ दिलारा तेरे बिना।

तेरा सुर मिले तो दिलसाज़ हो मेरी ग़ज़ल,

आतिश मोशिकी लगे है ग़मज़दा तेरे बिना।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ भेड़िये ने भेड़ों को बताया- ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण एवं विचारणीय कविता– भेड़िये ने भेड़ों को बताया-)

☆ कविता ☆ भेड़िये ने भेड़ों को बताया- ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

भेड़िये ने भेड़ों को बताया-

वो, उधर है कुआँ, पानी से भरा हुआ

भेड़िये के पीछे-पीछे चला जा रहा है

प्यासी भेड़ों का झुण्ड

मैं भेड़ नहीं हूँ

बेशक मेरी हैसियत

किसी भेड़ से ज़्यादा नहीं

इतना तो मैं जानता हूँ

कि किसी भी सूरत

भेड़ों के लिए संभव नहीं है

कुएँ से पानी पी पाना

मैं अपनी प्यास के लिए

किसी तालाब की खोज में हूँ

न भी मिल पाया कोई तालाब

तो भी कुएँ में डूब कर

मरने से बेहतर है

पानी के सपने के साथ

प्यास से मर जाना।

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दशरथ मांझी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – दशरथ मांझी ??

वे खड़े करते रहे

मेरे इर्द-गिर्द

समस्याओं के पहाड़

धीरे-धीरे….,

मेरे भीतर

पनपता गया

एक ‘दशरथ मांझी’

धीरे-धीरे…!

(*दशरथ मांझी’- 25 फुट ऊँचे पहाड़ को अकेले दम काटकर 360 फुट लम्बी सड़क बनाने वाले पर्वत-पुरुष।)

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 8:17 बजे, 7 अप्रैल 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 62 ☆ ।।अगर चमकना है तो सूरज सा जलना सीख लो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।अगर चमकना है तो सूरज सा जलना सीख लो।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 62 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।अगर चमकना है तो सूरज सा जलना सीख लो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

जियो तो खुशियों की मीठी सौगात है जिन्दगी।

भूलना सीखोअच्छी यादों की बारात है जिन्दगी।।

ढूंढो हर पल में खुशियों के छिपे लम्हों को तुम।

प्रेमनज़र से देखो मुस्काती हरबात है जिन्दगी।।

[2]

जिन्दगीऔर कुछ नहीं बस जज्बात है जिन्दगी।

तुम्हारे अपनी मेहनत की करामात है जिन्दगी।।

भाईचारा मीठी जुबान हमेशा रखना जीवन में।

जानलो बस एकदूजे की खिदमात है जिन्दगी।।

[3]

रोशन चमकती हुई इकआफताब है जिन्दगी।

नफरत की रमकआ जाये तो बर्बाद है जिन्दगी।।

सफ़ल जीवन तुम्हारेअच्छी सोचविचार का ही है।

गर  सकारात्मक तो  फिर आबाद है जिन्दगी।।

[4]

चमकना है तो फिर सूरज सा जलना सीख लो।

सोने सा तपना   और फिर गलना भी सीख लो।।

बनो वह चिरागआंधियों में भी रोशन करे दुनिया।

धारा विपरीत भी काँटों पर चलना   सीख   लो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 126 ☆ “हनुमान स्तुति…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित   – “हनुमान स्तुति…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #126 ☆ “हनुमान स्तुति…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

संकट मोचन दुख भंजन हनुमान तुम्हारी जय होवे

बल बुद्धि शक्ति साहस श्रम के अभिमान तुम्हारी जय होवे

 

दुनिया के माया मोह जाल में फंसे सिसकते प्राणों को

मिलती तुमसे नई  चेतनता और गति निश्छल पाषाण को

दुख में डूबे जग से ऊबे हम शरण तुम्हारी हैं भगवन

संकट में तुमसे संरक्षण पाने को आतुर है यह मन

तुम दुखहर्ता नित सुखकर्ता अभिराम तुम्हारी जय होवे

हे करुणा के आगार सतत निष्काम तुम्हारी जय होवे

सर्वत्र गम्यसर्वज्ञ , सर्वसाधक प्रभु अंतर्यामी तुम

जिस ने जब मन से याद किया आए उसके बन स्वामी तुम

देता सबको आनंद नवल निज  नाथ तुम्हारा संकीर्तन

होता इससे ही ग्राम नगर हर घर में तव वंदन अर्चन

संकट कट जाते लेते ही तव नाम तुम्हारी जय होवे

तव चरणों में मिलता मन को विश्राम तुम्हारी जय होवे

संतप्त वेदनाओ से मन उलझन में सुलझी आस लिए

गीले नैनों में स्वप्न लिएअंतर में गहरी प्यास लिए

आतुर है दृढ़ विश्वास लिएहे नाथ कृपा हम पर कीजे

इस जग की भूल भुलैया में पथ खोज सकें यह वर दीजे

हम संसारी तुम दुख हारी भगवान तुम्हारी जय होवे

राम भक्त शिव अवतारी हनुमान तुम्हारी जय होवे

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शपथ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – शपथ ??

जब भी

उबारता हूँ उन्हें,

कसकर पकड़ लेते हैं

अंग-अंग जकड़ लेते हैं,

मिलकर डुबोने लगते हैं,

सुनो…!

डूब भी गया मैं तो

मुझे यों श्रद्धांजलि देना,

मिलकर, डूबतों को

उबारने की शपथ लेना..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #175 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 175 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे … ☆

मिल गई मंजिल मुझको, नहीं मिटा है प्यार ।

इश्क अधूरा है नहीं, सुन लो मेरे  यार।।

जीवन  की दहलीज पर,सुन लो मेरे मित्र ।

करना पूरा इश्क है, बना लिया है चित्र।।

कर लो मुझसे प्यार तुम, मन मेरा बेचैन ।

नहीं अधूरा इश्क़ है, मिल जाएगा  चैन।।

जब भी तुझको देखती, बहती हैं जलधार।

सजन अधूरा इश्क़ है, कर लो मुझसे प्यार।।

तपन बहुत है नयन में, ठंडक दे दो राम ।

इश्क अधूरा ना रहे, आ जाओ तुम धाम।।

सच्ची मेरी दोस्ती, नहीं करो तकरार।

इश्क अधूरा ना रहे, बुन लो धागे चार।।

इश्क अधूरा ही सही ,सुन लो मेरे मीत।

मन में तुम बसती गई, जीवन का संगीत।।

किया है वादा तुमसे, मुकरना नहीं आप।

इश्क अधूरा ना रहे, आ जाओ चुपचाप।।

अधूरा इश्क़ सह रहे, सुनो तुम दास्तान।

कुछ तो तरस तुम करना, बच जाए  इंसान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #162 ☆ एक पूर्णिका – “चलो वक्त के साथ चलो…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर बाल गीत – चलो वक्त के साथ चलो”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 162 ☆

☆ एक पूर्णिका – “चलो वक्त के साथ चलो…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

 

—————-

चलो  वक्त के साथ चलो

ले  हाथों   में  हाथ  चलो

दामन झूठ का  छोड़ कर

सदा  सत्य के  साथ चलो

गर  बढ़ना  तुमको   आगे

कर्मठता  के   साथ  चलो

गर   पाना   मोती  तुमको

पकड़ तली का हाथ चलो

कभी  रहें  न भाग्य भरोसे

लेकर  तुम  पुरुषार्थ  चलो

गुनाहों  से  बच  कर रहना

थाम  धर्म  का  हाथ  चलो

मिले  न  कुछ  आसानी से

तुम  संतोष  के  साथ चलो

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 62 ☆ हनुमान प्राकट्य दिवस विशेष – बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली)…… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्र पर्व पर आपकी एक कविता – बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली)”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 62 ✒️

?  हनुमान प्राकट्य दिवस विशेष – बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली)✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – salmakhanjbp@gmail.com

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आज ??

अपने शब्दकोश से

निष्कासित कर दिया

मैंने एक शब्द…’कल’..,

फिर वह बीता कल हो

या आता कल..,

अब केवल अपना

आज जीता हूँ,

यही कारण है;

बीते और आते कल का

आनंदरस भी पीता हूँ…!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:44 बजे, 01/04/2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

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