हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पैमाना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मकर संक्रांति रविवार 15 जनवरी को है। इस दिन सूर्योपासना अवश्य करें। साथ ही यथासंभव दान भी करें।

💥 माँ सरस्वती साधना 💥

सोमवार 16 जनवरी से माँ सरस्वती साधना आरंभ होगी। इसका बीज मंत्र है,

।। ॐ सरस्वत्यै नम:।।

यह साधना गुरुवार 26 जनवरी तक चलेगी। इस साधना के साथ साधक प्रतिदिन कम से कम एक बार शारदा वंदना भी करें। यह इस प्रकार है,

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – पैमाना ??

सत्य के चलते

खोए कितने ही रिश्ते,

असत्य से उन्हें

बचा तो लेता,

पर क्या फिर उन्हें

रिश्ते कह पाता..?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 143 ☆ गीत – चन्दनवन वीरान हो गए… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 143 ☆

☆ गीत – चन्दनवन वीरान हो गए ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

नीरवता ऐसी है फैली

          चन्दनवन वीरान हो गए।

जो उपयोगी था उर-मन से

          लुटे-पिटे सामान हो गए।।

 

झाड़ उगे, अँधियारा फैला

       सूनी हैं दीवारें सब

अर्पण और समर्पणता की

       खोई कहाँ बहारें अब

कौन किसी के साथ गया है

       किसको कहाँ पुकारें कब

      

गठरी खोई श्वांसों की सच

     सब ही अंतर्ध्यान हो गए।।

 

कितने सपने, कितने अपने

          खोई है तरुणाई भी

भोग-विलासों के आडम्बर

         लगते गहरी खाई – सी

बचपन के सब गुड्डी- गुड्डन

         छूटे धेला पाई भी

 

वक्त, वक्त के साथ गया है

         मरकर सभी महान हो गए।।

 

अर्थतन्त्र के चौके, छक्के

        गिल्ली से उड़ गए चौबारे

साथ और संघातों के भी

         आग उगलते हैं अंगारे

प्यार-प्रीति भी राख हो गई

         दिन में भी कब रहे उजारे

 

जोड़ा कोई काम न आया

       सारे ही शमशान हो गए।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #165 – तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज नव वर्ष पर प्रस्तुत हैं  आपके भावप्रवण तन्मय के दोहे…”। )

☆  तन्मय साहित्य  #165 ☆

☆ तन्मय के दोहे…

रखें भरोसा स्वयं पर, है सब कुछ आसान।

पढ़ें-लिखें  सीखें-सुनें,  बने अलग पहचान।।

खुद को भी धो-माँज लें, कर लें खुद का जाप।

बाहर  भीतर  एक   हों,  मिटे  सकल   संताप।।

सीप गहे मोती बने, स्वाती जल की बूँद।

भीतर उतरें  मौन हो, मन की ऑंखें मूँद।।

दिशाहीन संशयजनित, कर्ण श्रवण का रोग।

शंकित जन संतप्त हो, सहते  सदा  वियोग।।

आँखों देखी सत्य है, झूठ सुनी जो बात।

कानों के  कच्चे सदा, खा जाते  हैं मात।।

कर्म नियति निश्चित करे, यही भाग्य आधार।

सत्संकल्पों   पर   टिका,  मानवीय   बाजार।।

नहीं पता है कब कहाँ, भटकन का हो अंत।

सत्पथ पर  चलते रहें,  आगे खड़ा बसन्त।।

कुतर रही है दीमकें, साँसों लिखी किताब।

पाल  रखे  मन में कई,  रंग-बिरंगे  ख्वाब।।

शब्द – शब्द मोती बने,  भरे अर्थ  मन हर्ष।

पढ़ें-गुनें मिल बैठकर, सुधिजन करें विमर्ष।।

संयम में  सौंदर्य है,  संयम  सुखद खदान।

जीवन के हर प्रश्न का, संयम एक निदान।।

अर्क विषैले छींटकर, लगे गँधाने लोग।

नई व्याधियों में फँसे, पालें सौ-सौ रोग।।

भूले से मन में कभी, आ जाये कुविचार।

क्षमा स्वयं से माँग लें,  करें त्रुटि स्वीकार।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – शब्द– ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक  विचारणीय कविता – शब्द)

☆ कविता – शब्द ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

ज़िंदा शब्दों में धड़कन होती है

गंध होती है

पानी होता है

आग होती है

धरती होती है

आसमान होता है

शब्दों में स्वाभिमान होता है

तुम जब अपने आक़ाओं के नारों को

गीतों में ढालने लगते हो

शब्द बग़ावत पर उतर आते हैं

तुम जब प्रशस्तियाँ लिखते हो

शब्द थूकते हैं तुम पर

तुम्हारे सामने धर्मसंकट खड़ा हो जाता है

कि तुम शब्द को चुनो या आक़ा को

शब्द तुम्हें संतोष दे सकते हैं

और आक़ा पुरस्कार समेत बहुत कुछ

अंततः झल्लाये हुए उठते हो तुम

और उन शब्दों को वहीं छोड़

मुर्दाघर में दाख़िल हो जाते हो

मुर्दाघर से जब तुम बाहर आते हो

तुम्हारा झोला सुंदर-सुंदर

शब्दों की लाशों से भरा होता है

तुम उन शब्दों को काग़ज़ पर टाँकते हो

जैसे कशीदाकार टाँकता है कपड़े पर सितारे

तुम्हारी किताब ख़ूबसूरत दिखती है

किसी आबनूसी ताबूत की तरह

तुम्हें पता नहीं क्या महसूस होता है

पर पाठक को किताब खोलते ही

लाशों  की बदबू से उबकाई आती है।

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 53 ☆ छली गई हूं मैं फिर एक बार— ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता छली गई हूं मैं फिर एक बार—”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 53 ✒️

? छली गई हूं मैं फिर एक बार— ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

कैसे बीती ?

कल की रात ?

कोई मेरे अंतर्मन से पूछे ,

पड़ोसी का सुनसान बंगला ,

विधवा की सूखी सूनी,

मांग सा उदास ,

किसी के जाने का

दिला रहा है एहसास ——–

 

कितने आए और गए,

नरम – नरम यादों के

हुज़ूम के बीच ,

एक तुम्हारा व्यक्तित्व ?

अनबूझ पहेली ?

कभी अजनबी ?

कभी सहेली ?

मुंह चिढ़ाता हुआ

हर पल खुला गेट ,

शायद हुई थी यहीं हमारी भेंट —–

 

कई बार तन्हाई में ,

रूह को झिंझौड़ा है ,

हर मोड़ पर तुम ही तुम

नज़र आते हो हमदर्द ,

‘तुम’ क्यों नहीं बताते कि,

तुम्हारे अन्दर क्या है ? मेरे लिए ?

जितने बार देखा है प्रतिबिंब,

स्वयं को पाया है

तुम्हारा शुभचिंतक ——-

 

आज कर दो निर्णय ,

मैंने पाया है या गंवाया है ?

या छली गई हूं मैं

फिर एक बार ——-

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पुस्तक की अदभुत कहानी…☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता ☆ पुस्तक की अदभुत कहानी☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

 

पुस्तक की अदभुत कहानी

जिसने पढ़ी उसी ने जानी

 

चित्र विचित्र काले अक्षर से

लिख डाली दास्तान पुरानी

लेखक की आंखों में पानी

पाठक की आंखों में पानी

 

अकेलेपन की सहेली बन जाती

कभी हंसाती तो कभी रुलाती

भले बुरे की   पहचान  कराती

सौहार्द प्रेम  का  पाठ  पढ़ाती

 

भेद   भाव  को    दूर    भगाती

वैज्ञानिक,  डॉक्टर,  इंजीनियर

वकील,अधिकारी ये ही बनाती

अनुशासन   का   पाठ  पढ़ाती

 

अंतरिक्ष  में  भी  यही  भेजती

अच्छी   नौकरी  ये  दिलवाती

सब  मन  में  विश्वास जगाती

सारी दुनियां इसके गुण गाती

 

यही इतिहास  का ज्ञान कराती

हिसाब किताब रखना सिखाती

ज्ञान वर्धक प्रेरणास्पद बनकर

सारे  जग   को   मार्ग   दिखाती

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ चिठ्ठी ☆ श्री अखिलेश श्रीवास्तव ☆

श्री अखिलेश श्रीवास्तव 

(ई-अभिव्यक्ति में श्री अखिलेश श्रीवास्तव जी का स्वागत। विज्ञान, विधि एवं पत्रकारिता में स्नातक। 1978 से वकालत, स्थानीय समाचार पत्रों में सम्पादन कार्य। स्वांतः सुखाय समसामयिक विषयों पर लेख एवं कविताएं रचित/प्रकाशित। प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “चिठ्ठी”।)

☆ कविता  – चिठ्ठी ☆ श्री अखिलेश श्रीवास्तव ☆

दूर बसे अपने लोगों की

खैर खबर लाती थी चिठ्ठी ।

पोस्टमेन घर घर में जाकर

पहुंचाते थे सबकी चिठ्ठी ।।

 

अपने लोगों की यादों को

संजोकर रखती थी चिठ्ठी ।

घर में उत्सुकता बढ़ जाती

जब आती थी कोई चिठ्ठी ।।

 

अपनों के आपस के प्यार की

अभिव्यक्ति होती थी चिठ्ठी ।

शब्दों के मोती की माला

होती थी ये प्यारी चिठ्ठी ।।

 

प्रेमी-प्रेयसी के प्यार की

 गहराई होती थी चिठ्ठी ।

रिश्तों के प्यारे सम्बन्धों

को दर्शाती थी ये चिठ्ठी ।।

 

परीक्षा के परिणामों की

खबर हमें लाती थी चिठ्ठी ।

नौकरी लग जाने की खबर

खुशी से लेकर आती चिठ्ठी ।।

 

रिश्ते नातों के विवाह की

खबर हमें पहुंचाती चिठ्ठी ।

नये शिशु के आने का भी

संदेशा लाती थी चिठ्ठी ।।

 

इंतजार पोस्टमेन भैया का

करवाती थी हमें ये चिट्ठी ।

अपने बीते हुए समय की

याद दिलाती है ये चिट्ठी ।।

 

इतिहास बनकर हमेशा

सबके काम में आती चिठ्ठी

लिपिबद्ध होकर हम सबकी

यादों में बस जाती चिठ्ठी।।

 

एक समय था जब हमारी

प्राण वायु होती थी चिठ्ठी ।

फिर से हम सबकी सेवा

करना चाहती है ये चिट्ठी ।।

 

आज सभी से हाथ जोड़कर

विनती करती है ये चिट्ठी ।

फिर से मुझे बना लो अपना

यही आस  लगाए चिठ्ठी ।।

© श्री अखिलेश श्रीवास्तव

जबलपुर, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 65 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 65 – मनोज के दोहे ☆

1 शीत

शीत लहर से काँपता, तन मन पात समान।

ओढ़ रजाई बावले, क्यों बनता नादान।।

2 शरद

शरद सुहानी छा गई, करती हर्ष विभोर।

रंगबिरंगी तितलियाँ, भ्रमर मचाते शोर।।

3 माघ

माघ-पूस की रात में, सड़कें सब सुनसान।

शीत हवा बहती विकट, काँपें सबके प्रान।।

4 पूस

कहा माघ ने पूस से, तेरी क्या औकात।

अभी तुझे बतला रहा, दूँगा निश्चित मात।।

5 कुहासा

बढ़ा कुहासा ओस का, गाड़ी चलतीं लेट।

प्लेट फार्म में बैठकर, प्रिय कब होगी भेंट।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सहोदर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मकर संक्रांति रविवार 15 जनवरी को है। इस दिन सूर्योपासना अवश्य करें। साथ ही यथासंभव दान भी करें।

💥 माँ सरस्वती साधना 💥

सोमवार 16 जनवरी से माँ सरस्वती साधना आरंभ होगी। इसका बीज मंत्र है,

।। ॐ सरस्वत्यै नम:।।

यह साधना गुरुवार 26 जनवरी तक चलेगी। इस साधना के साथ साधक प्रतिदिन कम से कम एक बार शारदा वंदना भी करें। यह इस प्रकार है,

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  सहोदर ??

न माटी मिली, न पानी,

न पोषण ही हिस्से आया,

पत्थर चीरकर राह बनाई,

तब कहीं अंकुरित हो पाया,

पूर्वजन्म, पुनर्जन्म का मिथक

हमारा साझा यथार्थ निकला,

बोधिवृक्ष और मेरा प्रारब्ध

हरदम एक-सा निकला..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 121 – गीत – वरना पाप लगेगा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – वरना पाप लगेगा।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 121 – गीत – वरना पाप लगेगा…  ✍

मेरी बात मामलो मानिनि, वरना पाप लगेगा।

 

दुःख न पहुँचे प्राणिमात्र को

है संकल्प तुम्हारा

संत साध्वियों की गरिमा को

सहज सहज ही धारा

करना व्रत निर्वाह सदा वरना ताप दहेगा ।

 

आखिर मैं भी एक जीव हूँ

यह मेरा प्रयास है

परम शांति की मुझे जरूरत

जन्मों से तलाश है

शांतिप्रदा तुम शांतिदान दो, वरना शाप लगेगा ।

 

चलो छोड़ दो इन बातों को

बातें ये संसारी

इन बातों को केन्द्र मानकर

चलती दुनिया सारी

मेरा कहना भला भला है, आखिर भला लगेगा।

मेरी बात मान लो मानिनि, वरना पाप लगेगा।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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