हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (46 – 50) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

जब पुष्पक पर बैठ कर शस्त्र सहित चले राम।

यह आकाशवाणी हुई सहसा बिन विश्राम।।46।।

 

कहीं प्रजा में हो रहा कोई भ्रष्टाचार।

उसे ज्ञात कर हटाओ तब उतरेगा भार।।47।।

 

यह वाणी सुन खोजने करने दूर विकार।

पुष्पक से ही बढ़ चले राम सजग सविचार।।48।।

            

देखा तरू शाखा से कोई अधोमुखी तपवान।

अग्निधूम से रक्त वत नयन, व्यक्ति अनजान।।49।।

 

ज्ञात हुआ वह शूद्र था, शम्बूक जिसका नाम।

था तप का उद्देश्य भी पाना स्वर्गिक-धाम।।50।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 28 – सजल – कभी न भाते नेह के सपने… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “कभी न भाते नेह के सपने… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 28 – सजल – कभी न भाते नेह के सपने… 

समांत- अता

पदांत- –

मात्राभार- 16

समझाने पर नहीं समझता।

अपनी आँखें मूंदे रहता।।

 

अहंकार को पाले मन में,

लहू बहा कर ही वह हँसता।

 

नव प्रकाश से नफरत करता,

आँख बंद कर सपने बुनता।

 

सदियों से बेड़ी में जकड़ा,

यही रही उसकी दुर्बलता।

 

कभी न भाते नेह के सपने

हँसी खुशी निश्छल निर्मलता।

 

मिली पराजय सदा उसे ही,

छद्म वेश धर रहा सुलगता।

 

आतंकों का गढ़ कहलाता,

करता तहस-नहस मानवता।

 

गड़ी आँख में बड़ी किरकिरी,

उपचारों से नहीं सफलता।

 

अब अरिमर्दन की अभिलाषा,

हम सबकी है यही विह्वलता।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

30 अगस्त 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 120 – कविता – आन विराजी भूमंडल पर… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है नवरात्रि पर्व पर एक भावप्रवण रचना  “आन विराजी भूमंडल पर… ”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 120 ☆

☆ कविता – आन विराजी भूमंडल पर 

कहीं विराजी गुफा में, ऊंचा बना कहीं आसन।

भिन्न-भिन्न रूपों में मैया, अलग-अलग तेरा वासन।

 

करते सभी मनुहार मैया, रखते श्रद्धा सुमिरन ।

जिसकी जैसी मनोभावना, पूरा करती पावन।।

 

पान सुपारी ध्वजा नारियल, मन के दीए जलाते।

हाथ जोड़ विनती करके, कन्या भोज खिलाते।।

 

कोई चढ़ाता छत्र यहां, कोई सोने का ताज।

जिसकी जैसी इच्छा शक्ति, माता का करे श्रृंगार।।

 

लाल चुनर ओढ़े मैया, शेरों पर करे सवार।

अनुपम मां रुप निराला, शक्ति का अवतार।।

 

अष्ट भुजा शस्त्र लिए, गले मोतियों की माल।

कुंचित केश लट बिखराए, नेत्र भृकुटी है लाल।।

 

दुष्टों का करती संघार, जन जन की सुने पुकार।

भक्तों का दुख दूर करती, भरती मां भंडार।।

 

आन विराजी भूमंडल पर, नव दिन है नव रात।

घर-घर जोत जलाए, भक्तों को मिले सौगात।।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (41-45)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (41 – 45) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

 

कुशल पूँछने पर कहा सब कुछ कर विस्तार।

पर वर्जित वाल्मीकि से आश्रम का न विचार।।41।।

 

कभी तभी एक विप्र निज युवापुत्र की देह।

लेकर रोते एक दिन आया उनके गेह।।42।।

 

बोला वसुधे तुम पड़ी घोर विपदा में आज।

जो आई दशरथ से तुम भ्रष्ट राम के हाथ।।43।।

 

अति लज्जित चिंतित हुये सुन यह बातें राम।

क्योंकि जानता था न कोई पुत्र-मृत्यु का नाम।।44।।

 

दुखी पिता से क्षमा हित माँग विनत हो दान।

किया मृत्यु पर विजय हित ‘पुष्पक’ का आव्हान।।45।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 82 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 82 –  दोहे ✍

चुनरी ,चुनरी ,ओढ़नी, मर्यादित मधु छंद।

लज्जा का सौंदर्य है मानो याज्ञिक गंध।।

 

चट्टानों के बीच में ,पत्थर अटका एक।

प्रकृति सुंदरी ने किया, पाषाणी अभिषेक।।

 

मदन महल को मिटाने, तत्पर हैं इंसान।

किंतु उसे साधे हुए, ग्रेनाइट चट्टान।।

 

ध्यान लगाए कौन यह, बैठा है चुपचाप।

साधु नहीं यह शिला है, सही मानिए आप।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत #85 – “ये बेशक बात अलबत्ता…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – ये बेशक बात अलबत्ता…”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 85 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “ये बेशक बात अलबत्ता”|| ☆

मेरी यादों में आ कर

यों कैसे लौट जाती हो।

अधूरे प्रेम सी अब भी

कहीं पर टिमटिमाती हो।।

 

भले ही गुजरता जीवन

तुम्हारा हो अमीरी में ।

मै अब भी मस्त दिखता हूँ

कि अपनी इस फक़ीरी में।।

 

गुजरता मजे से अब भी हूँ

उस सूनी गली से क्यों-

जहाँ पर आज भी लगता

खडी तुम मुस्कराती हो ।।

 

कि  मेरे पावँ    अपने

आप मुड़  जाते है लेकिन क्यों?

समझ में आज तक आया नहीं

गुजरी कई बरसों

 

कि  तुम उस पेड़ सेअब भी

टिकी दिखती मुझे वैसी

कि जिसके तनेसेतुमखुद -ब-खुद

 हीलिपट जाती हो।

 

ये बेशक बात अलबत्ता

चुकी है पावँ  की ताकत।

बहुत मजबूर चलने से

थका है तन थकी हरकत।

 

लगे बस आँख में जिन्दा

तुम्हारी वही मूरत है।

कि जिसकीजोतअबभी

सब जगह परचमचमातीहै।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14-03-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 75 ☆ # पानी  # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# पानी #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 75 ☆

☆ # पानी # ☆ 

कैसी प्रखर धूप

तप रही है

व्याकुल हुई जवानी है

प्यासी प्यासी भटक रही है

ढूंढ रही वो पानी है

 

पानी तो अनमोल है

कूआं कितना गहरा

कितना खोल है

जो है प्यासा, उससे पूछो

पानी का क्या मोल है?

 

हर कोई ढूंढें ठंडा पानी

मटके पर है आई जवानी

मिटटी का कण कण

धन्य हो गया

इस पानी की

दुनिया है दिवानी

 

पशु, पक्षी संग

प्यासे तरूवर

चिड़िया, गोरैयां

दौड़े घर घर

सकोरा में भरा हो

अगर ठंडा जल

तो तृप्त हो जायेंगे

सारे थलचर

 

हिमखंड सारे

पिघल रहे हैं

बाढ में सब कुछ

निगल रहें हैं

कहीं बाढ़ तो

कहीं हैं सूखा

कुदरत के खेल

पल पल बदल रहे हैं

 

गांव में जिसने कुंआ खोदा

वो पानी से वंचित हैं

जिनके घर में कुंआ खोदा

वो पानी से सिंचित हैं

जात पात के भेदभाव में

मानवधर्म हुआ खंडित है

 

हमें जल की बर्बादी रोकना होगा

वर्षा का जल

धरती को सोखना होगा

पानी के लिए

ना हो जाए अगला महायुद्ध

भाई, नासमझों को टोकना होगा /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (36-40)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (36 – 40) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

शत्रुघाती और सुबाहु को मथुरा विदिशा राज।

दिया शत्रुध्न ने स्वतः बन्धु मिलन के काज।।36।।

 

वापस होते वे न गये वाल्मीकि मुनि पास।

जिससे आश्रम में न हो जप-तप में संत्रास।।37।।

 

पहुँचे जब साकेत वे सजे थे वन्दनवार।

लवणासुर पर विजय से जन थे मुदित अपार।।38।।

 

देखा राज सभा में थे राम सभासद साथ।

जो सीता को तज थे बस पृथ्वी नाथ उदास।।39।।

 

विजय प्राप्त कर भाई को करते विनत प्रणाम।

विष्णु से इन्द्र मिले थे ज्यों, त्यों प्रसन्न थे राम।।40।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 86 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 86 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 86) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 86 ?

☆☆☆☆☆

कुछ अधूरापन सा था

जो पूरा हुआ ही नहीं…

कोई था तो मेरा जो

कभी मेरा हुआ ही नहीं…!

 

Some incompleteness was there

which could never be fulfilled…

Though someone was mine only,

who could never become mine…!

☆☆☆☆☆ 

कैसे इक लफ़्ज़ में

बयाँ कर दूँ…

दिल को किस बात ने

उदास किया…

 

How can I express

in one word…

What made my

heart so sombre..!

☆☆☆☆☆

दिल आबाद कहाँ रह पाया

उसकी याद भुला देने से,

कमरा तक वीराँ हो जाता है

फ़क़त इक तस्वीर हटा देने से…

 

The heart could never be alive

again by erasing her memory,

Even the room gets deserted

just  by  removing  a  picture…!

☆☆☆☆☆

खुशनुमा  लोगों की सोहबत

इत्र की दुकान के मानिंद होती है,

ना भी कुछ  खरीदो तो भी

रूह तो महका ही देती है..!

 

Company of cheerful people

happens to be like perfume shop

Even if you don’t buy anything,

it makes the soul  fragrant..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 87 ☆ सुधियों के दोहे ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सुधियों के दोहे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 87 ☆ 

सुधियों के दोहे 

*

वसुधा माँ की गोद है, कहो शहर या गाँव.

सभी जगह पर धूप है, सभी जगह पर छाँव..

*

निकट-दूर हों जहाँ भी, अपने हों सानंद.

यही मनाएँ दैव से, झूमें गायें छंद..

*

जीवन का संबल बने, सुधियों का पाथेय.

जैसे राधा-नेह था, कान्हा भाग्य-विधेय..

*

तन हों दूर भले प्रभो!, मन हों कभी न दूर.

याद-गीत नित गा सके, साँसों का सन्तूर..

*

निकट रहे बेचैन थे, दूर हुए बेचैन.

तरस रहे तरसा रहे, ‘बोल अबोले नैन..

*

‘सलिल’ स्नेह को स्नेह का, मात्र स्नेह उपहार.

स्नेह करे संसार में, सदा स्नेह-व्यापार..

*

स्नेह तजा सिक्के चुने, बने स्वयं टकसाल.

खनक न हँसती-बोलती, अब क्यों करें मलाल?.

*

जहाँ राम तहँ अवध है, जहाँ आप तहँ ग्राम.

गैर न मानें किसी को, रिश्ते पाल अनाम..

*

अपने बनते गैर हैं, अगर न पायें ठौर.

आम न टिकते पेड़ पर, पेड़ न तजती बौर..

*

तनखा तन को खा रही, मन को बना गुलाम.

श्रम करता गम कम ‘सलिल’, औषध यह बेदाम.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१९-३-२०१०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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