हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पुनर्वास ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – पुनर्वास ?

(आगामी रविवार को लोकार्पित होनेवाले कवितासंग्रह क्रौंच से)

‘लेखक पुनर्वास मंडल’,

तख़्ती देख

मैं ठठाकर हँस पड़ा,

जो पहले कभी बस सका हो

तब तो पुनर्वास पर चर्चा हो!

©  संजय भारद्वाज

(1:15 दोपहर, 2.5.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नारी सौंदर्य ☆ डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल

☆  कविता – नारी सौंदर्य ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆  

चाँद को चिन्हित करती है, उसकी चांदनी।

सूरज को चिन्हित करती है दिन की रोशनी।।

 

नारी को चिन्हित करती है उसकी खूबसूरती ।

उसकी आँखों से झलकती है उसकी खूबसूरती।।

उसकी जुल्फों से महकती है उसकी खूबसूरती।

उसकी हर अदा में छिपी रहती है उसकी खूबसूरती।।

उसके आंचल से लहराती है उसकी खूबसूरती।

चाँद ——————————-

 

नारी का अपना स्वाभिमान भी है एक खूबसूरती।

समाज में कदम से कदम मिलाकर

आगे बढ़ने की ललक भी है एक खूबसूरती।।

नारी का शैक्षिक स्तर भी है एक खूबसूरती।

नारी का तेज होना भी है एक खूबसूरती।।

चाँद —————————–

 

धर्मत्व की भावना भी है एक खूबसूरती।

तेजस्व की भावना भी है एक खूबसूरती।।

नारी का दुर्गास्वरूप रूप भी है एक खूबसूरती।

नारी का अभिमान भी है एक खूबसूरती।।

चाँद को चिन्हित करती है उसकी चांदनी।

सूरज को चिन्हित करती है दिन की रोशनी।।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

जयपुर, राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (31 -35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (31-35) ॥ ☆

 

तब सुनंदा ने बढ़ इंदुमति को, नवीन पुर्णेन्दु सा नृप दिखाया

जो था सुदर्शन पर शोैर्य में शत्रु कोई भी जिसको न जीत पाया ॥ 31॥

 

ये वशाल वाहु प्रशस्त छाती सुगढ़ बदन हैं अवन्तिराजा

जिन्हें चढ़ा शान पैं सूर्य सी दीप्ति दें गढ़ा है शायद स्वयंविधाता ॥ 32॥

 

प्रयाण में जिसके अग्र अश्वों की धूल नृपों सिर बैठ जाती

जो चूड़ामणि की चमकती आभा को उनकी अक्सर मलिन बनाती ॥ 33॥

 

महाकाल चंद्रभान से जो असित निशा में भी उल्लास पाता

ज्यों चंद्रिका मयी रजनि में अपनी प्रियाओं के सग खुशी मनाता ॥ 34॥

 

इस तरूण नृप सँग क्या है वरोरू । विहार करने की है कोई इच्छा

उन उपवनों में जहाँ समीरण है शिप्रा जलकण से सिक्त बहता ॥ 35॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 5 – सजल – सीमा पर प्रहरी खड़े… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य में आज प्रस्तुत है सजल “सीमा पर प्रहरी खड़े…”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 5 – सजल – सीमा पर प्रहरी खड़े … ☆ 

सजल

समांत-आल

पदांत-हैं

मात्राभार- 13

 

बजा रहे कुछ गाल हैं।

नेता मालामाल हैं ।।

 

नोंच रहे है भ्रष्टाचारी, 

नेकनियति की खाल हैं।

 

खड़े विरोधी हैं सभी ,

बिछा रहे कुछ जाल हैं।

 

सीमा पर प्रहरी खड़े,

माँ भारत के लाल हैं।

 

खेत और खलिहान में,

कृषक बने कंकाल हैं।

 

नेक राह कठिन लगतीं,

खड़े-बड़े जंजाल हैं।

 

देवदूत बन आ खड़े ,

दुखती रग के ढाल हैं। 

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

22 मई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कवि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – कवि ?

विशेषज्ञ हूँ,

तीन भुजाएँ खींचता हूँ,

तीन कोण बनाता हूँ,

तब त्रिभुज नाम दे पाता हूँ..,

तुम भला

करते क्या हो कविवर?

विशेष कुछ नहीं,

बस, त्रिभुज में

चौथा कोण देख पाता हूँ..!

©  संजय भारद्वाज

(1:15 दोपहर, 2.5.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ क्रिकेट जुनून पर एक सिक्सर ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक कविता  क्रिकेट जुनून पर एक सिक्सर । )

☆ कविता – क्रिकेट जुनून पर एक सिक्सर ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆ 

[1] 

नमाजें पढ़ी गई

दुआओं के लिए हाथ उठे,

भजन-कीर्तन-आरती

हवनों के लिए हाथ बढ़े।

इ‌धर ईश्वर हैरान हैं

उधर खुदा परेशान हैं

ये जो हिन्दुस्तान है

वो जो पाकिस्तान है

इन दोनों के लिए

दोनों एक समान है।

 

[2] 

मैच पाकिस्तान से था

इसीलिए कल भारत से

एक भी आत्मा यमलोक नहीं आयीं

बेचारे यमराज उदास होकर

आपना सिर धुन रहे थे,

क्योंकि प्राण लेने के लिए

भेजे गए यमदूतों में से

कुछ टीवी देख रहे थे

कुछ कमेन्ट्री सुन.रहे थे।

 

[3] 

हमें इस बात का ग़म नहीं

कि हमारा उत्पादन,

हमारी माँग की तुलना में

बहुत कम है,

गम है तो बस

इतना गम है,

कि हमारे रनों की संख्या

विरोधी टीम ये

क्य़ों कम है ?

 

[4] 

हमारा दिल

तब नहीं दहलता

जब दूध के अभाव में

एक मासूम अपना दम

तोड़ देता है,

हमारा दिल

तब दहलता है

जब एक मासूम-सा कैच

एक विराट-सा खिलाड़ी

छोड़ देता है।

 

[5] 

हमने देखी है

हर हाथों की बाॅलिंग- बैटिंग

इसको या उसको भी

शिकवों का इलजाम न दो,

क्रिकेट एक नशा है

रूह से मजा ले लो

खेल को खेल ही रहने दो

कोई नाम न दो ।

 

[6]

भूख-गरीबी- बेकारी

कोरोना- पेट्रोल जैसे

हमारे इर्द-गिर्द

कई राष्ट्रीय गम है,

इन सबके बावजूद

मुस्कराते, चिल्लाते -ताली बजाते

टीवी पर मैच देखते

हम हैं,

हम क्या किसी

” मैन ऑफ दि मैच ” से

कम हैं !

 

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (26 -30)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (26-30) ॥ ☆

यथा पवन प्रेरित लहर मानस की राजहंसी को नये कमल तक

तथा सुनंदा ने इंदुमति को बढ़ाया आगे नये नृपति तक ॥ 26॥

 

तथा बताया यह अंगनृप हैं सुराइनाओं की कामना जो

विशेष अपने गजों से जिसने है पाई धरती पै इंद्रता को ॥ 27॥

 

अरिपत्नियों को दिये हैं जिसने मुक्ताओं सम केवल अश्रु बिखरे

विशाल वक्षस्थलों का जैसे हो मुक्तमाला बिना ही पहरे ॥ 28॥

 

स्वभ्ज्ञावतः भिन्न निवास कत्री सरस्वती भी हैं साथ जिसके –

सौदर्य माधुर्य औं योग्यता से बनो तृतीया त्वमेव उसके ॥ 29॥

 

यह सुन हटा दृष्टि वहाँ से आगे बढ़ो कहा तब कुमारिका ने

वर काम्य था, कन्या पारखी थी पर भिन्नता होती चाहना में ॥ 30॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की#61 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

? जीवेम शरदः शतम ?

? वरिष्ठतम साहित्यकार गुरुवर  डॉ. राजकुमार सुमित्र जी को उनके 83वें जन्मदिवस पर सादर प्रणाम एवं हार्दिक शुभकामनाएं ?

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की #61 –  दोहे 

शरतचंद्र की नायिका, पतिता, पुण्य  पवित्र ।

आँसू  जैसी निर्मला, निर्मला चारू चरित्र।।

 

कभी-कभी तो है दिया, आँसू  ने आनंद ।

धर्म सभा में हों, खड़े सहज ‘विवेकानंद’।।

 

आंखों में आंसू भरे, होरी खड़ा हताश ।

है धनिया के हृदय में, गोवर्धन की आस।।

 

देवदास आँसू  पिए, पारो करें ‘उपास’ ।

चंद्रमुखी की जिंदगी, किसकी करें तलाश।।

 

तेग बहादुर त्याग में, करें राष्ट्र अभिमान ।

आँसू सूखे आँख में, किए पुत्र बलिदान।।

 

बाउल गीतों ने दिया, मन को यों झकझोर ।

आँखें रोई रात भर, अश्रु निवेदित भोर।।

 

आँसू  की अठखेलियां, हमने देखी खूब ।

ऊब पत्थरों पर रही, अपनेपन की दूब।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 61 – नदी जैसे  बीच में ….. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “नदी जैसे  बीच में …..। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 61 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || नदी जैसे  बीच में ….. || ☆

पीपल पर तेरे

जैसी बिलकुल |

बोला करती है

छन्दा बुलबुल ||

 

नदी जैसे  बीच में

किनारों के |

मीठे इन शहद

के शरारों  के |

 

खोज रही अपने

इस होने को |

कोई इक टापू 

ऊँचा थुलथुल ||

 

गुमसुम सा घाम

रखे सिरहाने |

दूब इसी बात

का बुरा माने |

 

नदीनहीं छोड़ेगी

यों अपनी |

सांँसों में डूबती 

हुई कल कल ||

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-09-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मैली चाँदनी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – मैली चाँदनी ?

गैर घरों में

झाड़ू-पोछा करती,

अपने बच्चों की

फीस भरती,

परायी किचन में

चपाती सेकती,

अपनी रसोई चलाती,

जुआरी पति की

भद्दी गालियाँ सुनती,

शराबी मर्द के

लात-घूँसे खाती,

हर रात बलत्कृत होती,

फिर भी

करवा चौथ का व्रत करती!

काश चाँद औरत होता!

इन बदनसीब कालिमाओं

के जीवन में

थोड़ी चाँदनी होती…!

©  संजय भारद्वाज

( 2007 की करवाचौथ के दिन रचित, कवितासंग्रह ‘योंही’)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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