श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक भावप्रवण कविता “# जमीन #”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 48 ☆
☆ # जमीन # ☆
आकाश में उड़ने वाले
पक्षियों के घोंसले भी
जमीन पर ही होते हैं
हाथ ठेले पर, दिनभर
पसीना बहाने वालें मजदूर
रात को जमीन या
हाथ ठेले पर ही सोते हैं
मीठे मीठे स्वादिष्ट फल खाकर
उनके बीज या पौधे
जमीन में ही लगाते है
भूख मिटाने वाले अनाज
कृषि भूमि मे ही तो बोते हैं
अपनी जिंदगी विपन्नता में
जीने वाले लोग
अपनी गृहस्थी जमीन पर ही
जमाते हैं
समस्याओं से हारे हुए लोग
जमीन पर ही तो
अपना सर पटकते है
वर्षा की रिमझिम फुहारें
धरती के तपते तन-मन को
बरसात में भिगोते है
प्रेमी युगल माटी की
सौंधी सौंधी खुशबू में
मस्त होकर
एक दूसरे में समाते है
हम जमीन पर ही
जन्म लेते है
हम जमीन में ही
दफ़न होते हैं
यह जमीन हमारे
जीवन का आधार है
इसमें संसार की
सारी खुशियां अपार है
फिर भी हम ऊंचाईयों पर ही
क्यों रहना चाहते हैं?
क्या जमीन पर रहने वाले
हमसे कमतर होते है ?
यह जमीन ही अपने जड़ों की
असली पहचान है
गर पैरों से जमीन फिसली
तो वह भटका हुआ इंसान है
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈