श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 47 ☆
☆ दुनिया के दस्तूर ☆
दुनिया के दस्तूर भी अजीब हैं,
जिनके लिए लड़ता रहा ताउम्र, मुझे देखते ही नजर फेर लेते हैं ||
अब तो मुस्कराने पर भी घबराने लगा हूँ,
मेरी मुस्कराहट को लोग अब नजरअंदाज कर देते हैं ||
अब कुछ भी बोलने से घबराता हूँ,
मैं सच बोलता हूँ तो लोग मुझे ही झूठा कहने लगते हैं ||
अब जब मैं चुप रहता हूँ ,
तो मेरे चुप रहने को लोग बुझदिली कहते हैं ||
मैं अब हंसने से भी घबराता हूँ,
मेरे हंसी को लोग बनावटी हंसी कहने लगते हैं ||
अपना दुख साँझा करने से भी ड़रता हूँ,
लोग मेरे दुखों का मजाक उड़ा दिल दुखाने लगते हैं ||
अब तो ख़ुशी जाहिर करने से भी घबराता हूँ,
ड़रता हूँ लोग मेरी खुशियों का भी मजाक उड़ाने लगेंगे ||
देखना एक दिन यूँ ही चला जाऊंगा,
लोग मेरे जाने को भी मजाक समझ मेरी हंसी उड़ाने लगेंगे ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर