आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित एक रचना ‘सरस्वती वंदना अलंकार युक्त’। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 49 ☆
☆ सरस्वती वंदना अलंकार युक्त ☆
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वाग्देवि वागीश्वरी, वरदा वर दे विज्ञ
– वृत्यानुप्रास (आवृत्ति व्)
कोकिल कंठी स्वर सजे, गीत गा सके अज्ञ
-छेकानुप्रास (आवृत्ति क, स, ग)
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नित सूरज दैदीप्य हो, करता तव वंदन
– श्रुत्यनुप्रास (आवृत्ति दंतव्य न स द त)
ऊषा गाती-लुभाती, करती अभिनंदन
– अन्त्यानुप्रास (गाती-भाती)
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शुभदा सुखदा शांतिदा, कर मैया उपकार
– वैणसगाई (श, क)
हंसवाहिनी हो सदा, हँसकर हंससवार
– लाटानुप्रास (हंस)
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बार-बार हम सर नवा, करते जय-जयकार
– पुनरुक्तिप्रकाश (बार, जय)
जल से कर अभिषेक नत, नयन बहे जलधार
– यमक (जल = पानी, आँसू)
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मैया! नृप बनिया नहीं, खुश होते बिन भाव
– श्लेष (भाव = भक्ति, खुशामद, कीमत)
रमा-उमा विधि पूछतीं, हरि-शिव से न निभाव?
– वक्रोक्ति (विधि = तरीका, ब्रह्मा)
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कनक सुवर्ण सुसज्ज माँ, नतशिर करूँ प्रणाम
– पुनरुक्तवदाभास (कनक = सोना, सुवर्ण = अच्छे वर्णवाली)
मीनाक्षी! कमलांगिनी, शारद शारद नाम
– उपमा (मीनाक्षी! कमलांगिनी), – अनन्वय (शारद)
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सुमन सुमन मुख-चंद्र तव, मानो ‘सलिल’ चकोर
– रूपक (मुख-चंद्र), उत्प्रेक्षा (मान लेना)
शारद रमा-उमा सदृश, रहें दयालु विभोर
– व्यतिरेक (उपमेय को उपमान से अधिक बताया जाए)
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
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