हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३०॥ ☆

 

वेणीभूतप्रतनुसलिला ताम अतीतस्य सिन्धुः

पाण्डुच्चाया तटरुहतरुभ्रंशिभिर्जीर्णपर्णैः

सौभाग्यं ते सुभग विरहावस्थया व्यञ्जयन्ती

कार्श्यं येन त्यजति विधिना स त्वयैवोपपाद्यः॥१.३०॥

वेणि सृदश क्षीण सलिला वराकी

सुतनु पीत जिसका पके पत्र दल से

विरह में तुम्हारे , सुहागिन तुम्हारी

तजे क्षीणता दो उसे पूर जल से

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 34 ☆ माझीया प्रियाला प्रीत कळेना… ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 34 ☆ 

☆ माझीया प्रियाला प्रीत कळेना… ☆

 

माझीया प्रियाला प्रीत कळेना

मज तया वांचून रहावेना

काहीच काम करवेना…

 

माझीया प्रियाला प्रीत कळेना

व्याकुळ मन, भान हरपले

त्याने माझी चित्त चोरले…

 

माझीया प्रियाला प्रीत कळेना

दिवस माझा, जाता जाईना

आता काहीच, बोलवेना…

 

माझीया प्रियाला प्रीत कळेना

शब्दाला आकार येईना

डोळ्यातील नीर, थांबेना…

 

माझीया प्रियाला प्रीत कळेना

अबोल भावना, काळ क्षेपवेना

अन्यत्र लक्ष, कसेच लागेना…

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 38 ☆ नवगीत – याद की फसलें कहें…. ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘नवगीत – याद की फसलें कहें…’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 39 ☆ 

☆ नवगीत – याद की फसलें कहें…. ☆ 

अनेक वर्णा पत्तियाँ हैं

शाख पर तो क्या हुआ?

अपर्णा तो है नहीं अमराई

सुख से सोइये

बज रहा चलभाष सुनिए

काम अपना छोड़कर

पत्र आते ही कहाँ जो रखें

उनको मोड़कर

किताबों में गुलाबों की

पंखुड़ी मिलती नहीं

याद की फसलें कहें, किस नदी

तट पर बोइये?

सैंकड़ों शुभकामनायें

मिल रही हैं चैट पर

सिमट सब नाते गए हैं

आजकल अब नैट पर

ज़िंदगी के पृष्ठ पर कर

बंदगी जो मीत हैं

पड़ गये यदि सामने तो

चीन्ह पहचाने नहीं

चैन मन का, बचा रखिए

भीड़ में मत खोइए

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 38 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 38 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 38) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 38☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

उड़ने दो मिट्टी को फ़लक तक

आखिर  कहाँ  तलक  उड़ेगी,

हवाओं ने जब साथ छोड़ा तो,

आखिर जमीन पर ही गिरेगी !!

 

Let the soil fly high in the sky

How  far will  it  keep  flying,

When  the  wind  deserts  it,

It’ll fall  on  the ground  only!!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

उसने  भी  हँस  के  यूँही

आज पूछ  लिया मिज़ाज

लगता है  कि  उम्र भर के

रंज-ओ-ग़म याद आ गए हैं…

 

Today,  laughingly, she  just

inquired about my well-being

Felt, as if surfaced again are

the age old grief and sorrow

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

बस इतनी  सी बात

समुंदर को खल गई

एक कागज़ की नाव

मुझपे कैसे चल गई…

 

The sea just could

not tolerate it that

how could a paper

boat  ever sail on it…

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

अब  उस  मुकाम  पे आ

पहुँची  है  जिंदगी  जहाँ,

चीजें तो बहुत सी पसन्द हैं

मगर चाहिए कुछ भी नही…

 

Now the life has reached

that point where many

likeable things are there

but nothing is required…

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – कलम ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के जन्मदिवस पर एक भावप्रवण कविता “कलम। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  कलम  ☆

दबों कुचलों का हथियार ‌ये बन जाती है।

इसकी स्याही से इतिहास लिखी जाती है।

जब ये उतर आये अपनी हस्ती पे,

सारी दुनिया को नई राह दिखा जाती है।

मुहब्बत अमन के संदेश कलम लिखती है,

ज़ालिम को फांसी का आदेश कलम‌ लिखती है।

गलत‌ काम पे‌ नकेल कलम कसती है,

जोर जुल्म का‌ विरोध कलम‌ करती है।

कलम खुशियों के गीत लिखती है,

कलम ग़म के‌ संदेश लिखती है।

कभी गीत, गजल कलम लिखती है,

कविता, कहानी ये कलम लिखती है।

आग‌ और अंगार कलम लिखती है,

कभी ‌मासूम खिदमतगार दिखती है।

कौमों तंजीमों के अल्फ़ाज़  बदल डाले हैं,

इस कलम ने तख्तोताज ‌बदल डाले हैं।

कलम से गलत लोग डरा करते हैं,

इसके सिपाही तो फर्जो पे मरा करते हैं।

वो जंगे मैदां में पलट के प्रहार करते हैं,

बिना शमसीर के कलमों से वार करते हैं।

कलम जब तीर बन कर गुजर जाये,

हदों को पार कर जिगर में उतर जाये।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२९॥ ☆

 

वीचिक्षोभस्तनितविहगश्रेणिकाञ्चीगुणायाः

संसर्पन्त्याः स्खलितसुभगं दर्शितावर्तनाभः

निर्विन्ध्यायाः पथि भव रसाभ्यन्तरः संनिपत्य

स्त्रीणाम आद्यं प्रणयवचनं विभ्रमो हि प्रियेषु॥१.२९॥

विहग मेखला उर्मिताड़ित क्वणित नाभि

आवर्त लख मंदगति गामिनी के

हो एक रस , निर्विन्ध्या नदी मार्ग

में याद रख भावक्रम कामिनी के

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 26 ☆ हिंसा से कभी न होती कोई समस्या दूर ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण कविता  “हिंसा से कभी न होती कोई समस्या दूर।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 26 ☆

☆ हिंसा से कभी न होती कोई समस्या दूर ☆

 

मन में कुछ है, मुंह में कुछ है, कैसे बात  बने ?

समय गुजरता जा रहा है और नाहक तने तने ।

 

हल न समस्या का निकला कोई आपस में लड़ते

नये नए मुद्दे और उलझते जाते दिन बढते

 

भिन्न बहाने करते प्रस्तुत, मन में है दुर्भाव

कई कारणों से बढता आया द्वेष दुराव ।

 

हिंसा  से कब मिला कभी भी कोई सार्थक हल

और समस्या बढती जाती नई-नई प्रतिपल

 

हल पाने होती जब भी है मन में में सच्ची चाह

आपस में सद्भाव समन्वय से मिल जाती राह

 

मन में मैल जहाँ भी होता, होती ही नित भूल

सोच अगर सीधी सच्ची हो तो खिलते हैं नित फूल

 

हिंसा से हुई कभी न होती कोई समस्या दूर

जहां अहिंसक भाव है मन में वहीं शान्ति भरपूर

 

मन को स्वतः  टटोलो अपना और करो वह बात

देश के निर्दोषी लोगों को हो न  कोई व्याघात

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पराक्रम दिवस विशेष – आजाद हिन्द फ़ौज के सिपाही ☆ श्री आर के रस्तोगी

श्री आर के रस्तोगी

Subhas Chandra Bose NRB.jpg

☆ पराक्रम दिवस विशेष – आजाद हिन्द फ़ौज के सिपाही ☆ श्री आर के रस्तोगी☆ 

तुम मुझको दो खून अपना ,

मै तुमको दे दूंगा आजादी |

यही सुनकर देश वासियों ने,

अपनी जान की बाजी लगा दी ||

 

यही सुभाष का नारा था ,

जिसने धूम मच दी थी |

इसी विश्वास के कारण ही

आजाद हिन्द फ़ौज बना दी थी ||

 

याद करो 23 जनवरी 1897 को

जब सुभाष कटक में जन्मे थे |

स्वर इन्कलाब के नारों से वे ,

भारत के जन जन में जन्मे थे ||

 

वे अमर अभी तक विश्व में,

जिन को मृत्यु ने पाला था |

आजाद हिन्द फ़ौज के सिपाही थे ,

सच्चा हिन्दुस्तानी वाला था ||

 

कहना उनका था वे आगे आये ,

जिसमे स्वदेश का खून बहता हो |

वही आगे आये जो अपने को ,

भारतवासी कहने का हक रखता हो ||

 

वह आगे आये जो इस पर ,

अपने खून से हस्ताक्षर करता हो |

मै कफ़न बढाता हूँ वह आये आगे,

जो इसको हंसकर आगे लेता हो ||

 

फिर उस रक्त की स्याही में ,

वे अपनी कलम डुबाते थे |

आजादी के इस परवाने पर ,

अपने हस्ताक्षर करते जाते थे ||

 

© श्री आर के रस्तोगी

गुरुग्राम

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२८॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२८॥ ☆

 

वक्रः पन्था यदपि भवतः प्रस्थितस्योत्तराशां

सौधोत्सङ्गप्रणयविमुखो मा स्म भूर उज्जयिन्याः

विद्युद्दामस्फुरितचक्रितैस तत्र पौराङ्गनानां

लोलापाङ्गैर यदि न रमसे लोचनैर वञ्चितो ऽसि॥१.२८॥

यदपि वक्र पथ , हे पथिक उत्तरा के

न उज्जैन उत्संग तुम भूल जाना

विद्युत चकित चारु चंचल सुनयना

मिल रमणियों से मिलन लाभ पाना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ बंधन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ बंधन ☆

खुला आकाश

रास्तों की आवाज़,

बहता समीर

गाता कबीर,

सब कुछ मौजूद है

चलने के लिए…,

ठिठके पैर

खुद से बैर,

निढाल तन

ठहरा मन…,

हर बार साँकल

पिंजरा या क़ैद,

ज़रूरी नहीं होते

बाँधे रखने के लिए..!

 

©  संजय भारद्वाज

(रात्रि 11.57 बजे, 5.7. 2015)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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