हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१७॥ ☆

संतप्तानां त्वमसि शरणं तत पयोद प्रियायाः

संदेशं मे हर धनपतिक्रोधविश्लेषितस्य

गन्तव्या ते वसतिर अलका नाम यक्षेश्वराणां

बाह्योद्यानस्थितहरशिरश्चन्द्रिकाधौतहर्म्या॥१.७॥

 

मैं , धनपति के श्राप से दूर प्रिय से

है अलकावती नाम नगरी हमारी

यक्षेश्वरों की, विशद चंद्रिका धौत

प्रासाद,  है बन्धु गम्या तुम्हारी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 75 ☆ कविता – माहिया ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवणकविता “माहिया। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 75 – साहित्य निकुंज ☆

☆ माहिया ☆

नूतन का सबेरा है

हटता आँखों से

मनका अँधेरा है।

 

यादें तो सुहानी है

जाओ अब तुम भी

बीते की रवानी है।

 

करना है अब तुमको

साल के आने का

स्वागत  अब हम सबको

 

मुझे याद दिला जाना

दिल है तुझको दिया

मुझको न बिसराना।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 65 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 65 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

संज्ञाएँ  चर्चित हुई, सर्वनाम बदनाम

पनपे प्रेम समास से, तब होते शुभ काम

 

नव पीढ़ी की आजकल, बदल रही है सोच

प्रेम प्रदर्शित सड़क पर, करते बिन संकोच

 

मात-पिता अब खोजते, प्रेम और सदभाव

पर बच्चों में गुम हुआ, सेवा भाव लगाव

 

समय कभी रुकता नहीं, तेज समय की चाल

मान समय का कीजिए, तब सुधरेंगे हाल

 

सुरसा सा दिखने लगा, महँगाई का रूप

लगाम भी न लगा सके, कैसे शासक भूप

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कैलेण्डर ☆ सुश्री सुलक्षणा मिश्रा

सुश्री सुलक्षणा मिश्रा

☆ कैलेंडर ☆

आज नज़र जो मेरी

दीवार पर लटके कैलेंडर पर गयी।

एक पूरा साल

मेरे हाथों से फिसलता नज़र आया।

एक सैलाब, जो दबा था

दिल के कोने में कहीं

मिला जुला सा भाव रहा।

बहुत कुछ मिल भी गया

बहुत कुछ का अभाव भी रहा।

समय का चक्र तो

चलता ही रहेगाअनवरत।

एक तरफ एक साल की

हो रही विदाई

दूसरी तरफ एक नए साल का

करना है स्वागत।

अधूरे ख्वाबों में ज़गी

फ़िर से एक नयी आस है।

नए साल में बहुत कुछ,

कर गुजरने की प्यास है।

बहुत आपाधापी रही बीते साल में

नए साल में कुछ सुकून की तलाश है।

 

© सुश्री सुलक्षणा मिश्रा 

संपर्क 5/241, विराम खंड, गोमतीनगर, लखनऊ – 226010 ( उप्र)

मो -9984634777

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कैलेंडर बदल गया है ☆ सुश्री सरिता त्रिपाठी

सुश्री सरिता त्रिपाठी

☆ कैलेंडर बदल गया है  ☆  

कैलेंडर बदल गया है
कैलेंडर बदल रहा है अब
कल था तीन सौ पैंसठवा दिन
दो हजार बीस का
आज से आ गया दो हजार इक्कीस
आज होगा पहला दिन इक्कीस का
पर नया क्या है कुछ दिखाई नहीं देता
जीवन है चलता रहेगा निरन्तर
यह सतत् चलने वाली क्रिया है
दिन गुजरेगा माह फिर साल
पर हर दिन जिओ खुशहाल
मनाओ नया साल
न हो कोई धरा पे बेहाल
मानव रूपी चेतना को जाग्रत कर
उस ईश्वर पर भरोसा कर
बढ़ो निरन्तर परस्पर इस जीवन में
इस अनमोल योनि को समझो
और इसका सदुपयोग करो
जब ग्रहों का बदलाव हो
जब अन्नों का उत्पाद हो
जब उर्जा का प्रसार हो
जब भानु उदयमान हो
करो नमस्कार ईष्ट को
समर्पण सर्वप्रथम सृष्टि को
जिससे जीवन गतिमान हो
ऐसा नववर्ष हो ऐसा नया साल हो
दुनिया में फैली खुशिया अपार हो

© सरिता त्रिपाठी

जानकीपुरम,  लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१६॥ ☆

जातं वंशे भुवनविदिते पुष्करावर्तकानां

जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोनः

तेनार्थित्वं त्वयि विधिवशाद दूरबन्धुर गतो ऽहं

याच्ञा मोघा वरम अधिगुणे नाधमे लब्धकामा॥१.६॥

कहा पुष्करावर्त के वंश में जात ,

सुरपति सुसेवक मनोवेशधारी

मैं दुर्भाग्यवश दूर प्रिय से पड़ा हूं

हो तुम श्रेष्ठ इससे है विनती हमारी

संतप्त जन के हे आश्रय प्रदाता

जलद! मम प्रिया को संदेशा पठाना

भली है गुणी से विफल याचना पर

बुरी नीच से कामना पूर्ति पाना

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ आता साल / जाता साल ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ आता साल / जाता साल  ☆

आज 2020 विदा ले रहा है। 2021 दहलीज़ पर खड़ा है। इस परिप्रेक्ष्य में ‘जाता साल’ व ‘आता साल’ पर कुछ वर्ष पहले वर्ष पूर्व लिखी दो रचनाएँ साझा कर रहा हूँ। आशा है कि इन्हें पाठकों से अनुमोदन प्राप्त होगा।

[1]

जाता साल

करीब पचास साल पहले

तुम्हारा एक पूर्वज

मुझे यहाँ लाया था,

फिर-

बरस बीतते गए

कुछ बचपन के

कुछ अल्हड़पन के

कुछ गुमानी के

कुछ गुमनामी के,

कुछ में सुनी कहानियाँ

कुछ में सुनाई कहानियाँ

कुछ में लिखी डायरियाँ

कुछ में फाड़ीं डायरियाँ,

कुछ सपनों वाले

कुछ अपनों वाले

कुछ हकीकत वाले

कुछ बेगानों वाले,

कुछ दुनियावी सवालों के

जवाब उतारते

कुछ तज़ुर्बे को

अल्फाज़ में ढालते,

साल-दर-साल

कभी हिम्मत, कभी हौसला

और हमेशा दिन खत्म होते गए

कैलेंडर के पन्ने उलटते और

फड़फड़ाते गए………

लो,

तुम्हारे भी जाने का वक्त आ गया

पंख फड़फड़ाने का वक्त आ गया

पर रुको, सुनो-

जब भी बीता

एक दिन, एक घंटा या एक पल

तुम्हारा मुझ पर ये उपकार हुआ

मैं पहिले से ज़ियादा त़ज़ुर्बेकार हुआ,

समझ चुका हूँ

भ्रमण नहीं है

परिभ्रमण नहीं है

जीवन परिक्रमण है

सो-

चोले बदलते जाते हैं

नए किस्से गढ़ते जाते हैं,

पड़ाव आते-जाते हैं

कैलेंडर हो या जीवन

बस चलते जाते हैं।

[2] 

आता साल

शायद कुछ साल

या कुछ महीने

या कुछ दिन

या….पता नहीं;

पर निश्चय ही एक दिन,

तुम्हारा कोई अनुज आएगा

यहाँ से मुझे ले जाना चाहेगा,

तब तुम नहीं

मैं फड़फड़ाऊँगा

अपने जीर्ण-शीर्ण

अतीत पर इतराऊँगा

शायद नहीं जाना चाहूँ

पर रुक नहीं पाऊँगा,

जानता हूँ-

चला जाऊँगा तब भी

कैलेंडर जन्मेंगे-बनेंगे

सजेंगे-रँगेंगे

रीतेंगे-बीतेंगे

पर-

सुना होगा तुमने कभी

इस साल 14, 24, 28,

30 या 60 साल पुराना

कैलेंडर लौट आया है

बस, कुछ इसी तरह

मैं भी लौट आऊँगा

नए रूप में,

नई जिजीविषा के साथ,

समझ चुका हूँ-

भ्रमण नहीं है

परिभ्रमण नहीं है

जीवन परिक्रमण है

सो-

चोले बदलते जाते हैं

नए किस्से गढ़ते जाते हैं,

पड़ाव आते-जाते हैं

कैलेंडर हो या जीवन

बस चलते जाते हैं।

 

©  संजय भारद्वाज

17 जनवरी 2020 , दोपहर 3:52 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 72 – हाइबन-कांच का पुल ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “ हाइबन-कांच का पुल। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 72☆

☆  हाइबन-कांच का पुल ☆

बैमारगिरी पहाड़ के बीच 400 मीटर दूर दो पहाड़ी चोटियां स्थित है।  ये पहाड़ी चोटियां जमीन से 200 फीट ऊंची है । इसी चोटी पर मानव निर्मित पारदर्शी पैदल पुल बनाया जा रहा है । यह पुल जिसे अंग्रेजी में ग्लास स्काईवॉक कहते हैं । जिसका मतलब है आकाश में कांच के पैदल सेतू पर घूमना । उसी का एहसास देता दुनिया का पहला आकाशीय पैदल पथ चीन के हांग झौऊ प्रांत में बनाया गया है। दूसरा पुल भारत के सिक्किम में बनाया गया है। तीसरा और बिहार का पहला एकमात्र आकाशीय पैदल पथ 19 करोड़ की लागत से राजगीर की बैमारगिरी पहाड़ी की चोटी पर बनाया जा रहा है।

इस पुल का 80% कार्य पूर्ण हो चुका है। मार्च 21 में 85 फुट लंबा और 5 फुट चौड़ा पुल दर्शकों के लिए खोल दिया जाएगा । यदि कमजोर दिल वाला कोई व्यक्ति इस पुल के ऊपर से नीचे की ओर, 200 फिट की गहरी खाई को देखे तो तुरंत बेहोश हो सकता है । कारण, वह स्वयं को आकाश में लटका हुआ पाएगा। जिसे महसूस कर के हार्ट अटैक का शिकार हो सकता है। इस कारण इस आकाशीय पैदल पुल पर जाने के लिए मजबूत दिल वालों को ही प्रवेश दिया जाएगा।

 

तपती खाई~

ग्लास ब्रिज के बीच

गिरी युवती।

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

23-12-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 55 ☆ परमपिता से चाह ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं   “परमपिता से चाह.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 55 ☆

☆ परमपिता से चाह ☆ 

निष्काम भक्त

कहाँ है माँगता

धन-दौलत

यश-ऐश्वर्य

देह से देह को

भोगने के लिए

कंचन-कानन मृगनयनियाँ

परमपिता से

 

वह है माँगता

आत्मा की पावनता

निश्छलता

दयालुता

सन्मार्ग दिखाने की चाह

उठते-बैठते

खाते-पीते उसका सुमिरन

प्रदीप्त ज्योतित किरणें

जो मिटा सकें

अज्ञान अँधेरा सदियों का

 

न भटक जाए वह

कहीं अंधकार में

झूठे प्यार में

भौतिक संसार में

 

लेकिन मैं उससे

रहा माँगता

एक प्रबल कामना

हो अंतिम विदाई

सुखद

लोग करें आश्चर्य

अभी तो हँस-बोल रहा था

बिना कष्ट दिए

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 76 – जीवन यह है….. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  की  सकारात्मक एवं संवेदनशील रचनाएँ  हमें इस भागदौड़ भरे जीवन में संजीवनी प्रदान करती हैं। 

कागों की बस्ती में

अब भी, हैं बचे हुए

चिड़ियों के घोंसले,

चहचहाहटें इनकी

उम्मीदें देती है

देती है जीने के हौसले।

 – श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(ई-अभिव्यक्ति परिवार आपके शीघ्र स्वास्थय लाभ की कामना करता है )

☆  तन्मय साहित्य  #  76 ☆ जीवन यह है…. ☆ 

आप सब की मंगल कामनाओं, परिजनों की हंसते-मुस्कुराते अथक सेवा, चिकित्सकों द्वारा सूझबूझ पूर्ण उपचार और परमपिता परमात्मा की कृपा से 10 दिन अस्पताल के ICU में रहने के बाद घर पर आए आज 20 दिन हो गए हैं,  बहुत धीमे सुधार के साथ एक माह बाद भी अभी पूर्णरूप से बेडरेस्ट पर ही हूँ। लंबा समय लगेगा पर विश्वास है ठीक हो जाऊंगा। आज सायं दूध पीते हुए मन में कुछ भाव आये, प्रस्तुत है –

जीवन यह है,

सुखद समुज्ज्वल दूध

दूध में जब खटास का

दुःख जरा सा भी मिल जाए

बदले दही रूप में

लक्षण नव दिखलाए

मंथन से मक्खन, मक्खन से

ऊर्जादायक घी बन जाए।

 

जीवन में भी ऊंच-नीच

नैराश्य-उमंग और

सुख-दुख आते रहते हैं,

ऋतुएँ सर्दी-गर्मी या बरसात

सभी का है महत्व

जो, विचलित हुए बिना

इनके सुख-दुख सहते है

मनुज वही अपने जीवन में

खुश रहते हैं।।

 

सुरेश तन्मय..

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

22 दिसंबर 2020, 11.43

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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