हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सामाजिक चेतना – #64 ☆ भगवद्गीता अति रमणम् ☆ सुश्री निशा नंदिनी भारतीय

सुश्री निशा नंदिनी भारतीय 

(सुदूर उत्तर -पूर्व  भारत की प्रख्यात  लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना की अगली कड़ी में प्रस्तुत है एक गीत भगवद्गीता अति रमणम्।आप प्रत्येक सोमवार सुश्री  निशा नंदिनी  जी के साहित्य से रूबरू हो सकते हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना  #64 ☆

☆ भगवद्गीता अति रमणम् ☆

 

मंदम् मंदम् अधरम् मंदम्

स्मित पराग सुवासित मंदम्।

सरल सुबोधा ललिता रमणम्

भगवद्गीता अति रमणम्।

 

विरचित व्यासा लिखिता गणेश:

अमृतवाणी अति मधुरम्।

सरल सुबोधा ललिता रमणम्

भगवद्गीता अति रमणम्।

 

मनसा सततम् स्मरणीयम्

वचसा सततम् वदनीयम्

सरल सुबोधा ललिता रमणम्

भगवद्गीता अति रमणम्।

 

अतीव सरला मधुर मंजुला

अमृतवाणी अति मधुरम्

सरल सुबोधा ललिता रमणम्

भगवद्गीता अति रमणम्।

 

विश्व वंदिता भगवद्गीता

नीति रीति भवतु साधकम्।

सरल सुबोधा ललिता रमणम्

भगवद्गीता अति रमणम्।

 

सगुणाकारम् अगुणाकारम्

भक्ति ज्ञान कर्म विज्ञानम्।

सरल सुबोधा ललिता रमणम्

भगवद्गीता अति रमणम्।

 

भजंति एते भजंतु देवम्

करतल फलमिव कुर्वाणम्

सरल सुबोधा ललिता रमणम्

भगवद्गीता अति रमणम्।

 

© निशा नंदिनी भारतीय 

तिनसुकिया, असम

9435533394

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 14 – गुमशुदा कोई …. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “गुमशुदा  कोई ….। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 14 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ गुमशुदा  कोई ….☆

जून की

पीली महकती

यह सुबह

 

गंध से भीगे

करोंदों की

उमर पर

तरस खाती

सी हवा लगती

मगर पर

 

उभर आती

है हरी

गीली सतह

 

बाँह पर रखे

हुये सिर

पड़ी कल से

ऊँघती है

स्मृति में जो

अतल -तल सी

 

स्वप्न में

कोई चुनिंदा

सी बजह

 

इधर करवट

लिये धूमिल

है निबौरी

पान की मुँह

में दबाये

सी गिलौरी

 

गुमशुदा कोई

गिलहरी

की तरह

 

© राघवेन्द्र तिवारी

22-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ फेरा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ फेरा 

अथाह अंधेरा

एकाएक प्रदीप्त उजाला

मानो हजारों

लट्टू चस गए हों,

नवजात का आना

रोना-मचलना

थपकियों से बहलना,

शनै:-शनै:

भाषा समझना,

तुतलाना

बातें मनवाना

हठी होते जाना,

उच्चारण में

आती प्रवीणता,

शब्द समझकर

उन्हें जीने की लीनता,

चरैवेति-चरैवेति…,

यात्रा का

चरम आना

आदमी का हठी

होते जाना,

येन-केन प्रकारेण

अपनी बातें मनवाना,

शब्दों पर पकड़

खोते जाना,

प्रवीण रहा जो कभी

अब उसका तुतलाना,

रोना-मचलना

किसी तरह

न बहलना,

वर्तमान भूलना

पर बचपन उगलना,

एकाएक वैसा ही

प्रदीप्त उजाला

मानो हजारों

लट्टू चस गए हों

फिर अथाह अंधेरा..,

जीवन को फेरा

यों ही नहीं

कहा गया मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 10:10 बजे, शनिवार, 26.5.18

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 18 ☆ विचार ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “विचार”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 18 ☆ 

☆ विचार ☆

विचार से बना पूरा संसार, विचार ही जीवन का आधार।

विचार ही हर पतझड़ में बहार, विचार ही हर यौवन का श्रृंगार।

विचार ही तूफ़ान में मंझधार, विचार ही करते हैं चमत्कार।

विचार से बना पूरा संसार, विचार ही जीवन का आधार।

विचार मिटाते हैं ‌‍अन्धकार।

विचार जलाते हैं, ज्ञान की ज्योति अपारI

 

विचार से बना पूरा संसार, विचार ही जीवन का आधार।

विचार करते हैं इस जीवन सागर से पार।

विचार मिटाते हैं हमारे जीवन में विकार।

विचार हर संगीत का राग मल्हार।

विचार हर मूर्ति का आकार।

विचार देता है, अँगुलीमाल को वाल्मीकि सा संस्कार ।

 

विचार से बना पूरा संसार, विचार ही जीवन का आधार।

विचार दिलाता है हर लड़की को लक्ष्मी बाई का साहस।

विचार कराता है लाल बहादुर से नदियाँ पार।

विचार कराता है गाँधी से बापू तक का सफर।

विचार से बना पूरा संसार, विचार ही जीवन का आधार।

विचार कितने ही इतिहास बदल चुका है।

 

विचार से बना पूरा संसार, विचार ही जीवन का आधार।

विचार कितने ही पहाड़ हिला चुका है।

विचार कितने ही पत्थरों से आग निकाल चुका है।

विचार कितने लोगो को चाँद पर भेज चुका है।

विचार कितनी पीढ़ियाँ बदल चुका है और कितनी बदलेगा।

विचार से बना पूरा संसार, विचार ही जीवन का आधार।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #7 ☆ तर्पण ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक रचना  “तर्पण”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #7 ☆ 

☆ तर्पण ☆ 

पति-पत्नी ने पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन प्रण किया

दोनों ने सामूहिक निर्णय लिया

कि पुरे विधि-विधान से

पूजा करेंगे

पूर्वजों को अन्न खिलाने

के बाद ही

मुंह में अन्न का दाना धरेंगे।

स्वर्गीय माता पिता के

छाया चित्र को माल्यार्पण किया

पंडित से पूजा करवाकर

उसे दान दिया

पंच पकवानो भरी थाली

रखी छत पर जाकर

आसमान से दो काले

कौए बैठे आकर

कौओं ने अन्न के दाने को

नहीं छुआ।

दोनों पति-पत्नी

अन्न ग्रहण करने की

मांगने लगे दुआ ।

लंबे समय के बाद भी स्थिती में

कुछ परिवर्तन ना हुआ।

कौए अड़े हुए थे

उन्होंने अन्न को नहीं छुआ।

पत्नी भूख से व्याकुल होकर बोली-

जीते जी तुम्हारे माता-पिता ने

मुझे चैन से जीने नहीं दिया

अब मरकर भी तड़पा रहे हैं।

सुबह से मैंने पानी तक नहीं पिया

तभी कौए ने मुंह खोला

कांव कांव करते हुए बोला

हम जीते जी

अन्न के दाने दाने को तरसे हैं

मरने बाद हम पर

यह पंच पकवान क्यों बरसे हैं।

दोनों आकाश में उड़ते उड़ते बोले

बेटा, जीते जी हमको कभी

तृप्ति नहीं मिली है

तो अब क्या मिलेगी ?

तुम अब कितना भी प्रपंच करलो

अब तुम्हारे हाथों

हमें कभी मुक्ति नहीं मिलेगी ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ फिर चुप्पी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ फिर चुप्पी

 

कर्कश कोलाहल

जम चुका चुप्पी में,

चुप्पी फूट रही है

कर्णकटुता के साथ,

कोई विज्ञान को बताओ,

केवल पानी और बर्फ ही

‘इंट्रा ट्रांसफॉर्मेशन’ का

उदाहरण नहीं होते!

 

©  संजय भारद्वाज 

रात्रि 10:42 बजे, 3.9.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 19 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 19 सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 19 ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

लोग  तलाशते  हैं  कि

कोई  तो  फिकरमंद  हो,

वरना कौन ठीक होता है

यूँ ही सिर्फ हाल पूछने से…

 

People  keep   searching  for    

someone who is worried, but then

How could  anyone ever get  fine

Just by inquiring his well-being!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

आये  हो  जो  आँखों  में

तो  कुछ  देर  ठहर जाओ,

एक  उम्र  गुजर  जाती है

यूँही एक ख्वाब सजाने में…

Now that you’ve come in eyes

then, stay there for a while,

An  epoch  passes  by  in

Realising  such  a   dream…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

मेंरे जुनूँ का नतीजा

ज़रूर निकलेगा

इसी सियाह समुंदर से

नूर निकलेगा…

 

Result of my passion

Will definitely come out

From the same dark sea only

The effulgence shall emerge…

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 क्यूँ  कर  आरजू  करूँ  कि

तुम  मुझे  चाहोगे  उम्र  भर

इतना ही ऐतबार काफी है कि

ताउम्र भूल नहीं पाओगे तुम मुझे

 

Why  should  I  desire that  you

must love me throughout the life

The trust that you won’t be able

to forget me lifelong, is enough

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 18 ☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  मुक्तिका )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 18 ☆ 

☆ मुक्तिका  ☆ 

 

सलिल बूँद मिल स्वाति से, बन जाती अनमोल

तृषा पपीहे की बुझे, जब टेरे बिन मोल

 

मन मुकुलित ममतामयी!, हो दो यह वरदान

सलिल न पंकिल हो तनिक, बहे मधुरता घोल

 

मनुज छोर की खोज में, भटक रहा दिन-रैन

कौन बताये है नहीं, छोर जगत है गोल

 

रहे शिष्य की छाँह से, शिक्षक हरदम दूर

गुरु कह गुरुघंटाल बन, परखें स्वारथ तोल

 

झूम बजाएँ नाचिए, किंतु न दीजै फाड़

अटल सत्य हर ढोल में, रही हमेशा पोल

 

सगा न कोई किसी का, सब मतलब के मीत

सरस सत्य हँस कह सलिल, अप्रिय सत्य मत बोल

 

अगर मधुरता अत्यधिक, तब रह सजग-सतर्क

छिप अमृत की आड़ में, गरल न करे किलोल

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

३-४-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शिक्षक दिवस विशेष – प्रणाम गुरू जी ! ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा शिक्षक दिवस पर रचित कविता प्रणाम गुरू जी ! )

☆ शिक्षक दिवस विशेष  – प्रणाम गुरू जी ! ☆

 

साक्षरता सरगम जीवन की

अ आ इ ई ज्ञान कराया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

धन ऋण गुणा भाग जीवन के

भले बुरे का भान कराया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

शिक्षा बिन पशुवत् है जीवन,

दे शिक्षा इंसान बनाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

भाषा, दृष्टि, नई, सृष्टि की

गणित और विज्ञान सिखाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

क्षण भंगुर नश्वर है जीवन

जीवन का इतिहास बनाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

जीवन में भटकाव बहुत है,

अंधकार में मार्ग दिखाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

अंतिम सत्य मुक्ति जीवन की,

धर्म और आध्यात्म पढ़ाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 6 ☆ शिक्षक दिवस विशेष – विद्या की महत्ता ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( शिक्षक दिवस के विशेष अवसर पर प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  का आशीर्वचन विद्या की महत्ता। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 6 ☆

☆ शिक्षक दिवस विशेष – विद्या की महत्ता ☆

विद्या बिन मांगे दिया करती है वरदान

पढे लिखो का हर जगह होता है सम्मान

 

बुद्धि को देती धार नई समझ को चमक निखार

विद्या पा ही व्यक्ति बन पाता है गुणवान

 

मिट जाता अज्ञान सब हट जाता अंधियार

शिक्षा पा ही व्यक्ति हर कहलाता विद्वान

 

सोच समझ के क्षेत्र में आता बडा सुधार

सही गलत की परख की मिल जाती पहचान

 

खुद पर बढता भरोसा  सध सकते सब काम

शिक्षित जन की जिंदगी हो जाती आसान

 

शुभ शिक्षा जहॉ मिले उसका लीजै लाभ

विद्या अमृत बिंदु है नित करती कल्याण

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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