हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 16 – ☆ ख़ुशी ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ख़ुशी ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 16   ☆– ख़ुशी

 

एक दिन घर की खिड़की से झाँक रहा था,

ख़ुशी वहां से गुजर रही थी,

 

मैंने उसे इशारे से रोका मगर वो आगे निकल गयी ,

देखा खुशी दो दुःख दरवाज़े पर छोड़ चली गयी ||

 

दरवाजा बन्द रखने लगा दुखों के आने के डर से,

एक दिन फिर किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी,

दरवाजा खोलकर देखा ख़ुशी जा चुकी थी,

देखा खुशी दो दुःख दरवाजे पर छोड़ चली गयी ||

 

एक दिन फिर खिड़की से झाँक रहा था,

ख़ुशी गुजर रही थी, मैंने रोकने की कोशिश की,

खुशी बोली कभी शक्ल देखी है अपनी आईने में,

देखा खुशी दो दुःख दरवाजे पर छोड़ चली गयी ||

 

दुखों से संघर्ष करके जिंदगी हार गया,

खिड़की बन्द देख खुशी ने दरवाजे पर दस्तक दी,

देखों आज तुम्हारे लिए खुशियों की सौगात लायी हूँ,

मुझे बेजान देख खुशी दरवाजे पर खुशियां छोड़ चली गयी ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ जीवनरेखा  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ जीवनरेखा 

तप रहा है शरीर;

आराम करो,

गहरा सोओ,

बीच में नींद खुले

तो भी लेटे रहो,

रात-बिरात या

जल्दी उठकर

कलम मत चलाओ,

इन्हीं सबसे

टूटते हैं पोर,

बिगड़ता है

शरीर का लेखा,

खंड-खंड होने

लगती है जीवनरेखा,

अपनों के, परिचितों के

चिकित्सक के निर्देश

अनवरत जारी थे..,

कुछ देर के

घोर नीरव के बाद

मैं चुपचाप उठा,

पिंजरे में कैद

तोते में बसे

किसी पौराणिक पात्र के

प्राण-सी सहेजी

अपनी कलम उठाई,

फिर कलम चलाई,

कुछ अक्षर झरने लगे

टूटे पोर जुड़ने लगे,

शरीर का लेखा

संवरने लगा,

देह में प्राण लौटने लगा,

खुली आँखों से

मैंने जादू देखा

फिर अखंड हो गई

मेरी जीवनरेखा…!

 

©  संजय भारद्वाज 

रात्रि 10:55, 27.09.2018

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

दोपहर सी है जिंदगी ,गोधूलि है पास।

 याद बावली हो गई, चंद्रकिरन की आस।।

क्या होगा यदि ले लिया ,यादों ने वनवास ।

जीवन बाबा भारती, एक आस विश्वास ।।

एक जिल्द सी ज़िंदगी ,अनगिन है अध्याय।

बहुमत में आरोप है ,कहां मिलेगा न्याय।।

खोकर ही पाया तुम्हें ,कैसा अजब विधान।

चुप्पी साधे संतजन, चुप साधे विज्ञान।।

लो अनंग में हो गया, यानी हुआ विदेह।

चमत्कार अनुभव किया, छूकर तेरी देह।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 18 – नदी हमारे गाँव  ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “नदी हमारे गाँव । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 18– ।। अभिनव गीत ।।

☆ नदी हमारे गाँव 

 

नदी हमारे गाँव

वेदना में डूबी रहती

पानी सूख गया फिर भी

आँसू से है बहती

 

इसकी आँखों में सचेत सा

था भविष्य उजला

जो बहने की प्रखर भूमिका

से था बस बहला

 

रेत पत्थरों में विनम्र हो

सदा बही है वह

और अभी भी ना जाने

कितने गम है सहती

 

सारा तन छिल गया

सूखते पानी का अपना

किन्तु उमीदों में पलता

वह ना डूबा सपना

 

नदी, नदी है अपना दुख

ढोती बहती जाती

अन्तर्मन की यह पीड़ा

खुद से भी ना कहती

 

पूछ रहा था पानी का

रिश्ता परसों सूरज

तुम्हें बहुत बहना है जब

क्यों छोड़ चुकी धीरज

 

बहना और सूख जाना

तो लक्षण  पानी के

एक यही पीड़ा क्यों

तुमको लगी यहाँ महती

 

© राघवेन्द्र तिवारी

26-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ आँख ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ आँख

1)

देखती हैं वर्तमान,

बुनती हैं भविष्य,

जीती हैं अतीत,

त्रिकाल होती हैं आँखें…!

2)

देखती हैं वर्तमान,

बुनती हैं भविष्य,

जीती हैं अतीत,

निराकार काल

आकार में ढलता है,

आँख के साँचे में

उतरता है…!

 

दृष्टि स्पष्ट और स्वच्छ रहे। शुभ दिन।

©  संजय भारद्वाज 

12.21 रात्रि,  2.10.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 21 ☆ महात्मा गांधी ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  “महात्मा गांधी”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 21 ☆ 

☆ महात्मा गांधी

 

हर आत्मा की जान, मेरे कंठ से कैसे करूँ उनका गुणगान,

मेरे शब्द छोटे, बात बड़ी, महात्मा जिनका नाम।

 

आजादी का रास्ता दिखला, कर खुद को कुर्बान,

साबरमती का संत, बापू जिनका नाम,

सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया, कर खुद को कुर्बान,

युगों युगों तक सदा रहेगा, अमर जिनका नाम,

हर आत्मा की जान, मेरे कंठ से कैसे करूँ उनका गुणगान,

मेरे शब्द छोटे, बात बड़ी, महात्मा जिनका नाम।

 

कद में छोटे, बात बड़ी करते, कर्म जिनका महान,

खादी, चरखा, सत्याग्रह जिनकी पहचान,

आँखों की ऐनक और खादी जिनकी जान,

जात-पात की तोड़ दी जंजीरे, वैसे बापू महान,

हर आत्मा की जान, मेरे कंठ से कैसे करूँ उनका गुणगान,

मेरे शब्द छोटे, बात बड़ी, महात्मा जिनका नाम।

 

आओ इस दिवस पर एक हो जाएँ हम,

अपने आप को अपने आप से ऊपर उठाएँ हम,

कॉलेज की भूमि को स्वच्छ बनाएँ हम,

एक नया इतिहास रचाएँ हम,

हर आत्मा की जान, मेरे कंठ से कैसे करूँ उनका गुणगान,

मेरे शब्द छोटे, बात बड़ी, महात्मा जिनका नाम।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #11 ☆ तितलियाँ ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक भावप्रवण रचना “लाॅकडाऊन”।  श्री श्याम खापर्डे जी ने  इस कविता के माध्यम से लॉकडाउन की वर्तमान एवं सामाजिक व्याख्या की है जो विचारणीय है।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 10 ☆ 

☆ तितलियाँ ☆ 

 

आसमान में उड़ती

ये रंग बिरंगी तितलियाँ

रंगीन परों से रंग बिखेरती

रंग बिरंगी तितलियाँ

हर किसी का मन लुभाती

रंग बिरंगी तितलियाँ

आँखों को कितना सुहाती

रंग बिरंगी तितलियाँ

लाल, गुलाबी, सफेद,काली

भूरी बैंगनी,हरी, पीली

नारंगी, सुनहरी, नीली

कुछ चाँदी सी चमकती

ये मनभावन तितलियाँ

ये फूलों पर मंडराती

उनपर परागकण लुटाती

कलियों को फूल बनाती

ये परोपकारी तितलियाँ

भ्रमरों के संग खेलती रहती

पर सदा उनसे बचकर रहती

ये भोली भाली तितलियाँ

ईश्वर बुरी नजर से

इन को  बचाये

तितलियों पर कोई

आँच ना  आये

वाटिका की जान है

श्रृंगार है, शान है

सदा यूं ही उड़ती जाये

आसमान में पर फैलायें

रंगों सी झिलमिलाती

छोटी बड़ी तितलियां

 

© श्याम खापर्डे 

03/10/2020

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – # 64 ☆ नरगिद्ध ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच –  नरगिद्ध ☆

( संजय  उवाच में आज प्रस्तुत है अपवाद स्वरुप एक विचारणीय कविता) 

वे बेच रहे हैं

हत्या,

आत्महत्या,

चीत्कार,

बलात्कार,

सिसकारी,

महामारी,

धरना,

प्रदर्शन,

हंगामा,

तमाशा,

वेदना,

संवेदना..,

इस हाट में

हर पीड़ा

उपजाऊ है,

हर आँसू

बिकाऊ है..,

राजनीति,

सत्ता,

षड्यंत्र,

ताकत,

सारे बिचौलिये

अघा रहे हैं,

इनकी ख़ुराक पर

गिद्ध शरमा रहे हैं..,,

मैं निकल पड़ा हूँ दूर,

चलते-चलते

वहाँ पहुँच गया हूँ

जहाँ से यह मंडी

न दिखती है,

न सुनती है..,

नरगिद्धों के लिए वर्जित

इस टापू पर

निष्पक्ष होकर

सोच सकता हूँ,

कुछ और नहीं तो

पीड़ित के लिए

कुछ देर सचमुच

रो सकता हूँ..!

 

© संजय भारद्वाज

प्रात 5:31 बजे, 3 अक्टूबर  2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 23 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 23 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 23) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 23☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

तमाम  उम्र  मैं  इक

अजनबी घर में  रहा

सफ़र न करते हुए भी

हमेशा  सफ़र में  रहा

 

वो  तो जिस्म ही था जो

भटका किया  ज़माने में,

मगर दिल तो मेरा हमेशा

तेरी डगर में भटकता रहा…

 

All my life kept staying

In  a  stranger’s  house

Even while not traveling

I remained in journey only

 

That was just my body which

Kept wandering everywhere,

But my heart always kept

Following  your footsteps…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

तेरी मोहब्बत ने हमे

तो बेनाम कर दिया,

हमे  हर  ख़ुशी  से

मरहूम  कर  दिया

 

हमने तो कभी चाहा ही

नहीं कि हमे मोहब्बत हो,

मगर तेरी पहली नज़र ने

हमें तो नीलाम कर दिया…

 

Your love has made

Me utterly nameless,

It  deprived  me  of 

every possible pleasure

      

I had never desired

To ever fall in love, but

Your very glance itself

Got  me  auctioned …

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 23 ☆ गीत – आज के इस दौर में भी☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी का एक  गीत – आज के इस दौर में भी। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 23 ☆ 

☆ गीत – आज के इस दौर में भी ☆ 

आज के इस दौर में भी समर्पण अध्याय हम

साधना संजीव होती किस तरह पर्याय हम

 

मन सतत बहता रहा है नर्मदा के घाट पर

तन तुम्हें तहता रहा है श्वास की हर बाट पर

जब भरी निश्वास; साहस शांति आशा ने दिया

सदा करता राज बहादुर; हुए सदुपाय हम

 

आपदा पहली नहीं कोविद; अनेकों झेलकर

लिखी मन्वन्तर कथाएँ अगिन लड़-भिड़ मेलकर

साक्ष्य तुहिना-कण कहें हर कली झरकर फिर खिले

हौसला धरकर; मुसीबत हर मिटाने धाय हम

 

ओम पुष्पा व्योम में, हनुमान सूरज की किरण

वरण कर को विद यहाँ? खोजें करें भारत भ्रमण

सूर सुषमा कृष्ण मोहन की सके बिन नयन लख

खिल गया राजीव पूनम में विनत मुस्काय हम

 

महामारी पूजते हम तुम्हें; माता शीतला

मिटा निर्बल मंदमति, मेटो मलिनता बन बला

श्लोक दुर्गा शती, चौपाई लिए मानस मुदित

काय को रोना?, न कोरोना हुए निरुपाय हम

 

गीत गूँजेंगे मिलन के, सृजन के निश-दिन सुनो

जहाँ थे हम बहुत आगे बढ़ेंगे, तुम सिर धुनो

बुनो सपने मीत मिल, अरि शीघ्र माटी में मिलो

सात पग धर, सात जन्मों संग पा हर्षाय हम

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२९-४-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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