डॉ निधि जैन
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “गुरुवर”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 14 ☆
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,
मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।
तुम भोर की पहली किरण के समान,
तुम अंधकार में ज्योति के समान,
तुम पुष्प में सुगंध के समान,
तुम शरीर में प्राण के समान,
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,
मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।
तुमने दिखाया इस भू से चाँद छूने का रास्ता,
तुम हो गगनस्पर्शी,
तुमने बताया पाताल की सुन्दर नगरी का रास्ता,
तुम त्रिकाली, तुम त्रिकालदर्शी,
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,
मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।
तुम अद्वितीय, तुम अकथनीय, तुम अजातशत्रु,
तुमने दिखाया इस लोक से उस लोक तक का रस्ता, तुम परलोकी,
तुमने दिखाया विश्व को जीतने का रास्ता,
तुमने बताया आत्म संतोष का रास्ता,
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,
मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।
तुम युद्ध में हो कृष्ण,
तुम ज्ञान में हो वाल्मीकि,
तुम रात में सूरज की किरण,
तुम घोर अंधकार में दीपक की रौशनी,
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,
मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।
गुरुवर आप हमें देते हैं ज्ञान का भंडार,
दूर करते हैं हमारे अवगुणों का विकार,
देते हैं हमारे ज्ञान को नया आकार,
मिटाते हैं अज्ञान का अंधकार,
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,
मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।
भुला नही सकते आपका ये ज्ञान,
देते रहेंगे आपको हमेशा सम्मान,
आपसे भी स्नेह मिले यदि श्रीमान,
तो करते रहेंगे ज़िन्दगी भर आपका गुणगान,
हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।
© डॉ निधि जैन, पुणे