हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 7 – पानी की पीर ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है उनका अभिनव गीत  “पानी की पीर ”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ #7 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ पानी की पीर  ☆

 

एक बहिन  ::  गगरी

कलशा   ::  एक भाई

लौट रही पनघट से

मुदिता भौजाई

 

प्यास बहुत गहरी

पर उथली घडोंची

पानी की पीर

जहाँ गई नहीं पोंछी

 

एक नजर छिछली पर

जगह-जगह पसरी है

सम्हल सम्हल चलती

है  घर  की   चौपाई

 

कमर कमर अँधियारा

पाँव पाँव दाखी

छाती पर व्याकुल

कपोल सदृश पाखी

 

एक छुअन गुजर चुकी

लौट रही दूजी

लम्बाया इंतजार

जो था चौथाई

 

नाभि नाभि तक उमंग

क्षण क्षण गहराती है

होंठों  ठहरी तरंग

जैसे उड़ जाती है

 

इठलाती चोटी है

पीछे को उमड़ घुमड़

आज  इस नई संध्या

जैसे बौराई

 

© राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सत्य ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सत्य 

प्रलय के बाद

बचा रहता है सत्य,

सृजन के पूर्व

विद्यमान होता है सत्य,

सत्य आदिबिंदु है,

सत्य इतिबिंदु है,

अपरंपार ही सत्य

संसार भी सत्य,

ईश्वर ही सत्य

नश्वर भी सत्य,

ज्ञान ही सत्य

विज्ञान भी सत्य,

यथार्थ ही सत्य

कल्पना भी सत्य,

सूक्ष्म ही सत्य

स्थूल भी सत्य,

एक ही सत्य

अनेक भी सत्य,

सत्य अनादि

सत्य अनंत,

सत्यं परं धीमहि

एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति!

©  संजय भारद्वाज

(प्रातः 9.55 बजे, 17.6.19)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 13 ☆ घरोंदा ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “घरोंदा”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 13 ☆ 

☆ घरोंदा  ☆

 

मैंने एक घरोंदा बनाया था,

यादों की मिट्टी से उसे खड़ा कर पाया था।

 

सपनों के पानी से उसे सींचा था,

लम्हों की मिट्टी से उसे बनाया था,

सब की नज़रों से उसे बचाया था,

एक और आशियाना बनाया था,

उसके कमरे में मेरा एक एक सपना छुपाया था।

 

मैंने एक घरोंदा बनाया था,

यादों की मिट्टी से उसे खड़ा कर पाया था।

 

सच्चाईयों के समुद्र ने बहा दिया,

तेज धूप ने उसे जला दिया,

तेज आँधी ने उसे गिरा दिया,

लोगों की ठोकरों ने उसे गिरा दिया,

दुनिया के छल-कपट ने मुझे रुला दिया।

 

मैंने एक घरोंदा बनाया था,

यादों की मिट्टी से उसे खड़ा कर पाया था।

 

उम्र की बढ़ती राह पर घरोंदें की सच्चाई समझ में आई है,

हर कमजोर वस्तु का भविष्य समझ में आया है,

घरोंदा छोड़ मकान का स्वपन सजाया है,

ईट गारे के साथ विश्वास से ठोस बनाया है,

हर नींव के पत्थर को अपने ऊपर विश्वास के काबिल बनाया है।

 

मैंने एक घरोंदा बनाया था,

यादों की मिट्टी से उसे खड़ा कर पाया था।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #2 ☆ हम तो मजदूर हैं ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भावप्रवण रचना  “हम तो मजदूर हैं ”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #2 ☆ 

☆ हम तो मजदूर हैं  ☆ 

 

निकल पड़े हैं हम सड़कों पे

मंज़िल अभी दूर है

हम तो मजदूर है

 

लगे हुए है काम पर ताले

कैसे अपना पेट पाले

जमा पूंजी सब खत्म हो गई

भूख हमपे हावी हो गई

संगी साथी सब बेचैन हैं

कट रही आंखों में रैन हैं

थक हार कर सब चूर हैं

हम तो मजदूर हैं

 

सर पर गठ़री, गोद में बच्चा

आंख में आंसू, कमर में लच्छा

ऐंठती आंतें, रूकती सांसें

भटक रहे हैं, भूखे प्यासे

तपती धूप, झूलसते पांव

आंखें ढ़ूंढ रही है छांव

प्रवासी होना क्या कसूर है ?

हम तो मजदूर हैं

 

मौत हो गई कितनी सस्ती

खाली हो गई मजदूर बस्ती

पैदल,ट्रक, बस या रेलगाड़ी

मजदूर मर रहे बारी-बारी

घड़ियाली आंसू रो रहे हैं

हमको दोष दे रहे हैं

हम असहाय, लाचार, मजबूर हैं

हम तो मजदूर हैं

 

मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरूद्वारे

बंद पड़े हैं अब तो सारे

किसको हम फरियाद सुनायें

किसको अपना दर्द बतायें

भूल गया है शाय़द अफ़सर

जीवन का अंतिम ठिकाना

राजा हो या रंक

मरकर सबको वहीं है जाना

जीवन-मृत्यु के दो-राहे पर

हम खड़े बेकसूर हैं

हम तो मजदूर हैं

हां भाई! हम तो मजदूर हैं

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

26/06/2020

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 12 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 11/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 12 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

तकलीफ खुद ही

कम हो गई…

जब अपनों से…

उम्मीद कम हो गई..

 

The suffering itself got

conclusively reduced,

When expectations from

the loved ones minimized…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 पत्तों सी होती है कई रिश्तों

की उम्र, आज हरे कल सूखे….

क्यों  न  हम जड़ों  से  ही

उम्र भर रिश्ते निभाना सीखें…

  

 Age of many relationships is like

leaves; today green, tomorrow dried… 

Why don’t we learn from roots

To maintain the relationship … 

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

चलो अब जाने भी दो

क्या करोगे दास्तां सुनकर

खामोशी तुम समझोगे नहीं

और हमसे बयाँ होगा नहीं…

 Let’s leave it at that now….

What’ll you do by hearing my story

You won’t understand the silence

And I’ll not be able to explain…!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मेरी तमन्ना न थी कभी

तेरे बगैर रहने की मगर

मजबूर को मजबूर की

मजबूरीयां मजबूर कर देती हैं!

 Never did I desire to

Live without you but…

The helplessness compels 

the helpless to live without!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 14 ☆ दोहे सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपके दोहे सलिला . )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 14 ☆ 

☆ दोहे सलिला ☆ 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मन में अब भी रह रहे, पल-पल मैया-तात।

जाने क्यों जग कह रहा, नहीं रहे बेबात।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

रचूँ कौन विधि छंद मैं,मन रहता बेचैन।

प्रीतम की छवि देखकर, निशि दिन बरसें नैन।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कल की फिर-फिर कल्पना, कर न कलपना व्यर्थ।

मन में छवि साकार कर, अर्पित कर कुछ अर्ध्य।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जब तक जीवन-श्वास है, तब तक कर्म सुवास।

आस धर्म का मर्म है, करें; न तजें प्रयास।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मोह दुखों का हेतु है, काम करें निष्काम।

रहें नहीं बेकाम हम, चाहें रहें अ-काम।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

खुद न करें निज कद्र गर, कद्र करेगा कौन?

खुद को कभी सराहिए, व्यर्थ न रहिए मौन.

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

प्रभु ने जैसा भी गढ़ा, वही श्रेष्ठ लें मान।

जो न सराहे; वही है, खुद अपूर्ण-नादान।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

लता कल्पना की बढ़े, खिलें सुमन अनमोल।

तूफां आ झकझोर दे, समझ न पाए मोल।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

क्रोध न छूटे अंत तक, रखें काम से काम।

गीता में कहते किशन, मत होना बेकाम।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जिस पर बीते जानता, वही; बात है सत्य।

देख समझ लेता मनुज, यह भी नहीं असत्य।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

भिन्न न सत्य-असत्य हैं, कॉइन के दो फेस।

घोडा और सवार हो, अलग न जीतें रेस।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सत्य ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सत्य 

प्रलय के बाद

बचा रहता है सत्य,

सृजन के पूर्व

विद्यमान होता है सत्य,

सत्य आदिबिंदु है,

सत्य इतिबिंदु है,

अपरंपार ही सत्य

संसार भी सत्य,

ईश्वर ही सत्य

नश्वर भी सत्य,

ज्ञान ही सत्य

विज्ञान भी सत्य,

यथार्थ ही सत्य

कल्पना भी सत्य,

सूक्ष्म ही सत्य

स्थूल भी सत्य,

एक ही सत्य

अनेक भी सत्य,

सत्य अनादि

सत्य अनंत,

सत्यं परं धीमहि

एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति!

©  संजय भारद्वाज

(प्रातः 9.55 बजे, 17.6.19)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 41 ☆ पत्थर में एक किरदार ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्राकृतिक पृष्टभूमि में रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “पत्थर में एक किरदार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 41 ☆

☆ पत्थर में एक किरदार ☆

 

हर पत्थर में एक चेहरा दिखता है

कोई हरा, कोई नीला

और कोई लाल दिखता है।

कोई श्वेत, कोई श्याम

और कोई पीला दिखता है।

हर पत्थर में एक चेहरा दिखता है।

 

हर चेहरा ओढ़े हैं एक मुखौटा

मुझे हर पत्थर में एक किरदार दिखता है।

कुछ अजीब सा नशा है रंगीन पत्थरों में

‘सांज’ हर किरदार मुझे अपना सा लगता है।

हर पत्थर में एक चेहरा दिखता है।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-14 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ-14 

आदमी

बोलता रहा ताउम्र,

दुनिया ने

अबोला कर लिया,

हमेशा के लिए

चुप हो गया आदमी,

दुनिया आदमी पर

बतिया रही है!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रातः 9:44 बजे, 2.9.2018

( कवितासंग्रह *चुप्पियाँ* )

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 52 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 52 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  ☆

 

नव्य विधा है काव्य की, झरता है संगीत।

सरस  काव्य की धार से, निकला है नवगीत।।

 

पछुवा की चलने लगी, तेज हवा तत्काल।

अपने अगन समेटती, वर्षा  दृष्टि विशाल।।

 

सांझ सबेरे ढूंढ़ती, पनघट राधा श्याम।

आस लगाए टेरती,  कहां छुपे घन श्याम।।

 

शिल्पकार गढ़ने लगे, कौशल शील विधान।।

होती उत्तम शिल्प की, प्रथक श्रेष्ठ पहचान।।

 

शिल्प साधना से लिखा,  साहित्यिक इतिहास।

साध रहे रस छंद को, भाव और विन्यास।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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