(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ कहानियाँ मरती नहीं! ☆
पुराकथाओं में-
अपवादस्वरूप
आया करता था
एक राक्षस…,
बच्चों की भागदौड़
भगदड़ में बदल जाती
सिर पर पैर रखने की
कवायद सच हो जाती,
कई निष्पाप
पैरों तले कुचले जाते
सपनों के साथ
सच भी दफन हो जाते,
न घर-न बार
न घरौंदा, न संसार
आतंकित आँखें
विवश-सी देखतीं
नियति के आगे
चुपचाप सिर झुका देती,
कालांतर में-
एक प्रजाति का अपवाद
दूसरी की परंपरा बना,
अब रोज आते हैं मनुष्य,
ऊँचे वृक्षों पर बसे घरौंदे
छपाक से आ गिरते हैं
धरती पर…,
चहचहाट, आकांक्षाएँ, अधखुले पंख
लोटने लगते हैं धरती पर,
आसमान नापने के हौसले
तेज रफ्तार टायरों की
बलि चढ़ जाते हैं,
सपनों के साथ
सच भी दफन हो जाते हैं,
डालियों को
छाँट दिया जाता है
या वृक्ष को समूल उखाड़ दिया जाता है,
न घर-न बार
न घरौंदा, न संसार
आतंकित आँखें
विवश-सी देखती हैं
नियति के आगे
चुपचाप सिर झुका देती हैं,
मनुष्यों की पुराकथा
पंछियों की
अधुनतन गाथा है।
© संजय भारद्वाज
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