हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सत्य ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – सत्य ☆

परम सत्य,

शाश्वत सत्य,

अंतिम सत्य,

अपना पांडित्य

अपने को छलता रहा,

बिना किसी विशेषण के

सत्य अपनी राह चलता रहा।

 

# कृपया घर में रहें। सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

 रात्रि 1.43 बजे, 29.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ अनकहा प्रेम / Untold Love – सुश्री निर्देश निधि ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Captain Pravin Raghuvanshi ji  is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit.   We present an English Version of Ms. Nirdesh Nidhi’s  Classical Poetry  अनकहा  प्रेम  with title  “Untold Love” .  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में  आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता की मूल लेखिका सुश्री निर्देश निधि जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी को अवश्य अवगत कराएँ.

 

सुश्री निर्देश निधि

 ☆ अनकहा प्रेम ☆ 

रजबहे के साथ लगी,

उस टूटी पुलिया से भी

हो गया है प्रेम मुझे

खड़े रहकर जिस पर

प्रतीक्षा करते हो तुम घंटों

मुझसे क्षणिक मिलन की

मेरी साइकिल के पहिए भी तो जैसे

खोने लगते हैं वृत्त अपना

होकर, चौकोर

हो जाना चाहते हैं स्थिर

ठीक सामने तुम्हारे

टूटी पुलिया वाले उस मोड़ पर

तुम्हारे सांकेतिक चुंबन की दहक से

पिघल सी जाती है

मेरी सांवली देह उस पल

बागड़ियों की भट्टी में धधकते लौहसी

जिसे महसूस करते होगे

तुम जरूर अपनी देह पर

ढलकते हुए देर तलक

इस अनकहे, स्थायित्व भरे

प्रेम के भार से झुकी तुम्हारी दृष्टि

जिसे पर थोड़ा सा भार सौंपती हूं मैं

अपनी दृष्टि के गुरुत्व से

मेरी छुअन लेकर

तुम्हारे तन से टकराई

बौराई पवन से बढ़ती तुम्हारी धड़कन

अपने सीने में जस की तस सुनती हूं मैं,

सुनो,

जो तुम साथ दो तो

माद्दा रखती हूं मैं

अपने इस अनछुए, अपूर्ण,

अनकहे, कमनीय प्रेम को पूर्णता देने का

धता बताकर सभी

आप-खाप पंचायतों की,

सतर्क पहरेदारी को।

 

© निर्देश निधि

संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001

ईमेल – [email protected]

♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

 ☆ Untold Love…☆

I’ve fallen in love

with the broken culvert too,

situated alongside the canal,

standing on which,

you would wait for hours,

for a momentary meeting with me…!

 

Even the round wheels of my bicycle

would begin to lose their

shape to the square ones

to become stationary,

right in front of you

at that turn near

the  broken culvert…!

 

The flame of your

symbolic kiss would melt

my dusky body

like the molten lava

of  blazing volcano

Which you must also

be experiencing, rolling down

on your body, endlessly…!

 

Your unspoken, lasting,

lovelorn glance

Bowing further

laden with the gravitational

pull of my gaze…!

 

The maddening wind,

fragrant after caressing me,

Would be smacking your body,

Your heartbeats,

rising uncontrollably

in your chest,

which I could hear explicitly, as it is…!

 

Listen, if you commit

to be with  me

I’ve the courage to manifest

the completeness of our

this untouched, incomplete,

untold, enticing love,

and defy the vigilant watchfulness of

all the  community sentinels,

like Aap-Khap Panchayats!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 6 ☆ कॉलेज ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

( डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  जीवन के स्वर्णिम कॉलेज में गुजरे लम्हों पर आधारित एक  समसामयिक भावपूर्ण एवं सार्थक कविता  “कॉलेज”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 6 ☆

☆  कॉलेज ☆

हर क्षण, हर लम्हा याद आता हैं उस मधुर स्मृति का,

बन्द हो गये कपाट उस मधुर ज्योति के,

नित्य कालेज को जाना एक नये उल्लास स्फूर्ति से,

ह्रदय में उल्लास भरता, भानुमती सा,

ज्ञान ज्योति मिटाती, अन्धकार रति सा,

हर क्षण, हर लम्हा याद आता है उस मधुर स्मृति का।

 

घंटो बैठना आनंदमय मित्रों की गोष्ठी का,

वो बैठ जाना कॉलेज की कैंटीन में पंचवटी सा,

निहारते रहना हर फूल की आकृति को,

नयनों में संजोकर रखना उस छवि को,

घूमता रहता है हर क्षण, वह उल्लास मेरी मति का,

हर क्षण, हर लम्हा याद आता है उस मधुर स्मृति का।

 

वो मित्रों को छेड़ना, मनोरंजन अभिशाप सा,

नित्य नये वस्त्रों का पहनना नवग्रह निधिपति सा,

नये श्रृंगार करना और घण्टों निहारना मानो पूँजीपति सा,

वो रोज़ तफरी का आलम हर पल गति सा,

हर्ष उल्हास भरता स्फूति सा,

हर क्षण, हर लम्हा याद आता है उस मधुर स्मृति का।

 

वो निडर हो कर बोलना केन्द्र बिन्दु सा,

कल्पना करना हर पल स्वर्णमय भविष्य का,

मित्रों का आगे बढ़ना आत्मीयता सा,

एकरूपता से बढ़ना वो अधिक उपयुक्त समाज का,

हर क्षण, हर लम्हा याद आता हैं उस मधुर स्मृति का,

बन्द हो गया कपाट उस मधुर ज्योति का।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 32 – किताब ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक सार्थक, सशक्त एवं भावपूर्ण रचना  ‘किताब। वास्तव में हमारा जीवन भी किसी किताब से क्या कम  है ? बेहद संवेदनशील कविता । बधाई ! आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 32– विशाखा की नज़र से

☆ किताब ☆

कभी हैं किताबें मेरे सिरहाने

कभी थामा है मैंने उन्हें हाथों में

कभी सुन रही हूं मैं किताब की धड़कन

कभी धड़कन सुन रहीं है मेरी , किताबें

 

कभी लगता है मेरी और किताबों की ज़ुबान एक है

कभी महसूसती हूँ कि हमारी धड़कन भी तो एक हैं

कभी फ़ेरती हूँ उंगलियां जैसे शब्दों को स्पर्श कर लिया

कभी छंद उस निर्जीव का जीवंत मुझको कर गया

 

सोचती हूँ , कैसी होगी किताबों से पहले की दुनियाँ

किसने लिखी होगी पहली किताब

पुस्तकों का आलय बनाना किसका होगा विचार

क्या सारा ज्ञान छुपा है किताबों में या

किताबों के बाहर भी है संसार

एक चाणक्य जिसनें किताबों में रचा अर्थशास्त्र

एक कबीर जिसनें पढ़ी नहीं एक भी किताब

एक मैं जो लिख रहीं हूँ किताबों की बातें और

एक तुम जो पढ़ रहे हो मेरे जीवन की किताब

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 5 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 5/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 5 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का अंग्रेजी भावानुवाद  किया है।  इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

हर बार उड़ जाता है

मेरा कागज़ का महल…!

फ़िर  भी  हवाओं  की

आवारगी पसंद है मुझे…

 

Flies away every time

My cardboard palace …!

Still I adore  the winds

Loafing around freely…! 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

देख दुनिया की बेरूखी

न पूछ ये नाचीज़ कैसा है

हम बारूद पे बैठें हैं

और हर शख्स माचिस जैसा है

 

Seeing the rudeness of the world

Ask me not how worthless me is coping

I’m sitting on pile of explosives

And every person is like a fuse…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

शहरों का यूँ वीरान होना

कुछ यूँ ग़ज़ब कर गया…

बरसों से  पड़े  गुमसुम

घरों को आबाद कर गया…

 

Desolation of the cities

Did something amazing…

Repopulated the houses

Lying deserted for years…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सारे मुल्क़ों को नाज था

अपने अपने परमाणु पर

क़ायनात बेबस हो गई

एक छोटे से कीटाणु पर..!!

 

Every country greatly boasted of

Being  a  nuclear  super  power…

Entire universe  was  rendered

Grossly helpless by a tiny virus..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 6 ☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी सार्थक  “मुक्तिका”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 6 ☆ 

☆  मुक्तिका ☆ 

 

मनमानी की छूट है, जो चाहें लिख आप

घर से बाहर हों नहीं, कोरोना है शाप

 

नहीं किसी को छोड़ता, तनिक न करता भेद

तीसमारखाँ सूरमा, सबको लेता नाप

 

अब तक मिला न तोड़ है, यम से कर गठजोड़

सारी दुनिया को रहा, यह कोरोना माप

 

अड़ियल-जिद्दी मत बनें, घर मत छोड़ें मीत

राख शेष रह जायगी, बन जाएँगे भाप

 

ना मर्सी ना पिटीशन, होती नहीं वकील

बिन अपील दे दंड यह, है पंचायत खाप

 

झटपट मरघट भेजता, पल में कब्रस्तान

खाँसी मारक तीर है, ज्वर है बेधक चाप

 

कोई औषधि है नहीं, नहीं मंत्र या जाप

सजग रहें लगने न दें, खुद पर इसकी छाप

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – गंगोत्री के उत्तुंग शिखर से गंगासागर तक ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

 

(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित  माँ गंगा पर आत्मप्रेरित रचना  – गंगोत्री के उत्तुंग शिखर से गंगासागर तक)

 

☆ गंगोत्री के उत्तुंग शिखर से गंगासागर तक ☆

 

गंगोत्री के उत्तुंग शिखर से,

आती हो बन  पापनाशिनी।

कल कल करती,  हर-हर करती,

बन जाती हो जीवनदायिनी।

 

तीव्र वेग से धवलधार बन

हरहराती, आती बल खाती।

चंचल नटखट बाला सी,

इतराती,  इठलाती आती।

 

मन खिल उठता मेरा,

दिव्य रूप देखकर तेरा,

हर-हर गंगे,  हर-हर गंगे।।

 

जब मैदानों में चलती हो,

तो मंथर-मंथर बहती हो।

अपने दुख अपनी पीड़ा को,

कभी व्यक्त न करती हो।

 

सब तीरथ करते अभिनंदन,

स्पर्श जब उनका  करती हो।

सुबह शाम सब करते वंदन,

जब उनके मध्य  तुम बहती हो।

 

जनमानस तेरा श्रद्धापूर्वक

करते रहते जय जयकार,

हर-हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

तेरे पावन जल मिट्टी से,

समस्त जग है जीवन पाता।

वृक्ष अन्न फल-फूल धरा से,

गंग कृपा से, है  उपजाता।

 

तीर्थराज का कर अभिनंदन,

जब काशी तुम आती हो।

अर्धचंद्र का रूप धर,

भोले का भाल सजाती हो।

 

मनोरम दृश्य देख, हो प्रसन्न

देवगण भी बोल उठते,

हर-हर गंगे, हर-हर गंगे।।

 

अपने पावन जल से मइया,

शिव का अभिषेक तुम करती हो।

भक्तों के पाप-ताप हरती,

जन-जन का मंगल करती हो।

 

सारा जनमानस काशी का,

हर हर बम बम बोल रहा है।

ज़र्रा ज़र्रा, बोल रहा है

हर हर गंगे, हर हर गंगे।।

 

सूर्यदेव की स्वर्णिम आभा,

जब गंगा में घुल जाती है।

स्वच्छन्द परिन्दो की टोली,

उनके ऊपर मंडराती है।

 

घाटों की नयनाभिराम झांकी,

बरबस मन को हरती है।

जाने अनजाने ह्रदय के भीतर

यह आवाज उभरती है।

हर-हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

हर कहीं मन्दिरों के भीतर,

हर-हर नाद सुनाई देता।

कहीं अजानों की पुकार में,

वही  तत्व दिखलाई देता।

 

गिरजों और गुरूद्वारों में भी,

वही  छटा दिखाई देती।

हर जुबान हर दिल  के भीतर,

वही  आवाज़ सुनाई देती।

हर हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

तेरा पावन जल ले अंजलि,

कोई श्रद्धांजलि देता है

कोई मुसलमां तेरा जल ले,

रोज़ वजू कर लेता है।

 

सिख ,ईसाई गंगा जल से

पूजा अपनी करते हैं।

सदा सर्वदा हर दिलसे

यही सदा सुनाई देती है।

हर-हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

बहते-बहते मंथर-मंथर,

जब सागर में मिल जाती हो।

सागर का मान बढ़ाती,

गंगासागर कहलाती हो।

 

सागर की अंकशायिनी बन,

लहरों पे इठलाती हो।

उत्ताल तरंगें बोल उठती,

हर-हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सूत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – सूत्र ☆

 

उदासीन हो

उदासीनता बयान करो,

इस विषय पर

एक रचना हो सकती है,

कुछ नहीं लिखता

यह सोच कर, जो

सूत्र, सूक्ति ना दे पाठक को

भला कविता कैसे हो सकती है?

 

# सुरक्षित रहना है, घर में रहना है।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 10:19 बजे, 19 अप्रैल 2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 35 ☆ तुममें और चाँद में क्या अलगता है ? ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “तुममें और चाँद में क्या अलगता है ?”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 35 ☆

  ☆ तुममें और चाँद में क्या अलगता है ? ☆

 

छुप जाते हो तुम

जब जरूरत होती है,

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

कभी पूनम बनकर आते हो,

कभी अमावस बन जाते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

घटते चाँद की तरह

तुम भी घट जाते हो।

जब जी चाहा

तब तुम भी आगे चल

बढ़ते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

आँखों से बारिश होती है

तुम बादल ही बन जाते हो।

तपिश मन में उबलती हो

तुम भाप बन उड़ जाते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मई दिवस विशेष ☆ हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

( आज  प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा मई दिवस के अवसर पर  रचित  एक कविता   “हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है”।   

 

? मई दिवस विशेष  – हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है ?

किसी राष्ट्र के विकास का घूमता पहिया, उस राष्ट्रके विकास की स्थिति का आकलन, उस राष्ट्रीय की श्रमशक्ति श्रमिक वर्ग की‌ स्थिति पर निर्भर करता है। राष्ट्रीय ‌विकास में जितना योगदान कुशल प्रबंधन का है, उससे ज्यादा संगठित कुशल श्रमिक शक्ति का‌ भी‌ है।जब कुशल प्रबंधन और श्रमशक्ति मिल कर समूह‌ भावना से कार्य करते हैं तो उस संगठन, उस संस्थान, उस राष्ट्र के विकास को कोई रोक नहीं सकता। किसी भी ‌राष्ट्र के विकास का मानक कुशल एवम् सुखी श्रमिक वर्ग ‌के आधार पर‌ तय‌ होता है।

 

हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है, वंदन है, अभिनंदन ‌है।

तुम श्रमशक्ति ‌हो दुनिया की, माथे पे‌ रोली चंदन है ।

      ।   । हे श्रमिक तुम्हारा।।1।।

 

तुम ही अपने श्रमशक्ति ‌से, बागों में फूल ‌खिलाते ‌हो।

सड़कें पुल बांध बना देश को विकास पथ पर लाते ‌हो।

अपने हुनर के‌‌ बल पर‌ सबके, तन पर वस्त्र ‌सजाते हो।

तुम ही अपनी मेहनत से, इन खेतो‌ में अन्न उगाते हो।

तुम भाग्य विधाता जग के, सबकी‌ किस्मत‌ चमकाते हो।।

।।   हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है।।2।।

 

तुम राष्ट्र पुरूष हो दुनिया में, तुमसे विकास का नारा है।

तुमसे ही दुनिया सुखी हुई, सब पे‌ अहसान तुम्हारा है।

अरमान तुम्हारे ‌दिल में है, आंखों में सपना प्यारा है।

पहचान ‌तुम्हारी ताकत है श्रम से अस्तित्व तुम्हारा है।

।। हे श्रमिक तुम्हारा वंदन है।।3।।

 

तेरी त्याग‌ तपस्या से, आलोकित यह जग सारा है।

अपनी हस्ती मिटाकर के, लाखों को दिया सहारा है।

सारी दुनिया का गम‌ पीकर, मुस्कान‌ तुम्हारे चेहरे ‌पर।

इस जहां ‌की रक्षा खातिर ही, जीवन बलिदान ‌तुम्हारा है।

।।हे श्रमिक तुम्हारा वंदन है।।4।।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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