हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – यह आदमी मरता क्यों नहीं है..? ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – यह आदमी मरता क्यों नहीं है..? ? ?

(कवितासंग्रह ‘चेहरे’ से।)

हार कबूल करता क्यों नहीं है

यह आदमी मरता क्यों नहीं है..?

*

कई बार धमाकों से उड़ाया जाता है,

गोलीबारी से परखच्चों में बदल दिया जाता है,

ट्रेनों की छतों से खींचकर

नीचे पटक दिया जाता है

अमीरज़ादों की ‘ड्रंकन ड्राइविंग’

के जश्न में कुचल दिया जाता है,

*

कभी दंगों की आग में

जलाकर ख़ाक कर दिया जाता है

कभी बाढ़ राहत के नाम पर

ठोकर-दर-ठोकर क़त्ल कर दिया जाता है,

कभी थाने में उल्टा लटका कर

दम निकलने तक बेदम पीटा जाता है,

कभी बराबरी की ज़ुर्रत में

घोड़े के पीछे बांधकर खींचा जाता है,

*

सारी ताक़तें चुक गईं,

मारते-मारते खुद थक गईं

*

न अमरता ढोता कोई आत्मा है,

न ईश्वर या अश्वत्थामा है,

फिर भी जाने इसमें क्या भरा है,

हज़ारों साल से सामने खड़ा है,

*

मर-मर के जी जाता है,

सूखी ज़मीन से अंकुर सा फूट आता है,

ख़त्म हो जाने से जाने डरता क्यों नहीं है,

यह आदमी मरता क्यों नहीं है..?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः। 🕉️

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 130 ☆ राजभाषा दिवस विशेष – ॥ सजल – मेरा अभिमान है हिंदी ॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 130 ☆

राजभाषा दिवस विशेष – ॥ सजल – मेरा अभिमान है हिंदी ॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

(सामांत – आन, पदांत – है हिंदी)

[1]

मेरी जान हिंदी, मेरा अभिमान है हिंदी।

हम सब की   इक़ पहचान है    हिंदी।।

[2]

हिंदी में ही बसते हैं प्राण  हम सबके।

हम सब का एक   ही नाम    है हिंदी।।

[3]

वेदशास्त्र पुराण संस्कारऔर संस्कृति।

एक अथाह सागर सा   ज्ञान है हिन्दी।।

[4]

सबकी बोली सबकी भाषा मन भाये।

कितना कहें कि बहुत महान है  हिंदी।।

[5]

प्रेम की भाषाऔर प्यार की बोली यह।

घृणा और नफरत सेअनजान है हिंदी।।

[6]

पुरातन काल के अविष्कारों का गौरव।

पूर्ण तकनीकी ज्ञान   विज्ञान है  हिंदी।।

[7]

संस्कृत भाषा से ही जन्मी हिंदी भाषा।

ऋषि मुनियों का गहन विधान है हिंदी।।

[8]

वसुधैव कुटुम्बकम का भाव    निहित।

जानो कि ऐसा एक   परिधान है हिंदी।।

[9]

विश्व एकता शांति की   अग्रदूत भाषा।

अमन चैन संदेश का अभियान है हिंदी।।

[10]

हर धर्म जाति भाषा  को जोड़ने वाली।

यूँ समझो हंस पूरा  हिंदुस्तान है हिंदी।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 194 ☆ श्री गणेश वंदना ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “श्री गणेश वंदना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 194 ☆ श्री गणेश वंदना ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

☆ 1 ☆

सिध्दिदायक  गजवदन

जय गणेश गणाधिपति प्रभु 

सिध्दिदायक  गजवदन

विघ्ननाशक कष्टहारी हे परम आनन्दधन

दुखो से संतप्त अतिशय त्रस्त यह संसार है

धरा पर नित बढ़ रहा दुखदायियो का भार है

हर हृदय में वेदना आतंक का अंधियार है

उठ गया दुनिया से जैसे मन का ममता प्यार है

दीजिये सद्बुध्दि का वरदान हे करूणा अयन

जय गणेश गणाधिपति प्रभु 

सिध्दिदायक  गजवदन

☆ 2 ☆ 

☆  गणेश वंदना

आदि वन्द्य मनोज्ञ गणपति

सिद्धिप्रद गिरिजा सुवन

पाद पंकज वंदना में नाथ

तव शत-शत नमन

व्यक्ति का हो शुद्ध मन

सदभाव नेह विकास हो

लक्ष्य निश्चित पंथ निश्कंटक आत्मप्रकाश हो

हर हृदय आनंद में हो

हर सदन में शांति हो

राष्ट्र को समृद्धि दो हर विश्वव्यापी भ्रांति को

सब जगह बंधुत्व विकसे

आपसी सम्मान हो

सिद्ध की अवधारणा हो

विश्व का कल्याण हो

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #249 ☆ भावना के दोहे – अम्मा ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – अम्मा)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 249 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – अम्मा  ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

अम्मा जाती खेत में, करने को वो काम।

दिन भर काटे धान वो, करे नहीं आराम।।

*

नंगे पाँव वो चलती, है मटकी का भार।

पगडंडी का रास्ता, सहे धूप की मार।।

*

अंबवा की डाली हिले, बैठे इसकी छाँव।

मस्त -मस्त बयार चले, है प्यारा ये  गाँव।।

*

हरियाली को देखकर, मन में बसता चित्र।

सखियां आती याद हैं, बिछड़े सारे मित्र।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मैं कौन हूँ?” ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता – “मैं कौन हूँ?” ☆ डॉ निशा अग्रवाल

मैं अपना परिचय क्या दूँ,

कि मैं क्या हूँ, मैं कौन हूँ?

 *

मैं एक विचार, एक धारा हूँ,

सपनों से जुड़ा, एक धागा हूँ।

 *

मेरे मन में सागर की गहराई,

विचारों में अंबर की ऊँचाई।

 *

परिवर्तन की मैं पुकार हूँ,

नव-निर्माण की मैं रफ्तार हूँ।

 *

मैं स्वप्न हूँ उन आँखों की,

जो खोज रहे राह जीवन की।

 *

मैं दीप हूँ उस अंधकार में,

जहां हर तरफ है बस निराशा ही निराशा।

 *

मैं समय के संग चलती हूँ,

हर दिन कुछ नया रचती हूँ।

 *

मैं कर्म का प्रतीक, मैं मात्र एक प्रयास हूँ,

जीवन के हर पल का विश्वास हूँ।

 *

तो कैसे दूं मैं अपना परिचय,

कि मैं क्या हूँ, मैं कौन हूँ?

 *

मैं बस वो हूँ, जो जी रही हूँ,

अपने अस्तित्व की पहचान खोज रही हूँ।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

शिक्षाविद, पाठयपुस्तक लेखिका जयपुर, राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #21 – ग़ज़ल – मतलबी है ये जहाँ… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम – ग़ज़ल – मतलबी है ये जहाँ

? रचना संसार # 21 – ग़ज़ल – मतलबी है ये जहाँ…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

तीरगी में प्यार का ऐसा दिया रौशन करें

हो उजाला जिसका हर सू वो वफ़ा रौशन करें

 *

लुत्फ़ आता ही कहाँ है ज़िन्दगी में आजकल

मौत आ जाए तो फिर जन्नत को जा रौशन करें

 *

मतलबी है ये जहाँ क़ीमत वफ़ा की कुछ नहीं

हुस्न से कह दो न हरगिज़ अब अदा रौशन करें

 *

आलम -ए- वहशत में हूँ और होश मुझको है नहीं

वो तो ज़ीनत हैं कहो वो मयकदा रौशन करे

 *

इंतिहा- ए- तिश्नगी कोई मिटा सकता नहीं

कह दो बीमार-ए-मुहब्बत की दवा रौशन करें

 *

किस क़दर है आज कल खुद पर गुमां इन्सान को।

मीर कह दूँ मैं उन्हें गर वो फ़ज़ा रौशन करें

 *

रोज़ ही किरदार पे उठती रही हैं उँगलियॉं

कोई  उल्फ़त का नया अब सिलसिला रौशन करें

 *

हो गया मीना मुकम्मल ज़िन्दगी का ये सफ़र

टूटती साँसे कहें चल मक़बरा रौशन करें

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #231 ☆ कविता – कला, धर्म अरु संस्कृति… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता – कला, धर्म अरु संस्कृति… आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 230 ☆

☆ कविता – कला, धर्म अरु संस्कृति ☆ श्री संतोष नेमा ☆

राजनीति की कैद में, आये सब अखबार

सबका अपना नजरिया, सबका कारोबार

*

ख़बरें अब अपराध की, घेर रहीं अखबार

राजनीतिक उठापटक, छपे रोज भरमार

*

मीडिया चेनल बढ़ रहे, खबरें होतीं कैद

जहां लाभ मिलता वहां, होता वह मुस्तैद

*

कला, धर्म अरु संस्कृति, छपने को बैचेन

इन पर चलती कतरनी, लगे कभी भी बैन 

*

छपने का जिनको लगा, छपकू रोग महान

उनसे होती आमदनी, मिले बहुत सा दान

*

पहले सा मिलता नहीं, पढ़ने में संतोष

खबरों की इस होड़ में, दें किसको हम दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ नशामुक्ति पर दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ नशामुक्ति पर दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

करता नशा विनाश है, समझ लीजिए शाप।

ख़ुद आमंत्रित कर रहे, आप आज अभिशाप।।

*

नशा बड़ी इक पीर है, लिए अनेकों रोग।

फिर भी उसको भोगते, देखो मूरख लोग।।

*

नशा करे अवसान नित, जीवन का है अंत।

फिर भी उससे हैं जुड़े, पढ़े-लिखे औ’ संत।।

*

मत खोना तुम ज़िन्दगी, जीवन सुख का योग ।

मदिरा, जर्दा को समझ, खड़े सामने रोग।।

*

नशा मौत का स्वर समझ, जाग अभी तू जाग।

कब तक गायेगा युँ ही, तू अविवेकी राग।।

*

नशा आर्थिक क्षति करे, तन-मन का संहार।

सँभल जाइए आप सब, वरना है अँधियार।।

*

नशा लीलता हर खुशी, मारे सब आनंद।

आप कसम ले लीजिए, नशा करेंगे बंद।।

*

नशा नरक का द्वार है, खोलो बंदे नैन।

वरना तुम पछताओगे, खोकर सारा चैन।।

*

नशा मारकर चेतना, लाता है अविवेक।

नशा धारता है नहीं, कभी इरादे नेक।।

*

नशा व्याधि है, लत बुरी, नशा असंगत रोग।

तन-मन-धन पर वार कर,  लाता ग़म का योग।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आज क्यों रूठ गई कविता? ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆

डॉ प्रेरणा उबाळे

☆ कविता – आज क्यों रूठ गई कविता? ☆  डॉ प्रेरणा उबाळे 

 न प्रेम में शब्द उमड़ते

 न क्रोध में शब्द जुड़ते

जोड़-गाँठ से परे कविता

आज क्यों रूठ गई कविता?

*

प्रसाद, ओज, माधुर्य

सत्व, रज, तम

है भूल गई कविता

आज क्यों रूठ गई कविता?

*

लेखनी बह गई

कागज उड़ गया

अलंकार, छंद छोड़ चली कविता

आज क्यों रूठ गई कविता?

*

हिंडोल मन स्तब्ध कहीं

गम्य-अगम्य बोध नहीं

बुद्धि को पछाड़ देती कविता

आज क्यों रूठ गई कविता?

*

मनाने पर नहीं मानती

समझाने से नहीं समझती

क्यों सूझ नहीं रही कविता

आज क्यों रूठ गई कविता?

*

विगलित मन प्राणपखेरू

पलछिन में भ्रम तोड़ती कविता

“मैं” चूर-चूर मदमस्त सरिता

नयनधारा पीर जान कविता

करें सहज अनुराग अनीता

अब हाथ थाम लेती कविता

अब नहीं रूठती कविता

अब नहीं रूठेगी कविता

■□■□■

© डॉ प्रेरणा उबाळे

03 अगस्त 2024

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पहचान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पहचान ? ?

(कवितासंग्रह ‘चेहरे’ से।)

अव्यवस्थित से पड़े  

कुछ लिखे, कुछ अधलिखे काग़ज़,

मसि के  स्पर्श की प्रतीक्षा में रखे

सुव्यवस्थित कुछ अन्य काग़ज़,

एक ओर रखी खुली ऐनक,

धाराप्रवाह चलती कलम,

अभिव्यक्त होती अनुभूति,

भावनाओं का मानस स्पंदन,

हर पंक्ति पर आत्ममुग्ध अपेक्षा,

अपेक्षित अपनी ही प्रशंसा का गान,

क्या काफ़ी है इतनी

मेरे लेखक होने की पहचान…?

 *

खचाखच भरा सभागार,

प्रशंसा में उद्धृत साहित्यकार,

शब्दों से मेरी क्रीड़ा,

तालियों की अनुगूँज अपार,

औपचारिक पुष्पगुच्छों के रेले,

संग तस्वीर खींचाने की रेलमपेलें,

कृत्रिम मुस्कानों  का प्रत्युत्तर,

भोथरी ज़मीन पर खड़ा मेरा अपंग अभिमान

क्या काफ़ी है इतनी

मेरे लेखक होने की पहचान…?

 *

कुछ सम्मानों की चिप्पियाँ चिपकाए,

आलोचनाओं का प्रत्युत्तर

यथासमय देने की इच्छा मन में दबाए,

पराये शब्दों में मीन-मेख की तलाश,

अपने शब्द सामर्थ्य पर खुद इतराए,

लब्ध-प्रतिष्ठितों में स्थापित होने की सुप्त चाह,

नवोेदितों के बीच कराते अपनी जय-जयकार,

क्या काफ़ी है इतनी

मेरे लेखक होने की पहचान…?

 *

सर्द ठंड में ठिठुरती बच्ची को

सम्मान में मिली शॉल ओढ़ा देना,

अपनी रचनाओं से बुनी चादर पर

फुटपाथ के असहाय परिवार को सुला देना,

राह चलती एक आंधी माई को

सड़क पार करा देना,

भीख माँंगते नन्हें के गालों पर

अपने गीतों की हँंसी थिरका देना,  

 *

पिया की बाट जोहती को

गुनगुनाने के लिए अपने गीत देना,

बच्चों के  ठुकराने से आहत

वृद्ध को अपने शब्दोेंं की प्रीत देना,

परदेस गए बेटे का

घर चिठ्ठी लिखने,

मेरे ही शब्द टटोलना,

विदा होती बेटी को

दिलासा देने,

माँ का मेरे ही लोकगीत ओढ़ना,

 *

पीड़ित महिला के समर्थन में

नया गीत रच देना,

नफ़रत की फसलों में प्रेम का

नया बीज रोप देना,

उजाले के निवासियों के लिए

प्रकाश बाँंटने की

अनिवार्य रीत लिख देना,

अंधेरेे के रहवासियों के लिए

नया एक दीप रच देना,

 *

उपेक्षितों में शब्दों से

जागरूकता का मंत्र फूँक देना,

निर्दोषों के पक्ष में

कलम से युद्ध का

शंख फूँक देना,

 *

दंभ से दूरी, विनय का ज्ञान,

समझौतों को नकार

सच्चे आँसुओं की पहचान,

आहत को राहत,

दुखी के दुख का भान,

झूठ के खिलाफ सच्चाई का मान,

यह है-

मेरे लेखक होने की पहचान,

मेरी वेदना, मेरी संवेदना को

सामर्थ्य देनेवाली

माँ  शारदा, तुम्हें शतश: प्रणाम।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः। 🕉️

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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