हिन्दी साहित्य – सस्वर कविता ☆ कोरोना को करें पराजित – आचार्य भगवत दुबे ☆ स्वरांकन एवं प्रस्तुति श्री जय प्रकाश पाण्डेय

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

आचार्य भगवत दुबे

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(आज प्रस्तुत है हिंदी साहित्य जगत के पितामह  गुरुवार परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी की एक समसामयिक, प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कविता ” कोरोना को करें पराजित “हम आचार्य भगवत दुबे जी के हार्दिक आभारी हैं जिन्होंने मानवता के अदृश्य शत्रु ‘ कोरोना ‘ से बचाव एवं बचाव के लिए सेवारत चिकित्सकों एवं उनके सहयोगियों का आभार अपनी अमृतवाणी के माध्यम से  किया है।  इस कार्य के लिए हमें श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का सहयोग मिला है,  जिन्होंने उनकी कविता को  अपने  मोबाईल में  स्वरांकित कर हमें प्रेषित किया है।

ई-अभिव्यक्ति ने पूर्व में आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत आलेख अपने पाठकों के साथ साझा किया था  जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :

हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 3 पी एच डी (4थी पी एच डी पर कार्य चल रहा है) तथा 2 एम फिल  किए गए हैं। डॉ राज कुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के साथ रुस यात्रा के दौरान आपकी अध्यक्षता में एक पुस्तकालय का लोकार्पण एवं आपके कर कमलों द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए गए। आपकी पर्यावरण विषय पर कविता ‘कर लो पर्यावरण सुधार’ को तमिलनाडू के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। प्राथमिक कक्षा की मधुर हिन्दी पाठमाला में प्रकाशित आचार्य की कविता में छात्रों को सीखने-समझने के लिए शब्दार्थ दिए गए हैं।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के ही शब्दों में  
संस्कारधानी के ख्यातिलब्ध महाकवि आचार्य भगवत दुबे जी अस्सी पार होने के बाद भी सक्रियता के साथ निरन्तर साहित्य सेवा में लगे रहते हैं । अभी तक उनकी पचास से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी है। बचपन से ही उनका सानिध्य मिला है। कोरोना की विभीषिका के चलते मानव जाति पर आये भीषण संकट के संदर्भ में आचार्य भगवत दुबे जी से दूरभाष पर बातचीत हुई। लाॅक डाऊन और कर्फ्यू के साये में अपनी दिनचर्या  के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विपदा की घड़ी में सभी लोगों को अपने घर की देहरी के अंदर ही रहना चाहिए, घर से बाहर जाने से बचना चाहिए।अपना एवं अपने परिवार के स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए संयमित रहकर अपनी प्रिय अभिरुचि पर काम करते हुए व्यस्त रहना चाहिए।
जब हमने उनसे कोरोना समय पर लिखी रचनाओं की चर्चा की तो उन्होंने बताया कि इस विकट समय पर साहित्यकारों को जन-जन को जागरुक करने वाली रचनाऐं लिखनी चाहिए और समाज के अंदर फैली हताशा और निराशा को दूर करने के लिए मनोबल बढ़ाने वाली रचनाऐं पाठक के बीच आनी चाहिए। जब हमने आचार्य भगवत दुबे जी को फोन किया उस समय वे कोरोना समय पर कविता लिख ही रहे थे और कविता की अन्तिम चार पंक्तियाँ बचीं थीं जिसको पूरा कर हमारे अनुरोध पर उन्होंने सुनाया। चूंकि वर्तमान समय में इस कविता से जन जन के बीच जागरूकता आयेगी और हमारे स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल बढ़ेगा इसलिए हमने इस कविता को टेप कर ई-अभिव्यक्ति पत्रिका में प्रकाशित करने प्रेषित किया है।
आप परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी की प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कविता उनके चित्र अथवा लिंक पर क्लिक कर उनके ही स्वर में सुन सकते हैं। आपसे अनुरोध है कि आप सुनें एवं अपने मित्रों से अवश्य साझा करें:
स्वरांकन एवं प्रस्तुति – जय प्रकाश पाण्डेय
416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 41 ☆ नया दृष्टिकोण ☆ डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की एक अति संवेदनशील  सार्थक एवं  नारीशक्ति पर अपनी बेबाक कविता  “नया दृष्टिकोण ”.  डॉ मुक्ता जी  नारी शक्ति विमर्श की प्रणेता हैं ।  नारी जगत  में पनपे नए दृष्टिकोण  पर रचित रचना के लिए डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )     

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 41 ☆

☆ नया दृष्टिकोण  

 

मैं हर रोज़

अपने मन से वादा करती हूं

अब औरत के बारे में नहीं लिखूंगी

उसके दु:ख-दर्द को

कागज़ पर नहीं उकेरूंगी

द्रौपदी,सीता,गांधारी,अहिल्या

और उर्मिला की पीड़ा का

बखान नहीं करूंगी

मैं एक अल्हड़,मदमस्त

स्वच्छंद नारी का

आकर्षक चित्र प्रस्तुत करूंगी

जो समझौते और समन्वय से

कोसों दूर लीक से हटकर

पगडंडी पर चल

अपने लिये नयी राह का

निर्माण करती

‘खाओ-पीओ,मौज-उड़ाओ’

को जीवन में अपनाती

‘तू नहीं और सही’को

मूल-मंत्र स्वीकार

रंगीन वातावरण में

हर क्षण को जीती

वीरानों को महकाती

गुलशन बनाती

पति व उसके परिवारजनों को

अंगुलियों पर नचाती

उन्मुक्त आकाश में

विचरण करती

नदी की भांति

निरंतर बढ़ती चली जाती

 

परन्तु, यह सब त्याज्य है

निंदनीय है

क्योंकि न तो यह रचा-बसा है

हमारे संस्कारों में

और न ही है यह

हमारी संस्कृति की धरोहर

 

खौल उठता है खून

महिलाओं को

शराब के नशे में धुत्त

सड़कों पर उत्पात मचाते

क्लबों में गलबहियां डाले

नृत्य करते

अपहरण व फ़िरौती की

घटनाओं में लिप्त देख

सिर लज्जा से झुक जाता

और वे दहेज के इल्ज़ाम में

निर्दोष पति व परिवारजनों को

जेल की सीखचों के पीछे पहुंचा

फूली नहीं समाती

अपनी तक़दीर पर इतराती

नशे के कारोबार को बढ़ाती

देश के दुश्मनों से हाथ मिलाती

अंधी-गलियों में फंस

स्वयं को भाग्यशाली स्वीकारती

खुशनसीब मानती

क्योंकि वे सबला हैं,स्वतंत्र हैं

और हैं नारी शक्ति की प्रतीक…

जो निरंकुश बन

स्वेच्छा से करतीं

अपना जीवन बसर

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रकृति ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – प्रकृति ☆

प्रकृति ने चितेरे थे चित्र चहुँ ओर

मनुष्य ने कुछ चित्र मिटाये

अपने बसेरे बसाये,

 

प्रकृति बनाती रही चित्र निरंतर,

मनुष्य ने गेरू-चूने से

वही चित्र दीवारों पर लगाये,

 

प्रकृति ने येन केन प्रकारेण

जारी रखा चित्र बनाना

मनुष्य ने पशुचर्म, नख, दंत सजाये

 

निर्वासन भोगती रही

सिमटती रही, मिटती रही,

विसंगतियों में यथासंभव

चित्र बनाती रही प्रकृति,

 

प्रकृति को उकेरनेवाला

प्रकृति के खात्मे पर तुला

मनुष्य की कृति में

अब नहीं बची प्रकृति,

 

मनुष्य अब खींचने लगा है

मनुष्य के चित्र..,

मैं आशंकित हूँ,

बेहद आशंकित हूँ..!

 

घर पर रहें। स्वस्थ और सुरक्षित रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 10:21 बजे, 21.8.2019)

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मन के पीछे कोई ☆ डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

( ई – अभिव्यक्ति में डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी का हार्दिक स्वागत है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी ने चिकित्सा सेवाओं के अतिरिक्त साहित्यिक सेवाओं में विशिष्ट योगदान दिया है। अब तक आपकी नौ काव्य  कृतियां  प्रकाशित हो चुकी हैं एवं तीन  प्रकाशनाधीन हैं। चिकित्सा एवं साहित्य के क्षेत्र में कई विशिष्ट पदों पर सुशोभित तथा  शताधिक पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी  से हम अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए उनके साहित्य की अपेक्षा करते हैं। आज प्रस्तुत है उनका एक अतिसुन्दर भावप्रवण गीत  मन के पीछे कोई । )

☆ मन के पीछे कोई ☆

 

एक बार पूछो अधरों से,प्यास भला कब सोयी।

मन है किसी और के पीछे, मन के पीछे कोई।।

 

अभिव्यक्ति को कभी सहारा, दिया नहीं शब्दों ने।

असफलता को ही  तो सब कुछ ,माना प्रारबधों ने।।

हँसते रहे कोर नयनो के,साँस -साँस पर रोयी।।

 

पीड़ाओं ने छंद लिखे हैं,कागज पर इस मन के।

आहट हुई द्वार पर,बदले,मौसम फिर  आँगन के।।

धूप नहीं आयी खुशियों की,कहीं राह में खोयी।।

 

संबंधों में पहले जैसा,अब विश्वास नहीं है।

उपवन अभिलाषाओं के हैं,पर मधुमास नही है।।

जीवन की हर एक विवशता,सुधियों ने ही ढोई।।

 

एक बार पूछो अधरों से,प्यास भला कब सोयी।

मन है किसी और के पीछे, मन के पीछे कोई।।

 

© डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

“श्री रघु गंगा” सदन,  जिया माँ पुरम फेस 2,  मेडिकल कालेज रोड सागर (म. प्र.)470002

मोबाईल:  9425635686,  8319605362

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कोरोना हाईकु ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना 

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  द्वारा मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में  हाईकु विधा में रचित कविता कोरोना हाईकु। )

☆ कोरोना हाईकु ☆

क्या मजदूर

क्या किसान जवान

सभी महान!!

 

पाल रहे हैं

सरकारी आदेश

हर इंसान!!

 

सहमी राहें

जनता को सिखाएँ

धैर्य शिक्षाएँ!!

 

कडी़ टूटेगी

ना आएंगे मरीज

खत्म कोरोना!!

 

कोरोना बैरी

लाख हों हेराफेरी

हारेगा पारी!!

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 41 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है नववर्ष एवं नवरात्रि  के अवसर पर एक समसामयिक  “भावना के दोहे ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 41 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  

 

विश्वास

हमको अब होने लगा,

तुझ पर ही विश्वास

किया समर्पित आपको,

मन में है ये आस।।

 

अभियान

कोरोना के कहर से,

कैसे बचे जहान।

इसे रोकने चल रहे

कितने  ही अभियान।।

 

मयंक

आज गगन पर छा गया,

रातों रात मयंक।

भरती मुझको चांदनी,

देखो अपने अंक।।

 

चांदनी

छाती जाती चांदनी,

है पूनम की रात।

होती है फिर से धरा,

एक और मुलाकात ।।

 

अभिनय

तेरा अभिनय देखकर,

मन में उठा गुबार।।

आंखों से अब पढ़ लिया,

झूठा तेरा प्यार।।

 

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हार ग‌ए यदि हिम्मत, समझो, सारी बाजी हारे हैं! ☆ – सुश्री शुभदा बाजपेई

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

सुश्री शुभदा बाजपेई

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी  हिंदी साहित्य  की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी  एक  आशावादी कविता  “हार ग‌ए यदि हिम्मत, समझो, सारी बाजी हारे हैं”. )

☆ कविता –  हार ग‌ए यदि हिम्मत, समझो, सारी बाजी हारे हैं ☆

 

दुनिया भर  मे कोरोना के‌‌, देखो  नखरे न्यारे हैं

सहमी -सहमी लगे जिन्दगी, सहमे चाँद सितारे हैं

 

आना -जाना बंद हुआ है, सैर -सपाटे छूट गए

नदिया रोती, सागर रूठा, टूटे सभी किनारे हैं

 

हाथ मिलाना छोड़ गए सब, नमस्कार की‌ जै-जै है

रिश्तों में दूरी-मजबूरी, मित्र सभी बेचारे हैं

 

साँस -साँस भारी जीवन पर मगर रोग से लड़ना है

हार ग‌ए यदि हिम्मत , समझो, सारी बाजी हारे हैं

 

आशाओं का दीप जला कर  हमें प्रतीक्षा करनी है

होगी सुबह, सदा कब रहने वाले ये अँधियारे हैं

 

कभी किसी के यहाँ नहीं,दिन सदा एक से रहते हैं

अधरों पर मुस्कान मधुर, आँखों में आँसू खारे हैं

 

© सुश्री शुभदा बाजपेई

कानपुर, उत्तर प्रदेश

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 32 ☆ राम-नाम अभिराम ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी की  श्री रामनवमी पर विशेष रचना   “राम-नाम अभिराम ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 32 ☆

☆ श्री रामनवमी विशेष – राम-नाम अभिराम ☆

चैत्र शुक्ल नवमी सुदी,लिये राम अवतार

राजा दशरथ के हुये,स्वप्न सभी साकार

 

रामचरित मानस लिखी,शुभ मुहूर्त शुरुआत

बाबा तुलसी दे गये, यह सुंदर सौगात

 

राम नाम के मंत्र का, करिये निशदिन जाप

उनके सुमिरन से मिटें, जग के सारे ताप

 

अविनाशी व्यापक परम्, सत्य चेतनानन्द

मणि दीपक प्रभु आप ही, राम परम आनन्द

 

राम भरोसे जग चले,व ही जीवनाधार

शरणागत का राम ही, करते बेड़ापार

 

हरते सारी व्याधियाँ, वैद्य जगत  के राम

रामबाण औषधि परम्, राम-नाम अभिराम

 

राम नाम से जागता, अंदर का विश्वास

आत्मशक्ति बढ़ती सदा, नव जीवन की आस

 

पाप ताप विपदा हरे, सदा राम का नाम

जीवन सुखमय है वही, मन में जिसके राम

 

राम-शरण “संतोष”प्रभु, राम-नाम धन धाम

चरण वंदना आपकी, करते हम श्रीराम

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #37 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 37 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

बाहर-बाहर खोजते, दुखिया रहा जहान ।

अंतर में ढूँढ ली, सुख की खान-खदान ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मानसपटल ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – मानसपटल   ☆

पहले आती थीं चिड़ियाँ,

फिर कबूतरों ने डेरा जमाया,

अब कौवों का जमावड़ा है..,

बदलते दृश्यों को मन के

पटल पर उतार रहा हूँ मैं

अपनी बालकनी में खड़ा

जीवन निहार रहा हूँ मैं..!

 

घर पर रहें, स्वस्थ रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 8:37 बजे,  1अप्रैल 2020

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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