हिन्दी साहित्य – कविता ☆ क्या होएगा? ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आज  प्रस्तुत है आचार्य संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ जी की  एक समसामयिक रचना    क्या होएगा?।)

☆ क्या होएगा? ☆

इब्नबतूता

पूछे: ‘कूता?

क्या होएगा?’

 

काय को रोना?

मूँ ढँक सोना

खुली आँख भी

सपने बोना

आयसोलेशन

परखे पैशन

दुनिया कमरे का कोना

येन-केन जो

जोड़ धरा है

सब खोएगा

.

मेहनतकश जो

तन के पक्के

रहे इरादे

जिनके सच्चे

व्यर्थ न भटकें

घर के बाहर

जिनके मन निर्मल

ज्यों बच्चे

बाल नहीं

बाँका होएगा

.

भगता क्योंहै?

डरता क्यों है?

बिन मारे ही

मरता क्यों है?

पैनिक मत कर

हाथ साफ रख

हाथ साफ कर अब मत प्यारे!

वह पाएगा

जो बोएगा

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२१-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 27 – हाथों में हाथ  ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर भावप्रवण  एवं सार्थक रचना ‘हाथों में हाथ । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 27 – विशाखा की नज़र से

☆ हाथों में हाथ ☆

 

तुमनें हाथ से छुड़ाया हाथ

और हाथ मेरा

दुआ मांगता आसमां तकता रहा

 

मुझे नहीं चाहिए अनामिका में

किसी धातु का कोई छल्ला

जो दबाव बनाता हो हृदय की रग में

 

तुम बस मेरी उंगलियों के

मध्य के खाली स्थान को भर दो

मेरे हाथ को बेवजह यूँ ही पकड़ लो

 

ताकि, मैं महसूस कर सकूं

मुलायम हाथ की मज़बूत पकड़

कह सकूं,

           “दुनिया को हाथ की तरह 

             गर्म और सुन्दर होना चाहिये “

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दीपिका साहित्य # 8 ☆ नयी रोशनी ☆ सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

( हम आभारीसुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी  के जिन्होंने ई- अभिव्यक्ति में अपना” साप्ताहिक स्तम्भ – दीपिका साहित्य” प्रारम्भ करने का हमारा आगरा स्वीकार किया।  आप मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं  में  भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल ही में आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह  “Sahyadri Echoes” में प्रकाशित हुई है। आज प्रस्तुत है आपकी  एक अतिसुन्दर समसामयिक प्रेरणास्पद कविता नयी रोशनी । आप प्रत्येक रविवार को सुश्री दीपिका जी का साहित्य पढ़ सकेंगे।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ दीपिका साहित्य # 8 ☆

☆ नयी रोशनी

 

नयी रोशनी फिर जगमगाएगी , वो सुबह जल्द ही आएगी,

हौसला अपना रखना बुलंद, ये ख़ुशी हमसे कब तक छुप पाएगी ,

एक जुट होने का है वक़्त , फिर देखो हर जीत हमारी कहलाएगी ,

हिम्मत ना हारना बस जरा सा रास्ता है बाकी, उस पार फिर खुशियाली लहरायेगी ,

जीवन है संघर्ष का नाम दूसरा, उसके बाद सफलता तुमसे हाथ मिलाएगी ,

ये उतार चढ़ाव तो हिस्सा है, चलते रहना ही जिंदादिली कहलाएगी ,

फबता है खिलखिलाना तुमको , ये चिंता तो चंद लम्हेँ ही रह पाएगी ,

नयी रोशनी फिर जगमगाएगी, वो सुबह जल्द ही आएगी . .

 

© सुश्री दीपिका गहलोत  “मुस्कान ”  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विश्व कविता दिवस विशेष – सुनो कविता ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  द्वारा विश्व कविता दिवस पर  रचित विशेष कविता सुनो कविता)

विश्व कविता दिवस विशेष – सुनो कविता

 

सुनो कविता

कविता दिवस पर रचना चाहती हूँ तुम्हें

जिसमें

गुनगुन निर्झर की

बोली सुने सृष्टि।।

कभी रोशनी की चादर से बुने दिन की कविता

कभी स्याह रेशम के ताने-बाने से बनी तारिका निशा की कविता।।

 

मानती हूँ कि बहुत गुनगुनाती है कविता मेरी

सूर कबीर तुलसी

रसखान की वाणी में

बहुत बोली है कविता!!

 

पर क्या आज वह वह बोलती है

जो बोलना चाहिए

क्या वह सुनाती है जो सुनाना चाहिए

वह दिखाती है जो दिखाना चाहिए।।

हाँ – – – सुनो कविता!!

सुनो कविता– सुनो ना

तुम्हें उगाने हैं बंजर में फूल

तुम्हें जगाने हैं बावरे बंजारे सपनें

तुम्हें जोड़नी है रिश्तों की टूटती डोर!!

बनना है तुम्हें वो साहित्य

जो समाज का दर्पण है!!

विश्व गुरु और सोन चिड़िया की कहानी वाला।।

चाणक्य और विदुर की रवानी वाला

अशफाक और आजाद की जवानी वाला।।

बनोगी ना?? रचोगी ना??चलोगी ना??

वहां तक मेरे साथ मेरी कविता।।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #25 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 25 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म छुटे तो सुख छुटे, आकुल-व्याकुल होय ।

धर्म जगे तो सुख जगे, हरखित पुलकित होय ।।

आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विरोधाभास ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – विरोधाभास ☆

 

मर्त्यलोक

यों विरोधाभास का

पुलिंदा निकला,

भ्रम और ब्रह्म में

एक सौ अस्सी अंश का

फासला निकला,

जिसे अविनाशी समझा

तन वह नश्वर था,

पर नश्वर में ही

नित्य का बसेरा निकला।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #25 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

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Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 25 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म छुटे तो सुख छुटे, आकुल-व्याकुल होय ।

धर्म जगे तो सुख जगे, हरखित पुलकित होय ।। 

  आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 39 ☆ कब तक न्याय होगा..? ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  समस्त स्त्री शक्ति को समर्पित हमारी न्याय प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह उठाती एक समसामयिक  कविता “ कब तक न्याय होगा.. ?।)
डॉ  भावना शुक्ल जी  एवं देश के कई संवेदनशील साहित्यकारों ने अपरोक्ष रूप से साहित्य जगत में एक लम्बी लड़ाई लड़ी है।
समस्त स्त्री शक्ति को  उनके अघोषित युद्ध में विजयी होने के लिए शत शत नमन  इस युद्ध में  सम्पूर्ण सकारात्मक पुरुष वर्ग भी आप के साथ  हैं और रहेंगे। इन पंक्तियों के लिखे जाते तक दोषी फांसी के फंदे पर लटकाये जा चुके हैं।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 39 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कब तक न्याय होगा.. ?

 

कब तक न्याय  होगा।

न्याय के लिए

सब अदालत का

दरवाजा खटखटाते है।

सही न्याय की गुहार लगाते है

मिलता नहीं है

न्याय  कभी

या मिलने में सालों लग जाते है

तब तक तड़प की आग

ठंडी हो जाती है ।

और

निकलती  है आह

कानून के लिए

कब तक न्याय  होगा…

सोचते हैं

फांसी के फंदे की जगह

सजा ऐसी मिले

जो तिल तिलकर मरे

सजा का अहसास

हो हर सांस

बरसों से यही रहती है आस

कब तक न्याय होगा

कानून से टूट जाता है भरोसा

क्योंकि कानून

वास्तव में है अंधा

वकीलों ने बना लिया है धंधा

वकील बच निकलने का

देते है सुझाव

और

तारीख पर तारीख बढ़ती जाती है

और

सब्र का टूट जाता है बांध।

दरिदों को नहीं आती शर्म

नहीं है उनके पास ईमान धर्म

किस मुंह से सजा की मांगते है माफी।

मन यही चाहता है

इनको दो ऐसी सजा

जिससे औरों के उड़ जाए होश

और

खत्म होगा जोश

लेकिन ऐसा होगा

तो

कोई और निर्भया नहीं तड़पेगी

लेकिन

कब तक न्याय होगा

और जब तक न्याय होगा

तब तक दरिदों की दरिंदगी

बढ़ती जायेगी

और

फांसी का फंदा

यूं ही लटकता रहेगा

इंतजार में……

जब तक न्याय होगा…

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

 

 

कब तक न्याय होगा..

 

कब तक न्याय  होगा।

न्याय के लिए

सब अदालत का

दरवाजा खटखटाते है।

सही न्याय की गुहार लगाते है

मिलता नहीं है

न्याय  कभी

या मिलने में सालों लग जाते है

तब तक तड़प की आग

ठंडी हो जाती है ।

और

निकलती  है आह

कानून के लिए

कब तक न्याय  होगा…

सोचते हैं

फांसी के फंदे की जगह

सजा ऐसी मिले

जो तिल तिलकर मरे

सजा का अहसास

हो हर सांस

बरसों से यही रहती है आस

कब तक न्याय होगा

कानून से टूट जाता है भरोसा

क्योंकि कानून

वास्तव में है अंधा

वकीलों ने बना लिया है धंधा

वकील बच निकलने का

देते है सुझाव

और

तारीख पर तारीख बढ़ती जाती है

और

सब्र का टूट जाता है बांध।

दरिदों को नहीं आती शर्म

नहीं है उनके पास ईमान धर्म

किस मुंह से सजा की मांगते है माफी।

मन यही चाहता है

इनको दो ऐसी सजा

जिससे औरों के उड़ जाए होश

और

खत्म होगा जोश

लेकिन ऐसा होगा

तो

कोई और निर्भया नहीं तड़पेगी

लेकिन

कब तक न्याय होगा

और जब तक न्याय होगा

तब तक दरिदों की दरिंदगी

बढ़ती जायेगी

और

फांसी का फंदा

यूं ही लटकता रहेगा

इंतजार में……

जब तक न्याय होगा…

 

डॉ भावना शुक्ल

 

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 30 ☆ संतोष के समसामयिक दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  के  “संतोष के समसामयिक दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 30 ☆

☆ संतोष के समसामयिक दोहे   ☆

अभियान

 

कोरोना को रोकने, छेड़ें नव अभियान

होगा तब ही सार्थक, तभी बचे  इंसान

 

कोरोना  के ख़ौफ़ से, सारा जग भयभीत

आस और विश्वास ही, अपने सच्चे मीत

 

सारी दुनिया में मचा, कोरोना का शोर

खूब छिपाया चीन ने, चला न उसका जोर

 

मयंक

 

मुखड़ा उनका देख कर, आया याद मयंक

शीतल उज्ज्वल चांदनी, जैसे उतरी अंक

 

विश्वास 

 

नेता खुद ही तोड़ते, जनता का विश्वास

जन मन फिर भी चाहता, बनी रहे यह आस

 

अभिनय

 

नेता अभिनय में कुशल, करते नाटक खूब

सत्ता लोभी हैं बहुत, कुर्सी ही महबूब

 

अभिनव

राजनीति में हो रहे, अभिनव बहुत प्रयोग

नेता करना चाहते, बस सत्ता का भोग

 

चाँदनी

शीतल धवला चाँदनी, मन भरती उत्साह

निकला पूनम चाँद जब, दिल से निकले वाह

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #24 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

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Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 24 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म सदृश रक्षक नहीं, धर्म सदृश ना ढाल ।

धर्म विहारी का सदा, धर्म रहे रखवाल ।।

आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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