हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 219 ☆ बाल गीत – कितने प्यारे रंग भर दिए… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 219 ☆ 

बाल गीत – कितने प्यारे रंग भर दिए ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

कितने प्यारे रंग भर दिए

चिड़ियों के ‘पर’ में किसने।

नव-नूतन संसार बनाया

क्या सचमुच ही ईश्वर ने।।

बड़ी मनोहर चिड़ियाँ आएँ

प्रतिदिन अपने बागों में।

साथ सदा मिलकर हैं रहतीं

गाएँ नूतन रागों में।।

 *

इनकी चोंच नुकीली अतिशय

मन भी देख लगा रमने।।

 *

काला , पीला , लाल ,सुनहरा

सजे परों के मोहक रंग।

खाएँ दाना बड़ी मगन हों

खेलें ,उड़ें करें न तंग।।

 *

रखना जल से भरे पात्र सब

धरा लगी लू से तपने ।।

 *

पेड़ लगेंगे , चिड़ियाँ चहकें

नीड़ बनेंगे विटपों के।

हरी-भरी सब धरती होगी

जल पीएँ भर मटकों के।

 *

सरल ,सहज सब जीवन जीएँ

सृष्टि लगेगी खुद सजने।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 70 ☆ मन बावरा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 70 ☆ मन बावरा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

बाँसुरी पर किसी ने

अधर रख दिए

भोर का मन खिला

बावरा हो गया।

*

देह गोकुल हुई

साँस का वृंदावन

फिर महकने लगा

गंध राधा का मन

*

रास रचती रहीँ

कामना गोपियाँ

सारा मधुवन छवि

साँवरा हो गया।

 * 

तट तनुजा के

हैं खिलखिलाने लगे

वृक्ष सारे ही

जल में नहाने लगे

*

चोंच भर ले

उजाले की पहली किरन

बृज का आँगन

पावन धरा हो गया।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 74 ☆ शराफ़त का उतारो तुम न जेवर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भावप्रवण विचारणीय रचना “शराफ़त का उतारो तुम न जेवर...“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 74 ☆

✍ शराफ़त का उतारो तुम न जेवर... ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

हमेशा तौलिए हर बात लोगो

करे दिल पर बड़ा आघात लोगो

 *

नदी तालाब दरिया और सागर

सभी कतरे की है सौगात लोगो

 *

ख़ुशी खाँसी खुनस मदिरा मुहब्बत

छुपा सकते नहीं ज़ज़्बात लोगो

 *

बचा सकते हैं तन मन बारिशों से

भिगो दे आँखों की है बरसात लोगो

 *

शराफ़त का उतारो तुम न जेवर

कोई दिखलाय जब औकात लोगो

 *

सबेरे पर यकीं रखिये वो होगा

नहीं रहना है गम की रात लोगो

 *

न इनका दीन औ ईमान कोई

नहीं हैवान की है जात लोगो

 *

यकीं है जीत पर मुझको मिलेगी

हुई शह है नहीं ये मात लोगो

 *

अरुण आनंद लेता इनको गाकर

भजन प्रेयर या होवें नात लोगो

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 71 – कोई मतलब की बात होने दो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कोई मतलब की बात होने दो।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 71 – कोई मतलब की बात होने दो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

दिल की धड़कन की, बात होने दो 

अब, मुहब्बत की बात, होने दो

जिससे, रोमांच हो शिराओं में 

उस शरारत की, बात होने दो

ज्येष्ठ संत्रास का, बिता आये 

अब तो, सावन की बात होने दो

अपने सौहार्द, हों सुदृढ़ फिर से 

अब न नफरत की बात होने दो

जिससे, सारी फिजाँ महक जाये 

उस तबस्सुम की, बात होने दो

वक्त, बरबाद मत करो अपना 

कोई, मतलब की बात होने दो

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 144 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 144 – मनोज के दोहे ☆

नेक दृष्टि सबकी रहे, होती सुख की वृष्टि।

जग की है यह कामना, मंगल मय हो सृष्टि।।

*

पोर्न फिल्म को देख कर, बिगड़ा है संसार।

नारी की अब अस्मिता, लुटे सरे बाजार।।

*

शिष्टाचार बचा नहीं, बिगड़ रहे घर-द्वार।

संस्कृति की अवहेलना,है समाज पर भार।।

*

तिलक लगाकर माथ में, सभी बने हैं संत।

अंदर के शैतान का, करा न पाए अंत।।

*

अंतरिक्ष में पहुंँच कर, मानव भरे उड़ान।

धरा सुरक्षित है नहीं, बिगड़ रही पहचान।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सहोदरा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सहोदरा ? ?

कैसी उमड़ रही है,

बरस क्यों नहीं जाती?

कैसी घुमड़ रही है,

उतर क्यों नहीं आती..?

बदली को प्रतीक्षा है,

अपने ही बोझ से समाप्त की,

कविता को प्रतीक्षा है

एक तीव्र आघात की,

दोनों सृजनशील,

दोनों ही उर्वरा हैं,

कविता और बदली,

सहोदरा हैं…!

 

© संजय भारद्वाज  

दोपहर 1:44 बजे, 3.07.2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः। 🕉️

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #254 ☆ वल्लरीला भेटताना… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 254 ?

☆ वल्लरीला भेटताना ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

पालवीला डोलताना पाहिले

अन कळीला हासताना पाहिले

 

ओठ मिटुनी काल होत्या बैसल्या

आज त्यांना बोलताना पाहिले

 

पाकळ्या एकेक झाल्या मोकळ्या

साद त्यांनी घालताना पाहिले

 

झाड होते एकटे रानात त्या

वल्लरीला भेटताना पाहिले

 

पावसाने केवढे आनंदले

मोर होते नाचताना पाहिले

 

आग ही पोळ्यास कोणी लावली

सैन्य सारे धावताना पाहिले

 

माणसाने घातलेली धाड ही

मी मधाला चोरताना पाहिले

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 206 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 206 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

किया देह का दोहन ।

किन्तु

अभी

पूरा नहीं हुआ था

गालव का अभीष्ट ।

शुल्क में

जुट पाये थे

केवल छै सौ अश्व |

चिन्तातुर

गालव ने

फिर स्मरण किया

मित्र गरुड़ का

परामर्श के लिये ।

गरुड़ ने पूछा –

क्यों मित्र

कृतकार्य हुए?

उदास गालव ने

कहा

अभी बाकी है

गुरुदक्षिणा का

चौथाई भाग ।

गरुड़ ने कहा-

‘ने

‘मित्र

पूर्ण नहीं होगा

तुम्हारा मनोरथ ।

और

इसका कारण है।

पूर्व काल में

राजा गाधि की पुत्री

सत्यवती को पत्नी रूप में पाने

ऋचीक मुनि ने

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 206 – “बहुत तसल्ली थी उनको…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत बहुत तसल्ली थी उनको...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 206 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “बहुत तसल्ली थी उनको...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

सारे बेटे रहे पालते

” पापा ” को स्नेह से

मरे एक दिन किन्तु पिताजी

हत्यारी मधुमेह से

 

कोई दवा काम ना

आयी तरह तरह बदली

जब भी जिस ने जो

बतलायी वह गोली निगली

 

सोया करते पूज्य पिता

तब बाहर की दालान में

जिस में भीग भीग जाते

थे चौमासे के मेह से

 

जब भी कोई व्यक्ति

माँगने दरवाजे आता

उसे मना की नहीं कभी

वह खुश होकर जाता

 

कीर्तिमान यह रहा पिता

का कुछ न कुछ देते

कहा किये थे याचक ना

खाली जाये इस गेह से

 

बहुत तसल्ली थी उनको

जायेंगे माघ मेला

तभी राम ने उन से था

खेला ऐसा खेला

 

प्राण पखेरू उड़े अचानक

रोक नहीं पाये

लगा कि सारा नेह चुक गया

उनका था इस देह से

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

08-09-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चेहरे ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चेहरे ? ?

आरोप है

लम्बे समय से

मैंने कुछ नया नहीं लिखा है,

मैं इसे नकारता हूँ

आरोपों का खंडन करता हूँ,

लो अपने लेखन का भेद

आज तुम्हारे सामने

प्रकट करता हूँ …..

 

दरअसल

मैं चेहरों पर लिखा करता था,

चेहरे मेरे लेखन का केंद्र होते थे,

बोलते चेहरे-तौलते चेहरे,

हँसाते चेहरे-रुलाते चेहरे,

सुंदर चेहरे-विद्रूप चेहरे,

लड़ाते चेहरे-झगड़े मिटाते चेहरे,

गुलाब की पंखुड़ियों से

खिलते-मुरझाते चेहरे…..

 

ऐसे चेहरे-वैसे चेेहरे,

हर रंग के चेहरे,

रंग-बिरंगे चेहरे,

इस तरफ चेहरे,

उस तरफ चेहरे,

हर तरफ चेहरे,

भीतर को सच्चाई से

बाहर जताते चेहरेे…..

 

मैं चेहरे देखता,

क़लम खुद चल पड़ती,

कई रंग कागज़ पर बिखरते,

रचना बन पड़ती,

तुम इसे पढ़ते,

मैं तुम्हे पढ़ता,

तुम्हारे रंग के सहारे

फिर एक नयी रचना गढ़ता…..

 

चेहरे अब बेरंग हो गए हैं,

हँसना-हँसाना,

रोना-रुलाना,

रूठना-मनाना,

सब कुछ एकदम सधा हुआ,

मापा हुआ-तौला हुआ…..

 

इंचों में गिनी जाती मुस्कानें,

मिलीमीटर में आँसू के पैमाने,

भावनाओं के

सुनिश्चित गणितीय चौखट के

पहरेदार हो चले हैं,

चेहरे अब निर्विकार हो चले हैं…..

 

रचता तो मैं अब भी हूँ,

क़ाग़ज़ों पर रंग

तुम ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो,

मेरा लिखना बदस्तूर जारी है

तुम पढ़ सको तो पढ़ लो…!

© संजय भारद्वाज  

(कवितासंग्रह ‘चेहरे’ से।)

अध्यक्षहिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः। 🕉️

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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