हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 15 ☆ पथरीली आँखें ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “पथरीली आँखें ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 15 ☆

☆ पथरीली आँखें

 

जब खुश होने पर

तुम्हारी आँखों में चमक न आये,

जब ग़म में डूबने पर

तुम न ही पलकें मीच सको,

न ही आंसू बहा सको,

जब तुम्हारी आँखें

पत्थर हो जाएँ,

तब तुम

डुबा देना ख़ुद को

जुस्तजू की चाशनी में…

 

सुनो,

इस जुस्तजू की इस चाशनी में

घुल जाएगा आँखों का

सारा पथरीलापन

और उन आँखों में आकर बस जायेंगे

जोश के जुगनू!

 

इन जुगनुओं की रौशनी से

तुम यूँ इतराकर चलना

कि सारी दुनिया

तुम्हें देखती ही रह जाए

और दाँतों तले उंगली दबा ले!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ # 7 – विशाखा की नज़र से ☆ रंगरेज़ ☆ – श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी रचना रंगरेज़ अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 7 – विशाखा की नज़र से

 

☆ रंगरेज़ ☆

 

तुम बन गए हो ,

मेरी यादों में पपड़ी के परत से

बन गई हूँ मैं रंगरेज़,

रंगती हूँ, यादों को

मनचाहे रंग से ।

 

ढकती हूँ तुम्हे हर बार,

कुरेदकर गहरे रंग से

कि मेरे जीवन का हल्का रंग,

न शामिल हो,

तेरे गहरे रंग में ।

 

कल, आज और कल को,

मैंने रंगा है सुनहरे रंग से

तुम थे शामिल,

उथले कभी गहरे नीले रंग से ।

 

लगी मोर के पंख सी

मेरी यादें,

इन सारे रंगों से

 

सजा लिया इसे कभी,

अपने मुकुट पर

या रच दिया “मेघदूतम”

बन कालिदास यादों के पंख से

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – कविता / ग़ज़ल ☆ वजूद ☆ – डाॅ मंजु जारोलिया

डाॅ मंजु जारोलिया

 

(संस्कारधानी जबलपुर से सुप्रसिद्ध लेखिका  डाॅ मंजु जारोलिया जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप साहित्य साधना में लीन हैं एवं आपकी रचनाएँ विभिन्न स्तरीय पात्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आशा है हम भविष्य में आपकी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करते रहेंगे।)   

 

 ☆ वजूद ☆

 

अपने हयात से रूसवा कर दो,

अपने ख्वाबों से तुम रिहा कर दो

तेरी बातों में मेरा ज़िक्र नहीं

अपनी बातों से तुम ख़फा कर दो

 

तूने सौदा मेरा किया था कभी

मेरे नुकसान का नफ़ा कर दो

मुझको तुने जो बेवफ़ा था कहा

अपने जुमले में तुम वफ़ा कर दो

 

तेरी फ़ितरत ही कुछ ऐसी है

मेरे रकीबों पे जफ़ा कर दो

गज़ल में तेरी मिरा वजूद नहीं

अपने ख्यालों से तुम दफ़ा कर दो

 

©  डाॅ मंजु जारोलिया
बी-24, कचनार सिटी, जबलपुर, मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साहित्य निकुंज # 20 ☆ दोहे ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ  -साहित्य निकुंज”के  माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी  के अतिसुन्दर  “दोहे ”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 20 साहित्य निकुंज ☆

 

☆ दोहे

 

देख शरद की चाँदनी,

झूम उठा है चंद

पूनम के आगोश में,

हैं जीवन मकरंद।

 

देते हैं शुभकामना,

बाँट सको तुम प्यार।

जीवन में खुशियाँ सभी,

हर दिन हो त्यौहार।।

 

जो समझा सके मन को,

है चाबी वो खास।

पहुँच सकेगा  है वहीं,

होगा दिल के पास।।

 

मन से मालामाल वहीं,

जो दोषों से दूर।

जीवन में खुश है वहीं,

खुशियों से भरपूर।।

 

राजनीति का शोरगुल

छल छन्दी व्यवहार।

श्वेत कबूतर उड़ गए

अपने पंख पसार।।

 

रचती जाती पूतना ,

षड्यंत्री हर जाल ।

मनमोहन तो समझते,

उसकी हर इक चाल।।

 

महँगाई का दंश हम,

सहते हैं हर बार।

लुटते-लुटते लुट गए,

सबके ही घर बार।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 8 ☆ सबसे सुंदर मेरा गाँव ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष”  की अगली कड़ी में प्रस्तुत है उनकी  एक भावप्रवण रचना  “सबसे सुंदर मेरा गाँव ।”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकेंगे . ) 

 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 8 ☆

☆  सबसे सुंदर मेरा गाँव ☆

 

सबसे सुंदर मेरा गाँव ।

जहां न कोई किलकिल-काँव।।

सबसे सुंदर मेरा गाँव।

 

खेरे खूँटे बैठी माई ।

करती जो सबकी सुनवाई ।।

जहां न चलते खोटे दाँव।

सबसे सुंदर मेरा गाँव ।।

 

भैरव बाबा  करते रक्षा ।

गांव-गली की रोज सुरक्षा ।।

सबका उनसे बड़ा लगाव ।

सबसे सुंदर मेरा गाँव ।।

 

मेहनत की सब रोटी खाते।

भाईचारा खूब निभाते।।

रखते मन में निश्छल भाव ।

सबसे सुंदर मेरा गाँव ।।

 

सादा जीवन प्रीति निराली ।

सच्चाई की पीते प्याली ।।

रहता सदा यहाँ सदभाव ।

सबसे सुंदर मेरा गाँव ।।

 

ताल-तलाई हमें लुभाते

मंदिर भजन-कीरतन गाते

चौपालों में धरम-पड़ाव ।

सबसे सुंदर मेरा गाँव ।।

 

सबके मन “संतोष” सरलता

संबंधों में बड़ी सहजता ।।

रखते नहीं द्वेष-दुर्भाव ।

सबसे सुंदर मेरा गाँव ।।

 

कहते जिसको आदेगाँव ।

जहाँ प्यार की शीतल छाँव।।

सबसे सुंदर मेरा गाँव ।

जहाँ न कोई किलकिल-काँव।।

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य # 19 – बेटियाँ…..☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  बेटियों पर आधारित एक भावपूर्ण रचना   “बेटियाँ…..। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 19☆

 

☆ बेटियाँ….. ☆  

 

है अनन्त आकाश बेटियां

उज्ज्वल प्रखर प्रकाश बेटियां

और धरा सी जीवनदायी

जीवन का मधुमास बेटियां।

 

बिटिया से घर-आंगन महके

बिटिया गौरैया सी चहके

सबको सुख पहुंचाती बिटिया

स्वयं वेदनाओं को सह के।

 

बिटिया दर्दों का मरहम है

सृष्टि की कृति सुंदरतम है

निश्छलता करुणा की मूरत

मोहक मीठी सी सरगम है।

 

बिटिया है पावन गीता सी

सहनशील है माँ सीता सी

नवदुर्गा का रूप बेटियाँ

निर्मल मन पावन सरिता सी।

 

बिटिया घर की फुलवारी है

बिटिया केशर की क्यारी है

चंदन की सुगंध है बिटिया

बिटिया शिशु की किलकारी है।

 

बिटिया है आँखों का पानी

कोयल की मोहक मृदु वाणी

बिटिया पहली किरण भोर की

गोधूलि बेला, सांझ सुहानी।

 

संस्कारों की खान बेटियां

दोनों कुल का मान बेटियां

जड़-चेतन सम्पूर्ण जगत का

ज्ञान ध्यान विज्ञान बेटियां।

 

बिटिया चिड़ियों का कलरव है

बिटिया जीवन का अनुभव है

माँ की ममता प्यार पिता का

बिटिया में सब कुछ सम्भव है।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ काव्य कुञ्ज – # 9 – फुलवारी की पुकार ☆ – श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। अब आप प्रत्येक बुधवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज पढ़ सकेंगे । आज प्रस्तुत है उनकी नवसृजित कविता फुलवारी की पुकार

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 9 ☆

☆  फुलवारी की पुकार

(विधा:मुक्तक कविता)

 

काश ! यह स्कूल उपवन होता,

बनते हम इसकी फुलवारी,

एक ही अर्ज है,

सुनो मन की बात अब हमारी।

 

बालवर्ग मिले दोस्त प्यारे,

ना थी कोई आपसी तकरार,

खेलते-कूदते बीत रहा था समय,

थी एक समय की गुहार,

चल आगे बढ़ प्यारे,

बहुत मिलेगा प्यार और कई फ़नकार

मुडकर ना देख पीछे,

देख आगे और जी ले दुनिया दुलारी,

सुन गुहार समय की,

बढ़ने को आगे हमने की तैयारी।

 

ककहरा से हुई शुरुआत,

फिर आई गणित की बारी,

रटना, याद करना, फिर पाठ पढ़ना,

लगने लगा भारी,

बस्ते के बोझ से,

बचपने की भूल रही है हँसी सारी, क्या करें

ना पढ़ना और ना ही हँसाना,

हुई अनचाही ऐसी लाचारी,

सिसकने-मुरझाने लगी है गुरूजी,

बचपने की आज यह फुलवारी।

 

आज हमें बचपन जीने दो,

मन आप विचारों से उड़ने दो,

कमल से बनती हैं तितलियाँ,

आप ही आप में,

सीखना, खेलना और गाना चाहती है

आप ही आप में,

बनाना चाहती हैं तितलियाँ जैसा

चाहे आप ही आप में,

हाल बहुत बुरा हैं गुरूजी,

दिमाग अब बंद, नहीं मिलती हलकारी।

 

बोझ बने जब पढाई,

फिर कैसे न होगी मन ही मन लड़ाई,

कहते हैं बच्चे फूल होते हैं,

पर क्या हुआ आज यह बेहाल,

बचपन छीना गया हमसे,

कैसे उभरे हम समय के ताल,

फिर से बचपन जीना चाहते है,

सुनाती है यह सारी फुलवारी,

गुरूजी, उजड़ने से पहले फिर एक बार,

खिलना चाहती है बचपन यह फुलवारी।

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 14 ☆ पहचान ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “पहचान”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 14 ☆

☆ पहचान  

कभी महकती हूँ,

कभी चहकती हूँ;

एक दुनिया खोयी है,

एक दुनिया पायी है!

 

अँधेरे पीछे छूट रहे हैं,

खुशियों के झरने फूट रहे हैं;

कभी तन्हाई थी,

अभी रौशनाई है!

 

अमावस्या ढल रही है,

धूप निकल रही है;

आँखें बनी हैं महताब,

चाल में हैं कई आफताब!

 

ए साईं! तू ही है रखवाला!

ए मौला! इस  रूप में तू ने ही ढाला!

मेरी जब से खुद से पहचान हुई,

दुनिया लग रही है नई नई!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ दीपावली विशेष –  मेरे देश में रामराज आ जायेगा ☆ – श्री मनीष तिवारी

श्री मनीष तिवारी 

 

(प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं ,अपितु राष्ट्रीय  स्तर ख्यातिलब्ध साहित्यकार -कवि  श्री मनीष तिवारी जी  की  दीप पर्व पर  एक  कविता  “मेरे देश में रामराज आ जायेगा।”)

☆ दीपावली विशेष –  मेरे देश में रामराज आ जायेगा ☆

 

जिस दिन अंतर्मन का सारा कलुष दूर हो जाएगा,

जिस दिन मानव का जीवन शोषण से बच जाएगा,

 

जिस दिन भाई विह्वल हो भाई को गले लगाएगा

जिस दिन धवल चंद्रमा नभ में  प्रेम राग ही गायेगा,

 

जिस दिन कहीं किसी को कोई कुत्सित न बहकायेगा,

जिस दिन नीला अम्बर आतिशबाजी से मुस्कायेगा,

 

जिस दिन हर घर बाग सरीखा खुशबू से भर जाएगा

जिस दिन कान्हा की बंशी में मधुर राग छिड़ जाएगा,

 

जिस दिन अहंकार का जग में भाव नहीं भरमायेगा

सच कहता हूँ मेरे देश में रामराज आ जायेगा।

 

आओ हम सब मिलकर के संकल्प यही अब दोहराएं

दीवाली पर हर देहरी को जगमग जगमग कर आये।

 

©  पंडित मनीष तिवारी, जबलपुर ,मध्य प्रदेश 

प्रान्तीय महामंत्री, राष्ट्रीय कवि संगम – मध्य प्रदेश

मो न 9424608040 / 9826188236

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हिन्दी साहित्य – ☆ कविता ☆ दीपावली विशेष –  माटी के दीपक जलें ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  आज प्रस्तुत है  उनकी  एक सामयिक रचना  “माटी के दीपक जलें”. ) 

☆ दीपावली विशेष –  माटी के दीपक जलें ☆

 

दीपक से दीपक जला, हुआ दूर अँधियार।

दीवाली में सभी के,रोशन हैं घर द्वार।।

 

लौटे थे वनवास से,आज अवध श्री राम।

झूम उठी नगरी सकल,हुई धन्य अभिराम

 

सदियों से ही हो रही,अच्छाई की जीत

नहीं बुराई ठहरती,यह सनातनी रीत

 

रहे स्वच्छ पर्यावरण,रखें हमेशा ध्यान

बारूदी माहौल से,रखें बचाकर मान।।

 

माटी के दीपक जलें,माटी ही पहचान

माटी से मानव बना,रख माटी का मान

 

आज रोशनी से भरी,घनी अमावस रात

नन्हा दीपक दे रहा,अँधियारे को मात

 

दीवाली की रात का,जगमग है परिवेश

लक्ष्मी माता कर रही,गृह में सुखद प्रवेश।

 

दीवाली की रोशनी,हर लेती अँधियार।

देखो दस्तक दे रहीं,खुशियाँ हर घर द्वार

 

दीपों की यह रोशनी,सबके लिए समान

ऊँच-नीच या पंथ का,कभी न रखती भान।।

 

खूब खरीदी कर रहे,सजा हुआ बाजार

जेब भरे धनवान के,है गरीब लाचार

 

दीप ज्ञान का जब जले,हटे तिमिर अज्ञान

दीप ब्रह्म है दीप शिव,दीप हृदय का गान

 

माँ लक्ष्मी द्वारे खड़ीं,सज्जित वन्दनवार

मिले शरण”संतोष” को,माँ की करुणाधार

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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