श्री मच्छिंद्र बापू भिसे
(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। अब आप प्रत्येक बुधवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज पढ़ सकेंगे । आज प्रस्तुत है उनकी नवसृजित कविता “खुशियों का सावन मनभावन ”।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 7 ☆
☆ खुशियों का सावन मनभावन ☆
गुरू का संग हमें लगे क्षणै-क्षणै सुहावन,
बारंबार खिले खुशियों का सावन मनभावन।
बचपन की बेला तोतले बोल मैं बोला,
पकड़ ऊँगली आसमान छूने जो चला,
कभी लोरी तो कभी कंधे देखा है मेला,
गुरू बन मात-पिता ने दिया नया उजाला,
हृदयतल में निवास करे जीवन हो पावन,
बारंबार खिले खुशियों का सावन मनभावन।
हाथों में हाथ लेकर श्रीगणेशा जब लिखा,
कौन था वह हाथ आज तक न दिखा,
जो भी हो गुरूजन आप थे बचपन के सखा,
की होगी शरारत पर सिखाना न कभी रूका,
हाथ कभी न छूटे अपना रिश्ता बने सुहावन,
बारंबार खिले खुशियों का सावन मनभावन।
ना समझ से समझदार जब हम बने,
गुरूजनों के आशीर्वचन हमने थे चुने,
बढ़ाकर विश्वास दिखाए खुली आँखों में सपने,
जो थे कभी बेगाने अब लगते हैं अपने,
गुरूजी आप बिन कल्पना से नीर बहाएँ नयन
बारंबार खिले खुशियों का सावन मनभावन।
अनुभव जैसा गुरू नहीं भाई बात समझ में आई,
गिरकर उठना उठकर चलना कसम आज है खाई,
हार-जीत तो बनी रहेगी अपनी क्षणिक परछाई,
न हो क्लेश न अहंकार सीख अमूल्य सिखाई,
सिखावन गुरू आपकी निज करता रहूँ वहन,
बारंबार खिले खुशियों का सावन मनभावन।
© मच्छिंद्र बापू भिसे
भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063
ई-मेल: [email protected] , [email protected]