हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #251 – 136 – “ज़िन्दादिली से जीता हैं ज़िंदगी को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल ज़िन्दादिली से जीता हैं ज़िंदगी को…” ।)

? ग़ज़ल # 136 – “ज़िन्दादिली से जीता हैं ज़िंदगी को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जिसके माथे पर चोट का निशान है,

यह आदमी एक मुकम्मल बयान है।

*

यायावरी उसकी गुल खिलाएगी ज़रूर,

उसके कदम बिजली नज़र में जहान है।

*

यह  दूसरों जैसा शख़्स दिखता तो है,

यारों पे मगर यह दिल से मेहरबान है।

*

ज़िन्दादिली से जीता हैं ज़िंदगी को,

ज़िंदगी जी लेना उसका अरमान है।

*

पुट्ठी इकलंगा धोबीपछाड़ मारता है,

वो मिट्टी से जुड़ा देशी पहलवान है।

*

उसके पास दिमाग़ तो दूसरों जैसा है,

परंतु ज़माने के हिसाब से शैतान है।

*

वो भी फिसला कठिन डगर पर कई दफ़ा,

मगर उसकी कामयाबी अजीमुश्शान  है।

*

दिखता भले ही आतिश होशियार चतुर,

ख़ुद को  जन्म से  समझता नादान है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लेखन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – लेखन ? ?

नित जागरण,

नित रचनाकर्म,

किस आकांक्षा से

इतना सब लिखा है?

उसकी नादानी हँसा गई

उहापोह याद दिला गई,

पग-पग पर, दुनियावी

सपनों से लड़ा है,

लेखक तो बस

लिखने के लिए बना है!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ युद्ध ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆

डॉ प्रेरणा उबाळे

☆ कविता – युद्ध ☆  डॉ प्रेरणा उबाळे 

दो खड्ग

दो मन

दो विचार

दो आचार

भयाक्रांत पुष्प

तारामंडल तमग्रस्त 

अपरिचित अपराजेय 

घटित अघटित

म्यान नियंत्रण

तोड़ समाप्त

खींच बाहर

खनक खनक….

*

खनक खनक

टूट टूट

रक्त रक्त

सिक्त आसक्त

पवित्र अपवित्र

खनक खनक …

*

छल कपट

नाश विनाश

साम दाम

दंड भेद

बाहू युद्ध

बुद्धि युद्ध

शक्ति युद्ध

भाव युद्ध

नेत्र युद्ध

मौन युद्ध

खनक खनक …

*

लहू लुहान

श्वास आह

उर मस्तिष्क

ध्वस्त विध्वस्त

युद्ध परास्त

नाद अनहद

पुकार सत्य

खड्ग अंत

खनक खनक …

*

तार छेड

तृप्त स्वर

लय सुर

ताल गति

प्रेम विशुद्ध

निरीह अबाध

*

स्व युद्ध

आत्म युद्ध

तन तर्पण

मन तर्पण

स्नेह अर्पण

अहं अर्पण 

श्री शिव

श्री सत्

श्री चरण

श्री सरन

झंकार नुपुर

अनुनाद ब्रह्म

*

नवनिर्माण

कर विहान

हो श्रेयस 

हो प्रेयस 

समस्त गगन

गूँज अनुगूँज

वर्धिष्णु 

त्रिलोचन

वर्धिष्णु 

आत्मज्ञान

■□■□■

© डॉ प्रेरणा उबाळे

23 अगस्त 2024

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 128 ☆ ।। मां शारदे की वंदना ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 128 ☆

।। मां शारदे की वंदना ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

हे मां शारदे है प्रार्थना विनम्र हम सब को ज्ञान दे।

हे वीणा वादिनी जीवन में क्या अच्छा बुरा संज्ञान दे।।

*****

विद्या की देवी  हर समस्या   के लिए ज्ञान विज्ञान दे।

हे मां सरस्वती कैसे हो यह भवसागर पार वो भान दे।।

कैसे बने सरल जीवन की कठिन राह वो अनुमान दे।

हे मां शारदे है प्रार्थना विनम्र हम सब को ज्ञान दे।

***

हे मां बागेश्वरी रहें विद्या विद्यार्थी मत हमें अभिमान दे।

कैसे करें हम सदा   रक्षा राष्ट्र की  वह स्वाभिमान   दे।।

कैसे रहें तन मन से शुद्ध मां वीणापाणी हमें वह ध्यान दे।

हे मां शारदे है प्रार्थना विनम्र हम सब को ज्ञान दे।।

*****

हे हंसवाहिनी विद्यादायनी भीतर मानवता का संचार कर।

श्वेत कमल विराजनी धैर्य बुद्धि विवेक का उपचार कर।।

मां भारती महाश्वेता देवी  उत्तम वर्तमान का वरदान दे।

हे मां शारदे है प्रार्थना विनम्र हम सब को ज्ञान दे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 192 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत – आदमी भगवान है… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण गीत  – “आदमी भगवान है…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 192 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत आदमी भगवान है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

जानता तो है कि वह दो दिनों का मेहमान है

पर सँजो रक्खा है कई सौ साल का सामान है।

जरूरत से ज्यादा रखता और कोई दिखता नहीं

आदमी सा भी कहीं दुनियाँ में कोई नादान है !।। १ ।।

*

आदमी को अपने उपर जो बड़ा अभिमान है

व्यर्थ उसका दम्भ झूठा ज्ञान औ’ विज्ञान है ।

खुद तो डरता, दूसरों की मौत से पर खेलता ।

आने वाले पल का तक उसको नहीं अनुमान है ।। २ ।।

*

हर घड़ी जिसके कि मन में स्वार्थ का तूफान है

नष्ट करने औरों को जिसने रचा सामान है

प्रेम से अपनों के पर जो साथ रह सकता नहीं

वह ज्ञान का धनवान है इंसान या शैतान है ? ।। ३ ।।

*

काम करना कठिन है कहना बहुत आसान है

प्रेम से उंचा न कोई धर्म है न ज्ञान है।

आदमी को इससे हिलमिल सबसे रहना चाहिये

सबको खुश रख खुश रहे तो आदमी भगवान है ।। ४ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कैंसर हॉस्पिटल ☆ श्रीमति लतिका बत्रा ☆

(पुकारा है ज़िन्दगी को कई बार -Dear CANCER … ये पुस्तक है कैंसर से संघर्ष और जीजिविषा की श्रीमति लतिका बत्रा जी की आत्मकथात्मक दास्तान। श्रीमति लतिका बत्रा जी के ही शब्दों में – “ये पुस्तक पढ़ कर यदि एक भी व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण सकरात्मकता से रौशन हो जाये तो अपना लिखा सफल मानूँगी।”
आज प्रस्तुत है उनकी ही कविता – “कैंसर हॉस्पिटल”। कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने इस कविता का अंग्रेजी भावानुवाद Oncology Sanatorium” शीर्षक से किया है।)
आप इस कविता का भावानुवाद इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं। 👉 Oncology Sanatorium – Captain Pravin Raghuvanshi, NM  

? कविता – कैंसर हॉस्पिटल – श्रीमति लतिका बत्रा ? ?

?

जीवन को लेकर दौड़ती – भागती सड़क

उस पार–                                                           

गदराये गुलमोहर और गेरुए पलाश

और

एक भव्य इमारत।

पसरी है एक अभिशप्त सृष्टि

और मृत्यु की वर्तनी

काँच के विशालकाय स्वचालित द्वारों की

कोई देहरी है ही नहीं

फिर भी,

लाँघ कर चले आये हैं भीतर

क्षोभ और ग्लानियों से भरे

सैंकड़ों संतप्त चेहरे

देहें कैद हैं युद्धबंदियों सी

ढो़ रहे हैं सभी  –

अभिशापित कीटों से भरे बंद बोरे

अतीत और वर्तमान के सारे

कलुषित कर्मों की व्यथा भरे ।

चिपके हैं आत्म वंचनाओं के कफ़न

जीवन की हर आस को कुतर कर ।

रोगी हैं सब ।

कुछ सद्यः परिव्राजकों से

घुटे सिर

परिनिर्वाणाभिमुख नहीं ,

अवस्थित है — उपालम्भ

पीड़ाओं से संतप्त।

भोग कर आये हैं जो

संघाती व्यथाओं का विस्तार

उसी में लौटने को विकल हैं

प्रकांड अभिलिप्साएँ ।

 *

कुछ योद्धा — दृढ़ – संकल्पी

भीमाकार विचित्र अद्भुत मशीनों को

साधते —

नील वस्त्र धारी ,

वीतरागी निर्लिप्त कर्मठ

यांत्रिक मानव

आदतन कर्मरत

निर्वस्त्र मांसल रोगी देहें

बाँध कर उन मशीनों में,

जाँचते-

टटोलते रोग

कामुकता – जुगुप्सा —

हर भाव है निषिद्ध यहाँ —

हर द्वार पर उकेरी गई है पट्टिका

 “प्रवेश  प्रतिबंधित “

 *

गले में स्टेथस्कोप डाले

धवल कोट धारी

शपथ बद्ध हैं—

नहीं होते द्रवित विचलित कंपित

विशिष्ट योग्यताओं का ठप्पा लगा है

 वेदना संवेदना पर

जिस की परिधि में हर देह  है बस एक

” ऑब्जेक्ट “

 *

ठसाठस भरे हैं लोग पर —

कोई भी वेदना – संयुक्त नहीं है

संवेदना से ।

अनुभूतियों के फफूँद लगे बीजों से

उपजती नहीं सहानुभूतियाँ

 *

अपनी संपूर्ण विचित्रता समेटे

औचक ही कहीं, कभी दिख जाती है

संभ्रमित जीवन वृत्तियाँ

जब

गुलाबी कोट पहने एक स्वप्नद्रष्टा

स्वयंमुग्धा नर्स दिख जाती है

कोहनियों भर

सुनहरा लाल चूड़ा पहने ….

जिजीविषा का आभा मंडल

बुहारता चलता है

उसके कदमों के नीचे

मृत्यु के इस शहर का हर काला साया ।

 *

बाकी…

वृत्तियाँ तो सभी कर्मरत हैं यहाँ

छटपटाता हुआ पीड़ाओं से

युद्धरत है हर कोई – द्रवित – विगलित

दर्द  —

सधन मृत्यु का

चश्मदीद गवाह बना बैठा है हर चेहरा

प्रतीक्षारत —

आशाओं के दरदरे हाथों में थाम कर

एक चुटकी ज़िन्दगी।

 *

कैंसर हॉस्पिटल है ये ।

?

© श्रीमति लतिका बत्रा   

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 19 – ग़ज़ल – अब मुख़्तसर करेगें… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम ग़ज़ल – अब मुख़्तसर करेगें… 

? रचना संसार # 19 – ग़ज़ल – अब मुख़्तसर करेगें … ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

ख़ुद की नज़र लगी है अपनी ही ज़िन्दगी को

ज़िंदा तो हैं मगर हम तरसा किये ख़ुशी को

महफूज़ ज़िन्दगानी घर में भी अब नहीं है

पायेगा भूल कैसे इंसान इस सदी को

 *

कैसी वबा जहाँ में आयी है दोस्तों अब

हालात-ए-हाजरा में भूले हैं हम सभी को

 *

हमदर्द है न कोई ये कैसी बेबसी है

ले आसरा ख़ुदा का बैठे हैं बंदगी को

 *

गर्दिश की तीरगी है आँखों में भी नमी है

उल्फ़त को ढूँढते थे पाया है दिल्लगी को

 *

अब मुख़्तसर करेगें हम ज़ीस्त का ये किस्सा

पैग़ाम-ए-इश्क़ देगें हम रोज आदमी को

 *

वहदानियत को उस की मीना न दो चुनौती

रहमत ख़ुदा की देखो मिलती है हर किसी को

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #247 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 247 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

पीहर की  सुधियाँ बढ़ी, आया जब त्यौहार ।

माँ बाबुल अब हैं नहीं, भीग  रहा है प्यार।।

*

भादों की है भावना, बरसे सावन  प्यार।

कहना तुम सबसे यही, आए हैं त्योहार।।

*

सावन ने मुझसे कहा, गाओ कजरी गीत।

मिलने साजन आ रहे, यही प्यार की रीत।।

*

बदरी काली छा गई, खूब हुई बरसात।

बरस रहा है प्यार तो, समझो ऐसी बात।।

*

कंठ पपीहे का हरा, रटे  हमेशा प्यास।

स्वाति बूँद की चाह में, बस पानी की आस।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #229 ☆ दो मुक्तक… पर्यटन ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है दो मुक्तक… पर्यटन आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 229 ☆

☆ दो मुक्तक जागरुकता ☆ श्री संतोष नेमा ☆

(संस्कारधानी जबलपुर पर आधारित)

दुश्मनों  का  है  काल जबलपुर

आयुध निर्माणी जाल जबलपुर

सैनिकों  की   है  यहां   छावनी

पर्यटन  का  मिसाल  जबलपुर

*

धुआंधार   है   अजब   निराला

बैलेंस   रॉक  यहां   दिल वाला

मदन महल का किला  पुरातनी

नर्मदा   आरती    करे   उजाला

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनुराग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अनुराग ? ?

तुम,

मेरे इर्द-गिर्द रहती हो,

सर्वदा, हर क्षण

आसपास अनुभव होती हो,

सुनो प्रिये,

किसी संकेत की आवश्यकता नहीं,

ना कभी दरवाज़ा खटखटाना,

जब मन चाहे, दौड़ी चली आना,

मुझे अनुरक्त पाओगी,

सदैव प्रतीक्षारत पाओगी,

जैसे हवा में होती है प्राणवायु,

नमी में बहता है जल,

घर्षण में बसती है आग,

ध्वनि में सिमटता है आकाश,

देह में माटी तत्व भरा होता है,

स्थूल में सूक्ष्म विचरता है,

वैसे ही हर श्वास में

नि:श्वास बनकर रहती हो तुम,

एक बात बताओ-

अपनी होकर भी,

इतनी डरी सहमी

दबे पाँव क्यों आती हो तुम?

केवल एक बार

नेह प्रकट करोगी तुम,

पर मैं बाहें फैलाकर खड़ा हूँ,

आजीवन तुम पर रीझा हूँ,

जब कभी हमारा मिलन होगा,

यह वचन रहा-

मुझ में समाकर

जी उठोगी तुम,

उस रोज़ सृष्टि में

जन्म लेगी नौवीं ऋतु…,

तुम, मुझे

सुन रही हो न मृत्यु..!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 7:35 बजे, 24 अगस्त 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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