मैत्री दिवस पर विशेष
डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की मित्रता पितृ पर दिवस पर विशेष एक पत्र कविता
हम भले ही मित्रता दिवस वर्ष में एक ही दिन मनाते और मित्रों का स्मरण करते हैं। किन्तु, मित्रता सारे वर्ष निभाते हैं। अतः मित्रता दिवस पर प्राप्त आलेखों एवं कविताओं का प्रकाशन सतत जारी है। कृपया पढ़ें, अपनी प्रतिक्रियाएँ दें तथा उन्हें आत्मसात करें।)
☆ मित्रता दिवस पर एक पत्र कविता ☆
नमस्कार, प्रिय मित्र!
तुम्हारा पत्र मिला
पढ़कर जाने
सब हालचाल
और कुशल क्षेम
के समाचार,
मैं भी यहाँ मजे में
स्वस्थ, प्रसन्नचित्त हूँ
सह परिवार।।
मित्र! तुम्हारा पत्र
सुखद आश्चर्य लिए
कुछ चिंताओं का
मंगलमय हल
अपने संग लेकर
आया है,
संबंधों के घटाटोप
रिश्तों के रूखेपन
भौतिक आकर्षण में
यह बारिश की
पहली फुहार
माटी की सौंधी गंध
प्रेम का शीतल सा
झोंका लाया है।।
यूँ तो मोबाइल पर
अक्सर अपनी भी
होती है बातें
पर उन बातों में
तकनीकी मिश्रण
के चलते
अपनेपन वाली
मीठी प्रेम चासनी का
हम स्वाद कहाँ ले पाते।
अधुनातन मोबाईल
द्रुतगामी यंत्रो की
भीड़भाड़ में
भटक गए हैं,
कुछ पर्वों, त्योहारों पर
हम रटे रटाये,
बने बनाये शब्द
शायरी, संदेसों के
बटन दबा कर
बस इतने पर
अटक गए हैं।।
ऐसे में यह पत्र
तुम्हारा, पाकर
मैं, अपने में
हर्ष विभोर हुआ
संबंधों की पुष्पलता
के रस सिंचन को
लिए लेखनी हाथों में
अंतर्मन का
आकाश छुआ।।
लिख – लिख
मिटा रहा हूँ, अब
हर बार शब्द बंजारों को
व्यक्त नहीं कर पाता हूँ
अपने मन के
उद्गारों को
शब्द व्यर्थ हो गए
भाव अंतर में जागे,
मित्र! समझ लेना,
तुम ही, जो लिखना है
अब इसके आगे।।
समय समय पर
कुशलक्षेम के पत्र
सदा तुम लिखते रहना,
घर में
सभी बड़े, छोटों को
यथायोग्य
अभिवादन कहना।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश