हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 94 ☆ जीत मिलती है उसे सच मानो… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “जीत मिलती है उसे सच मानो“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 94 ☆

✍ जीत मिलती है उसे सच मानो… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मेरे रब का जो इशारा होगा

तब तलातुम में किनारा होगा

 *

खेलने में न समझदारी है

खाक़ में कोई शरारा होगा

 *

मर गया है जो न सोचो वो नहीं

देखता बनके सितारा होगा

 *

नग की चोटी पे फले फूले है

किसकी रहमत ने सँवारा होगा

 *

एक ही बार में कर ली तौबा

इश्क़ मुझसे न दुबारा होगा

 *

उसका अपमान कभी हो सकता

क़र्ज़ जिसने न उतारा होगा

 *

जीत मिलती है उसे सच मानो

हार से जिसने उबारा होगा

*

माँगना हक़ था उठा कर सर को

हाथ को तुमने पसारा होगा

 *

नाम तो होगा न होगी इज़्ज़त

बह्र जैसा जो तू  खारा होगा

 *

अय अरुण आँख न दिखला हमको

अपना प्रतिकार करारा होगा

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ उस करिश्माई दरवेश के… ☆ श्री हेमंत तारे ☆

श्री हेमंत तारे 

(ई-अभिव्यक्ति में श्री हेमन्त तारे जी का स्वागत है। आप भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2014 में सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति उपरान्त अपने उर्दू भाषा से प्रेम को जी रहे हैं। विगत 10 वर्षों से उर्दू अदब की ख़िदमत आपका प्रिय शग़ल है। यदा- कदा हिन्दी भाषा की अतुकांत कविता के माध्यम से भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त किया करते हैं। “जो सीखा अब तक,  चंद कविताएं चंद अशआर”  शीर्षक से आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। आज प्रस्तुत है आपकी एक ग़ज़ल – उस करिश्माई दरवेश के…।)

✍ उस करिश्माई दरवेश के… ☆ श्री हेमंत तारे  

जिसे चाहा उस फ़न का मैं माहिर बना

जुनूँ था कि,  क़ादिर बनू,  क़ादिर बना

*

चाहिता तो,  मुर्शिद भी बन सकता था 

ग़मज़दा बशर देखे तो मैं काफ़िर बना

*

गाड़ी बंगला कोठी ये, सुकूं के सामां नही

सुकूं उसको मिला, जो कोई तारिक बना

*

उस करिश्माई दरवेश के मैं सदके जाउं

जिस संग को छुआ उसने वो नादिर बना

*

रब की ईबादत का सिला सबको मिला

कोई मुलाजिम बना तो कोई ताजिर बना

*

वाइज़ की सोहबत, सबको कहां हांसिल

मुझ कमज़र्फ को मिली और मैं आरिफ़ बना

*

मुश्किल घडी में सब बचकर निकल गये

‘हेमंत’ वो तेरा दोस्त था जो जाँनिसार बना

(क़ादिर  =  शक्तिमान,   मुर्शिद =  धर्मगुरु, ग़मज़दा बशर  =  दु:खी मनुष्य,  काफ़िर  = नास्तिक, तारिक  =  त्यागी,  संग = पत्थर,  नादिर = अमूल्य, ताजिर = सौदागर,   वाइज़ = धर्मोपदेशक, आरिफ़ = ज्ञाता,  जाँनिसार  = प्राण रक्षक)

© श्री हेमंत तारे

मो.  8989792935

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 89 – आज, जीवन मिला दुबारा है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आज, जीवन मिला दुबारा है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 89 – आज, जीवन मिला दुबारा है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

साथ जबसे मिला तुम्हारा है 

नाम, शोहरत पे अब हमारा है

*

जन्मतिथि याद थी नहीं अपनी 

आज, जीवन मिला दुबारा है

*

नाम, सबकी जुबान पर केवल 

हर तरफ, आपका-हमारा है

*

आज महफिल में मुझको लोगों ने 

आपके नाम से पुकारा है

*

तेरे सजदे में सारा आलम है 

कितना रंगीन ये नजारा है

*

तेरे बिन, किस तरह अकेले में 

वक्त हमने कठिन गुजारा है

*

तेरे बिन, एक पल रहूँ जिन्दा 

ऐसा जीना, नहीं गवारा है

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चमत्कार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चमत्कार ? ?

चमत्कार,

चमत्कार,

चमत्कार..!

चमत्कार के किस्से सुने सदा,

चमत्कार घटित होते

देखा नहीं कभी,

अपनी क्षमताओं का

चमत्कार उद्घाटित करो

और चमत्कार को

अपनी आँख के आगे

घटित होते देखा करो..!

?

© संजय भारद्वाज  

24 जनवरी 2025, रात्रि 2:39 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मधुरिम-बसन्त ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ मधुरिम-बसन्त ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

तुम आये हो  नव-बंसत बन कर

मेरे प्रेम – नगर में दुष्यंत बन कर

 

कुंठित हो चुकी थीं वेदनाएँ

बिखर   गई थीं सम्भावनाएँ

 

आज पथरीली बंजर ह्रदय की

धरा को चीर कर

फिर  फूटा एक प्रेम अंकुर…..

पतझड़ की डोली हो गई विदा

विदाई के गीत गाने  लगी वियोगी हवा

 

अतीत के गलियारों से उठने लगी

स्मृतियों की

मधुर-मधुर गन्ध

आशाओं के कुसुम

 मुस्काने  लगे  मंद-मंद

 

जीवन्त  हो गया भावनाओं का मधुमास

साँसों   में   भर  गया   मधुरिम  उल्लास

 

मेरे  भीतर   संवेदना   का   रंग   घोल   गया

अन्तर्मन  में   अलौकिक   कम्पन   छेड़ गया

 

नन्हीं कोंपलें  फूटी  सम्पूर्ण हुये टहनियों  के स्वप्न

एकटक  निहार  रही   हूँ  लताओं   का  आलिंगन

 

मन उन्माद से भरा देख रहा उषा  के  उद्भव की मधुरता

प्रेम  से  भीगी  ओस  की  बूंदों  की  स्निग्ध  शीतलता

 

फ़स्लों के फूलों से धरा का हो रहा श्रृंगार

सृष्टि  गा रही है  आत्मीयता  भरा  मल्हार

 

मन  चाहता है क्षितिज को बाहों  में  भर  लूँ

एक – एक   पल    तुम्हारे    नाम    कर   लूँ

 

नवल आभा से पुनः दमकने लगी हैं आशाएँ

अंगड़ाई    लेने    लगीं   कामुक  सी  अदाएँ

 

रंगों   से   सरोबारित   हुईं  मन  की   राहें

सुरभि  फूलों  से  भर  गयीं वृक्षों  की बाहें

 

मुझे आनंदित  कर रहा है मधुर हवाओं  का स्पर्श

अदृश्य     सा     तुम्हारी     वफ़ाओं    का  स्पर्श

 

 

तुम्हारे  आने से खिल उठी है

मेरी कल्पनाओं की चमेली

यह नव ऋतु भी लगने लगी

बचपन   की  सखी  सहेली

 

जीवन को  श्रृंगारित  करने  आये  हो– तुम

मेरे मौन को अनुवादित करने आये हो–तुम

 

हे नव बसन्त!

अब

कभी मत जाना

मेरे जीवन से ।

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 331 ☆ कविता – “महानता मां की…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 331 ☆

?  कविता – महानता मां की…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

महिमा मंडन कर खूब

बनाकर महान

मां को

मां से छीन लिया गया है

उसका स्व

मां के त्याग में

महिला का खुद का व्यक्तित्व

कुछ इस तरह खो जाता है

कि खुद उसे

ढूंढे नहीं मिलता

जब बड़े हो जाते हैं बच्चे

मां खो देती हैं

अपनी नृत्य कला

अपना गायन

अपनी चित्रकारी

अपनी मौलिक अभिव्यक्ति,

बच्चे की मुस्कान में

मां को पुकारकर

मां

उसका “मी”

उसका स्वत्त्व

रसोई में

उड़ा दिया जाता है

एक्जास्ट से

गंध और धुंए में ।

 

बड़े होकर बच्चे हो जाते हैं

फुर्र

उनके घोंसलों में

मां के लिए

नहीं होती

इतनी जगह कि

मां उसकी महानता के साथ समा सके ।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 161 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 161 – मनोज के दोहे ☆

मौसम कहता है सदा, चलो हमारे साथ।

कष्ट कभी आते नहीं, खूब करो परमार्थ।।

 *

जीवन में बदलाव के, मिलते अवसर नेक।

अकर्मण्य मानव सदा, अवसर देता फेक।।

 *

कुनकुन पानी हो तभी, तब होंगे इसनान।

कृष्ण कन्हैया कह रहे, न कर, माँ परेशान।।

 *

सूरज कहता चाँद से, मैं करता विश्राम।

मानव को लोरी सुना, कर तू अब यह काम।।

कर्मठ मानव ही सदा, पथ पर चला अनूप।

थका नहीं वह मार्ग से, हरा सकी कब धूप ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 215 – हर पल हो आराधना ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित अप्रतिम गीत हर पल हो आराधना”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 215 ☆

🌻 गीत 🌻 🌧️ हर पल हो आराधना 🌧️

हर पल हो आराधना, इस जीवन का सार।

सच्चाई की राह में, प्रभु संभाले भार।।

 *

कुछ करनी कुछ करम गति, कुछ पूर्वज के भाग।

रहिमन धागा प्रेम का, मन में श्रद्धा जाग।।

गागर में सागर भरे, पनघट बैठी नार।

हरपल हो आराधना, इस जीवन का सार।।

 *

बूँद – बूँद से भरे घड़ा, बोले मीठे बोल।

मोती की माला बने, काँच बिका बिन मोल।।

सत्य सनातन धर्म का, राम नाम शुभ द्वार।

हर पर हो आराधना, इस जीवन का सार।।

 *

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।

परहित सेवा धर्म का, सदा लगाना टेर।।

अंधे का बन आसरा, करना तुम उपकार।

हर पल हो आराधना, इस जीवन का सार।।

 *

चार दिनों की चाँदनी, माटी का तन ठाट।

काँधे लेकर चल दिये, लकड़ी का है खाट।।

घड़ी बसेरा साधु का, थोथा सब संसार।

हरपल हो आराधना, इस जीवन का सार।।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नर्मदा जयंती विशेष – नर्मदा – वंदना ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

नर्मदा – वंदना ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

(नर्मदा जयंती 4 फरवरी पर विशेष)

रेवा मैया नर्मदा, है तेरा यशगान।

तू है शुभ, मंगलमयी, रखना सबकी आन।।

 *

शैलसुता, तू शिवसुता, तू है दयानिधान।

सतत् प्रवाहित हो रही, तू तो है भगवान।।

 *

जीवनरेखा नर्मदा, करती है कल्याण।

रोग, शोक, संताप को, मारे तीखे बाण।।

 *

दर्शन भर से मोक्ष है, तेरा बहुत प्रताप।

तू कल्याणी, वेग को, कौन सकेगा माप।।

 *

नीर सदा बहता रहे, कंकर है शिवरूप।

तू पावन, उर्जामयी, देती सुख की धूप।।

 *

अमिय लगे हर बूँद माँ, तू है बहुत महान।

तभी युगों से हो रहा, माँ तेरा गुणगान।।

 *

प्यास बुझाती मातु तू, देती जीवनदान।

तू आई है इस धरा, बनकर के वरदान।।

 *

अमरकंट से तू निकल, गति सागर की ओर।

तेरी महिमा का नहीं, मिले ओर या छोर।।

 *

संस्कारों को पोसकर, करे धर्म का मान।

तेरे कारण ही मिला, जग को नया विहान।।

 *

अंधकार को मारकर, तू देती उजियार ।

पावन तूने कर दिया, रेवा माँ! संसार।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 224 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 224 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

पल रही थी

कोई कामना

कोई उत्तेजना ?

माधवी ।

अक्षत योनि एक धोखा है

मानसिक प्रपंच है

विज्ञान सम्मत नहीं ।

स्त्री के

शरीर की

संरचना

और

आयु के

प्राकृतिक

परिवर्तनों को विरुद्ध

कोई कैसे जा सकता है?

मानता हूँ

कि

नारी

होती है

नदी के मानिन्द,

दुष्प्रयासों के बावजूद

सदानीरा, निर्मल, पवित्र ।

किन्तु

कोई

सप्रयास

उसे

मलिन करे

बाँधे

तो

दोष किसका?

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares