डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’
(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन)
डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’
(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन)
डा. मुक्ता
निर्भया
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है एक सामयिक एवं सार्थक कविता ‘निर्भया’’)
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, ईमेल: drmukta51 @gmail.com
डा. मुक्ता
मुक्तक
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है सार्थक मुक्तक)
मौन की भाषा
© डा. मुक्ता,
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत,drmukta51 @gmail.com
डा. मुक्ता
शहादत
(डा. मुक्ता जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आप हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है एक सामयिक एवं सार्थक कविता ‘शहादत’)
आज मन बहुत हैरान-परेशान सा है
दिल में उठ रहा तूफ़ान-सा है
हर इंसान पशेमा-सा है
क्यों हमारे राजनेताओं का खून नहीं खौलता
पचास सैनिकों की शहादत को देख
उनका सीना फट क्यों नहीं जाता
कितने संवेदनहीन हो गए हैं हम
चार दिन तक शोक मनाते
कैंडल मार्च निकालते,रोष जताते
इसके बाद उसी जहान में लौट जाते
भुला देते सैनिकों की शहादत
राजनेता अपनी रोटियां सेकने में
मदमस्त हो जाते
सत्ता हथियाने के लिए
विभिन्न षड्यंत्रों में लिप्त
नए-नए हथकंडे अपनाते
काश हम समझ पाते
उन शहीदों के परिवारों की मर्मांतक पीड़ा
अंतहीन दर्द, एकांत की त्रासदी
जिसे झेलते-झेलते परिवार-जन टूट जाते
हम देख पाते उनके नेत्रों से बहते अजस्र आंसू
पापा की इंतज़ार में रोते-बिलखते बच्चे
दीवारों से सर टकराती पत्नी
आगामी आपदाओं से चिंतित माता-पिता
जिनके जीवन में छा गया है गहन अंधकार
जो काले नाग की भांति फन फैलाये
उनको डसने को हरदम तत्पर
दु:ख होता है यह देख कर
जब हमारे द्वारा चुने हुये नुमाइंदे
सत्ता पर काबिज़ रहने के लिए
नित नए हथकंडे अपनाते,
शवों को देख घड़ियाली आंसू बहाते,सहानुभूति जताते
सब्ज़बाग दिखलाते,बड़े-बड़े दावे करते
परंतु स्वार्थ साधने हित,पेंतरा बदल,घात लगाते
© डा. मुक्ता,
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत,drmukta51 @gmail.com
डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
विश्व शांति के दौर में, आतंकी विस्फोट
मानव मन में आई क्यों, घृणा भरी यह खोट
विकृत सोच से मर चुके, कितने ही निर्दोष
सोचो अब क्या चाहिए, मातम या जयघोष
प्रश्रय जब पाते नहीं, दुष्ट और दुष्कर्म
बढ़ती सन्मति, शांति तब, बढ़ता नहीं अधर्म
दुष्ट क्लेश देते रहे, बदल ढंग, बहुभेष
युद्ध अदद चारा नहीं, लाने शांति अशेष
मानवीय संवेदना, परहित जन कल्याण
बंधुभाव वा प्रेम ने, जग से किया प्रयाण
मानवता पर घातकर, जिन्हें न होता क्षोभ
स्वार्थ-शीर्ष की चाह में, बढ़ता उनका लोभ
हर आतंकी खोजता, सदा सुरक्षित ओट
करता रहता बेहिचक, मौका पाकर चोट
पाते जो पाखंड से, भौतिक सुख-सम्मान
पोल खोलता वक्त जब, होता है अपमान
रक्त पिपासू हो गये, आतंकी, अतिक्रूर
सबक सिखाता है समय, भूले ये मगरूर
सच पैरों से कुचलता, सिर चढ़ बोले झूठ
इसीलिए अब जगत से, मानवता गई रूठ
निज बल, बुद्धि, विवेक पर, होता जिन्हें गुरूर
सत्य सदा ‘पर’ काटने, होता है मजबूर
आतंकी हरकतों से, दहल गया संसार
अमन-चैन के लिए अब, हों सब एकाकार
मानव लुट-पिट मर रहा, आतंकी के हाथ
माँगे से मिलता नहीं, मददगार का साथ
आतंकी सैलाब में, मानवता की नाव
कहर दुखों का झेलती, पाये तन मन घाव
अपराधों की श्रृंखला, झगड़े और वबाल
शांति जगत की छीनने, ये आतंकी चाल
© विजय तिवारी “किसलय”, जबलपुर
श्री आशीष कुमार
Retired दोपहर
हेमन्त बावनकर
तिरंगा अटल है
अचानक एक विस्फोट होता है
और
इंसानियत के परखच्चे उड़ जाते हैं
अचानक
रह रह कर ब्रेकिंग न्यूज़ आती है
सोई हुई आत्मा को झकझोरती है
सारा राष्ट्र नींद से जाग उठता है
सबका रक्त खौल उठता है
सारे सोशल मीडिया में
राष्ट्र प्रेम जाग उठता है
समस्त कवियों में
करुणा और वीर रस जाग उठता है।
देखना
घर से लेकर सड़क
और सड़क से लेकर राष्ट्र
जहां जहां तक दृष्टि जाये
कोई कोना न छूटने पाये।
शहीदों के शव तिरंगों में लपेट दिये जाते हैं
कुछ समय के लिए
राजनीति पर रणनीति हावी हो जाती है
राजनैतिक शव सफ़ेद चादर में लपेट दिये जाते हैं
तिरंगा सम्मान का प्रतीक है
अमर है।
सफ़ेद चादर तो कभी भी उतारी जा सकती है
कभी भी।
शायद
सफ़ेद चादर से सभी शहीद नहीं निकलते।
हाँ
कुछ अपवाद हो सकते हैं
निर्विवाद हो सकते हैं
गांधी, शास्त्री, अटल और कलाम
इन सबको हृदय से सलाम।
समय अच्छे अच्छे घाव भर देता है
किन्तु,
समय भी वह शून्य नहीं भर सकता
जिसके कई नाम हैं
पुत्र, भाई, पिता, पति ….
और भी कुछ हो सकते हैं नाम
किन्तु,
हम उनको शहीद कह कर
दे देते हैं विराम।
परिवार को दे दी जाती है
कुछ राशि
सड़क चौराहे को दे दिया जाता है
अमर शहीदों के नाम
कुछ जमीन या नौकरी
राष्ट्रीय पर्वों पर
स्मरण कर
चढ़ा दी जाती हैं मालाएँ
किन्तु,
हम नहीं ला सकते उसे वापिस
जो जा चुका है
अनंत शून्य में।
समय अच्छे-अच्छे घाव भर देता है
जीवन वैसे ही चल देता है
ब्रेकिंग न्यूज़ बदल जाती है
सोशल मीडिया के विषय बदल जाते हैं
शांति मार्च दूर गलियों में गुम जाते हैं
कविताओं के विषय बदल जाते हैं।
तिरंगा अटल रहता है
रणनीति और राजनीति
सफ़ेद कपड़ा बदलते रहते हैं।
गंगा-जमुनी तहजीब कहीं खो जाती है
रोटी कपड़ा और मकान का प्रश्न बना रहता है
जिजीविषा का प्रश्न बना रहता है।
खो जाती हैं वो शख्सियतें
जिन्हें आप महामानव कहते हैं
उन्हें हम विचारधारा कहते हैं
गांधी, शास्त्री, अटल और कलाम
जिन्हें हम अब भी करते हैं सलाम।
© हेमन्त बावनकर
श्री विवेक चतुर्वेदी
नर्मदा – विवेक की कविता
(प्रस्तुत है जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी की एक भावप्रवण कविता – श्री जय प्रकाश पाण्डेय)
© विवेक चतुर्वेदी
श्री सदानंद आंबेकर
ब च प न
(श्री सदानंद आंबेकर,गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण से जुड़े हैं एवं गंगा तट पर 2013 से निरंतर प्रवासरत हैं । )
डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल
यहाँ सब बिकता है
(प्रस्तुत है डॉ उमेश चंद्र शुक्ल जी की एक बेहतरीन गजल)
खुला नया बाज़ार यहाँ सब बिकता है,
कर लो तुम एतबार यहाँ सब बिकता है॥
जाति धर्म उन्माद की भीड़ जुटा करके,
खोल लिया व्यापार यहाँ सब बिकता है॥
बदल गई हर रस्म वफा के गीतों की,
फेंको बस कलदार यहाँ सब बिकता है॥
दीन धरम ईमान जालसाजी गद्दारी,
क्या लोगे सरकार यहाँ सब बिकता है॥
एक के बदले एक छूट में दूँगा मैं,
एक कुर्सी की दरकार यहाँ सब बिकता है॥
सुरा-सुन्दरी नोट की गड्डी दिखलाओ,
लो दिल्ली दरबार यहाँ सब बिकता है॥
अगर चाहिए लोकतन्त्र की लाश तुम्हें,
सस्ता दूँगा यार यहाँ सब बिकता है॥
© डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल, मुंबई