डा. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी के अतिसुन्दर एवं भावप्रवण मुक्तक – एक प्रयोग।)
दुनिया में अच्छे लोग
बड़े नसीब से मिलते हैं
उजड़े गुलशन में भी
कभी-कभी फूल खिलते हैं
बहुत अजीब सा
व्याकरण है रिश्तों का
कभी-कभी दुश्मन भी
दोस्तों के रूप में मिलते हैं
◆◆◆
मैंने पलट कर देखा
उसके आंचल में थे
चंद कतरे आंसू
वह था मन की व्यथा
बखान करने को आतुर
शब्द कुलबुला रहे थे
क्रंदन कर रहा था उसका मन
परन्तु वह शांत,उदारमना
तपस्या में लीन
निःशब्द…निःशब्द…निःशब्द
◆◆◆
मेरे मन में उठ रहे बवंडर
काश! लील लें
मानव के अहं को
सर्वश्रेष्ठता के भाव को
अवसरवादिता और
मौकापरस्ती को
स्वार्थपरता,अंधविश्वासों
व प्रचलित मान्यताओं को
जो शताब्दियों से जकड़े हैं
भ्रमित मानव को
◆◆◆
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com