हेमन्त बावनकर
तिरंगा अटल है
अचानक एक विस्फोट होता है
और
इंसानियत के परखच्चे उड़ जाते हैं
अचानक
रह रह कर ब्रेकिंग न्यूज़ आती है
सोई हुई आत्मा को झकझोरती है
सारा राष्ट्र नींद से जाग उठता है
सबका रक्त खौल उठता है
सारे सोशल मीडिया में
राष्ट्र प्रेम जाग उठता है
समस्त कवियों में
करुणा और वीर रस जाग उठता है।
देखना
घर से लेकर सड़क
और सड़क से लेकर राष्ट्र
जहां जहां तक दृष्टि जाये
कोई कोना न छूटने पाये।
शहीदों के शव तिरंगों में लपेट दिये जाते हैं
कुछ समय के लिए
राजनीति पर रणनीति हावी हो जाती है
राजनैतिक शव सफ़ेद चादर में लपेट दिये जाते हैं
तिरंगा सम्मान का प्रतीक है
अमर है।
सफ़ेद चादर तो कभी भी उतारी जा सकती है
कभी भी।
शायद
सफ़ेद चादर से सभी शहीद नहीं निकलते।
हाँ
कुछ अपवाद हो सकते हैं
निर्विवाद हो सकते हैं
गांधी, शास्त्री, अटल और कलाम
इन सबको हृदय से सलाम।
समय अच्छे अच्छे घाव भर देता है
किन्तु,
समय भी वह शून्य नहीं भर सकता
जिसके कई नाम हैं
पुत्र, भाई, पिता, पति ….
और भी कुछ हो सकते हैं नाम
किन्तु,
हम उनको शहीद कह कर
दे देते हैं विराम।
परिवार को दे दी जाती है
कुछ राशि
सड़क चौराहे को दे दिया जाता है
अमर शहीदों के नाम
कुछ जमीन या नौकरी
राष्ट्रीय पर्वों पर
स्मरण कर
चढ़ा दी जाती हैं मालाएँ
किन्तु,
हम नहीं ला सकते उसे वापिस
जो जा चुका है
अनंत शून्य में।
समय अच्छे-अच्छे घाव भर देता है
जीवन वैसे ही चल देता है
ब्रेकिंग न्यूज़ बदल जाती है
सोशल मीडिया के विषय बदल जाते हैं
शांति मार्च दूर गलियों में गुम जाते हैं
कविताओं के विषय बदल जाते हैं।
तिरंगा अटल रहता है
रणनीति और राजनीति
सफ़ेद कपड़ा बदलते रहते हैं।
गंगा-जमुनी तहजीब कहीं खो जाती है
रोटी कपड़ा और मकान का प्रश्न बना रहता है
जिजीविषा का प्रश्न बना रहता है।
खो जाती हैं वो शख्सियतें
जिन्हें आप महामानव कहते हैं
उन्हें हम विचारधारा कहते हैं
गांधी, शास्त्री, अटल और कलाम
जिन्हें हम अब भी करते हैं सलाम।
© हेमन्त बावनकर