हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 16 – नवगीत – गुरुवर वंदना… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – गुरुवर वंदना

? रचना संसार # 16 – नवगीत – गुरुवर वंदना…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

अंतस में विश्वास भरो प्रभु,

तामस को चीर।

प्रेम भाव से जीवन बीते,

दूर हो सब पीर।।

 *

मान प्रतिष्ठा मिले जगत में,

उर यही है आस।

शीतल पावन निर्मल तन हो,

सुखद हो आभास।।

कोई मैं विधा नहीं जानूँ

गुरु सुनो भगवान।

भरदो शिक्षा से तुम झोली,

दो ज्ञान वरदान।।

शिष्य बना लो अर्जुन जैसा,

धनुषधारी वीर ।

 *

बैर द्वेष तज दूँ मैं सारी,

खोलो प्रभो द्वार।

न्याय धर्म पर चलूँ सदा मैं,

टूटे नहीं तार।।

आप कृपा के हो सागर,

प्रभो जीवन सार।

रज चरणों की अपने देदो,

गुरु सुनो आधार।।

सेवा में दिनरात करूँ प्रभु,

रहूँ नहीं अधीर।

 *

एकलव्य सा शिष्य बनूँ मैं,

रचूँ फिर इतिहास।

सत्य मार्ग पर चलता जाऊँ,

हो जग उजास।।

ब्रह्मा हो गुरु आप विष्णु हो,

कहें तीरथ धाम।

रसधार बहादो अमरित की,

जपूँ आठों याम।।

दीपक ज्ञान का अब जला दो,

गुरुवर दानवीर।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… नागपंचमी ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशित। गीत कलश (छंद गीत) और निर्विकार पथ (मत्तसवैया) प्रकाशाधीन। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 350 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… नागपंचमी ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

[(नागपंचमी) चौरसिया दिवस]

चौरसिया यह है दिवस, नागपंचमी आज ।

पान बेल को पूजते, करते पूजन काज ।।1!!

*

दूध पिलाते नाग को,  मिलता आशीर्वाद ।

धूप-दीप नैवैद्य को, चढ़ा दूर अवसाद ।। 2!!

*

रक्षा लक्ष्मी की करें, नाग कुण्डली मार ।

घर में बढ़ती है कृपा, धन वैभव संसार ।।3!!

*

चित्र बना पूजन करें, रहे मान्यता  साथ ।

द्वार विराजे नाग जो, सभी झुकाएँ माथ ।।4!!

*

पाँच नाग को आँगना, बैठा पूजे द्वार ।

भोग लगाते हम सभी, नागपंचमी वार ।।5!!

*

रखवाली कर खेत की, बढ़ा सम्पदा रोज ।

धन्य साग फूलें सभी, सबको देते भोज ।।6!!

*

चौरसिया करते सदा, लक्ष्मी रक्षा ओट ।

मिला तभी वरदान है, पान बरेजे खोट ।।7!!

*

खोटें जब भी पान को, नहीं काटता नाग ।

नाग कृपा बनती रहे, संतति किस्मत जाग ।।8!!

*

कर रक्षा परिवार की, करें नाग उद्धार ।

सभी बंधु मिलकर जपें, खुशी सजे संसार ।।9!!

*

चौरसिया बनके अभी, जन्में  खुशी अपार ।

पुण्य किये थे काज को, मिला यही परिवार ।।10!!

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश मो –8435157848

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 36 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 36 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

….और इसी संदर्भ की एक पुरानी कविता भी याद आ गई-

ऐसा लबालब

क्यों भर दिया तूने,

बोलता हूँ तो

चर्चा होती है,

चुप रहता हूँ तो

और भी अधिक

चर्चा होती है!

© संजय भारद्वाज  

अपराह्न 1:05 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ खामोशी… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आपका उपन्यास “औरत तेरी यही कहानी” शीघ्र प्रकाश्य। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता खामोशी… ।)  

☆ कविता ☆ खामोशी… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

बादल छाये आसमान में,

दिल झूमना चाहता है,

रिमझिम बारीश में,

कर रहा मना उदास मन,

खुश दिल को चीर रही खामोशी,

एक अनजान मौन छाया है,

एक खामोशी बस सब खत्म,

काट रही ख़ामोशी मानव को,

दिल कह रहा, नहीं खत्म…

अल्फ़ाज़ नहीं मिल रहे है,

अरे! यह क्या हो रहा है ?

कुछ भी तो मिल नहीं रहा,

मन करता है चिल्लाकर…

सबको इक्कट्ठा कर लें,

लेकिन हर्फे नहीं मिल रहे हैं,

ज़िक्र करना भी नहीं हो रहा है,

किसे पुकारे? अब कौन है?

इतना दुख जिंदगी में है,

नहीं मुस्कुराना, कतराता है मन…

मन को भी मनाना है,

पता है इन्सान को,

दुखती रग है खामोशी,

क्या यही है ज़िंदगी?

पूछ रहा है मन,

कमज़ोर दिल है मानव का,

साँसे भी चल रही तेज़ी से,

दिल की धड़कने भी तेज़ हुई,

यह क्या हो रहा है?

कुछ नहीं समझ आ रहा है,

सर्वत्र छाई खामोशी,

खामोशी चौंध रही ज़िंदगी को,

सुई की जगह ली है खामोशी ने,

नहीं कोई औज़ार चाहिए,

शब्दों के बीच स्वयं को ढूँढता,

खामोश जीवन है भयंकर,

अंधेरे में रोशनी की तरह,

उजाले की तरह चमका सूरज,

आज ढूँढ रहे रोशनी को,

जिंदगी की रोशनी खत्म,

हर तरफ अंधेरा, नहीं नहीं!

मुश्किल है, दिल को बयान करना…

एक चित्कार सब खामोश,

मन ने रोका इस दिल को,

नहीं बहाना कतरा आंसू का,

मुस्कुराते रहना भी है कठिन,

आज जब दूर हो रहा,

दिल का टुकडा, आँखों की रोशनी

उम्मीद मात्र एक परवरदीगार,

थामेगा हाथ दिल के टुकडे का

कर्ज है माँ का ईश्वर,

दुहाई है तुम्हें हे! अल्लाह,

जन्म भी दिया भगवान ने,

पृथ्वी पर लाया है, या खुदा!!

मन बहुत उदास कर रहा रोने को,

लेकिन आज मन है खामोश,

मत छूना खामोश मन को,

बिखर जाएगा सब कुछ,

नहीं मिला शब्द जिंदगी को,

मन को समेटकर,

खामोशी को चिरकर,

बयान कर रहा जिंदगी,

मुस्कुराना ही है जिंदगी,

मुस्कुराना ही है जिंदगी।

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 295 ☆ आलेख – मन की सुंदरता का फिल्टर… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 295 ☆

? कविता – मन की सुंदरता का फिल्टर? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

मोबाइल से खींची हुई

सेल्फी

पोस्ट करने से पहले

गुजरती हैं

तरह तरह के फिल्टर और ब्राइटनिंग एप्प्स से

कोई दाग नहीं दिखता

इंस्टा, व्हाट्स अप या फेसबुक की डीपी में

सैकड़ो लाइक्स मिलते हैं

हर खूबसूरत फोटो पोस्ट पर

अदा, लोकेशन, स्टाइल

हर कुछ

नयापन लिए हुए होता है

 

काश

मन की सुंदरता का भी

कोई

फिलर, और फिल्टर

हो, जो

दिल की कलुषता को

परिमार्जित कर

एक धवल छबि और

मोहक व्यक्तित्व

बना दे मेरा

और मैं उसके

सपनो का राजकुमार

बन कर उतर जाऊं

सीधे उसके हृदय पटल पर

शासन करने।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 215 ☆ बाल गीत – तितली रानी,  तितली रानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 215 ☆

बाल गीत – तितली रानी,  तितली रानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

तितली रानी,  तितली रानी

चली घूमने धरती जंगल।

पेड़ कटें,  कंकरीट उग रही

उसे डराता आज और कल।।

पंख सलोने,  रंग – बिरंगे

फूलों से वह करे दोस्ती।

घोर प्रदूषण जब से फैला

फूलों को वह रही खोजती।

 *

उलझें बच्चे मोबाइल में

तितली के सँग कब बीतें पल।

 *

घर उपवन आतीं थीं तितली

अब तो जानें कहाँ छिप गईं।

गौरैयाँ भी याद कर रहीं

ऐसा लगता सभी डर गईं।।

 *

बढ़ता मानव भाग रहा बस

जीवन नकली,  बढ़ी अकल।।

 *

पौधे रोपें घर और पार्कों

एसी,  वाहन करें नियंत्रित।

कपड़े के थैले प्रयोग हों

थैली प्लास्टिक हों प्रतिबंधित।।

 *

कीट,  तितलियां पक्षी सब ही

पर्यावरण को करें सबल।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #241 – कविता – ☆ मछलियों को तैरना सिखला रहे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता मछलियों को तैरना सिखला रहे हैं…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #241 ☆

☆ मछलियों को तैरना सिखला रहे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

आजकल वे सेमिनारों में, हुनर दिखला रहे हैं

मछलियों को कायदे से, तैरना सिखला रहे हैं।

 

अकर्मण्य उछाल भरते मेंढकों से

जम्प कैसे लें इसे सब जान लें

और कछुओं से रहे अंतर्मुखी तो

आहटें खतरों की, तब पहचान ले,

मगरमच्छ नृशंस, लक्षित प्राणियों को मार कर

हर्षित हृदय से निडर हो, जो खा रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

वे सतह पर, अंगवश्त्रों से सुसज्जित

किंतु गहरे में, रहे बिन आवरण है

वे बगूलों से, सफेदी में छिपाए 

कालिखें-कल्मष, कुटेवी आचरण है,

साधनों के बीच में, लेकर हिलोरें झूमते वे

 साधना औ” सादगी के भक्ति गान सुना रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

कर रहे हैं मंत्रणा, मक्कार मिलकर

हवा-पानी पेड़-पौधे, खेत फसलें

हो नियंत्रण में सभी, उनके रहम पर

बेबसी लाचारियों से, ग्रसित नस्लें,

योजनाएँ योजनों है दूर, अंतिम आदमी से

चोर अब आयोजनों में नीति शास्त्र पढ़ा रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

ये करोड़ीमल कथित सेवक

बिना ही बीज के पनपे कहाँ से

दाँव पर है देश की जनता

शकुनि से रोज चलते कुटिल पाँसे,

मिटाने रेखा गरीबी की, अमीरी के सपन

ये कागजी आयोग अंकों से हमें बहला रहे हैं।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 65 ☆ प्रेमचंद की खोज… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 65 ☆ प्रेमचंद की खोज… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

धनपतराय कहाँ हो तुम

प्रेमचंद को खोज रहे क्या?

*

प्रगतिशीलता के दोराहे

असमंजस उपजाते

अँग्रेजी के गुण गाते है

हिन्दी को गरियाते

*

धनपतराय कहाँ हो तुम

कर्मभूमि में खेत रहे क्या ।

*

मान सरोवर कथा-कहानी

ईदगाह का हामिद

रात पूस की किसने काटी

कफ़न ओढ़ता ज़ाहिद

*

धनपतराय कहाँ हो तुम

अलगू-जुम्मन नहीं रहे क्या।

*

फटे हुए जूतों में फ़ोटू

खिचवाते डरते हो

होरी धनिया वाली करुणा

जी भरकर सहते हो

*

धनपतराय कहाँ हो तुम

अब गोदान नहीं लिखते क्या ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 69 ☆ भले इंसान का जीना है मुश्किल… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “भले इंसान का जीना है मुश्किल“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 69 ☆

✍ भले इंसान का जीना है मुश्किल… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मसर्रत का यहाँ सूखा रहा है

ग़मों का कब ये थमना सिलसिला है

 *

भले इंसान का जीना है मुश्किल

लफंगों को यहाँ पूरा मज़ा है

 *

नचाती ज़िन्दगी दिन रात सबको

किसी कठपुतली सा आदम हुआ है

 *

पकड़ ले हाथ  तो फिर ये न छोड़े

क़ज़ा कब ज़िन्दगी सी बेवफ़ा है

 *

लगा इंसान मतलब साधने में

किसी का अब नहीं कोई सगा है

 *

गुनहगारों सियासत दाँ में यारी

नहीं डर तब कोई  कानून का है

 *

ग़मों का साथ रहना उम्र भर फिर

मुहब्बत का मेरा ये तर्ज़ुबा है

 *

जिसे आया है हालातों से लड़ना

शज़र सहरा में भी फूला फला है

 *

अरुण जो बाद तेरे भी हो ज़िंदा

नहीं वो शेर तू अब तक कहा है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बरसात… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

बरसात☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

खिडकी के बाहर लगातार,

बारिश हो रही है,

रूकने का नाम ही नहीं लेती!

*

बचपन से मुझे बारिश

बहुत पसंद है ,

घर के सामने एक,

बडा सा पेड था पीपल का ,

बरसात के दिनों में वो पेड़

मुझे बहुत अच्छा लगता था…..

मानो  नहा रहा हो ,

*

ओहरे का पानी झरझर बहकर,

न जाने कहाँ पहुँचता था,

पनघट पे पानी लेने,

आती थी औरतें… भीगती भागती!

बहुत सुंदर लगती थी !

*

बारिश तो हर साल

आती है ….बार बार !

लेकिन वो बचपन वाली,

बरसात,

पीपल का पेड़,

पनघट की चहल पहल,

अब वहाँ नहीं रही…

*

बदले है गाँव और शहर भी,

बरसात तो वही है ,

कल वाली परसो वाली… 

पीपल के पेड़ वाली !

*

इतने सालों के बाद ….

मुझे वो गाँव वाली

बरसात ही याद आती है,

इस बारिश का, उस बरसात से,

बहुत दूर का रिश्ता,

बताती  है !

☆  

© प्रभा सोनवणे

१६ जून २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares