हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 224 – “कितनी पीड़ायें नयनों से…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत कितनी पीड़ायें नयनों से...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 224 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “कितनी पीड़ायें नयनों से...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

एक सकोरा पानी दाना

रक्खा करती माँ

औरों की खातिर चिड़िया सी

उड़ती रहती माँ

 

छाती में दुनिया जहाँन की

लेकर पीडायें

आँचल भर उसको सारी

जैसे हों क्रीड़ायें

 

आगे खिड़की में आँखों के

चित्र कई टाँगे

कितनी पीड़ायें नयनों से

देखा करती माँ

 

बाहर हाँफ रही गौरैया

उस मुडेर तोती

जहाँ उभरती दिखी

सभी को आशा की धोती

 

गरमी गलेगले तक आकर

जैसे सूखगई

इंतजार में रही सूखती

पानी कहती माँ

 

लम्बे चौड़े टीमटाम है

बस अनुशासन के

जहाँ टैंकर खाली दिखते

नगर प्रशासन के

 

वहीं दिखाई देती सबकी

खुली सजल आँखें

इन्ही सभी में खुले कलश सी

छलका करती माँ

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

02-02-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कस्तूरी मृग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – कस्तूरी मृग ? ?

मैं परिधि पर जीना चाहता हूँ

पर केंद्र भी छोड़ नहीं पाता,

केंद्र और परिधि पर

एक साथ जीने की जिजीविषा,

अधर में बने रहने की

स्वयंसिद्ध तितिक्षा,

न वृत्त सिमटकर

बिंदु हो पाता है,

न सीमाओं का विस्तार कर

बिंदु परिधि बन पाता है,

लगता है

मनुष्य के विकास के

डार्विन के सिद्धांतों के साथ,

अनुभूति का

जब कोई इतिहास लिखेगा

तो यात्रा वृत्तांत में

वानरों के साथ

कस्तूरी मृग का नाम भी जुड़ेगा !

?

© संजय भारद्वाज  

24.09.2012

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 207 ☆ # “अखबार…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता अखबार…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 207 ☆

☆ # “अखबार…” # ☆

सुबह चाय की चुस्कियाँ  

और अखबार

हर शख्स है तलबगार

दिन अधूरा अधूरा सा है

बिन अखबार

पाठक होता है पूरा परिवार

 

टपरी वाला हो

या चाय की दुकान

मजदूर हो या किसान

झोपड़ी हो या ऊंचा मकान

स्टूडेंट हो या विद्वान

सब की जरूरत अखबार है

सब करते इसका इंतजार है

 

कुछ अच्छी खबरें

कुछ बुरी खबरें होती हैं

कुछ सच्ची खबरें

कुछ जरूरी खबरें होती हैं  

कुछ हैडलाइन

ध्यान  आकर्षित करती है

कुछ हैडलाइन

जिज्ञासा बढ़ाती है

तो कुछ हैडलाइन

त्रासदी पर

मन को रुलाती है

 

आजकल,

खबरें सेंसर होकर आ रही हैं

पत्रकारिता गुणगान गा रही है

सच्ची आलोचना विलुप्त हो गई

पत्रकारों को लगी यह कैसी बिमारी है

 

पत्रकार अगर डर जाएगा तो

अखबार का मूल उद्देश्य बिखर जाएगा

कालांतर में वह अखबार मर जाएगा

व्यवस्था की विसंगतियां

फिर बाहर कौन लायेगा ?

 

अखबार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है

अखबार विस्फोटक खबरों से भरा एक बारूदी बम है

बड़ी-बड़ी सियासतों को

अखबारों ने बदल डाला है

जनता के दिलों में राज करते हैं

इन अखबारों में बहुत दम है

 

आजकल पेड न्यूज़ का चलन हो गया है

हर अखबार बस विज्ञापन हो गया है

मूल उद्देश्य से भटक गए हैं

संपन्नता और ऐशो आराम के लिए

पत्रकारिता का सिद्धांत दफन हो गया है

 

अखबार अगर लिख नहीं सच पाएगा

तो सामाजिक क्रांति का

आंदोलन कैसे रच पाएगा

सियासत को आईना ना दिखा सका

तो अपना लोकतंत्र कैसे बच पाएगा ?/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – रिश्ता… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता रिश्ता…।)

☆ कविता – रिश्ता… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

एक अजीब सा रिश्ता है,

मेरे तुम्हारे बीच में,

जिसका कोई नाम नहीं है,

कोई नाम हो ही नहीं सकता,                   

कोई नाम दिया ही नहीं गया,

नाम देना चाहे तो क्या नाम दें ?

आकर्षण, प्रेम, लगाव या क्या?

 

नाम कोई भी हो मगर एक,

अनाम रिश्ते की डोर बंधी है,

अटूट, अलौकिक, अकथनीय,

महसूस कराती हमारे बीच, 

दिल का स्पंदन, सांसों का बंधन, 

एक दूसरे की फिक्र,

एक दूसरे का जिक्र,

मिलने की चाहत,

ना बिछड़ने की हसरत,

एक अनजान सा रिश्ता,

अनोखा अनाम सा रिश्ता,

तुम ही बताओ क्या नाम दें?

बेनाम रिश्ते को क्या नाम दें?

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 222 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 222 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 221) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 222 ?

☆☆☆☆☆

रिश्तों का नूर तो

मासूमियत से है…

ज़्यादा समझदारियों से

रिश्ते  फ़ीके पड़ने लगते हैं..

☆☆

Lustre of relationship

Lies in its innocence…

Excess sensibility results

In fading of relationships .

☆☆☆☆☆

हक़ीकत की भीड़ से..

कुछ गुमशुदा सपने ढूँढ रहे हैं

आज कल हम अपनो में…

कुछ अपने ढूँढ रहे हैं …

☆☆

In the crowd of stark reality…

Looking for few missing dreams

Nowadays I’m searching for 

Very own in midst of our own…

☆☆☆☆☆

गुज़र जाते हैं खूबसूरत लम्हें

यूं ही मुसाफिरों की तरह..

यादें वहीं खडी रह जाती हैं

रूके रास्तों की तरह…

☆☆

Beautiful moments slip away

Just like the passengers…

Memories stagnate there

Like the paused paths…

☆☆☆☆☆

तेरे दीदार का शौक है मुझे

और तेरी याद में सुकून …

समझ नहीं आता तुझे देखूं या

बंद आंखों से तुझे याद करुं.. 

☆☆

Seeing you is my weakness while

Find solace in your remembrance

Too confused whether to see you

Or remember you with closed eyes

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 221 – पलाशी शारद वंदना ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – पलाशी शारद वंदना)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 221 ☆

पलाशी शारद वंदना ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

(पलाश के १७ नाम सहित)

शारद! लिए पलाश आए हम, माँ सिंगार करो।

किंशुक कुसुम लगा वेणी में, भव-भय पीर हरो।।

करधन टेसू, कंगन  छेवला, पायल सजे समिद्धर।

कौसुंबी कंचुकी, हरित आँचल स्वीकार करो।।

धारण कर गलहार त्रिपर्णी, बाले पहन सुपर्णी।

माते! बीजस्नेह दे संतति का उद्धार करो।।

करक ब्रह्मपादप पोरासू पलसु पिलासु पुतद्रु,

पालोशी पांगोंग लिए हम हँस उपहार वरो।।

अनुपम छवि रस रूप मनोहर स्वर व्यंजन मतिमय लख।

जीव सभी संजीव हो सकें, मातु! सलिल सह विचरो।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१३.१.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मातृरेखा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मातृरेखा ? ?

उसके विश्वास के आगे

मेरी उम्र की रेखा

बचपन पर ठहरी रहती है,

मेरे बीमार पड़ने पर

‘बेटे को नज़र लग गई’

जब मेरी माँ कहती है!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अन्यथा प्रलय होना तय है… ☆ श्री अ. ल. देशपांडे ☆

श्री अ. ल. देशपांडे

☆ कविता ☆ अन्यथा प्रलय होना तय है… ☆ श्री अ. ल. देशपांडे ☆

(एक मित्र द्वारा प्रेषित चित्र पर आधारित मनोभावनाएं)

बहुत कुछ कहता है

यह क्षत विक्षत पेड़

 

क्षत विक्षत है पेड़  

पर तन तना है तरू का

 

कराह रहा है तरू

पर दे रहा है फल

 

विपन्नावस्था में भी 

जीवनदायी होकर

खड़े है पेड़.

 

मानव जरा सोच

कर तरू की देखभाल

दे कर अपना पल.

 

जाग मानव जाग

सीख ले प्रकृती से  कुछ

बर्बाद होने से पहले

अन्यथा प्रलय होना

तय है

तुम्हारे जाने से पहले.

 

© श्री अ. ल. देशपांडे

अमरावती

मो. 92257 05884

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 145 ☆ मुक्तक – ।। थोड़ा-थोड़ा बदलो रोज नाम रोशन हो जाएगा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 145 ☆

☆ मुक्तक – ।। थोड़ा-थोड़ा बदलो रोज नाम रोशन हो जाएगा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

थोड़ा-थोड़ा रोज बदलो  काम हो जाएगा।

देखना एक दिन रोशन   नाम हो जाएगा।।

कर्म से गुजर कर लिखो  दिल की कलम से।

एक दिन देखते-देखते वह पैगाम हो जाएगा।।

=2=

जो दोगे सम्मान वह  अधिक होकर आएगा।

सबको साथ लेकर चलो इंतजाम हो जाएगा।।

सहयोग सद्भावना होते हैं मूल मंत्र जीवन के।

साथ मिलके करो अभियान सफल हो पाएगा।।

=3=

अनुभव से सीखो आगे आराम हो जाएगा।

मांगों सबके लिए दुआ नेक नाम तू पाएगा।।

हटा के घृणा तुम भरो   भाव प्रेम का केवल।

नफरत की डोर कटते ही प्यार एतराम लाएगा।।

=4=

पहले दूसरे को नहीं खुद को बदलना जरूरी है।

जब सब मिलके बदलेंगे तब बात होगी पूरी है।।

परिवार समाज बदले तो राष्ट्र भी बदल जाएगा।

प्रेम निर्मल धारा में बह जाएगी सारी मगरूरी है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 211 ☆ कविता – वीण वादिनी शारदे… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – वीण वादिनी शारदे…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 211 ☆ कविता – वीण वादिनी शारदे ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे,

डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !

*

हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,

स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना

*

आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,

चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !

*

सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना

बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना

*

रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और औ” ध्वंस है

बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे

*

ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई

बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई 

उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में

*

भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे

चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में

*

जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में

थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में

*

हृदय को माँ ! पूर्णिमा सा मधु भरा संसार दे

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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