हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 141 ☆ मुक्तक – ।नूतन नवीन वर्ष संदेश देता कुछ नया करने का। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 141 ☆

☆ मुक्तक – ।नूतन नवीन वर्ष संदेश देता कुछ नया करने का। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

किसी की हार   किसी की  जीत है।

कुछ दोस्तों की  जगह  नए मीत है।।

नई बात नया अंदाज  नए  साल में।

भरो मन प्रेम से जो रहा बिन प्रीत है।।

=2=

नववर्ष खत्म न हो ये  जीवन गीत है।

प्रेम की धुन ही तो   जीवन संगीत है।।

नव संकल्प आगाज  हो नए साल में।

चलना साथ समय के ही सही रीत है।।

=3=

अतीत नहीं भविष्य दर्पण  नया साल।

नए विचारों नव उत्साह  सा विशाल ।।

जीवन दिया एकऔर मौका नए साल सा।

नव वर्ष में सोचना है कुछ नए ख्याल।।

=4=

उम्र का वर्ष कम  नहीं  अनुभव बढ़ा है।

उत्साह का  पैमाना और  ऊपर चढ़ा है।।

नया साल पैगाम देता कुछ नया करने का।

वो जीता मुश्किलों सामने रहता खड़ा है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 207 ☆ कविता – क्यों है ?… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – क्यों है । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 207 ☆ कविता – क्यों है ? ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

जब जानते हैं, सब यह है चार दिन का जीवन

तब साथ-संग रहते भी द्वेष भाव क्यों है ?

 *

हिलमिल के साथ रहने में सबको मिलती खुशियाँ

तो रिश्तेदारों से भी मन में दुराव क्यों है ?

 *

सद्‌भाव ही हवा में खिलते हैं फूल मन के

तब दूरियाँ बढाते  मन‌ मुटाव क्यों है?

 *

खुद अपना मन जलाते औरों को भी दुखाते

अनुचित तथा अकारण टकराव भाव क्यों है?

 *

दुनियाँ समझ न आती बाहर दिखाव होते भी

नाखुरा बने रहने का कुछ का स्वभाव क्यों है

 *

जब अपने अपने  घर में, खुशहाल हैं सभी तब

 मन में खिंचाव क्यों है अनुचित तनाव क्यों है?

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मतलबी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –   ? ?

? संजय दृष्टि – मतलबी  ??

शहर के शहर,

लिख देगा मेरे नाम;

जानता हूँ…

मतलबी है,

संभाले रखेगा गाँव तमाम;

जानता हूँ…!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जावेगी। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #34 – गीत – कैसे पारावार लिखूँ… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतगीत – कैसे पारावार लिखूँ

? रचना संसार # 34 – गीत – कैसे पारावार लिखूँ…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

 भावों की सूखी निर्झरिणी।

कैसे पारावार लिखूँ।

रंग बदलती इस दुनिया का,

कैसे जीवन सार लिखूँ।।

अवसर वादी मनुज हुआ है,

कलुषित विचार धारा है।

भेदभाव की कुटिल चाल से ,

प्रेम -भाव भी हारा है।।

मानवता पीड़ित घातों से,

भूले प्रभु उपकार लिखूँ।

*

भावों की सूखी निर्झरणी,

कैसे पारावार लिखूँ।।

 **

शोषित दैन्य दशा दीनों की,

है निराश तरुणाई भी।

पश्चिम की इस चकाचौंध में,

रोती है अरुणाई भी।।

व्याकुल है ये कवि मन मेरा,

क्या विरही शृंगार लिखूँ।

 *

भावों की सूखी निर्झरणी,

कैसे पारावार लिखूँ।।

 **

साये में बन्दूकों के अब

देख जिन्दगी पलती है।

खंडित प्रीति विकल मन विचलित

अँगड़ाई भी खलती है।

पथराई आँखे जन जन की ,

जलते हैं अंगार लिखूँ।

 *

भावों की सूखी निर्झरणी,

कैसे पारावार लिखूँ।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #261 ☆ भावना के दोहे – नववर्ष ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – नववर्ष )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 261 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – नववर्ष ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

कहते हैं हम अलविदा, जाने वाला साल।

मीठी यादें हैं बहुत, रखना इसे सम्भाल।।

*

अंतर कुछ भी है नहीं, मन में यही सवाल।

दिवस-रात चलते रहें, तभी बदलता साल।।

*

चन्दा-सूरज हैं वही, नहीं बदलती चाल।

दिवस-महीने बोलते, सज्जित होता साल।।

*

 कैलेंडर बदलाव से, कहाँ बदलते हाल।

बदलो अपनी सोच को, रहता यही सवाल।।

*

खुशियों की है पोटली, लेकर आया वर्ष।

बाँट रहा मुस्कान यों, दिल में छाया हर्ष।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #243 ☆ अब शहर में अखबार बहुत हैं… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी रचना  अब शहर में अखबार बहुत हैं आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 243 ☆

☆ कविता – अब शहर में अखबार बहुत हैं… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

खबरों   के   कारोबार   बहुत  हैं

अब  शहर में  अखबार  बहुत  हैं

होता है पढ़ कर मन भी विचलित

हिंसा , लूट,  बलात्कार   बहुत  हैं

*

खबरी   चैनलों   की   भरमार   है

खबरें   कैद    होती   बेशुमार   हैं

पर दिखती वह हैं जिन पर उनको

मिलता जिनसे माफिक इश्तहार है

*

रद्दी    चौकी    का   चौराहा

जो भी निकला वही  कराहा

बाएं मोड़ भी  गायब दिखते

चलते तब जिसने जब चाहा

*

लाल    बत्ती   ताकती   रहती

नियम यह कितनों ने निभाया

कुछ  केमरे  देख  कर  चलते

जिसने चालान  घर  पहुंचाया

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “नववर्ष पर…” ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता खंडकर

 ☆ कविता  – “नववर्ष पर” 🕯️ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

बीते हुए कल की तरफ,

मुडकर जरा देखना |

🕯️

खुशियोंवाले लम्हों को,

एक बार फिर जी लेना |

🕯️

दुखभरी यादों का मगर,

गम अभी न करना,

🕯️

तब भी थे साथ, उनका,

शुक्रिया अदा करना |

🕯️

जिंदगी की चुनौतियों को,

हिम्मत से गले लगाना,

🕯️

कामयाबी का स्वागत,

बडी विनम्रता से करना |

🕯️

कार्य के तनाव में,

इन्सानियत न खोना,

प्रेम से विश्वास का,

दीपक जलाये रखना |

🕯️        

© सुश्री प्रणिता खंडकर

ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जाता साल – आता साल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – जाता साल – आता साल ? ?

(1)

जाता साल

 

करीब साठ साल पहले

तुम्हारा एक पूर्वज

मुझे यहाँ लाया था,

फिर-

बरस बीतते गए

कुछ बचपन के

कुछ अल्हड़पन के

कुछ गुमानी के

कुछ गुमनामी के,

कुछ में सुनी कहानियाँ

कुछ में सुनाई कहानियाँ

कुछ में लिखी डायरियाँ

कुछ में फाड़ीं डायरियाँ,

कुछ सपनों वाले

कुछ अपनों वाले

कुछ हकीकत वाले

कुछ बेगानों वाले,

कुछ दुनियावी सवालों के

जवाब उतारते

कुछ तज़ुर्बे को

अल्फाज़ में ढालते,

साल-दर-साल

कभी हिम्मत, कभी हौसला

और हमेशा दिन खत्म होते गए

कैलेंडर के पन्ने उलटते और

फड़फड़ाते गए………

लो,

तुम्हारे भी जाने का वक्त आ गया

पंख फड़फड़ाने का वक्त आ गया

पर रुको, सुनो-

जब भी बीता

एक दिन, एक घंटा या एक पल

तुम्हारा मुझ पर ये उपकार हुआ

मैं पहिले से ज़ियादा त़ज़ुर्बेकार हुआ,

समझ चुका हूँ

भ्रमण नहीं है

परिभ्रमण नहीं है

जीवन परिक्रमण है

सो-

चोले बदलते जाते हैं

नए किस्से गढ़ते जाते हैं,

पड़ाव आते-जाते हैं

कैलेंडर हो या जीवन

बस चलते जाते हैं।

 

(2) 

आता साल

 

शायद कुछ साल

या कुछ महीने

या कुछ दिन

या….पता नहीं;

पर निश्चय ही एक दिन,

तुम्हारा कोई अनुज आएगा

यहाँ से मुझे ले जाना चाहेगा,

तब तुम नहीं

मैं फड़फड़ाऊँगा

अपने जीर्ण-शीर्ण

अतीत पर इतराऊँगा

शायद नहीं जाना चाहूँ

पर रुक नहीं पाऊँगा,

जानता हूँ-

चला जाऊँगा तब भी

कैलेंडर जन्मेंगे-बनेंगे

सजेंगे-रँगेंगे

रीतेंगे-बीतेंगे

पर-

सुना होगा तुमने कभी

इस साल 14, 24, 28,

30 या 60 साल पुराना

कैलेंडर लौट आया है

बस, कुछ इसी तरह

मैं भी लौट आऊँगा

नए रूप में,

नई जिजीविषा के साथ,

समझ चुका हूँ-

भ्रमण नहीं है

परिभ्रमण नहीं है

जीवन परिक्रमण है

सो-

चोले बदलते जाते हैं

नए किस्से गढ़ते जाते हैं,

पड़ाव आते-जाते हैं

कैलेंडर हो या जीवन

बस चलते जाते हैं।

? आपको और आपके परिवार को 2025 के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नव वर्ष दोहावली ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “ ☆

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी द्वारा नव वर्ष पर रचित नव वर्ष दोहावली। )

☆ नव वर्ष दोहावली ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी“ ☆

नया वर्ष आया सखे, मनवा भर उल्लास!

ले लें कुछ संकल्प नव , पूरी कर लें आस!!

भूलें सब जो घट गया, भूलें सारी खटास!

हर्ष भरी नव राह पर, ह्द में घुले मिठास!!

 *

तेरे घायल सपन को,, मैं दे दूं नव-साँस!

मेरे जख्मों पर सखा, मलहम दे उल्लास!!

 *

तू बन जा मधुबन सखा,, बरसाना की रास!

मथुरा गोकुल द्वारिका, वृंदावन उल्लास!!

 *

नये साल के लक्ष्य की, हर्ष-हुलास धर आस!

अवगुण सारे छोड़ कर, फूल-शूल दें खास!!

 *

करो नमन गये वर्ष को, बना प्रारब्ध गुनो

जीवन अगले सफर में, मान  के सबक बुनो!!

 *

प्रथा नये संकल्प की, प्रथा नहीं रह जाय

सच्चे ह्दय से हे सखा, वसुधा सुधा हर्षाय!!

© श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र 440010

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 226 ☆ संकल्प का प्रकल्प… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना संकल्प का प्रकल्प। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 226 ☆ संकल्प का प्रकल्प

जीवन में जब भी कोई विकल्प न बचे तो कार्य सहजता से होने लगते हैं । तेरा- मेरा को छोड़ व्यक्ति आर -पार की लड़ाई करते हुए जब को विजेता सिद्ध करता है । सच्चा मोटिवेशन अभाव का होना है, इस समय लोग लक्ष्य को केंद्र बिंदु बना पूरी प्रोसेस को सावधानी से जीते हैं और जल्दी ही सर्वोच्च शिखर पर विराजित हो जाते हैं । अपने स्थान को सदैव वही लोग    सुरक्षित रख पाते हैं जो सकारात्मक रहते हुए जीवन मूल्यों का पालन करते हैं ।

आइए नए वर्ष 2025 विचार करें कि आप इनमें से किस पंक्तियों से साम्यता रखते हैं …

लोभ मोह दूर रहे

सीताराम मन कहे

धन हो संतोष वाला

घर को बसाइए।

*

नेक धर्म लोग साथ

दान देने वाले हाथ

अभिमान रहे नहीं

बात को बताइए।।

*

थोड़े में भी खुश होना

दुःख में कभी न रोना

बड़ों के आशीष संग

प्रीत को बढ़ाइए ।

*

देखा देखी मत करें

दुखियों का दर्द हरें

एकता के साथ -साथ

मित्र को बनाइए।।

***

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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