हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नववर्ष मूलक कुंडलिया ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ नववर्ष मूलक कुंडलिया ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

(1)

लेना तुम संकल्प यह, हो हर पल का मान।

लक्ष्य ध्यान में नित्य रख, कर नित ही उत्थान।।

कर नित ही उत्थान, कर्म से दूर न होना।

किंचित भी निज ताप, बंधु तुम कभी न खोना।।

आशा का तो दीप, कभी बुझने मत देना।

गया वर्ष जो बीत, उसे उर में भर लेना।।

(2)

बीता जो, वह जा रहा, लिखकर नव इतिहास।

कभी रुदन उसने दिया, कभी रचाया हास।।

कभी रचाया हास, आज नूतन की माया।

हुई तरंगित देह, सुखद मौसम है आया।।

अंतर का उल्लास, आज निश्चित ही जीता।

मची नवल की धूम, जा रहा जो है बीता।।

(3)

जाने वाला जा रहा, देकर मंगल भाव।

आने वाला आ रहा, लेकर पावन ताव।।

लेकर पावन ताव, नया सब अच्छा होगा।

वह अब हो बेक़ार, अभी तक जो है भोगा।।

कहने का यह मर्म, नया नव गाने वाला।

करता है गुड बाय, बंधुवर जाने वाला।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 233 ☆ बाल गीत – ज्ञानवर्धक कविता पहेली –  बूझो तो जानें… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 233 ☆ 

☆ बाल गीत – ज्ञानवर्धक कविता पहेली –  बूझो तो जानें…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

जो हमको हँसना सिखलाते

थोड़ा-सा मुस्काना जी।

रंग-बिरंगे सारे खिलकर

गाते नया तराना जी।।

कोई कहता इन्हें मंजरी

कोई कहता इन्हें सुमन।

तितली ,भौंरे इनसे खेलें

बातें करता गुनगुन मन।।

 *

कोमल तन है पंखुड़ियों का

कितने प्यारे लगें प्रसून।

सबको ही ये खूब लुभाते

परियाँ लेकर पहुंचें मून।।

 *

सबका हित ही ये करते हैं

प्रभु को खुद अर्पण करते।

माक्षी इनसे शहद बनाएँ

श्रद्धा से शहीद पर चढ़ते।।

 *

बच्चों बोलो कौन सारथी

जीवन में आता है काम।

देवी-देव सभी को प्यारे

इनमें बसते कृष्णा राम।।

 *

सभी का उत्तर-पुष्प , फूल

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #261 – कविता – ☆ लो, फिर से एक साल रीत गए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी नव वर्ष पर एक विचारणीय कविता लो, फिर से एक साल रीत गए…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #260 ☆

☆ लो, फिर से एक साल रीत गए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(पुनः नव वर्ष की आप सभी साथियों को मंगलकामनाओं के साथ एक काव्य रचना)

लो,फिर से एक साल रीत गए

आभासी सपनों को बहलाते

शातिर दिन चुपके से बीत गए।

*

साँसों की सरगम का

एक तार फिर टूटा

समय के चितेरे ने

हँसते-हँसते लूटा,

यादों के सतरंगी कुछ

छींटे, छींट गए। शातिर दिन……

*

कहने को आयु में

एक अंक और बढ़ा

खाते में लिखा गया

अब तक जो ब्याज चढ़ा,

कुछ सपने कुछ अपने

अंतरंग मीत गए। शातिर दिन……

*

मिलन औ विछोह

जिंदगी के दो अंग है

सुख-दुख के मिले जुले

भिन्न भिन्न रंग है,

जीत-जीते अब तो

हम जीना सीख गए, शातिर दिन……

*

मन की अभिलाषा

आगे,आगे बढ़ने की

जीवनपथ के अभिनव

पाठ और पढ़ने की,

अभिनंदन, वर्ष नया

लिखें मधुर गीत नये,

शातिर दिन बीत गए।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ ‘नव वर्ष मंगलमय हो  – एक निमंत्रण’ ☆ डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘ ☆

डॉ. दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘

☆ ‘नव वर्ष मंगलमय हो  – एक निमंत्रण’ ☆ डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘ ☆

नए वर्ष का नया निमंत्रण, भेज दिया है सबके नाम

मंगलमय हो जीवन सबका, शुभ मंगल का शुभ पैग़ाम।।

 *

जीवन कंटक भरा सफ़र है, ख़ुशियाँ ढूँढ के लाना है

जीवन में संघर्ष बहुत हैंहँसी-ख़ुशी जीतें संग्राम।

एक निमंत्रण भेज दिया है, मैंने पूरे विश्व के नाम

सुख और शांति रहे जीवन में, अब न रचें कोई संग्राम।।

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, मैंने मेरे देश के नाम

भारत मेरा भेज रहा हैशांति-प्रेम का शुभ पैग़ाम

एक निमंत्रण भेज दिया है, सरहद के सैनिक के नाम

देश साथ है सदा तुम्हारे, तुमसे ही है देश का नाम।।

एक निमंत्रण भेज दिया है, हर घर की गृहिणी के नाम

परम्पराएँ जीवित रखना हर मन में, नारी का काम।

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, हर घर की बेटी के नाम

दोनों कुल को जोड़ के रखना, नमन तुम्हें है तुम्हें प्रणाम।।

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, हर घर के पौरुष के नाम

स्नेह-सुरक्षा,संबल देना, सबसे अहम् तुम्हारा काम

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, नभ के सूरज-चाँद के नाम

ऊर्जा भर ऊर्जस्वित करना, शक्ति शांति सुख सुबहो-शाम ।।

एक निमंत्रण भेज दिया है, धरती की प्रकृति के नाम

धन और धान्य से पूरित करना, जीवन देना तुम्हरा काम।।

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, सारे हर रिश्तों के नाम

सभी निभाएँ’उदार’मन सेरिश्ते सारे नाम-अनाम।।

© डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘

कैलीफ़ॉर्नियां, अमेरिका

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ यह नवल वर्ष… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ यह नवल वर्ष… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

यह नवल वर्ष

मन में भर दे

उत्साह और हर्ष

घटे निराशाओं का तम

हों  कामयाब  हम

 

स्वार्थ का दैत्य

कभी   छल   न   सके

अब  मंथरा

कोई चाल चल न सके

 

आशाओं के कँवल खिल जायें

निर्धारित    लक्ष्य   मिल   जायें

 

हर  स्वप्न  संपूर्ण  हो

कामना  परिपूर्ण  हो

 

सुदृढ़  और   विश्वास   हो

सार्थक   हर   प्रयास  हो

 

उदय ज्ञान का आदित्य हो

प्रफुल्लित निरन्तर साहित्य हो

 

हर   चेहरे   पर  बहार  हो

यह नूतन वर्ष यादगार हो

 

फ़लक से बरसे

प्रेम का मेह

 हृदय से उमड़े

स्नेह ही स्नेह…।

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 89 ☆ ये आ गया है नया साल… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “ये आ गया है नया साल“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 89 ☆

✍ ये आ गया है नया साल… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ख़ुशी की जलती कहीं पे मशाल अब भी है

हमारे  घर में खुशी का अकाल अब भी है।

 *

बदल गया है कलेंडर महज दीवारों पर

जो हाल पहले था वैसा ही हाल अब भी है

 *

ये आ गया है नया साल बस मिथक हमको

हमारी रोज़ी का वो ही सवाल अब भी है

 *

ये चौचले है रहीसों के जश्न मनते सब

श्रमिक के हाथ में देखो कुदाल अब भी है

 *

ये रोशनी से नहाए भवन है बेमानी

गरीब घर में जो मकड़ी का जाल अब भी है

 *

ये नाम अम्न के बारूद जो जमा रख्खा

विनाश करने उसका इस्तेमाल अब भी है

 *

किसी के गाल से चिकनी सड़क के दावे भर

सड़क पे चैन से चलना मुहाल अब भी है

 *

सबक न वक़्त से कुछ सीख ले के सीख सके

अरुण ये धर्म पे होता वबाल अब भी है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 85 ☆ बन गया गुलाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बन गया ग़ुलाम…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 85 ☆ बन गया ग़ुलाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हल्कू को आज नहीं

मिला कहीं काम।

**

मनरेगा की

पूरी हुई हाजिरी

पटवारी ने दी

ताकीद आख़िरी

*

रोजनामचे से भी

काट दिया नाम।

**

बिटिया का गौना

लो फिर गया है टल

खूँटी पर टाँग दिया

आस का महल

*

महंगाई में रुपया

हो गया छिदाम ।

**

ऊपर से नीचे तक

बन साहूकार

ग़रीबों की रोटी

सब हिस्सेदार

*

भूख के लिए रमना

बन गया ग़ुलाम ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 85 – मधुछन्द नहीं भूला… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – मधुछन्द नहीं भूला।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 85 – मधुछन्द नहीं भूला… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

अब तक, तेरे तन की मादक गन्ध नहीं भूला 

हमने, जो थे किये, सरस अनुबन्ध, नहीं भूला

*

जीवन भर का साथ निभाने के सारे वादे 

और अटल रहने वाली सौगन्ध नहीं भूला

*

पूजा-वन्दन जैसे, जिनमें पावन भाव रहे 

तेरे अधरों से फूटे, मधुछन्द नहीं भूला

*

जिनमें, द्वैतभाव के सारे अहम् तिरोहित थे 

उन अद्वैत क्षणों का परमानन्द नहीं भूला

*

अब, जब तेरे बिना स्वयं की, मुझको खबर नहीं 

तब भी, तेरे रेशम-से भुजबन्ध, नहीं भूला

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सार्थक ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सार्थक ? ?

 

कुछ हथेलियाँ

उलीचती रहीं

दलदल से पानी,

सूखी धरती तक

पहुँचाती रहीं

बूँद-बूँद पानी,

जग हँसता रहा

उनकी नादानी पर..,

कालांतर में

मरुस्थल तो

तर हुआ नहीं पर

दलदल की जगह

उग आया

लबालब अरण्य..,

साधन की कभी

बाट नहीं जोहते,

संकल्प और श्रम

कभी व्यर्थ नहीं होते!

?

© संजय भारद्वाज  

14.9.20, रात्रि 12.07 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जावेगी। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 158 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज क दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 158 – सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने ☆

हँसी-खुशी *परिवार* की, आनंदित तस्वीर।

सुख-दुख में सब साथ हैं, धीर-वीर गंभीर।।

*

*माया* जोड़ी उम्रभर, फिर भी रहे उदास।

नहीं काम में आ सकी, व्यर्थ लगाई आस।।

*

टाँग रखी दीवार पर, मात-पिता *तस्वीर*

जिंदा रहते कोसते, उनकी यह तकदीर।।

*

यादें करें *अतीत* की, बैठे सभी बुजुर्ग।

सुदृढ़ थी दीवार तब, बचा तभी था दुर्ग।।

*

*कविता* साथी है बनी, चौथेपन में आज।

साथ निभाती प्रियतमा, पहनाया सरताज।।

*

तन-मन आज *जवान* है, नहीं गए दरगाह।

उम्र पचासी की हुई, देख करें सब वाह।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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