हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 39 ☆ डॉ ज्ञान चतुर्वेदी केंद्रित अट्टाहस पत्रिका – अतिथि संपादक – श्री शांतिलाल जैन ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री शांतिलाल जैन जी के  अतिथि संपादन में प्रकाशित  डॉ ज्ञान चतुर्वेदी जी  पर केंद्रित अट्टहास पत्रिका पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 39 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – डॉ ज्ञान चतुर्वेदी केंद्रित अट्टाहस पत्रिका – अतिथि संपादक – श्री शांतिलाल जैन 

चर्चा में पत्रिका – अट्टहास का डा ज्ञान चतुर्वेदी केंद्रित अंकअक्टूबर २०२०

अंक संपादक –  श्री शांति लाल जैन

प्रधान संपादक – श्री अनूप श्रीवास्तव

गुलिंस्ता कालोनी, लखनऊ ( उ प्र )

इससे पहले कि अट्टहास के डा ज्ञान चतुर्वेदी केंद्रित अंक इस विशेषांक पर कुछ लिखूं, व्यंग्य को समर्पित पत्रिका अट्टहास पर व इसके समर्पित संपादक श्री अनूप श्रीवास्तव जी पर संक्षिप्त चर्चा जरूरी लगती है. ऐसे समय में जब कादम्बनी जैसी बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठानो की साहित्यिक पत्रिकायें बंद हो रही हों, एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने कंधो पर अट्टहास का बोझ लिये चलता दिखे तो उसकी जिजिविषा व व्यंग्य के लिये समर्पण की मुक्त कंठ प्रशंसा आवश्यक है. वे व्यंग्य का इतिहास रचते दिखते हैं. अट्टहास के अनवरत प्रकाशन हेतु ही नही किसी भी पत्रिका के सफल संचालन के लिये यह आवश्यक होता है कि पत्रिका का उत्तरोतर विकास हो, नये पाठक, नये लेखक पत्रिका से जुड़ें. इस लक्ष्य को पाने के लिये अट्टहास ने अतिथि संपादन के रूप में अनेक महत्वपूर्ण प्रयोग किये. क्षेत्रीय व्यंग्य विशेषांक  निकाले गये हैं.अतिथि संपादक की व्यक्तिगत योग्यता, क्षमता व ऊर्जा का लाभ पत्रिका को मिला भी है. डा ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य के जीवंत शिखर पुरुषों में  हैं, उन पर केंद्रित विशेषांक निकालना किसी भी पत्रिका के लिये गौरव का विषय है. अट्टहास ने यह बेहद महत्वपूर्ण परम्परा प्रारंभ की है.

संपादन कितना दुष्कर काम है यह मैं समझता हूं, रचनायें बुलवाना, गुणवत्ता परखना, उन्हें एक फांट में संयोजित करना, सरल नही हैं. आदरणीय शांतिलाल जैन सर ने भोपाल से उज्जैन स्थानांतरित होने, स्वयं के स्वास्थ्य खराब रहने की व्यक्तिगत व्यस्तताओ के बाद भी महीनो भरपूर समय व ऊर्जा इस अंक के लिये सामग्री जुटाने व संपादन में लगाई है जिसके परिणाम स्वरूप ही अंक डा ज्ञान चतुर्वेदी पर संग्रहणीय दस्तावेज बन सका है.

अपने संपादकीय में अनूप जी लिखते हैं व्यंग्य विधा है या शैली इस बहस में पड़े बिना ज्ञान जी ने अपनी पृथक शैली में लगातार लिखकर स्वयं को साबित किया है. उनका यह लिखना कि शिखर पर होते हुये भी ज्ञान जी में लेश मात्र भी अभिमान नही है, वे लगातार युवाओ के मार्गदर्शक बने हुये हैं. यह टिप्पणी  डा साहब के कृतित्व व व्यक्तित्व का सूक्ष्म आकलन है.

अतिथि संपादक शांतिलाल जैन जी ने अपनी भूमिका बहुत गरिमा व गम्भीरता से निभाई है. उन्होने डा चतुर्वेदी की चुनिंदा रचनाये जैसे नरक यात्रा से अंश, हम न मरब से अंश,  मार दिये जाओगे भाई साब, पुरातन राजा रानी की आधुनिक प्रेम कथा, एक खूबसूरत खंजर अंक के पाठको के लिये प्रस्तुत की हैं. मुझे लगता है उनके लिये ज्ञान सर की लम्बी रचना यात्रा में से चंद रचनायें चुनना फूलो की टोकरी में से चंद बीज के दाने चुनने जैसा रहा होगा. तुम ज्ञानू हम प्रेमू पढ़ा मैं प्रेम जनमेजय जी की भावनाओ को आत्मसात करता रहा. वे लिखते हैं ज्ञान व्यंग्ययात्रा का घनघोर प्रशंसक है, ज्ञान जी लिखते हैं प्रेम सक्षम होते हुये भी तिकड़मी नहीं है. मुझे लगा जैसे सी सा झूले के दो छोर पर बैठे दो व्यक्ति एक दूसरे को आंखों में आंखे डाल बड़ा साफ देख रहे हों.सुभाष चंदर जी,  हरीश नवल जी, सूर्यबाला जी, गिरीश पंकज जी,  पंकज प्रसून जी, प्रभु जोशी जी, रामकिशोर उपाध्याय जी, डा हरीश कुमार सिंह,  अरुण अर्णव खरे जी, श्रवण कुमार उर्मलिया जी के लेख पठनीय हैं. ज्ञान जी का उपन्यास नरक यात्रा बहु चर्चित रहा है उसकी कांति कुमार जैन जी की समीक्षा, मरीचिका पर मधुरेश जी की समीक्षा, हम न मरब पर कैलाश मण्डलेकर जी की समीक्षा महत्वपूर्ण चयन है. अंक में प्रस्तुत सारे चित्र डा ज्ञान का जीवन एल्बम हैं. पारिवारिक चित्र, सम्मान के चित्र, पद्मश्री ग्रहण करते हुये चित्र, अनेक व्यंग्यकारो के साथ के चित्र सब दस्तावेज हैं. समग्र टीप की है विजी श्रीवास्तव जी ने जिसे पढ़कर अभीभूत हूं. मैं अट्टहास लम्बे समय से पढ़ता रहा हूं, जबलपुर में इसके एक अंक के विमोचन का आयोजन भी कर चुका हूं, पर निर्विवाद लिख सकता हूं कि अट्टहास का डा ज्ञान चतुर्वेदी केंद्रित अक्टूबर २०२० अंक पिछले अनेक वर्षो के अंको में सर्वश्रेष्ठ है. जिसके लिये अट्टहास, अनूप जी, शांतिलाल जी, ही नही इसका हर पाठक बधाई का पात्र है. मुझे लगता है जो भी व्यंग्य प्रेमी इसे पढ़ेगा संदर्भ के लिये मेरी तरह संग्रहित जरूर करेगा.

 

चर्चाकार  .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

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हिन्दी साहित्य – ☆ पुस्तक चर्चा ☆ है हिन्दी हमारी बोली – इफ्तखार “बशर” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  इफ्तखार अहमद खान बशर  जी की पुस्तक “है हिन्दी हमारी बोली “ पर  पुस्तक चर्चा।

☆ पुस्तक चर्चा ☆ है हिन्दी हमारी बोली – इफ्तखार “बशर” ☆  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अंधेरे आकाश में जैसे बिजली कौंध कर पूरे परिवेश को प्रकाशित…कर देती है उसी तरह अपनी भाव तरंग को वाणी देकर कवि खुद अपने साथ अनेकों श्रोताओं और पाठकों को प्रफुल्लित कर देते हैं. यह कुशलता बहुतों में जन्मजात होती है.

इफ्तखार अहमद खान बशर में यह रूचि मैंने उनके छात्र जीवन में ही देखी थी यह उल्लेख अपनी पुस्तक है हिंदी हमारी बोली में प्रारंभ में ही उन्होंने किया है. अपने शासकीय सेवा काल में  विभिन्न कार्य भार  से दबे होने के कारण उनके कवि के मनोभावों ने अभिव्यक्ति कम पाई. सेवा से अवकाश पाकर उन्होंने अपनी साहित्यिक प्रवृत्ति को पुनः अपनाया और लेखन  किया, यह एक अच्छी बात है, साहित्य प्रेम की रुचि खुद को आनंद देती है. साथ ही अनेकों पाठकों को भी सुख देते हुए सुखी करती है.

अपनी पुस्तक के प्रकाशन के कुछ समय बाद उन्होंने मेरी कुछ गजलो व कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद कर पुस्तक सहित जब मुझे प्रेषित किया तो मैं आश्चर्यचकित रह गया उनकी पुस्तक में उनकी 40 गजलें, कविताएं व दोहे हैं. पुस्तक को पढ़कर मैंने उनके मनोभावों को समझने का प्रयास किया है. उनके बहुरंगी भावों को पढ़कर अच्छा लगा. कवि हृदय मनोभावों से लबरेज है. वे लिखते हैं

सूझते हैं मिसरे शायरी के मुझको

मुखड़े बहुत सारे मेरे जहन में है

पुस्तक का नाम ही कवि के मन की पवित्रता राष्ट्रप्रेम तथा मातृभाषा हिंदी के प्रति लगाव की गवाही देता है.

यह आरती की थाली है हिंदी हमारी बोली

अनुपम सुखद निराली है हिंदी हमारी बोली

 

कवि के मन में प्रकृति दर्शन की ललक दिखती है

इस दुनिया में जन्नत की अगर कोई निशानी है

ये हरियाली शाबादी फिजा की रूप रानी है

शरद पूर्णिमा की शोभा उसे आकर्षित करती है , मनमोहक लगती है उसे देख वे लिखते हैं

लो धवलता छा रही है इस गगन की नीलिमा में

है निखरती छटा शशि की इस शरद की पूर्णिमा में सामाजिक त्योहार भाईचारे और मन मिलन का संदेश देते हैं दीपावाली का त्यौहार प्राचीन काल से यही संदेश देता आ रहा है,  उन्होंने लिखा है

हुमायुं लक्ष्मी पूजा विधि विधान के साथ

करवाता था राज में दे दान खुले हाथ

सामाजिक व्यवहार चलते जाते हैं बदलाव नहीं दिखते

हुश्न के तेवर नहीं बदले जेवर बदलते जा रहे हैं

स्वार्थ पूर्ण व्यवहार बेईमानी कर्तव्य निष्ठा का अभाव भी वैसा ही चल रहा है

उनसे मुफ्त में उम्मीद क्या करें

रहनुमाई मिली जिनको कुर्सी खरीदकर

या

लोगों को तुम्हारी रोटियां सियासत की गोटियां हैं

ब्रिटिश शासकों ने बर्बरता से देश भक्तों का शिकार किया

घात की नज़दीकियों की अक्सर  फिकर है

झाड़ियों की ओट में आदिम शिकारी चल रहा है

 

अनेकों बहुरंगी भावों का गुलदस्ता उनकी यह कृति है.

आशा है भविष्य में भी कुछ और अच्छा उनसे पढ़ने को मिलेगा. गजलो का अंग्रेजी अनुवाद भी बहुत अच्छा है.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 38 ☆ ललित निबंध संग्रह – तन रागी मन बैरागी – डा देवेन्द्र जोशी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  डा देवेन्द्र जोशी जी  के  ललित निबंध संग्रह  “तन रागी मन बैरागी” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 38 ☆ 

तन रागी मन बैरागी (ललित निबंध संग्रह)

लेखक –  डा देवेन्द्र जोशी 

प्रकाशक – निखिल पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स आगरा

मूल्य  १२५ रु

पृष्ठ ११२

☆ पुस्तक चर्चा –ललित निबंध संग्रह   – तन रागी मन बैरागी  – लेखक – डा देवेन्द्र जोशी 

मन बैरागी, तन अनुरागी, क़दम-क़दम दुश्वारी है

जीवन जीना सहज न जानो, बहुत बड़ी फ़नकारी है

… निदा फाजली

जीवन  का भाव  पक्ष सदैव मर्मस्पर्शी होता है.  जब अपने स्वयं के अनुभवो के आधार पर कोई ललित निबंध लिखा जाता है तो वह और भी महत्वपूर्ण बन जाता है व पाठक को सीधा हृदयंगम हो, उसके अंतः को प्रभावित करता है.  ऐसे निबंध पाठक को जीवन दृष्टि देते हैं, उसका मार्ग प्रशस्त करते हैं.  तन रागी मन बैरागी में संकलित प्रत्येक निबंध मैंने फुरसत से पढ़ा है, मैं कह सकता हूं कि ये निबंध डा जोशी की वैचारिक अभिव्यक्ति हैं, जो पाठक को चिंतन की प्रचुर समृद्ध सामग्री व दिशा देते हैं.  निदा फाजली के जिस शेर से मैंने अपनी बात शुरू की है, उसके बिल्कुल अनुरूप इस पुस्तक का प्रत्येक निबंध जीवन की फनकारी सिखलाता है.  लेखक डा देवेन्द्र जोशी चेतावनी के स्पष्ट स्वर में प्रारंभ में ही लिखते हैं, जिनमें जिंदा रहने का अहसास मर चुका है कृपया वे इस पुस्तक को न पढ़ें, सचमुच संग्रह के सभी निबंध जिंदगी के बहुत निकट हम सबके बिल्कुल आसपास के विषयों पर हैं.  अनावश्यक विस्तार  से मुक्त, छोटे छोटे निबंध हैं,  शीर्षक की सीधी वैचारिक अनुकरणीय विवेचना है.  पहला संस्करण हाल ही प्रकाशित हुआ है.

हिन्दी में ललित निबंध को  विधा के स्वरूप में अभिस्वीकृति का साहित्यिक इतिहास भी रोचक व विवादास्पद रहा है, लगभग वैसा ही जैसा व्यंग्य को विधा के रूप में स्वीकार करने की यात्रा रही है.  अब ललित निबंध की सात्विक सत्ता भी प्रतिष्ठित हो चुकी है, और व्यंग्य की भी.  डा देवेंद्र जोशी दोनो ही विधाओ के साथ विज्ञान लेखन के भी पारंगत सुस्थापित विद्वान हैं. वे कवि हैं , संपादक है, मंच संचालक हैं, शोधार्थी हैं.  बिना उनसे मिले मैं कह सकता हूं कि  बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डा जोशी सबसे पहले एक अच्छे इंसान हैं, क्योंकि ऐसा लेखन एक सदाशयी व्यक्ति ही कर सकता है.

उनमें सूत्र वाक्य लेखन की विशेषता है जैसे वे लिखते हैं ” निर्धन के अभाव की पूर्ति तो धन से संभव है, पर लालच और धन लोलुप प्रवृत्ति की पूर्ति कोई नहीं कर सकता”, या ” लक्ष्यहीन जीवन को जीवन की श्रेणि में नहीं रखा जा सकता‍‌. . चलना ही जिंदगी “, ” व्यक्तित्व विकास की प्रथम सीढ़ी है. .आत्म साक्षात्कार ” मैंने पुस्तक पढ़ते हुये ऐसे अनेक वाक्यो को रेखांकित किया है, ये उद्वरण  केवल इसलिये कि आप की जिज्ञासा पुस्तक पढ़ने के लिये जागृत हो.

जिन विषयो पर लेखक ने निबंध लिखे हैं उनमें ये शीर्षक शामिल हैं, राष्ट्रीयता का बोध, समय से पहले भाग्य से ज्यादा, माँ, प्यार का अहसास,युवा उम्र का रोमांच,रिश्तों की गर्माहट, स्वभाव के प्रतिकूल, बड़प्पन,सामाजिक सरोकार, पद की गरिमा, बाल मनोविज्ञान,सफलता का जश्न, अवसाद के क्षण,अकेलापन, श्मशान बैराग्य आदि आदि कुल तीस हम सबके जीवन के रोजमर्रा के विषय हैं.

प्रत्येक निबंध विषय की व्याख्या करते हुये एक निर्णायक मार्गदर्शक बिन्दु पर अंत होता है, उदाहरण स्वरूप वे बचपन की मीठी यादें निबंध का अंत इस शेर से करते हैं

घर से मस्जिद बहुत दूर है चलो यूं करें

किसी रोते हुये बच्चे को हंसाया जाये

अकेलापन निबंध का अंतिम वाक्य है ” अकेलापन हमारी कमजोरी बने उसके पहले उसे अपनी ताकत बनाना सीख लें.  ”

भाषा के लालित्य के मोती, भाव,  शिल्प के स्तर पर बुने हुये सभी निबंध प्रेरक हैं. अभिधा में सशक्त मनोहारी अभिव्यक्ति के सामर्थ्य के चलते  लेखक डा देवेन्द्र जोशी को श्रेष्ठ निबंधकार कहा जाना  सर्वथा तर्कसंगत है. यह  कृति हर उस पाठक को अवश्य पढ़नी चाहिये जो जीवन के किसी मोड़ पर किंकर्तव्य विमूढ़ हो, और इसे पूरा पढ़कर मैं सुनिश्चित हूं कि उसे अवश्य ही निराशा से मुक्ति मिलेगी व उसका भविष्य प्रदर्शित हो सकेगा.  इस दृष्टि से कृति जीवन की सफलता के सूत्र प्रतिपादित करती है.  संदर्भ हेतु संग्रहणीय व बार बार पठनीय है.  अभी ऐसी कई पुस्तकें लेखक से हिन्दी साहित्य को मिलें इसी शुभाशंसा के साथ.

 

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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English Literature – Book-Review/Abstract ☆ Avyakhyaam – The Unexplainable ☆ Mr. Ashish Kumar

Avyakhyaam – The Unexplainable

Amazon Link – Avyakhyaam – The Unexplainable

(It is difficult to comment about young author Mr Ashish Kumar and his mythological/spiritual writing.  He has well researched Hindu Philosophy, Science and quest of success beyond the material realms. I am really mesmerized.  I am sure you will be also amazed.  We are pleased to present self-review and excerpts from his  recently released  book  Avyakhyaam – The Unexplainable.  It is a collection of 61 stories published by Book Rivers.)    

☆ Book-Review/Abstract ☆ Avyakhyaam – The Unexplainable ☆ 

Well, during lock-down when I was stuck in Delhi alone. One night I decided to watch some old horror show on internet. Yes, I was alone when during show light gone and I heard some unusual sound.

Then I realized that even today also most exciting topic is not politics or cricket or some pandemic but is horror.  Spooky feeling which send shivering in spine is beyond explanation.

Suddenly an idea strike in my mind “Why not this time, I write over these kinds of topics?”

Yes topics which make anyone weak over legs and most of the scientists or intellectual people don’t want to discuss about them.

Then I took a deep drive on my memory lane to childhood to pick all those events, objects, scenarios, persons etc. which even now making sensation in my body and mind when I am writing these lines.

In my latest book Avyakhyaam means unexplainable, I have written 61 short stories.  Some are based on negative entities which are popular in our folklore, in rural areas, like Bhoot, Churail etc., others are based on our customs, like way of worship, way of living etc. Some are just physiological concepts but impacts our life. Even some stories are based on scientific phenomena and concepts which are unsolved or partially solved till date. I enlisted the titles of all 61 stories as under :

  1. Aghori
  2. Electricity
  3. Nasha
  4. Hospital
  5. Black Magic
  6. Magnetism
  7. Mythology
  8. Murda Ghar
  9. Psycho
  10. Quantum physics
  11. God
  12. Snake
  13. Paranormal
  14. Space Science
  15. Devta
  16. Shart
  17. Yamdoot
  18. Entanglement
  19. Shubh Ratri
  20. Darr
  21. Jinn
  22. Retro Causality
  23. Aakash
  24. Bhasha
  25. Bhoot
  26. Samay
  27. Vayu
  28. Joker
  29. Churail
  30. Absolute zero temperature
  31. Agani
  32. Bhavishyavarta
  33. Vampire
  34. Entropy
  35. Nazar Lagna
  36. Tree
  37. Rahu Kaalam
  38. Mathematics
  39. Earth
  40. Calendar
  41. Music
  42. Peepal ka ped
  43. Aliens
  44. Asura
  45. Rang
  46. Mata Aana
  47. Mrityu
  48. Crow
  49. Virus
  50. Daab ka Banda
  51. Kali Haldi
  52. Sunya
  53. Ultra-Violate
  54. Vastu
  55. Uttara Puttara
  56. Book
  57. Bhagya
  58. AI
  59. Coincidence
  60. Mani Maayi
  61. Shadow

☆  Excerpts from the book  -Mythology ☆

Shail is a writer who mainly writes for stage drama, is sitting with some friends and drinking wine in his home at night. One of his friends asked, “Dear Shail, I remember well that you were an Atheist, non-believer of God, but now you write stories only based on Mythology, and get success because of those stories. How did this happen? Are you now believing in God or finally understand that in India, mostly people’s first love is still mythological stories?”

Shail laughed, and then said, “No, my dear friends, I am still an atheist, but know that in India people can do anything in the name of God.”

Another friend of Shail, name Kapil asked, “But you hate Mythology, then why and how did you start writing those types of stories?”

Shail said, “This is a great secret which no one knows, but you all are my very good friends, so I am going to tell you. Listen carefully. In college one day, Kapil and I had an argument at a tea stall outside the college. Kapil, that time you said that Shail you chose writing as your profession. It is very good and I am very excited. Dear Shail, your first story must be based on some Mythological character. Do you remember what I replied at that time? I said that you are stupid, all those stories and characters are fiction, and created by many intelligent people at different times to fool people. All Gods, Goddess, nothing actually exists, and If you ask me, that anyone thing which I hate most, are India’s Mythological stories. I’ll never waste my words on them. After listing this you went inside the college to attend a lecture, and I was also about to depart but someone kept his right hand over my solider. I turned around and saw a very old person who wore orange clothes and sun-marks over his forehead, long grey beard, and a smiling face, called in his pleasant voice. “So, you don’t believe in God and are going to make a career in story writing. Then my wishes to you. You will make a good career as a writer but remember, you will get success only if you write Mythological stories and you think all Gods and Mythological stories and characters are fiction. So remember, that from every Mythological story that you write, one character or incidence will take real form from your story when that story is performed on stage or shot in a film. You will never know which incidence or character will go live from your story till it actually performs.

Read Mythology in Avyakhyaam

 

© Ashish Kumar

New Delhi

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 37 ☆ व्यंग्य संग्रह – दिमाग वालों सावधान  – श्री धर्मपाल जैन ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री धर्मपाल जैन जी  के  व्यंग्य -संग्रह  “दिमाग वालों सावधान ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 37 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह   – दिमाग वालों सावधान – व्यंग्यकार – श्री धर्मपाल जैन

दिमाग वालों सावधान

व्यंग्यकार धर्मपाल जैन

किताबगंज प्रकाशन गंगापुर सिटी

ISBN 9789389352634

 

किसी भी किताब में सर्वप्रथम जो चीज पाठक को आकर्षित करती है, वह होता है उसका नाम. व्यंग्य की किताबों के लिये अनेक व्यंग्य लेखो में से एक नाम के आधार पर किताब का नाम रखना सहज परम्परा है. इसी लीक पर चलते हुये व्यंग्यकार धर्मपाल जैन जी ने अपनी नई पुस्तक का नाम दिमाग वालों सावधान रखा है. नाम ध्यान आकर्षित करता है. प्रकाशक ने बिना त्रुटि सम्यक आवरण डिजाइन करवाकर, अच्छे गेटअप में पुस्तक प्रस्तुत की है. पेपरबैक का मूल्य मात्र २५० रु है. कहने का मतलब है कि बुक स्टाल पर मुँह दिखाई में तो पाठक किताब से रिश्ता बना ही सकता है.

अब जब कृति घर आ जाये और तकिये के नीचे तक पहुंच जाये तो उसके कलेवर पर कुछ चर्चा हो जाये.

बैक कवर पर बिंदु रूप लेखक परिचय से समझ आता है कि यह लेखक की दूसरी व्यंग्य की किताब है. किसी की कोई भूमिका नही, कोई आत्मकथन नही. सीधी बात. कुल जमा ५१ सनसनाती व्यंग्य रचनायें समेटे हुये है पुस्तक.

दिमाग चाटने वालो पर है शीर्षक व्यंग्य. छोटे छोटे वाक्य, समझ आने वाली भाषा, प्रभावी शैली का अच्छा व्यंग्य है. कई व्यंग्य ऐसे हैं जिन शीर्षको से मै कई व्यंग्यकारो के लेख पढ़ चुका हूं, बल्कि कई शीर्षको पर तो स्वयं मेरे भी लेख हैं, जैसे झंडा ऊंचा रहे हमारा, अस मानुस की जात, कबिरा खड़ा बाजार में, हिन्दी डे, इन टापिक पर मैं भी व्यंग्य लिख चुका हूं. मतलब साफ है कि व्यंग्यकारों की पीड़ा समान होती है.

“एल्लो सरपंच जी क्या सांड से कम होवे हैं ” ऐसा लेखन केनेडा में बसे हुये व्यंग्यकार लिखे तो समझ लें कि वह जमीन से जुड़ा हुआ आदमी है. यूं भी विदेश में रहकर वहाँकी चकाचौंध से भ्रमित हुये बिना देश से, हिन्दी से, व्यंग्य से सरोकार बनाये रखने के चलते धर्मपाल जी  अपने रचना धर्म का पालन करते नजर आते हैं.

चंद्रयान ३ से भारत प्रधानमंत्री से संवाद शैली में मारक व्यंग्य है. किस तरह चुनाव जीतने में हर तरह की उपलब्धियों का राजनीति उपयोग करती है, यह उजागर करता व्यंग्य है. कमियो की बात करें तो इतना ही कहूंगा कि अनेक स्थानो पर अमिधा में बातें कहने की जगह प्रतीको में बात की जाने की संभावना है, अगले संग्रहों में जैन साहब से व्यंग्य को ओर उम्मीदें हैं.

सबकी हो सबरीमाला, साहित्य की सही रेसिपी, अब मेरे घर में देवता रहते हैं, बापू का आधुनिक बंदर आदि रचनायें मुझे बड़ी पसंद आई. कुल जमा किताब  पढ़े जाने के बाद तकिये के नीचे से निकलकर, बुकशैल्फ में शोभायमान करने योग्य है.

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 36 ☆ व्यंग्य संग्रह – बड्डे गढ़्डे और चौगड्डे – श्री रमाकांत ताम्रकार☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री श्री रमाकांत ताम्रकार जी  के  व्यंग्य -संग्रह  “बड्डे गढ़्डे और चौगड्डे ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 36 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह   – बड्डे गढ़्डे और चौगड्डे – व्यंग्यकार – श्री रमाकांत ताम्रकार

यह हम व्यंग्य यात्रियो का अपनापन ही है कि जहां सामान्यतः लोग स्वयं को छिपाकर रखना चाहते हैं, व एक आवरण में लपेट कर अपना रुपहला पक्ष ही सबके सम्मुख रखते हैं वही अपनी ही विवेचना करवाने के लिये व्यंग्य यात्री सहजता से ग्रुप में सबके सम्मुख उत्साह से  प्रस्तुत रहते हैं. रमाकांत ताम्रकार जी की सद्यः प्रकाशित कृति बड्डे गढ़्डे और चौगड्डे के शीर्षक में जबलपुर की स्थानीयता प्रतिबिंबित होती है .जबलपुर में जाने अनजाने हरेक को बड्डे संबोधन सहज है.  श्री रमाकांत ताम्रकार जी जबलपुर से हैं, आंचलिकता की महक उनके कई व्यंग्य लेखो में दृष्टिगत होती है. ३४ विभिन्न विषयो पर उन्होने व्यंग्य को माध्यम बनाकर चुटीली, रोचक प्रस्तुतियां इस पुस्तक में की हैं. इनमें से कई व्यंग्य उनके श्रीमुख से सुनने के सुअवसर भी मिले हैं. जैसे दो रुपये दे दो भैया, जरा खिसकना, राजनीति बनाम डकैती आदि. वे प्रवाहमय लिखते हैं. वे राजनीतिज्ञो को शेर की खाल में भेड़िया लिखते हैं, उन्हें हद्डी विहीन सर्प बताते हैं. हमने सीखा है कि व्यंग्य में केवल इशारो में बात होनी चाहिये पर वे सीधे मोदी जी का नाम लेकर लिखने का दुसाहस करने वाले व्यंग्यकार हैं. वे भ्रष्टाचार के रुपयों को बापू का सर्टिफिकेट लिखते हैं. आशय है कि व्यंग्य के माध्यम से समाज की विसंगतियो पर प्रहार की यात्रा में वे हम सभी के सहगामी हें. मेरी मंगल कामनायें उनके साथ हैं ।

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 35 ☆ व्यंग्य संग्रह – आप कैमरे की नजर में हैं – श्री हरीश कुमार सिंग ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री हरीश कुमार सिंग जी  के  व्यंग्य -संग्रह  “आप कैमरे की नजर में हैं ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 35 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह   – आप कैमरे की नजर में हैं 

पुस्तक –  आप कैमरे की नजर में हैं ( व्यंग्य-संग्रह) 

व्यंग्यकार – श्री हरीश कुमार सिंग 

पृष्ठ संख्या  – 128

 ☆  व्यंग्य– संग्रह – आप कैमरे की नजर में हैं – श्री हरीश कुमार सिंग  –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

इस सप्ताह व्यंग्य के सशक्त सुस्थापित हरीश सिंग की नई व्यंग्य कृति नजर अपनी अपनी पढ़ने का अवसर मिला .  अखबारो, पत्र पत्रिकाओ सोशल मीडिया में इनमें से अधिकांश पर मेरी नजर पड़ चुकी हैं . जो व्यंग्यकार केवल १२८ पृष्ठो में ४८ प्रभावी व्यंग्य लिखने की क्षमता रखता है उसे पढ़ना कौतुहल से भरपूर होता है . बड़े कम शब्दो में टू द पाईंट व्यंग्य लिखना हरीश जी की खासियत समझ आती है . वे व्यंग्य समूहो, टेपा सम्मेलन जैसे आयोजनो से जुड़े हुये लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं .संपादको व पाठको को उनके समसामयिक व्यंग्य पसंद आते हैं .

संग्रह  के व्यंग्य विषय देखिये मार्निग वाक, ओपनिंग आफ न्यू हास्पिटल, बच्चों हम शर्मिंदा हैं, अफसर कल्चर, संकट में विचारधारा, व्हाट्सएप, मी टू, आप कैमरे की नजर में हैं, रिश्वत ड़िश्तेदार और राजनीति, हिंदी की विनती, लिव इन रिलेशन, शीर्षक व्यंग्य नजर अपनी अपनी, काव्य गोष्ठी, बिन बाबा चैन कहां, हनी ट्रैप, ये सारे ऐसे विषय हैं जो हमारे परिवेश या बाक्स न्यूज के रूप में हम सबकी नजरों से गुजरे हैं . इन विषयो को अपने मन के डार्करूम में डेवेलप कर एक चित्रमय व्यंग्य झांकी दिखाने का काम घटना के तीसरे चौथे दिन ही हरीश जी की कलम करती रही . फिर संकलित होकर पुस्तक बन गई .

सीमित शब्द सीमा में सहज घटनाओ से उपजी मानसिक वेदना  को वे प्रवाहमान संप्रेषण देते हैं, पाठक जुड़ता जाता है, सरल कटाक्षो का मजा लेता है, जो समझ सकता  है वह व्यंग्य में छिपा अंतर्निहित संदेश पकड़ लेता है, व्यंग्य पूरा हो जाता है .

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक आत्मकथ्य: ☆ मृग तृष्णा ☆ – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

आत्मकथ्य: मृग तृष्णा  – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

आत्मकथ्य:  ‘मृग तृष्णा’ पुस्तक समाज के विभिन्न पहलुओं पर मार्मिक कविताओं का संकलन है| प्रत्येक कविता दिल को छू लेने वाली है| ‘आजाद हो गए मोती’ में कैसे संयुक्त परिवार का बिखराव हुआ और आज सब क्या महसूस करते हैं इसका बहुत भावुक वर्णन है| ‘रिश्तों की हवेली’ में पहले रिश्ते कितने संजीदा होते थे उसका भावुक वर्णन किया है| ‘मृग तृष्णा’ कविता में दर्शाया है की इंसान जीवन भर अपनी इच्छाओं के पीछे भागता रहता है,उसके पीछे बहुत कुछ खो देता है मगर फिर भी अंतिम क्षण तक वो अपनी इच्छाओं से पार नहीं पा सकता | अन्य कविताएं मसलन ‘रिश्तों में जमी बर्फ’, ‘शब्द की गाथा’, ‘याद’, ‘खुशियों का झरना’ एवं ‘कहो तो चले अब’ दिल को अंदर तक झझकोरने वाली है| सैनिकों के सम्मान में भी कुछ कविताएं है | ‘मंजर शहीद के घर का’ देश के सैनिकों एवं उनके परिवार पर बहुत भावुक, मार्मिक एवं दिल को छू लेने वाली कविता है| पुस्तक की सभी 50 कविताऐं सामाजिक,पारिवारिक एवं देश के सैनिकों पर मार्मिक, भावुक एवं आम आदमी की जिंदगी का प्रतिबिम्ब है | लेखक का परिचय लेखक की एक सामाजिक प्रेरणा की कविता पुस्तक ‘सफर रिश्तों का’ अमेज़न पर उपलब्ध है| रंगमंच प्रकाशन की साझा संकलन-I में कविताएं प्रकशित हो चुकी है| विंग वर्ड राष्ट्रीय स्तर की कविता प्रतियोगिता में सर्टिफिकेट ऑफ़ मेरिट का अवार्ड प्राप्त किया है| अनेक रचनाएं विभिन्न पत्रिकाओं में छप चुकी हैं| लेखक की कुछ और पुस्तकें शीघ्र प्रकाशित होने जा रही है| प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  *सफर रिश्तों का* तथा* मृग तृष्णा* कविता पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रही है।
श्री यतीन्द्र गोविल, गीतकार
आपके एक गीत “ए परिंदे आसमान में दूर कहाँ तुम जाते हो” को श्री यतीन्द्र गोविल जी (उदयपुर, राजस्थान) ने स्वर दिया है। श्री गोविल जी 81 वर्ष के हैं और आपके आकाशवाणी उदयपुर से 1984 से 2000 तक गीत प्रसारित होते रहे थे।  आपके यूट्यूब और फेसबुक पर अब तक 2670 गीत उपलब्ध हैं और निरंतर बढ़ाते ही जा रहे हैं । उम्र के इस पड़ाव पर श्री यतीन्द्र गोविल जी का जज्बा निश्चित ही हमें उत्साह प्रदान करता है।
ई- अभिव्यक्ति की ओर से श्री गोविल जो को हार्दिक शुभकामनाएं। 
आप श्री माथुर जी का उपरोक्त गीत निम्न लिंक पर सुन सकते हैं –

मृग तृष्णा से एक अत्यंत भावप्रवण  कविता >>>

☆ ढूंढ़ रहा हूँ रफूगर ☆

उधड़ गयी है जिंदगी चारों तरफ से,

पैबन्द जगह-जगह मैंने खुद लगाए,

अब हर तरफ पैबन्द लगी नजर आती है जिंदगी ||

 

ढूंढ़ रहा हूँ शायद कोई रफूगर मिल जाये,

जो जिंदगी को रफू कर दे,

जगह-जगह से उधड़ी हई नज़र आती है जिंदगी ||

 

जितना ज्यादा संभल कर कदम रखता हूँ,

उतनी ही ज्यादा उलझ कर,

और ज्यादा उधड़ी हई नज़र आती है जिंदगी ||

 

काश ! कोई जिंदगी का रफूगर मिल जाता,

जो एक-एक रिश्तों को मिला कर,

रफू कर देता तो पहले सी नज़र आ जाती जिंदगी ||

 

फूलों की बजाय मैं कांटों में उलझ गया,

काश कांटों की जगह,

फूलों से उलझ जाता तो फूलों सी महक जाती जिदगी ||

 

श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी की पुस्तक सफर रिश्तों का  निम्न लिंक्स पर उपलब्ध हैं :

Amazon India(paperback and Kindle): सफर रिश्तों का
AMAZON (INTERNATIONAL) : 1।  सफर रिश्तों का  2। सफर रिश्तों का 
AMAZON (KINDLE EDITION INTERNATIONAL) : सफर रिश्तों का
KOBO.COM : सफर रिश्तों का

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 34 ☆ व्यंग्य संग्रह – बारात के झम्मन – श्री सुनील जैन राही ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री सुनील जैन राही जी  के  व्यंग्य -संग्रह  “बारात के झम्मन” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 34 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह   –  बारात के झम्मन 

पुस्तक –  बारात के झम्मन ( व्यंग्य-संग्रह) 

व्यंग्यकार – श्री सुनील जैन राही

प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर

मूल्य – रु 150/- पेपर बेक

ISBN 9789388167741

☆  व्यंग्य– संग्रह – बारात के झम्मन – श्री सुनील जैन राही –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

इस सप्ताह लाकडाउन में पढ़ा खूब पढ़ा. सुनील जैन राही  की व्यंग्य कृति बारात के झम्मन पूरी पढ़ डाली. मजा आया. समीक्षा बिल्कुल नहीं करूंगा, हाँ कंटेन्ट पर चर्चा जरूर करूंगा,   जिससे आप की भी उत्सुकता जागे और आप किताब का आर्डर करने के लिये मन बना लें. सुनील जी स्वयं एक स्थापित समीक्षक हैं, वे स्वयं सैकड़ो किताबों की समीक्षा लिख चुके हैं.  उल्लेखनीय है कि यह पुस्तक बोधि प्रकाशन से छपी है, त्रुटि रहित संपादन, सुंदर प्रस्तुति बोधि की खासियत है. जन संस्करण अर्थात पेपर बैक संस्करण है.

झम्मन वह साधारण सा बी पी एळ पात्र है जिसके माध्यम से सुनील जी समाज की विसंगतियों को हमें दिखाते हैं. झम्मन की जिंदगी की इन विडम्बनाओ को हम रोजमर्रा अपनी खुद की आपाधापी में खोये रहने के चलते अनदेखा करते रहते हैं. ऐसी विसंगतियां व्यंग्यकार के आदर्श समाज के स्वप्न में उसे कचोटती हैं,और वह अपनी सरल प्रवाहमान शैली में पाठक को अपने पक्ष में बहा ले जाता है. यही लेखकीय निपुणता उनकी सफलता है.

बारात के झम्मन किताब का शीर्षक व्यंग्य ही पहला लेख है. इस छोटे से व्यंग्य में बारातों में लाईट के प्रकाश स्तंभ उठाकर चलने वाले झम्मन की मनोदशा के चित्र अपनी विशिष्ट शैली में सुनील जी ने खिंचे हैं. सामान्यतः हम देखते ही हैं कि सजा धजाकर नाच गाने के साथ बारात को दरवाजे तक लाने वाले, लाईट के हंडे पकड़ने वाले गरीब दरवाजे से ही भूखे लौट जाते हैं. सैकड़ो भरे पेट अतिथियों को तो तरह तरह के व्यंजन परोसे जाते हैं, किंतु ये सारे गरीब झम्मन लाइट दिखाते नाचते हुये बारातियों पर लुटाये जा रहे रुपये बटोरते रह जाते हैं. यदि इस व्यंग्य को पढ़कर कुछ लोगों के मन में भी यह विचार आ जावे कि बेटी के विवाह के शुभ अवसर पर इन गरीबों को भी खाने के पैकेट ही बांट दिये जाने का लोकाचार बन जावे तो व्यंग्य का उद्देश्य मूर्त हो जावे. वे गरीबों के उस पक्ष पर भी प्रहार करने में संकोच नही करते जो उन्हें नागवार लगता है “झम्मन का दारू चिंतन”, मुफ्तखोर झम्मन, युवाओ को अब रोजगार नही रेवड़ी चाहिये ऐसे ही व्यंग्य हैं.

१२० पृष्ठीय किताब में ४७ ऐसे ही संवेदनशील व्यंग्य प्रस्तुत किये गये हैं. अधिकांश विभिन्न वेबसाइट या प्रिंट मीडीया में छप चुके हैं, किंतु विषय ऐसे हैं कि उनकी प्रासंगिकता दीर्घ कालिक है, और इसलिये इन्हें पुस्तक रूप में प्रकाशन का में स्वागत करता हूं.

कुछ शीर्षक सहज ही अपना मनतव्य उजागर करते हैं यथा चूना हिसाब से लगायें, चुनाव में बगावतियों और बारात में जीजा फूफा की पूंछ टेढ़ी होती है, अमरूद और चुनावी विकास दोनो सीजनल हैं, हाथ जोड़ने का मौसम है अभी वो बाकी ५ साल आप, देश में लोकतंत्र की इन विडम्बनाओ पर मैने अनेक व्यंग्यकारो के कटाक्ष पढ़े हैं, किन्तु जिस सुगमता से सुनील जी हमारे आस पास से उदाहरण उठाकर अपनी बातें कह देते हें वह विशिष्ट है. झम्मन इस बाजार में नेता जी बिक गये हैं सरकार में, हार्स ट्रेडिंग पर जोरदार प्रहार है. फेसबुक पर टपकते दोस्त सोशल मीडिया की हम सब की अनुभूत कथा है. गधे को प्रतीक बनाकर भी कई बेहतरीन व्यंग्य सुनील जी ने सहजता से लिख डाले हैं जैसे होली में गधो का महत्व, राजनीति की गंगा में गधों का स्नान, क्या चुनाव बाद गधो की लोकप्रियता बनी रहेगी ?

मुझे यह व्यंग्य संग्रह कहीं गुदगुदाता रहा, कहीं सोच में डालने में सफल रहा, कहीं मैने खुद के देखे पर अनदेखे दृश्य सुनील जी की लेखनी के माध्यम से देखे. मेरा आग्रह है कि यदि इसे पढ़ आपको उत्सुकता हो रही हो तो किताब बुलवाकर पढ़ डालिये, सारे व्यंग्य पैसा वसूल हैं.

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 33 ☆ व्यंग्य संग्रह – कौआ कान ले गया ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  एक व्यंग्यकार द्वारा स्वयं की पुस्तक कौआ कान ले गया  पर पुस्तक चर्चा। निःसंदेह यह आपके लिए नया अनुभव होना चाहिए। )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 33 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह   – कौआ कान ले गया   

पुस्तक – कौआ कान ले गया  (व्यंग्य  संग्रह )

व्यंगकार –  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव

पृष्ठ :  96

मूल्य :  60रु.

प्रकाशक :  सुकीर्ति प्रकाशन

आईएसबीएन :  81-88796-184-5

प्रकाशित :  जनवरी ०१, २००९

पुस्तक क्रं : 7236

मुखपृष्ठ : अजिल्द

 

☆  व्यंग्य–संग्रह  –  कौआ कान ले गया  –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव 

सारांश:

हम तो बोलेंगे ही, सुनो ना सुनो, यह बयान किसी कवि सम्मेलन पर नहीं है ना ही यह संसद की कार्यवाही का वृतांत है। यह सीधी सी बात है,  कलम के साधकों की जो लगातार लिख रहे हैं, अपना श्रम, समय, शक्ति लगाकर अपने ही व्यय पर किताबों की शक्ल में छापकर ‘सच’ को बाँट रहे हैं। कोई सुने, पढ़े ना पढ़े, लेखक के  अंदर का रचनाकार अभिव्यक्ति को विवश है। इस विवशता में पीड़ा है, अंतर्द्वद है, समाज की विषमता, दोगलेपन पर प्रहार है। परिवेश के अनुभवों से जन्मी यह रचना प्रक्रिया एक निरंतर कर्म है। विवेक जी के व्यंग्य लेख लगातार विभिन्न पत्र पत्रिकाओं, इंटरनेट पर ब्लाग्स में प्रकाशित होते है, वे कहते हैं, देश विदेश से पाठकों के, समीक्षकों के पत्र प्रतिक्रियायें मिलती हैं, तो लगता है, कोई तो है, जो सुन रहा है। कहीं तो अनुगूंज है। इससे उनके लेखन कर्म को ऊर्जा मिलती है। समय-समय पर छपे अनेक व्यंग लेखों के  संग्रह ‘रामभरोसे’ को व्यापक प्रतिसाद मिला। उसे अखिल भारतीय दिव्य अलंकरण भी मिला। ये लेख कुछ मनोरंजन, कुछ वैचारिक सत्य है। आपको सोचने पर विवश करते हैं।  प्रत्येक व्यंग कही गुदगुदाते हुये शुरू होता है, समाज की कुप्रथाओ पर प्रहार करता है और अंत में एक शिक्षा देते हुये, संभावित समाधान बताते हुये समाप्त होता है।  बहुत सीमित शब्दों में अपनी बात इस सुंदर शैली में कह पाना विवेक जी की विशेषता है।

पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में लेखकीय शोषण, पाठकहीनता, एवं पुस्तकों की बिक्री की जो वर्तमान स्थितियां है, वे हम सबसे छिपी नहीं है, पर समय रचनाकारों के इस सारस्वत यज्ञ का मूल्यांकन करेगा, इसी आशा के साथ, कोई ४५ व्यंग लेखो का यह संग्रह पाठक को बांधे रखता है।  दैनंदनी जीवन की वे अनेक विसंगतियां जिन्हें देखकर भी हम अनदेखा कर देते हैं, विवेक जी की नजरो से बच नही पाई हैं, उनका इस धर्म में दीक्षित होना सुखद है।  पुस्तक जितनी बार पढ़ी जावे नये सिरे से आनंद देती।

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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