मराठी साहित्य – कविता ☆ नामनवमी विशेष  –  रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  श्री रामनवमी पर्व पर विशेष  कविता “रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम।)

☆ श्री रामनवमी विशेष  –  रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम 

 

सूर्यवंशी रामराया , विष्णू रूप अवतार

एकपत्नी न्यायप्रिय,करी सत्य अंगीकार.. . . !

 

राम लक्षुमण जोडी, शत्रुघ्नाचा बंधुभाव

भरताचे स्नेहपाश, घेती अंतरीचा ठाव.. . !

 

माता कौसल्येचा राम, राम सुमित्रा नंदन

राम पुत्र कैकेयीचा, जणू वात्सल्य मंथन.. . !

 

रघुकुल शिरोमणी, कोटी श्लोक याची गाथा

ऐकताच रामरक्षा, लीन होई माझा माथा.. . . !

 

मरा मरा म्हणताना, राम मनी साकारला

वाल्मिकीच्या रामायणी,मूर्तीमंत आकारला.. . !

 

आकाशीचा चंद्र मागे,खेळायला बालपणी

जिंकुनीया स्वयंवर,सीतानाथ रघुमणी . . . . !

 

जानकीचा झाला नाथ ,राम दुःख निवारक

रावणास निर्दालूनी ,राम आदर्श प्रेरक. . . . !

 

विधात्याचा अभिलेख, राम भोगी वनवास

ऋषीमुनी उपदेश, रमणीय सहवास. . . . !

 

रामराज्य पहाण्याला, चौदा वर्षे गेला काळ

पापनाशी झाली धरा,यश कीर्ती घाली माळ.. . !

 

एकश्लोकी रामायण , राम कथा बोधामृत

रामलीला वर्णायला, प्रतिभेचे शब्दांमृत . . . !

 

जन्म आणि मृत्यू मधे ,राम चैतन्याचा सेतू

क्लेशमुक्त व्हावी प्रजा, राम मनी हाची हेतू. .. !

 

राम  असा राम तसा, राम कैवल्याचे धाम

कविराजे  वर्णियेला, कर्मफल रामनाम. . . !

 

श्री राम जय राम जय जय राम

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆ चंद्रकोर ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है असमय भयावह वर्षा पर आधारित रचना  “चंद्रकोर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆

☆ चंद्रकोर ☆

 

पाणी पाणी ओरडत राती उठलं शिवार

कसा अंधाऱ्या रातीला आला पावसाला जोर

 

वीज कडाडली त्यात आणि विझली ही वात

धडधडते ही छाती भीती दाटलेली आत

झोप उडाली घराची जागी रातभर पोरं

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

मेघ रडवेला झाला कुणी डिवचल त्याला

गडगड हा लोळला ओला चिंब केला पाला

त्याला शांतवण्यासाठी बघा नाचला हा मोर

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

चंद्र होता साक्ष देत शुभ्र होतं हे आकाश

क्षणभरात अंधार कुठं गेला हा प्रकाश

काळ्या ढगानं झाकली कशी होती चंद्रकोर

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

डोळ्यांसमोर तरळे जसा कापसाचा धागा

एका दिसात टाचल्या त्यानं धरतीच्या भेगा

इंद्र देवाने सोडला वाटे जादूचा हा दोर

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

जाऊ पावसाच्या गावा सोडू कागदाच्या नावा

नावेमधे हा संदेश ठेवा लक्ष तुम्ही देवा

जशी खेळातली नदी दिसो उघडता दार

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 41 –  गाठोडे ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  नानी / दादी की स्मृतियों में खो जाने लायक संयुक्त  परिवार एवं ग्राम्य परिवेश में व्यतीत पुराने दिनों को याद दिलाती एक अतिसुन्दर मौलिक कविता   “ गाठोडे”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 41 ☆ 

 ☆  गाठोडे 

 

कुठे गेले आजीबाई

तुझे गाठोडे ग सांग।

खाऊ, खेळणी, औषध

यांची देत आसे बांग।

 

गाठोड्यात पोटलीची

असे जादू  लई भारी।

क्षणार्धात दिसेनासी

होई समूळ बिमारी।

 

काच कांगऱ्या कवड्या

खेळ पुन्हा रोज रंगे।

सारीपाट  सोंगट्यांची

हवी मला जोडी संगे।

 

मऊशार उबदार

तुझी गोधडी जोडाची।

जादू तिची वाढविते

कशी रंगत स्वप्नाची।

 

गाठोड्याची कळ तुझ्या

कुणी दाबली ग बाई।

सर त्याची कपाटाला

कशी येईल ग बाई।

 

श्रीमतीचे आईचे हे

भूत जाईल का देवा

गाठोड्याच्या मायेचा तो

पुन्हा देशील का ठेवा।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 4 ☆ स्वप्न ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण  कविता “स्वप्न“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 4 ☆

☆ कविता – स्वप्न ☆ 

 

स्वप्नात एक आली छाया तुझ्या रुपाची

निःशब्द शांतता अन् ती रात्र चांदण्याची।।

 

परिधान करुनी आली वस्त्रे अशी धुक्यांची

डोकाऊनी पहाती अंगांग यौवनाची

आशा मनात फुलली मिळो साथ एकदाची

निःशब्द शांतता अन् ती रात्र चांदण्याची।।

 

एकेक पावलांचा झंकार उठे गगनी

आलीस जवळी माझ्या तू लहरीस्वरांमधुनी

लाऊ नको विलंबा ही वेळ मीलनाची

निःशब्द शांतता अन् ती रात्र चांदण्याची।।

 

हृदयात हृदय गुंतुनीया एकजीव होता

एका विशिष्ट घटिके रती मदन तृप्त होता

झाली पहाट वेळा अन् स्वप्न मोडण्याची

निःशब्द शांतता अन् ती रात्र चांदण्याची।।

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 30 ☆ जीव ताटवा फुलांचा ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  मराठी कविता  “जीव ताटवा फुलांचा ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 30 ☆

☆ जीव ताटवा फुलांचा  ☆

कधी दूर

ताटवा फुलांचा,

माझ्या संगतीला येतो.

 

कधी दूर

ताटवा चांदण्यांचा,

राती संगतीला राहतो.

 

कधी रात

राहते संगतीस,

तव आठवांचा पूर येतो.

 

कधी आठवणींच्या

हिंदोळयावर सूर,

डोळ्यांतून येतो.

 

कधी सूर

आळवी- आर्जवी,

उर हळाळून येतो.

 

कधी जीव

आठवांच्या ताटव्यात,

चांदणेच होतो.

 

© सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684

[email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ राजमाता जिजाऊ ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अत्यंत भावपूर्ण कविता “राजमाता जिजाऊ “।)

☆ कविता –  राजमाता जिजाऊ  ☆

 

राजमाता जिजाऊने

इतिहास घडविला

सिंदखेड गाव तिचा

कर्तृत्वाने सजविला.. . . !

 

उभारणी स्वराज्याची

शिवबाचा झाली श्वास

स्वाभिमान जागविला

गुलामीचा केला -हास.. . . !

 

सोनियाच्या नांगराने

जनी पेरला विश्वास

माता, भगिनी रक्षण

कर्तृत्वाचा झाली ध्यास.

 

माय जिजाऊची कथा

मावळ्यांचा काळजात

छत्रपती शिवराय

दैवी लेणे अंतरात.. . !

 

वीरपत्नी, वीरमाता

संघटीत शौर्य शक्ती

भवानीचा अवतार

चेतविली देशभक्ती.. . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 42 – कोरोना व्हायरस चे थैमान ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक समसामयिक भावपूर्ण  आलेख एवं कविता “कोरोना व्हायरस चे थैमान“ ।  मैं सुश्री प्रभा जी के विचारों से सहमत हूँ एवं सम्पूर्ण विश्व में शान्ति एवं मानवता के लिए रचित प्रार्थना का सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय के सिद्धांत हेतु  उनकी प्रार्थना में उनके साथ एक प्रार्थी हूँ । इस भावप्रवण अप्रतिम रचना  एवं प्रार्थना के लिए  उनको साधुवाद एवं  उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 42☆

☆ कोरोना व्हायरस चे थैमान ☆ 

चीन मध्ये निर्माण झालेल्या कोरोना नावाच्या विषाणू ची सगळ्या जगात दहशत निर्माण झाली आहे. या विषाणू ची बाधा म्हणजे “महामारी” असे दृश्य दिसतेय, पूर्वी “करोना” नावाची एक शूज कंपनी होती, या कंपनीची चप्पल वापरल्याचेही मला स्मरते आहे..आज एक मजेशीर विचार मनात आला, हा “क्राऊन” च्या  आकाराचा विषाणू विधात्या च्या पायताणाखाली चिरडला जावा.हीच प्रार्थना!

या आपत्तीमुळे संपूर्ण मानवजात हादरली आहे.योग्य काळजी तर आपण घेतच आहोत, घरात रहातोय, घरातली सर्व कामं स्वतः करतोय, कौटुंबिक सलोखा राखतोय, प्रत्येकाला ही जाणीव आहेच, “जान है तो जहां है।”

आज चैत्र प्रतिपदेला माझी ही प्रार्थना सा-या विश्वा साठी—–

? प्रार्थना ?

 येवो प्रचंड शक्ती या प्रार्थनेत माझ्या

येथे पुन्हा नव्याने चैतन्य दे विधात्या

आयुष्य लागले हे आता इथे पणाला

हे ईश्वरा सख्या ये प्राणास वाचवाया

अगतिक नको करू रे तू धाव पाव आता

साई तुझ्या कृपेची आम्हा मिळोच छाया

लागो तुझ्याच मार्गी ओढाळ चित्त रामा

सारी तुझीच बाळे सर्वांस रक्षि राया

हे बंध ना तुटावे सांभाळ या जिवाला

देवा तुझ्याच हाती प्रारब्ध सावरायला

येथे पुन्हा नव्याने बहरोत सर्व बागा

नूतन वर्षाच्या हार्दिक शुभेच्छा!

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ विश्वमारी म्हणा किंवा महामारी ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव  समसामयिक होती हैं।

ज प्रस्तुत है  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  द्वारा  मानवता के लिए मेरी कविता विश्वमारी या महामारी “ का मराठी भावानुवाद ।  मैं  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  ( हिंदी , संस्कृत, अंग्रेजी एवं उर्दू के विद्वान ) एवं  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  का  हृदय से आभारी हूँ जो उन्होंने मेरे आग्रह को स्वीकार कर इस समसामयिक कविता का क्रमशः अंग्रेजी एवं मराठी  में भावानुवाद किया।  आप मौलिक हिंदी कविता एवं अंग्रेजी भावानुवाद निम्न लिंक्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं – 

 

☆ कविता –  विश्वमारी म्हणा किंवा महामारी ☆

 

विश्वमारी म्हणा किंवा  महामारी

तुम्ही मला काहीही म्हणा

नैसर्गिक आपत्ती  किंवा

मानव निर्मित षडयंत्र म्हणा.

अखेर हरणार तुम्हीच.

 

असेनही मी.. .  तुमच्या लेखी

भयानक नैसर्गिक आपत्ती

यापूर्वीही तुम्ही मला पाहिलय

वादळापूर्वीची शांतता म्हणून

सहन देखील केलय… !

प्रचंड घाबरून गेला होतात तुम्ही

चक्रीवादळे,  गारपीट

भुकंप, ज्वालामुखी  आणि त्सुनामी.

तुम्ही  अनुभवलीत या  आधी

ओझोन प्रणीत घालमेल

वैश्विक उष्णता

अनाठायी बाष्पीभवन

आणि नैसर्गिक समतोल ढासळणारी

अस्मानी संकटे

पण

तुम्हाला ते पटलं नाही

मग  आत्ता तरी मान्य करा…

ही नैसर्गिक आपत्ती नाही

मानव निर्मित षडयंत्रच आहे

ज्याचे कर्ते धर्ते तुम्हीच आहात

तुम्हीच धरलय वेठीला

निसर्गाला नाही

पण

समस्त मानव जातीला.

 

लाभली होती तुम्हालाही

नश्वर संसार – ब्रह्मांड

सुजलाम सुफलाम वसुंधरा

आणि

हा  अलौकिक  मानव जन्म

सृजनशील, रमणीय, विहंगम दृश्य

सहा  ऋतुचे सहा सोहळे

परीपूर्ण समृद्ध निरोगी जीवन

वनौषधी,  वनसंपदा

सुंदर रमणीय धबधबे

शांत समुद्र किनारे

आणि

आणि बरंच काही. . .

अमूल्य ठेव होती ही

आनंदी जीवन जगण्यासाठी.

 

पण नाही

तुम्ही तुमचेच म्हणणे खरे केले.

या सदाहरित, सुजलाम भुमी पेक्षा

‘वैश्विक ग्राम’ संकल्पना तुम्ही जवळ केलीत.

परंतु ‘वसुधैव कुटुंबकम’  हा  मूलमंत्र

तुम्ही सोयीस्करपणे विसरलात.

 

तुम्ही मानवता,  माणुसकी

याचही वर्गीकरण केले

रंगभेद, धर्म आणि जातियवादाच्या  नावाखाली.

प्राधान्य दिले तुम्ही

लढाई, युद्ध, विश्वयुद्ध आणि राजकारणाला

प्राधान्य दिले महाशक्ती,  अणुशक्तीला

पर्यावरणाच्या असंतुलित लिकसनाला

मद्य,  मांसाहार  आणि अवैध तस्करीला

विनाश कारी अस्त्र शस्त्रांना

स्वसंहारक जैविक  विघातक शस्त्रांना

अहिंसे ऐवजी हिंसेला

प्रेमा  ऐवजी ईर्षेला..  स्वार्थाला

तुम्ही तुमची सारी ताकद

खर्ची घातलीत विध्वंसात

गॅस चेम्बर आणि कॉन्सेंट्रेशन कैम्प

हिरोशिमा-नागासाकी आणि भोपाल गॅस दुर्घटना

आहेत साक्षीला.

तुम्ही विसरलात

किती केल्या भृणहत्या

गर्भजल परीक्षा

प्रत्येक सेकंदाला वाढणारी महामारी

कुपोषण समस्या, बेरोजगारी साथीचे रोग

आणि

द्वेष, हिंसा यांनी घेतलेले बळी…

पण तेव्हाच जर का

सारी शक्ती  एकवटून

जर केले असते माणुसकीचे संघटन

जर दिला असता  आधाराचा हात

आणि केले असते प्रथमोपचार

तर लाभले  असते आरोग्य वरदान.

 

विश्वमारी म्हणा किंवा  महामारी

तुम्ही मला काहीही म्हणा

नैसर्गिक आपत्ती  किंवा

मानव निर्मित षडयंत्र म्हणा.

अखेर हरणार तुम्हीच.

 

आज जेव्हा तुम्ही

स्वतःला  आरश्यात पाहिले

तेव्हा खरे घाबरलात

आपापल्या घरात दडून बसलात

आत्ता  उठा

आणि लढा माझ्याशी

तुम्हीच  आहात जबाबदार

या परिस्थितीतीला

अजूनही वेळ गेलेली नाही

निसर्ग समतोल साधा

निसर्गाविरूद्ध जाऊन वागू नका

रंगभेद, धर्म  आणि जातियवाद

यातून बाहेर पडा

माणसातल्या माणुसकी वर प्रेम करा.

 

अगदी स्वतःसाठी नाही

पण येऊ घातलेल्या तुमच्या

पुढील पिढीसाठी तरी

आपल्या जन्माचे सार्थक करा.

तुम्ही जगत  आहात

मी पण जगते आहे

तुम्हाला देण्यासाठी

 

सृजनतेचे वरदान आहे.

ही सुजलाम सुफलाम वसुंधरा

तुमची होती,  तुमची आहे

आणि तुमच्या पुढील पिढीकडे ही

समृद्ध होऊन जाईल

 

तुमच्यातला माणूस फक्त

जीवंत ठेवा

हा शाश्वत ठेवा जपण्यासाठी. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 43 ☆ मावृत्वाचा पदर ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  “मावृत्वाचा पदर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 43 ☆

☆ मावृत्वाचा पदर ☆

मी नाही देऊ शकत

तुझ्या मातृत्वाच्या पदराला

सागर किंवा आकाशाचं परिमाण…

 

अमृताहू मधुर अशा मातेच्या दुधावर वाढलेला जीव

अमृतासारख्या भ्रामक कल्पनेला

कसा देऊ शकेल थारा…

 

ॐकाराचा ध्वनी, चित्त शांत करीत असला तरी

माझ्या मातेच्या मुखातून निघालेले ध्वनी

मला आजही उर्जा देऊन पुलकीत करतात…

 

सूर्याचा प्रखर प्रकाश सौम्य करण्यासाठी

ती होते चंद्र

आणि

लेकराच्या आयुष्याचं करून टाकते तारांगण…

 

तारांगणाला बांधलेल्या पाळण्याची दोरी

तिच्या हातात असते म्हणून

चंदनाच्या पाळण्यातलं आणि

झोळीतलं बाळही तेवढ्याच निर्धास्तपणे झोपतं

गरीब श्रीमंतीचा भेदभाव विसरून…

 

जगातली कुठलीच माता गरीब नसते

मातृहृदयाच्या तिजोरीत

न मावणारी श्रीमंती

तिच्या प्रत्येक कृतीतून दिसत असते.

 

म्हणूनच  मातृत्वाच्या पदराला

मी नाही देऊ शकत

सागर किंवा आकाशाचं परिमाण…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ करोना करोना माजलास काय ?  ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है विश्व भर में फैली महामारी कोरोना वाइरस से सम्बंधित समसामयिक, विचारणीय कविता  “ कोरोना कोरोना माजलास काय  )

 ☆ कविता –  कोरोना कोरोना माजलास काय ? ☆

 

कोरोना कोरोना

माजलास काय

गर्दीच्या ठिकाणी

घुसलास काय ?

गर्दीच्या ठिकाणी जमावबंदी

करणार तुझी संचारबंदी.

सर्दी खोकला आणि ताप

लक्षणे तुझी घेऊन जा.

घाबरणार नाही

मरणार नाही

तुझ्या गमजा

चालणार नाही .

आम्ही घेतोय सावधानी

नको तुझी मनमानी.

आलास तसाच निघून जा

धुतलेत हात निसटून जा.

तुझे चाळे तुझ्या पाशी

आमचे स्वास्थ्य आमच्या पाशी.

तुझी  डाळ शिजणार नाही

संसर्गाने मरणार नाही.

असला जरी तू सर्वनाशी

पुरे झाल्या पापराशी.

नसलो जरी अविनाशी

आम्ही आहोत पापनाशी.

आम्ही आहोत पापनाशी.

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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