(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ “कवितेच्या प्रदेशात” में उनकी एक कविता “कोजागरी”. सुश्री प्रभा जी की इस कविता में कोजागरी का तात्पर्य शरद पूर्णिमा की कोजागरी से नहीं अपितु इसे एक उपमा के रूप में लिया गया है। आप इसे संयोग एवं सामयिक कह सकते हैं क्यूंकि आज भी पूर्णिमा है। कार्तिक पूर्णिमा अथवा त्रिपुरारी पूर्णिमा जिस दिन भगवान् शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था जिसके कारण इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। सुश्री प्रभा जी ने अपनी सखी की प्रत्येक क्रिया कलापों को विभिन्न उपमाओं से अलंकृत किया है और उनमे पूर्णिमा के चन्द्रमा का विशेष स्थान है। विभिन्न उपमाएं एवं शब्दों का चयन अद्भुत है। सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 23 ☆
☆ कोजागरी ☆
माझ्या सखीचे बोलणे
कोजागरी चे चांदणे
तिच्या अलवार मनी
सदा प्रीती चे नांदणे
तिच्या मनात मनात
एक अथांग सागर
कटू क्षणांवर घाली
सखी मायेची पाखर
तिच्या अवघेपणात
एक खानदानी डौल
सोनसळी स्वभावाला
हि-या माणकाचे मोल
अशा प्रांजळ नात्याचे
कसे फेडायचे पांग
शुभ्र चांदणरात ती
तिचा मोतियाचा भांग
© प्रभा सोनवणे
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