मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 6 ☆ लक्ष्मणरेषा ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक एवं शिक्षाप्रद कविता “लक्ष्मणरेषा“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 6 ☆

☆ कविता – लक्ष्मणरेषा

लक्ष्मणाने आखलेली लक्ष्मणरेषा

नाही पाळली सीतेने, म्हणून तिला

पळवून नेली रावणाने

अडविले प्रयत्नपुर्वक जटायुने

विलगीकरणात बसविले

लंकेच्या अशोक वाटिकेने

शोधुन काढले हनुमानाने

सेतू पार केला सुग्रीवसेनेने

रावणाला मारून सोडविले रामलक्ष्मणाने

खरं सांगा, नकोच पार करायला होती नं,

लक्ष्मणरेषा सीतेने……..

 

ललकारले त्वेषात सुग्रीवाने

रोखले गुहेतच पत्नी ताराने

न ऐकता वाली बाहेर आला

अतिशय रागारागाने

शक्तीमान असुनही

विनाकारण मारल्या गेला

केवळ बाहेर आल्याने

खरं सांगा,नकोच बाहेर यायला

पाहिजे होते नं

वाली राजाने………

 

लंकेत सुखी होता रावण

त्याला उचकविले शुर्पनखेने

समज दिली बिभिषनाने

परोपरीने समजाविले मंदोदरीने

नका लंकेबाहेर जाऊ राजन

सीता प्रलोभणाने

पण कुणाचेही न ऐकता

रावण लंकेबाहेर गेला हेक्याने

शेवटी,युद्धात मारला गेला

बंधू पुत्रासह अती गर्वाने

खरं सांगा, नकोच बाहेर जायला पाहिजे होते नं

सीताहरणासाठी रावणाने……….

 

म्हणून सांगतो महिला पुरूषांनो

घरातच राहिले पाहिजे सुखाने

घराची लक्ष्मणरेषा ओलांडून

बाहेर जाऊ नका हेक्याने

नाहीतर कोरोनामुळे विनाकारण बळी जाल धोक्याने..,………

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 30 ☆ कोरोनाची ऐशी तैशी ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  कोरोना विषाणु  पर  एक समसामयिक रचना  “कोरोनाची ऐशी तैशी”। उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 30 ☆

☆ कोरोनाची ऐशी तैशी ☆ 

(काव्यप्रकार:-अभंग रचना)

कोरोनाच्या मुळे !

जग थांबलया !

विश्रांती घेतया !

शांतपणे !!१!!

 

अनेक वर्षांची !

रेल्वेची ती सेवा !

घेतीये विसावा !

मनसोक्त !!२!!

 

वाहणारे रस्ते !

घेतात आराम !

कधीच विश्राम !

नसे त्यांना !!३!!

 

जाहलिये थंड !

वाहनांची गर्दी !

पोलीसांची वर्दी !

जागोजागी !!४!!

 

हात ते हातात !

घेत नाही आम्ही!

म्हणतो हो आम्ही !

रामराम !!५!!

 

हात धुण्यासाठी !

सॅनिटायझर !

हो वापरणार !

घरोघरी !!६!!

 

कोरोना रोखण्या !

डॉक्टर धावती !

सिस्टर पळती !

मदतीला !!७!!

 

घरात बसुनी !

पाळुया नियम !

शासना मदत !

करुयाहो !!८!!

 

घरात राहूनी !

खेळ आम्ही खेळू !

साखर ती दळू !

जात्यावर !!९!!

 

सागर गोट्यांच्या !

खेळात हातांना !

व्यायाम डोळ्यांना !

छान होई !!१०!!

 

सागर किनारी !

स्वच्छंदपणाने !

आनंदे हरिणे !

बागडती !!११!!

 

पिसारा फुलवी !

मोर तो सुंदर !

नाचे रस्त्यावर !

बिनधास्त !!१२!!

 

उर्मिला म्हणते !

नियम ते पाळा !

आरोग्य सांभाळा !

आपुलाले !!१३!!

 

©️®️ उर्मिला इंगळे, सातारा

दिनांक:-११-४-२०

!! श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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मराठी साहित्य – कविता ☆ ज्योती म्हणजेच क्रांती ☆ श्री कपिल साहेबराव इंदवे

श्री कपिल साहेबराव इंदवे 

(युवा एवं उत्कृष्ठ कथाकार, कवि, लेखक श्री कपिल साहेबराव इंदवे जी का एक अपना अलग स्थान है. आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशनधीन है. एक युवा लेखक  के रुप  में आप विविध सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने के अतिरिक्त समय समय पर सामाजिक समस्याओं पर भी अपने स्वतंत्र मत रखने से पीछे नहीं हटतेआज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय  एवं प्रेरक कविता ज्योती म्हणजेच क्रांती। 

☆ ज्योती म्हणजेच क्रांती☆

 

अखंड क्रांतीची ज्योत पेटवली

धाडसाने आद्य क्रांतिकारका

विचारांच्या तेजाने उजळवली

धरती सवे असंख्य तारका

तू जन्मला सत्य शोधण्यासाठी

माता बघिणींच्या शिक्षणासाठी

जाहलास ज्ञानाची अखंड गंगा

लढला असप्रुश्यता घालवण्यासाठी

शिक्षणाची देवता तूच ज्योती

धन्य तुझ्या अंगणातली ती हौद जाहली

महाराष्ट्रासवे ही भारत माता

नमन करून तुज महात्मा म्हटली

किती वंदावे तुज महात्मा

मानव धर्माचा पुरस्कर्ता

न्याय दिधला विधवा कूमारी

अनाथ बालकांचा पालनकर्ता

© कपिल साहेबराव इंदवे

मा. मोहीदा त श ता. शहादा, जि. नंदुरबार, मो  9168471113

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य – जाण ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक वात्सल्यमयी रचना ‘जाण’।  यह सत्य है कि  हम सब पैसों के लिए भागते हैं। जीवन में कई  क्षण आते हैं, जब लगता है कि पैसा ही  बहुत कुछ होता है । किन्तु, फिर एक क्षण ऐसा भी आता है जब लगता है कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य ☆

☆ जाण 

( करूण रस )

 

गेला लेक

दूर देशी

माऊलीचे

चित्त नेशी…….१

 

लागे मनी

हूर हूर

आठवांना

येई पूर…..२

 

एकुलता

लेक गेला

जीव झाला

हळवेला……३

 

पैशासाठी

गेला दूर

घरदार

चिंतातूर ….४

 

नाही वार्ता

नाही पत्र

अंतरात

चिंता सत्र…..५

 

एकलीच

वाट पाही

झाला  देह

भार वाही…..६

 

कोणे दिनी

पत्र आले

खूप सारे

पैसे  दिले…….७

 

हवा होता

त्याचा वेळ

लेकराने

केला खेळ……८

 

नाही तुला

काही कमी

देतो पैसे

दिली हमी ……९

 

वात्सल्याची

नाही जाण

माऊलीचा

गेला प्राण……१०

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 41 – लढूया लढाई….!  ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक अत्यंत भावप्रवण एवं प्रेरक कविता   “लढूया लढाई….!”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #41 ☆ 

☆ लढूया लढाई….! ☆ 

(जागतिक महामारी कोरोना विषाणू चे संकट संपूर्ण जगावर  असताना  आपण प्रतिबंधकात्मक उपाय म्हणून लाॅक डाऊन चा मार्ग  अवलंबिला आहे. या  काळात सुचलेली  एक रचना खास  आपल्यासाठी. . . . !)

 

इवला विषाणू    फिरे गावोगाव

महामारी  वाव   देण्यासाठी . . . . !

 

लढूया लढाई     घेऊनी माघार

टाळूयात वार     कोरोनाचा.. . !

 

प्रसारा आधीच   सावधानी हवी

संरक्षण हमी       कुटुंबास.. . . !

 

धन  आरोग्याचे   ठेऊ सुरक्षीत

करू  आरक्षीत    जीवनाला  .. . !

 

नको गळामिठी   करू नमस्कार

नवे सोपस्कार     पूर्ण करू. . . . !

 

गर्दीच्या ठिकाणी   नको येणे जाणे

टाळूयात जाणे      पदोपदी. . . . .!

 

संचार बंदीत     संपर्क टाळूया

नियम पाळूया    बचावाचे . . . . !

 

वारंवार स्वच्छ     ठेवू घरदार

संसर्गाचा वार      घातदायी . . . . . !

 

सर्दी खोकल्यात    उपचार  करू

रूमालास धरू       नाकापुढे    ……!

 

अंतर   ठेवून      येवू संपर्कात

सौख्य  बरसात  आशादायी. . . . !

 

करोना लागण     आहे महामारी

मृत्यू लोक वारी    ठरू नये.. . !

 

विचित्र हा शत्रू   कुणा ना  दिसला

मारीत सुटला     जग सारे. . . . !

 

परतूनी लावू    एक एक वार

टाळूया संचार   भोवताली  . . . . !

 

करू संरक्षण     नियमास पाळू

टाळू महामारी    विनाशक.. . !

 

…©सुजित कदम

मो.७२७६२८२६२६

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 44 – आज्ञाताच्या हाका☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  इस सदी के लिया आह्वान  “आज्ञाताच्या हाका  ।  हमारे समवयस्कों का सारा जीवन निकल गया और आज हम एक ऐसे दोराहे पर खड़े हैं  जो हमें अनजान राहों पर ले जाते हैं।  अक्सर तीसरी अदृश्य राह  भी है जो हमें दिखाई नहीं पड़ती जो हमें  अनजान और जोखिम भरी राह  पर ले जाती है। ऐसे क्षणों में हम जीवन के बीते हुए अनमोल क्षणों की स्मृतियों में खो जाते हैं और भविष्य दिखाई ही नहीं देता। आज की परिस्थितियों में सुश्री प्रभा जी ने मुझे निःशब्द कर दिया है । यदि आप कुछ टिपण्णी कर सकते हैं तो आपका स्वागत है। इस भावप्रवण अप्रतिम  रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 44☆

☆ आज्ञाताच्या हाका ☆ 

  या जगण्याला

आता कोणती आस?

हे वैश्विक विघ्न टळावे,

हाच एक ध्यास!

☆ आज्ञाताच्या हाका ☆ 

(एक मुक्त चिंतन )

 आयुष्य अवघे आता नजरेसमोर येते,

बालपण, किशोरावस्था, तारुण्य,

मनी घमघमते,

 

सूरपारंब्या, विटी दांडू, लगोरी ,सागरगोटे,

मनसोक्त खेळ…. ते हुंदडणे…

सारेच हृदयी दाटे…

 

ते दिवस छानसे होते,

शाळेची हिरवी वाट…

ती रम्य सख्यांची साथ….

दाटते धुके घनदाट

 

काॅलेज एक काहूर

काळजात कशी हूरहूर

उमटली दिनांची त्या ही

जगण्यावरी एक मोहर

 

संसार तसाही झाला,

जशी जगरहाटी असते…

प्राक्तनात होते ते ते ,घडले….

अन तोल असेही सावरले.

 

या जगण्यात रमले खूप

वय या वळणावर आले …..

मन उगाच गहिवरले…

बदलले रंग अन रूप….

 

अतर्क्य, अनाकलनीय आहे

इथला हा भव्य पसारा…

जाहले पुरे हे इतुके,

सारेच भरभरून येथे वाहे….

 

हे असेच राहिल येथे…

धरित्री, आकाश, हवा अन पाणी …

या आज्ञाताच्या हाका….पडतात आताशा कानी

 

मी खुप साजरे केले

जगण्याचे सौख्य सोहळे

कोणत्या दिशेला  आता..

आयुष्य – सांज मावळे…..

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆ कोरोना, नकोच तुझे सरकार ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक समसामायिक भावप्रवण कविता  “कोरोना, नकोच तुझे सरकार।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆

☆ कोरोना, नकोच तुझे सरकार☆

(अजब तुझे सरकार या गीताची समछंदी रचना)

 

कोरोना, नकोच तुझे सरकार

शतकामध्ये कधी न पाहिला, हा असला आजार

 

भेटीतून हा पसरे जगभर, चला ठेवुया थोडे अंतर

दुसरे नाही औषाध यावर, हाच एक उपचार

 

प्रत्येकाला मिळे कोठडी, महल असो वा असो झोपडी

प्राण्यांहूनही माणूस झाला, आज इथे लाचार

 

रस्त्यांवरचे दृष्य वेगळे, रस्ते सारे इथे मोकळे

प्रदूषण आणि अपघाताने, नाही कुणी मरणार

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – कविता ☆ सलोखा ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को  उनके साप्ताहिक स्तम्भ रंजना जी यांचे साहित्य के अंतर्गत पढ़ सकते हैं । आज  प्रस्तुत है  आपकी  एक समसामयिक एवं भावप्रवण कविता ” सलोखा”।)

☆ सलोखा ☆

अगणित जाती धर्म

देश संपन्न  अनोखा।

घडी सत्वपरीक्षेची

परि जपतो सलोखा।

 

जगी तांडव मृत्यूचे।

मती खुंटली जगाची।

पुत्र चाणाक्ष निर्धारी

पाठीराखे शतकोटी।

 

अभावात दावी प्रभा

स्वयंसिद्ध वैद्यराज।

फास रोखती मृत्यूचे

थक्क होई यमराज।

 

व्रत निस्पृह सेवेचे

असे परीचारिकेचे।

सेवा सुश्रृषा करून

बंध बांधी एकतेचे।

 

खाक्या खाकीचा दावितो

अहर्निश सेवादारी ।

दीन दुःखीतांचे अश्रू

पुसतसे शस्त्रधारी।

 

असा अनोखा सलोखा

उभ्या जगी ना मिळेल ।

कोरोनाचा विळखाही

प्रेमा पाहून गळेल।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 42 – कसे जगावे तिने ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  आपकी अत्यंत प्रेरक कविता ” कैसे जगावे  तिने ” . वास्तव में यह यक्ष प्रश्न है कि झाँसी की रानी और जीजा माता जैसी उन महान वीरांगनाओं को  आज की परिस्थितयों के लिए कैसे जगाया जाये। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 42 ☆

☆ कसे जगावे तिने ☆

 

देश असे हा झाशीवाली आणि माय जिजाऊ मातेचा।

कसे जगावे तिने नसे हा प्रश्न तिच्या त्या कुवतीचा।।धृ।।

 

कुसूमाहुनी भासे  कोमल …अंगी कणखर बाणा रे।

अखंड जपते परंपरांना,  संस्कृतीचा ती कणा रे

स्वराज्याचे स्वप्न घडविले , हा ध्यास तिच्या त्या हिंमतीचा।।१।।

 

तळहातावरी प्राण घेऊनी प्राणपणाने लढली रे।

स्त्री हक्काची नांदी गर्जत,..  ती साऊ रुपाने घडली रे।

शेण उष्टावणे पुष्प मानले धैर्य  तुझ्या त्या हिंमतीचे।।२।।

 

तमा तुजला ना लाख संकटे उंच भरारी घेताना।

कवेत घेशी अंबरास तू   स्वर्ग जगाचा करताना ।

तरी भूवरी पाय सदोदीत  भान तुला या संस्कृतीचे।।3।।

 

जरी बायकी पशू  माताले भ्याड हल्ल्याने छळती ग।

रणचंडी तव रूपं दावता  भूई मिळेना पळती ग।

दाणवास या दंड  देऊनी … ताडण कर या विकृतीचे।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 5 ☆ विषाणू ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक एवं शिक्षाप्रद कविता “विषाणू“.) 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 4 ☆

☆ कविता – विषाणू

एक विषाणू जगास अवघ्या देतोय धोखा

कोरोनाला रोखा आता कोरोनाला रोखा!!

 

चायना इटली स्पेन फ्रान्स आले कचाट्यात

दुर्लक्षित केले म्हणुनी ,मेले हजारांत

बाधितांना वेगळ्या कक्षात नेऊनी रोखा!!

 

सांगितलेल्या सर्व सुचना पाळाव्या निक्षुनी

प्रत्येकाने घरात अपुल्या रहावे दक्षतेनी

अत्यावश्यक कार्ये देखील जमे तोवरी रोखा !!

 

वारंवार हात धुवा, चेह-याला लावू नका

विषाणूसाखळी तुटेपावेतो कुठेही जावू नका

प्रत्येकाने संकल्प हा मनी धरावा सोपा !!

 

प्रशासनाने शक्य तेवढे सर्व काही केले

कोरोनाला रोखण्या जनतेला अपील केले

भारतियांनो कोरोनाला मिळेल तेथे ठेचा!!

 

 

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